स्वाध्याय लेखः श्रीहित ध्रुवदासजी
– संकलनः कल्याण, अनुवादः प्रवीण नारायण चौधरी
श्रीध्रुवदासजीक घरक कि नाम रहनि, किछु पता नहि। हिनकर पूर्व-संस्कार हिनका मे मात्र ५ वर्षक अवस्था मे उत्कट वैराग्य आर प्रभु-प्रेमक लगन उत्पन्न कय देने रहय। बालकभक्त ध्रुव सेहो ५ वर्ष मे अपना मे एहेन लगन पेने रहथि। एहि साम्य केर कारण हिनका लोक ध्रुवदास कहय लगलनि।
श्रीध्रुवदासजीक पिता श्यामदासजी कायस्थ देववन (सहारनपुर) केर निवासी रहथि। हिनका ओतय कतेको पीढी सँ भक्तिक परम्परा चलैत आबि रहल छल। ताहि सँ हिनकहु मे ओहने संस्कार प्रकट भेलनि। बालक ध्रुवदास केर बाबा श्रीविट्ठलदासजी बड़ पैघ गुरुभक्त रहथि जे अपन गुरुदेव श्रीहित हरिवंशचन्द्रजी महाप्रभु केर वियोग मे अपन प्राण तक विसर्जन कय देलनि।
श्रीध्रुवदासजीक जन्म लगभग संवत् १६४० केर समीप मानल जाइत छन्हि। ओ ५ वर्षक अवस्था मे गृह त्यागि श्रीवन आबि गेलाह आर ओ १० वर्षक अवस्था मे प्रभु-प्राप्ति कय लेलनि। ओ बच्चे मे वैष्णवी दीक्षा लय लेने छलाह। हिनकर गुरुदेव श्रीगोपीनाथजी महाराज गोस्वामी श्रीहित हरिवंशचन्द्रजी महाप्रभुक तृतीय पुत्र रहथि। श्रीध्रुवदासजी बड़ा एकान्तप्रेमी भक्त रहथि। ओ अपन सरसवन-विहार केँ भावना मे डूबिकय श्रीवन केर बीहड़ वनस्थली मे पड़ल रहैत छलाह। हिनक सरस-हृदय कवित्व शक्ति सँ पूर्ण रहनि। ओ मेधावी, सुशील आ नम्र रहथि। बाल्यकालहि मे ओ विद्याध्ययन कयलनि, पुनः जीवन भरि ओकर सरस-साधना मे लागल रहलाह।
श्रीध्रुवदासजीक मोन मे युगल-किशोर केर ललित क्रीड़ा सभक वर्णन करबाक बड पैघ अभिलाषा रहनि मुदा संत लोकनिक संकोच आ अपन प्रभुक भय सँ ओ एना नहि कय पाबि रहल छलाह। एक बेर चरित्र-लेखनक उत्कट लालसा हिनका विवश कय देलकनि, जाहि सँ ई वृन्दावन गोविन्दघाटक महारासमंडल पर श्रीप्रियाजी केर आज्ञा प्राप्त करबाक लेल चलि गेलाह। लगातार तीन दिन – तीन राति बिना अन्न-जल लेने पड़ल रहलाह। हिनकर एहि रुचि आ लगन सँ प्रसन्न भऽ प्रेम-मूर्ति स्वामिनी श्रीराधाजी हिनका चारिम दिन अर्ध-रात्रि केँ दर्शन देलखिन आर हिनकर माथ पर अपन सुकोमल चरणक स्पर्श करबैत आशीष व आज्ञा देलीह जे तूँ हमर ललित क्रीड़ाक वर्णन करे। तोरा द्वारा वर्णित लीला-चरित्र प्रेमी रसिक संत सब केँ सुख दयवला हेतनि।
श्रीस्वामिनीजीक आज्ञा पाबि प्रसन्न मोन सँ श्रीहित ध्रुवदासजी द्वारा श्रीराधा-वल्लभलालक ललित केलि-कला सभक वर्णन कयलनि। ओ ४२ ग्रन्थ मे युगलकिशोर केर रस, भाव, लीला, स्वरूप, तत्त्व, धाम, केलि आदि अनेकों विषयक वर्णन कयलनि अछि। एहि सब ग्रन्थक संकलित रूप “४२-लीला” केर नाम सँ प्रसिद्ध अछि, जेकर प्रचार श्रीध्रुवदासजीक जीवनकालहि मे दूर-दूर धरि भऽ गेल छलन्हि।
श्रीहित ध्रुवदासजी केर श्रीवृन्दावनधाम मे अनन्य निष्ठा रहनि। ओ जीवन भरि श्रीवन केँ छोड़ि आन ठाम कतहु गेबो नहि केलाह। नम्र आ सहिष्णु त एहेन छलाह जे जँ कियो हिनका गलतो बात कहिकय किछु अनुचित कहि दैत छलन्हि तैयो ओ ओकर आ ओकर बातक कोनो प्रतिकार नहि कय सब किछु सहि लैत रहथि। हिनक जीवनक कतेको घटना एहि बातक साक्षी अछि।
अन्त मे लगभग संवत् १७००वीं केर समीप ओ श्रीवन गोविन्दघाट रास-मंडलपर श्रीहित हरिवंशचन्द्र महाप्रभुक समाधिस्थलक पास एक तमाल केर तरु (गाछ) मे सदेह लीन भऽ गेलाह। ओ तमालक गाछ आइयो सैकड़ों वर्षक बादहु महात्मा श्रीहित ध्रुवदास जी केर पावन स्मृति कय रहल अछि। चाचा श्रीहित वृन्दावनदासक शब्द मे –
बलि जाऊँ देस कुल धाम की जहाँ ध्रुवदास सो औतरियो ।