स्वाध्यायः कृष्णप्रिया राधा केर अवतार-रहस्य
पौराणिक कथा पर आधारित ३ गोट महत्वपूर्ण प्रसंग
(साभार – धर्म-संसार, वेब दुनिया, अनुवादः प्रवीण नारायण चौधरी)
कथा १ः
राधा द्वापर युग मे श्री वृषभानु केर घर प्रगट होइत छथि। कहल जाइछ जे एक बेर श्रीराधा गोलोकविहारी सँ रुसि गेलीह। ताहि समय गोप सुदामा प्रकट भेलाह। राधा केर मान हुनका लेल असह्य भऽ गेलनि। ओ श्रीराधा केर भर्त्सना केलनि, ताहि सँ कुपित भऽ राधा कहली – सुदामा! अहाँ हमर हृदय केँ संतप्त करैत असुर जेकाँ काज कय रहल छी, जाउ अहाँ असुरयोनि केँ प्राप्त होयब। सुदामा भय सँ काँपि उठलाह, बजलाह – गोलोकेश्वरी! अहाँ हमरा अपन श्राप सँ नीचाँ खसा देलहुँ। हमरा असुरयोनि प्राप्त हेबाक दुःख नहि अछि, लेकिन हम कृष्ण वियोग सँ तत्प भऽ रहल छी। एहि वियोग केर अनुभव अहाँ केँ नहि अछि। तेँ एक बेर अहाँ सेहो एहि दुःख केर अनुभव करू। सुदूर द्वापर मे श्रीकृष्ण केर अवतरण केर समय अहाँ सेहो अपन सखी लोकनिक संग गोप कन्या केर रूप मे जन्म लेब आर श्रीकृष्ण सँ विलग रहब। सुदामा केँ जाइत देखि श्रीराधा केँ अपन कमीक अनुभूति भेलनि आर ओहो भय सँ काँपि उठलीह। तखन लीलाधारी कृष्ण हुनका सांत्वना दैत कहलखिन – हे देवी! ई शाप नहि, अपितु वरदान थिक। एहि निमित्त सँ जगत मे अहाँक मधुर लीला रस केर सनातन धारा प्रवाहित होयत, जाहि मे नहाकय जीव अनन्तकाल धरि कृत्य-कृत्य होयत। एहि तरहें पृथ्वी पर श्री राधा केर अवतरण द्वापर मे भेलनि।
कथा २ः
नृग पुत्र राजा सुचन्द्र और पितर केर मानसी कन्या कलावती द्वादश (१२) वर्ष तक तप कय श्रीब्रह्मा सँ राधा केँ पुत्री रूप मे प्राप्ति केर वरदान मंगलनि। फलस्वरूप द्वापर मे ओ राजा वृषभानु और रानी कीर्तिदा केर रूप मे जन्म लेलनि। दुनू पति-पत्नी बनलाह। धीरे-धीरे श्रीराधा केर अवतरणक समय आबि गेल। सम्पूर्ण व्रज मे कीर्तिदा केर गर्भधारणक समाचार सुखक स्त्रोत बनिकय पसरय लागल, सब उत्कण्ठापूर्वक प्रतीक्षा करय लागल। ओ मुहूर्त आबि गेल। भाद्रपद केर शुक्ला अष्टमी चन्द्रवासर मध्यान्ह केर समय आकाश मेघाच्छन्न भऽ गेल। तखनहिं एक ज्योति प्रसूति गृह मे पसैर गेल, ओ एतेक तीव्र ज्योति छल जे सभक आँखि बंद भऽ गेलैक। एकहि क्षण पश्चात् गोपी लोकनि देखलनि जे शत-सहस्त्र शरतचन्द्र केर कांतिक संग एक नान्हि टा बालिका कीर्तिदा मैया केर समक्ष पड़ल छथि। हुनकर चारू दिश दिव्य पुष्प केर ढेर अछि। हुनक अवतरण केर संग नदी केर धारा निर्मल भऽ गेलैक, दिशा सभ प्रसन्न भऽ उठल, शीतल मन्द पवन अरविन्द सँ सौरभ केर विस्तार करैत चारू दिश बहय लागल।
कथा ३ः पद्मपुराण मे राधा केर अवतरणक कथा
पद्मपुराण मे सेहो एक कथा भेटैत अछि जे श्री वृषभानुजी यज्ञ भूमि साफ कय रहल छलाह, ताहि भूमि सँ कन्या रूप मे श्रीराधा प्राप्त भेलखिन। ईहो मानल जाइत अछि जे विष्णु केर अवतार संग आरो देवता लोकनि अवतार लेलनि, वैकुण्ठ मे स्थित लक्ष्मीजी राधा रूप मे अवतरित भेलीह। कथा किछुओ हो, कारण किछुओ हो, राधा बिना तऽ कृष्ण छथिये नहि। राधाक उल्टा होइत छैक धारा, धारा केर अर्थ भेल करंट, यानि जीवन शक्ति। भागवत केर जीवन शक्ति राधा थिकीह। कृष्ण देह छथि, तऽ श्रीराधा आत्मा। कृष्ण शब्द छथि, त राधा अर्थ। कृष्ण गीत छथि, तऽ राधा संगीत। कृष्ण वंशी छथि, तऽ राधा स्वर। भगवान् द्वारा अपन समस्त संचारी शक्ति राधा मे समाहित कयल गेल अछि। ताहि लेल कहैत छैक –
जहां कृष्ण राधा तहां जहं राधा तहं कृष्ण।
