लेख-विचार
– ममता झा
“नारी अहाँक रूप अनेक” – हम पुछलहुँ लोक सब सँ जे नारीक कतेक रूप अइ… कियो माँ कहलक, कियो बहिन कहलक, कियो हमसफर, कियो ममता के मूरत त कियो दोस्त त कियो सच के सुरत कहलक। सब अपना-अपना हिसाब सँ वर्णन केलक।
नारीक जन्म आ जीवनक पड़ाव तीन बेर अबैत अइ। पहिल बेर पिताक घर मे जन्म सँ विवाह धरिक पड़ाव, फेर दोसर बेर पतिक घर युवाकाल केर अवस्था, आर तेसर बेर जखन ओ नारी अपन चौथापन मे पहुँचि जाइत अछि। ई चौथापनक समय अबैत-अबैत नोकरियाह सब अवकाशप्राप्त भऽ जाइत अछि मोटामोटी, शरीरो काज करैत-करैत थाकि गेल रहैत छैक, आर एहेन परिस्थिति मे ओकरा सहाराक बड पैघ जरूरत स्वाभाविके रहैत छैक। सहारा केकर? अगर सन्तान छैक तँ सबसँ पहिने ओकरे सभ पर ध्यान जाइत छैक। औसत नारीक जीवन देखल जाय तऽ दुखद परिणाम बेसी सोझाँ अबैत अछि। हरेक नारीक ई चौथापनक परिस्थिति सब सँ बेसी कष्टप्रद देखाइत अछि। ‘पराधीन सपनेहु सुख नाहीं’ – बिल्कुल एहि कहावत केँ चरितार्थ होइत देखल जाइछ।
नोकरियाह लोक केँ पेन्सनक सहारा तैयो बहुत दूर धरि सहारा बनैत छैक, मुदा कियो जँ बेरोजगाय अछि अथवा खेतीपाती-गृहस्थी करैत अपन जीवनयापन केलक या व्यापारे करैत जवानी बितौलक – तखन तऽ ओकरा सभ लेल बेटे अथवा बेटीक शरण मे जेबाक विकल्प बचि गेल रहैत छैक। बेटा या बेटी केर परिवार अगर समझदार भेल त कोनो दिक्कत नहि, लेकिन जँ गड़बड़ भेल तऽ बुढापा निश्चिते गर्क मे गेल बुझू।
आइ-काल्हिक नवतुरिया सब चाहैत अछि असगर रहनाय। ओहि परिस्थिति मे अगर सासु-ससुर जँ रहैत छथि तऽ बेटा केँ असोकर्ज होइत छन्हि। असोकर्ज एहि लेल जे ओ दुविधा मे फँसि जाइत अछि। कनियाँ केर तरफ बाजब तऽ माय केँ तकलीफ। माय केर तरफ बाजत तऽ कनियाँ के तकलीफ। बेचारा बेटा एहि धर्मसंकट मे फँसिकय किछु बाजि नहि सकैत अइ। आइ-काल्हिक कनियाँ केँ ई नहि बुझाइत छैक कि एहि हाथक केलहा एहि जन्म मे वापस आयत। जन्म-मृत्यु अपन हाथक चीज नहि छैक। माय केँ बेटाक मोह खाइत छैक, ओ ओकर मुंह निहारिकय चुप भऽ जाइत अछि मुदा कनियाँ केँ ओतबो सँ दिक्कत होइछ, ओ चाहैत अछि कि नौकरीक अलावा ओकर पतिक पूरा समय ओकरे लेल थिक। एहेन कालचक्र मे बेटा पिसा जाइत अछि। न माय केँ पूरा स्नेह दय सकैत अछि, न कनियेँ केँ। ओ जखन असगर होइत अछि त सोचि-सोचिकय पागल होबय लगैत य। कतेक माय केँ अनाथाश्रम मे पहुँचा दैत अइ त कतेक शराब आर सिगरेट केर सहारा लैत अइ।
एकटा माय अपन बच्चा सब केँ सम्हारैत पूरे परिवार, समाज, हितजन सब केँ लय कय चलैत अछि। मुदा युगक प्रभाव देखू जे आइ एकटा माय बच्चा पर भारी पड़य लागल अछि। एखुनको युग मे श्रवण कुमार सन बेटा, आर माता जानकी सन बेटी-पुतोहु जरूरे अछि। लेकिन अधिकतर माय-बापक स्थिति चौथापन मे बहुत खराब देखाइत अछि। देव-महिमा अपरम्पार! एहि परिस्थिति मे संसार चलि रहल देखाइछ। कतहु धूप, कतहु छाँव, कतहु सुख, कतहु दुःख! संसारक इएह नियम छैक। समय परिवर्तनशील य। तखन माँ केर दर्द तँ हजार अइ लेकिन ओ मुस्कान लय केँ जिबैत अछि। एहि लेल कि समाज, परिवार, वा आन केओ आंगुर नहि उठाबय हमर परिवार पर। लेकिन कहिया तक?