१७म अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन – “मात्र नाम केर नहि, काजहु केर!”

बस मोन बनाउ, सफलता दूर नहि अछि
 
सन्दर्भः १७म अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन – “मात्र नाम केर नहि, काजहु केर!”
 
एक अध्ययनशील छात्र जेकाँ हम पूरा प्रयास केलहुँ जे अध्ययन सँ किछु खोजिकय निकाली आर अपन मैथिलीभाषाभाषी द्वारा जतय कतहु अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन हुअय तेकरा विश्व भरि मे प्रचलित एकटा निश्चित पैटर्न पर चलबाक चाही। चूँकि मैथिली भाषाभाषी स्वाभाविक रूप मे दुइ राष्ट्र मे छी, ताहि सँ बैनर पर ई लिखय मे कोनो गलती कहियो नहि होइत अछि जे हमरा लोकनि दुनू देशक लोक आपस मे मिलि-जुलि बैसिकय सम्मेलन कय रहल छी ताहि सँ ई अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन भेल। लेकिन, से हमर खोज नहि छल। हम खोजि रहल छी जे आखिर ‘अन्तर्राष्ट्रीय’ मे सिर्फ नेपाल आ भारत टा कियैक, विश्वक अन्य देश मे रहल लोक सब कतय छथि आर ओ सब आपस मे एकठाम कियैक नहि अबैत छथि। एहि क्रम मे हमरा अमेरिका, युके, आस्ट्रेलिया, चीन, जापान, जर्मनी, फ्रान्स, कनाडा, आदि देशक संग-संग वैदेशिक रोजगारहि मे सही लेकिन प्रवासक्षेत्र मे रहि रहल अन्य मैथिली भाषाभाषी सउदी अरब, कतार, युएई, मलेशिया, सिंगापुर आदि मे सेहो उल्लेख्य संख्या मे देखा रहला अछि। हालांकि करार पर काज करय विदेश गेल लोक केँ एना सांस्कृतिक आयोजन मे बजा लेब से अव्यवहारिक आ खर्च वर्दाश्त योग्य नहि भऽ सकत, लेकिन गोटेक व्यक्ति, संस्था आदि एहेन देखा रहला अछि जे विदेश मे काफी उच्च ओहदा पर रहिकय अपन नाम, देशक नाम आ समग्र मे हमरा सभक भाषिक-सांस्कृतिक पहिचान ‘मैथिली-मिथिला’ केँ जगजियार कएने छथि। हुनका सब केँ बजायल जाय आ ओ सब सेहो आबथि। एहि लेल कार्यक्रमक प्रारूप पूर्ण समावेशिक, दूरदृष्टिता सँ भरल आ बहुआयामिक एवं उपयोगी हो, जाहि सँ आगन्तुक केँ बुझाइन जे सहभागिता देनाय सार्थक भेल।
 
भाषागत रूप मे हमरो बहुत अन्य विद्वान् लोकनि जेकाँ बंगाली भाषाभाषी सब सँ बेसी संगठित बुझाइत अछि। तहिना पंजाबी सेहो ओतबे संगठित अछि। गुजराती, नेपाली, आसामी, तमिल, कन्नड़, विभिन्न भाषाभाषी केर सामूहिकता संस्कार केर अध्ययन कयला सँ मैथिली भाषाभाषी सँ कहीं बेहतर स्थिति मे ओ सब देखाइत छथि। यैह कारण छैक जे भारत स्वतंत्र भेलाक बाद सब सँ पहिने बंगाल आ पंजाब केँ कोना प्रसन्न कय केँ राजनीतिक सहमति आ समझौता कयल जाय ताहि पर भारतक बहुत बड़का-बड़का राजनेता दिमाग दिन-राति लगौलनि। बंगाली आ पंजाबी भाषाभाषी केँ तखन स्वतंत्रता पूर्व धर्मक नाम पर विभाजनक दंश सेहो बड़ी जबरदस्त झकझोरि देने छलैक। काफी खून-खराबा भेल छलैक। भारतक बड़-बड़ स्वतंत्रता सेनानी आ नेता सब ओहि संघर्ष केँ शान्त करबाक लेल बेहाल छलाह। शान्त भेलैक, लेकिन लाखों निर्दोष मानव ताहि समयक विभाजन पश्चातक भड़कल सांप्रदायिक आगि मे अछैते और्दा मारल गेल छल। क्रमिकरूपेण अन्य भाषाभाषी सेहो अधिकारसम्पन्न अपन बेहतर जागरुकताक कारण भेल, लेकिन हम सब पाछू छुटि गेल छी, माथ झुकाकय ई मानय मे हमरा हर्जा नहि बुझाइत अछि।
 
