लघुकथा
– वाणी भारद्वाज
सोनदाइ केर विवाह
पिताजीक अचानक देहान्त भ गेलन्हि। आब सोन दाइ केर विवाह कोना होयत? कतय सं खर्च लेल पाइ आयत? पिताजी छलखिन्ह त अफसर मुदा पाइ जमा नहि कय गेलथिन्ह. घरक जिम्मेदारी भाइ पर आबि गेल. माँ केँ पेन्सन आ भाइ केर वकालत मे कनी-मनी भेल पाइ सं घर चलैत छलैक. आब सोन दाइ लेल वर देखनाइ शुरू भेल. कहल जे गेल छैक ‘संगतिक प्रभाव’ से सद्यह देखय मे आयल. अर्थाभाव केर कारण लोकवेद वर तेहने देखौलन्हि. बहिन लेल होमगार्ड के नौकरी करयबला वर सं विवाह ठीक भ गेल. विवाह ठीक भेला पर सोन दाइ नाखुश छलीह. सोन दाइ पैघ शहर मे पलल-बढल छलीह, पिताजी केर अचानक देहान्त के बाद ग्रामीण परिवेश मे एलीह. तेँ लड़का के घर पक्का के छय एतबे विवाह लेल पर्याप्त हुए से नहि पसंद छलन्हि. मुदा सुनय आ बुझय बला के? सोन दाइ केर विवाह भ गेलन्हि, मुदा साल लागय लेल गेल पति केँ कहियो पति नहि बुझली. पति यानी मर्द टा नहि होइत छैक. खैर! पति सेहो परेशान. अन्ततोगत्वा ई प्रतिदिनक झंझटि आ मनमुटाव केँ सुलझेबाक निर्णय सोनदाइ अपन होमगार्ड पतिक संग कयलीह. आपसी सुझबुझ सं सोनदाइ केँ हुनकर नेनपनक दोस्त जे सोनदाइ केँ मोनेमोन बहुत प्रेम करैत छल, हुनका लग सोनदाइ केँ छोड़ि एलाह. जाहि सं दुनू बहुत खुशी भेलथि आर सहमति सँ जीवनक गृहस्थी बसौलथि.
मुदा ई गप्प समाज तऽ समाज सोनदाइ केर भाइ आ भाउज केँ नाक कटाय लगलैन्ह. जीविते माय केँ दिन मे चारि बेर बेटी लेल गारि देल जाय लगलन्हि. एतहु स्त्री दोषी. बहिन के तमाम उम्र डयोढी नहि टपय दय के ठानि लेलाह. मायक आत्मा कानय, बेटी केर देखय लेल तरसैय, छटपटाय… मुदा ई बुझयबला के? कियैक त निर्णय लय के अधिकार बेटा लग छल. दिन बीतय लागल.
आब समय आयल ओहि भाइ आ भाउज केर बेटी विवाहक. हमरा लागल बहिन जेना कोनो होमगार्ड सं बेटियो केँ विवाह क देल जयतैक. मुदा नहि, बेटी त अपन जन्मल छलन्हि. नीक घर वर तकाय लागल. पाइ-कौड़ी त बड नहि छलन्हि मुदा ई आस जे जहिना बहिन बेर मे परिवारक पूर्ण सहयोग रहलन्हि तहिना बेटियो बेर मे होयत. समय के चक्र देखू, औझका समय मे सोनदाइ एकटा संभ्रान्त घर केर बधू छलीह. भाउज केँ सोनदाइ सं आस जागल. बीस साल बीत गेलैक, भाइ ई झाँकय तक नहि गेल जे बहिन जीवैत अछि कि मरि गेल, सोनदाइ केर दुइ गोट बच्चा नानी अछैते आइ धरि नानीगाम तक नहि देखलक, ताहि सब सं कोन मतलब. सोनदाइ भाइ केँ सहयोग करय लेल बजेलीह, हुनका ससम्मान हुनकर मोताबिक पाइ जाहि सं हुनकर समाज मे मान बनल रहय, आ संगहि उपहार-वस्तु आदि दय केँ बिदा केलीह. इन्सान कतेक स्वार्थी होइत अछि जे बापक बेटी केँ देखय के नजरिया अलग आ अपन संतान बेर मे किछु आर. सोनदाइ सेहो त ककरो बेटी छलीह. एहन भाइ आ भाउज केँ कोन श्रेणी मे राखल जाय? बतायल जाउ!