विचार
– बालमुकुन्द
विरोध व्यक्ति सँ अछि वा सिस्टम सँ ?
किछु दिन पूर्व सँ, जखन सँ साहित्य अकादमी द्वारा बाल आ युवा पुरस्कारक घोषणा कएल गेल अछि, तखन सँ पुरस्कार आ पुरस्कृत पोथी सँ फाजिल पुरस्कारक निर्णायक मंडल (ज्यूरी) विमर्शक केन्द्र मे छथि। विमर्श होएबाको चाही, तकर स्वागत करैत छी तथापि विमर्श जाहि आधार पर ठाढ़ कएल जा रहल अछि – ई चिन्ताक गप्प लगैत अछि।
सर्वप्रथम तँ पुरस्कृत पोथी पर विमर्श कएल जएबाक चाही, मुदा हमरालोकनि ‘आह, वाह, बधाइ, शुभकामना’ सँ आगाँ बढ़िए नहि पबैत छी। पोथी पर गप्प करबाक नाओं पर प्रायः यैह शब्द समूह टा सर्वत्र विद्यमान भेटैत अछि । ताहू सँ भेल तँ किछु गोटे ‘महान’ आ किछु गोटे ‘रिजेक्टेड’ साबित करबा पर उतारू भ’ जाइत छी। ताहि समय मे हमरालोकनि रचनाकार सँ फाजिल उक्त रचनाकार सँ स्वयं केर सम्बन्ध केँ प्राथमिकता दैत विमर्शक सभटा आधार तय करैत छी। सोशल मीडिया पर सभटा विमर्शक केन्द्र मे यैह टा मूल भेटैत अछि। की एकगोट लिखए-पढ़ए बला लोक केँ एहिना गप्प करबाक चाही ? की गम्भीरतापूर्वक पोथीक पक्ष-विपक्ष पर गप्प नहि कएल जा सकैत अछि ? किएक नहि कएल जा सकैत अछि ?
जतए धरि ज्यूरी प्रसंगक गप्प अछि। किछु पाछाँ लए जाए चाहैत छी। बेसी नहि, किछुए पाछाँ। मात्र उदाहरणक लेल, एहि कथनक संग जे एहन उदाहरण संख्या एक नहि, बहुलता मे उपलब्ध अछि। स्मरण कएल जाए जखन साहित्य अकादमिक मूल पुरस्कार वीणा ठाकुर केँ हुनक कथा-संग्रह ‘परिणीता’ लेल देल जएबाक घोषणा भेल छल, तखन हमरालोकनि कोन तरहक विमर्श क’ रहल छलहुँ ! [हमहिं स्मरण दियबैत छी – वीणा ठाकुर, साहित्य अकादमी मे मैथिली भाषाक पूर्व संयोजिका रहथि जे उक्त पदक अपन निर्धारित समय सीमा पूर्ण कएलाक बाद प्रेम मोहन मिश्र केँ अकादमी मे मैथिलीक संयोजक प्रस्तावित करैत छथि, वा एना कही जे बनवाबैत छथि (अकादमिक पदेन संयोजकक भेटल प्रभाव केँ देखैत) आ ठीक अगिला वर्ष प्रेम मोहन मिश्रक द्वारा स्वयं पुरस्कार ग्रहण करैत छथि। ] बंधुगण विमर्श तखनहुँ बधाइ, शुभकामना, आह, वाह सँ आगाँ नहि गेल छल। दोसर दिस एक विमर्श मात्र एहि बातक लेल भ’ रहल छल जे वीणा जी केँ एहि वर्ष तँ पुरस्कार नहिए लेबाक चाहियनि, लोक मे एतेक नैतिकता तँ होएबाके चाही। एहि दोसर पक्ष पर हमहुँ पूर्णतः सहमत छी आ एकर निन्दा करैत छी मुदा ई सभटा विमर्श मात्र एही बातक लेल होएबाक चाही छल ? की एहि बात पर विमर्श नहि होएबाक चाही छल जे ‘परिणीता’ मैथिलीक कथा-साहित्यक एक औसत