श्रीराधा-तत्त्वः महामहोपाध्याय डा. गंगानाथ झा केर एक महत्वपूर्ण लेख

स्वाध्याय लेखः श्रीराधा-तत्त्व

मूल लेखकः महामहोपाध्याय डा. गंगानाथ झा, एमए, डी.लिट्., एलएलबी (हिन्दी सँ मैथिली अनुवादः प्रवीण नारायण चौधरी, संकलन स्रोतः कल्याण विशेषांक)

‘श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः।’ जतय कतहु श्रीकृष्णक पूजा होइत छन्हि श्रीराधाक संग होइत छन्हि – ई त प्रसिद्ध अछिये, मुदा कृष्ण-चरित्र-निरूपक ग्रन्थ मे श्रीमद्भागवत सब सँ बेसी प्रसिद्ध अछि – एहि मे श्रीराधाजीक चर्चा प्रायः नहिये-सन अछि। एहि सँ किछु लोकक मोन मे ई सन्देह होबय लागल अछि जे राधाक उपासना (Radha-Cult) कृष्णोपासना सँ बहुत नवीन अछि।

जहिया सँ पाश्चात्य विद्वान् लोकनि पुराण आदि केँ “रद्दी, कपोल-कल्पित” कहिकय हँटा देलक, तहिया सँ हुनका लोकनिक शिष्य हमरा सभक देशक भाइ लोकनि सेहो एहि अमूल्य-रत्न दिश दृक्पात तक करब महापाप बुझय लगलाह। आब पार्जीटर (Pargiter) साहब केर कृपा पुराण सभ दिश भेलनि अछि। हुनकर कहब छन्हि जे पुराण केर सहायताक बिना भारतवर्षक इतिहास केर संकलन असंभवप्राय अछि। एहि सँ आशा बनैत अछि जे हमरा सभक देशी भाइ लोकनि सेहो एहि ग्रन्थ दिशि कृपा दृष्टि फिरतनि।

देवीभागवत देखला सँ श्रीराधाजीक दर्जा काफी उच्च भऽ जाइत अछि। एहि पुराण मुताबिक “श्रीराधा” केवल बरसाना निवासी वृषभानुक पुत्री मात्र नहि थिकीह। जेना श्रीकृष्ण परमात्माक अवतार थिकाह, तहिना श्रीराधा सेहो पराशक्तिक अवतार थिकीह। आद्या “प्रकृति” केर पाँच रूप होइछ। (१. दुर्गा, २. राधा, ३. लक्ष्मी, ४. सरस्वती आ ५. सावित्री) – देवी भागवत ९।१।१

‘गणेश जननी दुर्गा राधा लक्ष्मीः सरस्वती।

सावित्री च सृष्टिविधौ प्रकृतिः पंचधा स्मृता॥’

राधा कृष्णक चिच्छक्ति थिकीह। हिनकहि संयोग सँ “ब्रह्माण्ड” केर उत्पत्ति भेल। एहि “ब्रह्माण्ड” केँ राधाजी जल मे दय देलीह। ताहि पर अप्रसन्न भऽ श्रीकृष्ण हुनका श्राप देलनि जे “आइ सँ अहाँ अनपत्या रहब”, इत्यादि। ई कथा देवीभागवत केर नवम स्कन्ध केर दोसर अध्याय मे वर्णित अछि।

एहि कथा केँ कपोलकल्पित कहू या जे किछु कहू, एतेक त मानहे पड़त जे राधाक उपासना बहुत आधुनिक नहि अछि। आर राधाक दर्जा प्रधान शक्ति मे होइत छन्हि। जे दर्जा लक्ष्मी, सरस्वती आ पार्वतीक छन्हि, वैह राधाक सेहो छन्हि।

असल बात त ई अछि जे जतेक देव अपना ओतय मानल गेला अछि तथा पूजनीय बुझल गेल छथि, सभक संग हुनक अपन शक्ति केर पूजा सेहो आवश्यक बतायल गेल अछि। एतय तक जे पूजन-विधि मे शक्तियहि सभक उल्लेख पहिने अबैत छन्हि, जेना –

‘श्रीगौरीशंकराभ्यां नमः! श्री लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः! श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः! श्रीसीतारामाभ्यां नमः!’

एहियो पर भारतवासी स्त्री लोकनिक तिरस्कर्ता कहाइत छथि, आश्चर्य!!