बंगाली आ पंजाबी जेकाँ आरो भाषाभाषी विभाजनक शिकार भेल छथि, लेकिन एना नहि जेना १४ अगस्त केँ भारतक स्वतंत्रता सँ ठीक पहिने पाकिस्तान केँ स्वतंत्र कय सजग आ जागरुक भारतीय केँ दुइ देश मे बाँटि देल गेलैक। हम मैथिली भाषाभाषी लगभग २०३ वर्ष पहिनहि विभाजित भऽ गेलहुँ दुइ राष्ट्रक बीच, लेकिन हमरा सबकेँ तेहेन फर्क एहि लेल नहि पड़ल जे दुनू मुलुक बीच नह आ माँसु जेकाँ अकाट्य मित्रता कायम रहि आयल अछि, आगुओ एकरा कियो छहोंछित नहि कय सकैत अछि। हमरा सभक आबरजात, वैवाहिक सम्बन्ध, भाषिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक आ सब तरहक सम्बन्ध निर्बाध रूप सँ एहेन अछि जे बुझेबे नहि करत जे दू अलग देश मे छी। जहिना एम्हर, तहिना ओम्हर! दुनू देशक सार्वभौमिकता केँ हम सब सहृदयता सँ सम्मान करैत ओकर संप्रभुता केँ रक्षक छी, आपस मे सेहो ओहिना गलबहियाँ कएने छी जेना दुइ सहोदर भाइ बीच सिनेहबंध सँ होइत अछि। आर, एकटा आरो विशेषता हमरा सभक कि अछि जे आइ बौद्धिक सामर्थ्य सँ सम्पन्न वर्ग विश्व भरि मे अपन झंडा गाड़िकय केकरो सँ कमजोर सामर्थ्यक नहि छी। लेकिन दुःखक बात ईहो अछि जे सामर्थ्यक सही उपयोग हम सब अपन भाषा-संस्कृति-समाज लेल नहि कय केवल अपन छद्मनाम आ धन-सम्पत्ति जोड़य लेल करैत छी जे हमरा लोकनिक पुरुखा राजा जनक जे विदेह सेहो कहेला तिनकर सिद्धान्तक ठीक बिपरीत अछि। हम सब आइ बेसी भौतिकतावादी, आध्यात्मिकता आ आपेकता, आपसी सिनेहबंध केँ बिल्कुल बिसैर गेल छी। यैह कारण छैक जे आइ जाति-पाति मे विखंडित, एक-दोसर केँ कोना पटैक दी, छल-बल-कल सब प्रयोग करैत बस अपन वर्चस्व केँ अपनहि सँ महिमामंडित करैत जीवन बिता लेनाय टा बुझि रहल छी, से बदलब जरूरी अछि।
 
