साहित्य
– वाणी भारद्वाज
बेटीक मोनक व्यथा
‘हम कोन गाम के छी?’ महिला के सामने सरल आ जटिल प्रश्न. ओतय के जतय हमर वा ओतय के जतय हम विवाह क गेलहुँ, ओतहि के जतय जन्म के बाद लाड प्यार मे राखल गेल वा ओतय जतय बेसी उलहन भेटल, ओतहि के जतय मोनक बात बुझय लेल मात्र माँ काफी छल वा ओतहि के जतय मात्र अनकर बात बुझबाक छैक, ओतहि के जतय कनियो रुसला पर सब मनाबय लेल ठाढ वा ओतहि के जतय कियो रुसय नहि से ध्यान रखबाक छैक? आखिर महिला के घर असल मे कोन घरक? जतय जन्म भेलन्हि, लड़कपन बीतल, भावनात्मक लगाव सब सं बेसी जतय सं रहल, भाइ-बहिन, कका-काकी सं जुड़ल रहल, विवाह होइते तू आब आन घर केँ भऽ गेलें? किछुए दिन लेल आयल छँ पाहुन बनि क रहय. परिवार मे जे स्त्री केँ सबसे नजदीक माँ, ओहो बेटी सं दूरी बनेनाइ शुरु क दैत छथि. ओ माँ जे एक महिला होइतो बेटीक दर्द केँ अनसुना केनाइ शुरु कय दैत छथि. अपन घर सं उखरि क आन जगह गेला के दर्द एक माँ केँ सेहो धीरे-धीरे अनुभव केनाए कम करय लगैत छन्हि. बेटी लेल संवेदना कम होबय लगैत छन्हि. कि एतय समाज के डर होइत छैक? वा परिवार केर हित लेल एना कयल जाइत छैक? वा बेटा के पक्ष मे सोचि क लेल गेल निर्णय होइत अछि. बेटा एतेक प्रिय कि बेटी बेरक प्रसव पीडा बिसरि जाइत छैथ. एतेक निष्ठुरता? आब ओ घर तोहर अप्पन छौ, से कहल जाइत छैक. ओहि जगह फलागाम बाली कनिया, भौजी, काकी, दाइ एतबे नहि मरणोपरान्त ओ फलाँ गामबाली सं जानल जाइत छथि. आब कहू ओ गाम जतय के महिला होइ छथि, ओतहु कियो अप्पन नहि मानलकैन्ह. ओतहि जतह गेलीह ओतहु नहि अपलेनकैन्ह. ई सद्दह देखल जाइत अछि जे महिला के अपन अस्तित्वहीन जीवन जाहि मे हुनकर कोनो दोष नहि ई संवेदन विहिन समाज मे बहुत पैघ दंड भुगति रहल छैथ.