एतेक मे वर कि बरदो नहि भेटत आइ

लघुकथा

– रूबी झा

दहेज के मूल अर्थ बिसैर हम मिथिलावासी बेटा केँ बरद-महिस जेकाँ अपन दाम लगबैत छी। बेटा केँ बाप बेचैय छथि आ बेटी केँ बाप खरीदैत छथि। ई घृणीत कार्य सब सँ बेसी हमर सबहक ब्राह्मण समाज में होइत अछि। वर केँ दहेज जतेक देल गेल ओहि हिसाबे कनियाँ केँ नुवा, गहना, लहठी आ भार-दौर आबैय छैन। अन्नपूर्णा आ अंजू दुनू एके टोल केर बेटी छलैथि। अन्नपूर्णा के पिताजी पाँच लाख हुनक विवाह में दहेज गिनने रहथिन्ह आ अंजू के पिताजी एकावन हजार। एके दिन दुनू के विवाह भेल रहैन आ संगे-संगे फूल लोढी करय सेहो जाय छलैथि। और भरि गामक संगी-बहिना सब सेहो रहैय छलखिन्ह। अन्नपूर्णा के नुवा, गहना सब बहुत महंगा-मंहगा आयल रहैन। अंजू केँ कने दब । दुनू संगी जे बाट में गप्प करैई छलैथि तेकर आंशिक रूप हम एतय अहाँ सब लग राखि रहल छी।

अन्नपूर्णा – (अंजू सँ) गै बहिना, एतेक दब छीछलौआ पोलिस्टर नुवा तोहर सास ससूर केना क भैजलकौयै, आ देखहिन त गहना, एक त किछु देलकौवे नहि आ जे देबो केलकौवे से केहेन हलुका-फलुका टीन-टप्पर सन। लहठी देखहिन तँ चारिये दिन में केहेन भरछि गेलौवे। तोरा सास-ससूर केँ लाज नैह भेलैय एहेन साँठैत? आ देखहीन तँ हमर सब किछु।

अंजू – (अन्नपूर्णा सँ मन बहुत भारी कय) गै बहिना! से नहि बुझैय छहिन, तोहर बाबू जी पाँच लाख गनलखुन्हे आ हमर बाबू जी एकावन हजार, जतेक गुड़ देबहीन ततेक नें मधुर हेतौक मिठाई। अपना घर सँ वरक बाप थोड़े ना खर्चा करतैक। बल्कि ओहि में सँ कपचि कय घरो केर कैकटा बेगरता शांत क लैय छैक।

जतेक संगी बहिना रहैथि सब कियो मिलिकय अंजू केर बात में हाँ में हाँ करैय लगलीह।

पाठक सब ई कथा पढि अहाँ सब आय सँ बीस-बाईस साल पीछा जाय केँ सोचब। आय कि होयत एहि एकावन हजार में, वर त छोड़ि दियौक बरदो नहि भेटत एहि दाम में।