संग्रह टा अछि आ मैथिली कथा मे किछु नव नहि जोड़ि रहल अछि। प्रश्न अछि जे पुनः हमरालोकनि गम्भीरताक संग पोथी पर विमर्श किएक नहि केंद्रित कएलहुँ ? दोसर दिस, विमर्श करबाक काल मे की ओहि बेरक ज्यूरी सभ केँ नहि ‘जज’ कएल जएबाक चाही छल ? विवेकानंद ठाकुर, पूर्व सचिव, चेतना समिति सन घनघोर असाहित्यिक व्यक्ति साहित्य अकादमिक मूल पुरस्कारक ज्यूरी होइत छथि आ हमरा लोकनि एक शब्द धरि नहि बजैत छी। जे व्यक्ति जीवन मे एकगोट लेख टा नहि लिखने हुए, नहिए कोनो साहित्यिक बोध रखैत हुए से अकादमिक मूल पुरस्कारक ज्यूरी कोना भ’ सकैत छथि ? की एहिपर गप्प नहि होएबाक चाही छल ? बंधुगण सत्य तँ ई अछि जे ताहिकाल हमरालोकनिक कल्ला एहि लेल नहि फुटैत अछि किएक तँ विवेकानन्द ठाकुर चेतना समितिक सचिव रहल छथि आ एखनहुँ समिति मे अपन सक्रिय प्रभाव रखैत छथि – हमरा लोकनि चुप्प भ’ जाइत छी ! चेतना समिति सँ स्वार्थ सिद्धिक लुलुप्सा जे रहैत अछि – किएक तँ प्रतिवर्ष चेतना समिति द्वारा भाषा-साहित्यक लेल कैकटा कार्यक्रम होइत रहैत अछि, कैकटा पुरस्कार देल जाइत अछि, कम सँ कम 7 सँ 8 पुरस्कार। तेँ सभटा स्टैंड बिसरि जाइत छी, मात्र मंच, माइक, पाग, माला, पुरस्कार टा मोन रहैत अछि। तखन सभ नीक लगैत अछि, किछुओ अधलाह नहि!
जतए कतहुँ गलत होइत अछि, ताहिपर प्रश्न होइत रहबाक चाही, मुखरताक संग तकर विरोध करबाक चाही। हमहुँ एकर आग्रही छी मुदा से सदिखन। बंधुगण अजित आज़ाद सन कवि-लेखक ज्यूरी नहि बनथि, किएक तँ ओ प्रकाशक सेहो छथि; नैतिकताक नाओं पर अहाँ एहि पर प्रश्न करैत छी मुदा विवेकानंद ठाकुर, कामदेव झा, लक्ष्मण झा सन-सन घनेरो घनघोर असाहित्यिक लोक ज्यूरी होइथि से हमरा सभकेँ सहर्ष स्वीकार होइत अछि। ई डुएल स्टैंडर्ड किएक बन्धु? हम स्पष्ट क’ दी जे एतए हम अहाँक कोनो प्रश्न केँ खारिज नहि क’ रहलहुँ अछि, नहिए ककरो समर्थन। हमरा बस एतबी कहबाक अछि जे स्टैंड विचार केंद्रित होएबाक चाही, पूर्णतः सिस्टम केँ विरुद्ध – सिस्टम केँ नीक बनएबाक प्रयोजनार्थ, नहि की व्यक्ति केंद्रित। अहाँ किएक नहि प्रश्न करैत छी जे दरभंगा-मधुबनीक अतिरिक्त आन क्षेत्रक लोक किएक नहि ज्यूरी होइत छथि, किएक नहि संयोजक बनैत छथि, किएक नहि पुरस्कृत होइत छथि (कृपया अपवाद बला उदाहरण आदि नहि टीपल जाए, तकर आग्रह)। प्रश्न सिस्टम सँ होएबाक चाही बन्धु नहि की व्यक्ति सँ। व्यक्ति सेहो सिस्टमक एक अंग टा अछि, जे सिस्टम मे ढुकैत अछि, सिस्टम टा केँ भ’ क’ रहि जाइत अछि।