न्यारे निमिष न होत कहु समुझि करहु यह प्रश्न॥
एहि नाम केर महिमा अपरंपार अछि। श्री कृष्ण स्वयं कहैत छथि – जाहि समय हम केकरो मुंह सँ ‘रा’ सुनैत छी, ओकरा हम अपन भक्ति प्रेम प्रदान करैत छी आर ‘धा’ शब्द केर उच्चारण केलापर तऽ हम राधा नाम सुनबाक लोभ सँ ओकरे पाछाँ चलि दैत छी। राधा कृष्ण केर भक्ति केर कालान्तर मे निरन्तर विस्तार भेल। निम्बार्क, वल्लभ, राधावल्लभ, और सखी समुदाय द्वारा ई पुष्ट कयल गेल। कृष्ण केर संग श्री राधा सर्वोच्च देवी रूप मे विराजमान् छथि। कृष्ण जगत् केँ मोहैत छथि आर राधा कृष्ण केँ। १२म शती मे जयदेवजी केर गीत गोविन्द रचना सँ सम्पूर्ण भारत मे कृष्ण और राधा केर आध्यात्मिक प्रेम संबंधक जन-जन मे प्रचार भेल।
भागवत में राधिका-प्रसंग
अनया आराधितो नूनं भगवान् हरिरीश्वरः यन्नो विहाय गोविन्दः प्रीतोयामनयद्रहः।
प्रश्न उठैत छैक जे तीनू लोक केर तारक कृष्ण केँ शरण देबाक सामर्थ्य राखयवला ई हृदय ओहि आराधिका केर अछि, जे पहिने राधिका बनलीह। तेकर बाद कृष्ण केर आराध्या भऽ गेलीह। राधा केँ परिभाषित करबाक सामर्थ्य तऽ ब्रह्म मे सेहो नहि छन्हि। कृष्ण राधा सँ पुछैत छथि – हे राधे! भागवत मे अहाँक कि भूमिका होयत? राधा कहैत छथिन – हमरा कोनो भूमिका नहि चाही कान्हा ! हम तऽ अहाँक छाया बनिकय रहब। कृष्ण केर प्रत्येक सृजन केर पृष्ठभूमि यैह छाया थिकीह, चाहे ओ कृष्ण केर बांसुरीक राग हो या गोवर्द्धन केँ उठबयवला तर्जनी (आंगुर) या लोकहित केर वास्ते मथुरा सँ द्वारिका तक केर यात्राक आत्मशक्ति।
आराधिका मे आ केँ हँटेला सँ राधिका बनैत छैक। एहि आराधिका केर वर्णन महाभारत या श्रीमद्भागवत मे प्राप्त अछि आर श्री राधा नाम केर उल्लेख नहि अबैछ। भागवत मे श्रीराधा केर स्पष्ट नाम केर उल्लेख नहि होयबाक कारण एक कथा ईहो अबैत छैक जे शुकदेव जी केँ साक्षात् श्रीकृष्ण सँ मिलयवाली राधा छथि और शुकदेव जी हुनका अपन गुरु मानैत छथिन। कहल जाइछ जे भागवत केर रचयिता शुकदेव जी राधाजी केर पास शुक रूप मे रहिकय राधा-राधा केर नाम जपल करथि। एक दिन राधाजी द्वारा हुनका सँ कहल गेल जे हे शुक! आब तूँ राधा केर बदला मे श्रीकृष्ण! श्रीकृष्ण! केर जाप कयल करे। ताहि समय श्रीकृष्ण आबि गेलाह। राधा ई कहैत छथिन जे ई शुक अत्यन्त मीठ स्वर मे बजैत अछि, ओकरा कृष्ण केर हाथ सौंपि देलीह। अर्थात् ओहि शुक केँ ब्रह्म सँ साक्षात्कार करा देलीह। एहि तरहें श्रीराधा शुकदेव जी केर गुरु थिकीह आर ओ गुरु केर नाम कोना लय सकैत छलाह?
राधा प्रेम केर पवित्र गहराई
कृष्ण केर विराट केँ समेटबाक लेल जाहि राधा द्वारा अपन हृदय केँ एतेक विस्तार देल गेल जे सारा ब्रज हुनकर हृदय बनि गेलनि, ताहि द्वारे कृष्ण सेहो पुछैत छथिन – बूझत श्याम कौन तू गौरी ! किन्तु राधा और राधा प्रेम केर थाह पेनाय संभव नहि! कुरूक्षेत्र मे हुनका अबिते सारा परिवेश बदैल जाइत अछि। रूक्मणि गर्म दूध केर संग राधा केँ अपन जलन सेहो देल जाइछ। कृष्ण स्मरण कय राधा ओहि दूध केँ एक्के सांस मे पीबि जाइत छथि। रूक्मणि देखैत छथि जे श्रीकृष्ण केर पैर मे छाला पड़ि गेल, मानू गर्म खौलैत तेल सँ पाकि गेल हो। ओ पुछैत छथि जे ई फोंका कोना भेल? कृष्ण कहैत छथिन – हे प्रिये! हम राधा केर हृदय मे छी। अहाँक मोनक जाहि जलन केँ राधा चुपचाप पीबि लेलीह, वैह हमर तन सँ फूटि गेल अछि। ताहि सँ कहल जाइछ –
तत्वन के तत्व जगजीवन श्रीकृष्णचन्द्र और कृष्ण कौ हू तत्व वृषभानु की किशोरी है।
हरिः हरः!!