मोटरसाइकिल जे लेब ताहि सँ नीक पारी लिअ दहेज मेः रूबी झाक रोचक लघुकथा

लघुकथा

– रूबी झा

दलानपर मणिकांत जी केर घटक आयल छलैन बेटा के प्रति। बेटा नौकरी तँ नहि करैत छलखिन्ह, एखन कालेज में पैढते छलखिन्ह। एकटा जमाना रहैक जे बेटाक विवाह बाप आ घर-खनदान के नाम पर भऽ जाइक, ओहि जमानाक कहानी हम बता रहल छी अहाँ लोकनि केँ। आर, ओहि कारण बहुत कन्या आ कन्यागत भरि जिन्दगी माथ-कपाड़ पीटिते रहि जाय छलथि बाद मे। मणिकांत जी कचहरी में कार्यरत छलथि, बेटा असगरुआ छलैन आ माथ पर पाँच बिघा जमीन सेहो छलन्हि। कन्यागत सँ मणिकांत जी बेटाक दाम लगा रहल छलथि, छठियारक दूध तक के दाम! ओहि दाम में फटफटिया (मोटरसाइकिल) सेहो रहैन। कन्यागत आ मणिकांत जीक बीच वार्तालाप चलि रहल छलैन एना जेना एकटा दोकानदार आ ग्राहकक बीच में कुनू वस्तु केर खरीद-बिक्री में वार्ता होइयऽ। ताबे में मणिकांत जीक दरबज्जा पर विजय शंकर बाबू (गाम के जानल-मानल प्रतिष्ठित व्यक्ति) पहुंचला। ओ कहला मणिकांत जी सँ, “यौ महाराज! गाड़ी जे लेब से ओहि सँ नीक एक गोट पारी (महींसक बच्चा) लियऽ ने! पायलो बढत आ दूधो खायब, बचि जायत तँ बेचबो करब। गाडी लऽ कय कि करब? दहेजक पाइ जाबे धरि रहत ताबे धरि तँ तेल भरायब, तकरा बाद भूसा घर में फेंकि देबैक। देखैय नहि छियैक मिथिला में कतेको लोक ओतय भूसाघर में दहेजक फटफटिया फेकल छैक!” विजय शंकर बाबू केर बात सुनि ठठा कय सब हँसला। आर मणिकांत जी बजलाह (हँसिकय) – “अपने केँ तऽ हमरा दिश सँ बजबाक चाहैत छलय, परंतु अपने तँ हिनकर (कन्यागत) तरफ सँ बजलहुँ।” विजय शंकर बाबू बहुत द्रवित हृदय सँ बजलाह, “हम किनको दिश सँ नहि बजलहुँ। हम मिथिला केर व्यथा सुनेलहुँ। बड चिन्तीत छी जे हमर मिथिलाक उत्थान केना कऽ होयत? ई दहेज रुपि दानव हमरा सब केँ निगैल जायत। कहु तँ मणिकांत जी! बेटा अहि आ कि माल मवेशी जे एना दाम दिगर कय रहल छी? एक तरफ कहि रहल छी कुनो चीज के कमी नहि अछि, अहाँक बेटी हमरा घर मे रानी बनिकय रहती, आ दोसर तरफ भीखमंगा जेकाँ हाथ पसारि रहल छी?” मणिकांत जी विजय शंकर बाबू के बात सुनि बिन दहेजे लेने अपन बेटाक  विवाह करैय लेल तैयार भऽ गेलाह। आर कन्यागत अपन यथाशक्ति विदाइ दय अपन धिया केँ विदाह करबाक फैसला लेलनि।

हमरा विचार सँ हेबाको सैह चाही। कियो बेटीक बाप अपन बेटी केँ खाली हाथ थोड़े न विदाह कय देताह। यथासंभव बिना दबाव केँ देता तँ आनंदित भऽ देता। आखिर माँ बाप केर सम्पत्ति में बेटा-बेटी दुनू बराबर के अधिकारी छथि।