अतः एहि बेरुक १७म अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन किछु अलग कय सकय, एहि मे विभाजित मैथिल शक्ति केँ एकसूत्र मे बान्हल जा सकय, सभक ऊर्जा केँ एकत्रित कय एकटा विश्वशक्तिक रूप मे स्थापित करब लक्ष्य लैत एहि बेरुक घोषणा पूरे विश्व मे पसरल मैथिली भाषाभाषी केर कान धरि पहुँचि जाय, ई लक्ष्य लेल गेल अछि। मुदा कि कोनो पैघ लक्ष्य सिर्फ बड़का सोच बनेने पूरा हेतैक? बिल्कुल नहि! अतः विश्व भरि मे स्थापित अनेकों भाषा आधारित अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनक उदाहरण लैत एहि बेरुक आयोजन केँ अपूर्व बनाबी, एहि लेल सब कियो अपन-अपन योगदान सुनिश्चित करी। आब अहाँ बुझब जे टका सँ योगदान होइत छैक…. त हम एकरा पहिनहि खारिज करब… योगदान होइत छैक ‘सहभागिता आ सहयोग’ केर। सब सँ पहिने सुनिश्चित करू जे अहाँ केँ सहभागी बनबाक चाही या नहि। सहभागी बनब त कि सहयोग करब। सहयोग मे सोच आ सामर्थ्य अनुरूप अपन मातृभूमि, मातृभाषा आ सामूहिकता केँ मजबूत बनेबाक लेल करबाक अछि।
 
१९८१ ई. सँ लगातार बंगाली भाषाभाषीक समूह “The North American Bengali Conference” (NABC) वर्ष भरि मे एकमात्र बंगाली सांस्कृतिक सम्मेलन अमेरिकाक विभिन्न शहर मे करैत आबि रहल अछि, जाहि मे भाषा-साहित्य, कला, रंगकर्म, फिल्म, आर्थिक विकास केर अनेकों सरोकार पर कुल चारि देश अमेरिका, कनाडा, भारत आ बंगलादेश केर लोकक सहभागिता मे पूरा करैत अछि। Cultural Association of Bengal द्वारा न्युयोर्क मे स्थापित एनबीएसी केर आयोजन मे तरह-तरह केर कलाकर्मक प्रस्तुति, वाचन, विमर्श, संस्थागत समन्वय (गठजोड़) आ जातीय-वर्गीय अन्तर केँ कम करबाक दिशा मे महत्वपूर्ण निर्णय सब लेल जाइत अछि।
 
तहिना हम देखि रहल छी जे अटलांटा मे, लन्दन मे, लौस एंजिल्स व अन्य ठाम मैथिल लोकनि सेहो समूह स्थापित कय साल भरि मे कोनो न कोनो गतिविधि करैत छथि। बस कमी एतबा अछि जे एहि अन्तर्राष्ट्रीय संस्था आ नेपाल व भारत मे भऽ रहल गतिविधि बीच समन्वय लेल प्रयास नहि भऽ सकल अछि एखन धरि। लगभग ३ मास सँ विभिन्न संस्था सभक प्रमुख सब सँ एहि लेल सम्पर्क कयल अछि। हुनका लोकनिक गतिविधि आ विश्व परिवेश मैथिली भाषाभाषीक स्थिति पर आलेख सेहो तैयार कयल अछि। तथापि, एक करे नहि होत है सब मिलि करू त पार! हम चाहब जे मैथिलीभाषी केर अनेकों सम्भ्रान्त-सज्जन आ समर्पित हस्ती जे विश्व परिसर मे सामाजिक संजाल सँ जुड़ि चुकल छी, सब एक-दोसर केँ चिन्हैत-बुझैत छी से सब कियो एहि तरहक प्रतिनिधि केँ आमन्त्रित करियौन जाहि सँ १७म अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन विराटनगर एकटा नव इतिहास बना सकय। विराटनगर ई हौस्ट कय सकैत अछि। कारण ई ऐतिहासिक मोरंग भूखंड थिक जेकर अपन अलग विशिष्टता बहुत पहिनहि सँ बनिज-भूमिक रूप मे रहल। एतय बिजनेस अपोर्चुनिटीज सँ लैत सांस्कृतिक मर्यादा आ मिथिलाक सीमारक्षक सलहेश समान विभूतिक अपूर्व योगदानक प्रभाव आइ धरि कायम अछि। बस, अपने सब मोन बनाउ!
 
एखन किछु समय एहि दिशा मे लेखनी निरन्तरता मे रहत!!
 
हरिः हरः!!