साहित्य
– मिथिलेश राय
१. !! हे माधव !!
हे माधव,
अंहाँ क’त छी !
घुरि आउ ,
राधा बाट जोहैत अछि !
ओ मुरलीक तान,
आ ‘ओ मधुर गान !
सुनैक लेल,
राधा व्याकुल अछि,
हे माधव,
अंहाँ क’त छी !
घुरी आउ अहि यमुना’क घाट पर,
राधा ठाढ़ अछि वएह बाट पर !
हे माधव बाँह ओना नहि मोरू,
कलाई त छोरू !
हे माधव,
इ नटखटपन जुनि करू !
हे माधव,
अंहाँ क’त छी !
घुरि आउ,
राधा बाट तकैत अछि !
© ✍..मिथिलेश राय
धमौरा:-०२-०९-२०१८
२. !! हे रौ करिया !!
हे रौ कनहैया हे बनबारी,
हे रौ करिया गोविन्द गिरधारी !
कियो कहै छौ शयाम बिहारी,
आ कियो कहै छौ मदन मुरारी !
हे रौ करिया गोविन्द गिरधारी”
माखन मिश्री तोँ चोरी करै छँए,
तौयो मोहना तोँ सीना जोरी करै छँए !
यमुना तट पर तोँ जा बैसै छँए,
मधुर मुरली’क तोँ धुन बजबै छँए !
गोपी सभ संग रास रचै छँए,
राधा के मोन तोँ सेहो मोहै छँए !
तोँ ही छँए शयामल बनबारी,
हे रौ करिया गोविन्द गिरधारी !
नंन्द बाबा के तोँ नंन्द लाल छँए,
मैया यशोदा’क तोँ प्राण छँए !
नहिं जानि कुन-कुन तोँ भेष धरै छँए,
तैँ तोँ नटखट छलिया कहबै छँए !
तोरे लए छौ व्याकुल राधा प्यारी,
हे रौ मोहना मदन मुरारी,
हे रौ करिया गोविन्द गिरधारी !
© ✍..मिथिलेश राय
धमौरा:- २३-०८-२०१९