मैथिली जिन्दाबाद पर पाठकक संख्या १० हजार सँ टपल: विशेष धन्यवाद संपादकीय

मैथिली जिन्दाबाद पर मात्र १ मास आ ६ दिन मे १० हजार सँ ऊपर पाठक बनबाक रिकार्ड

बधाई मैथिली जिन्दाबाद कार्यसमूह व समस्त शुभेच्छुगण!

site stats 17.05.2015आइ, हमरा लोकनि १० हजार आगन्तुक पाठकक संख्या केँ टपि गेलहुँ – ई मात्र हमरा लोकनिक द्वारा देल जा रहल गुणस्तरीय मैथिली जाहि सँ एहि मीठ भाषाक पठन-संस्कृतिमे वृद्धि हो ताहिक चलते संभव भेल अछि।

जखन कि, लोक केँ मुफ्त मे पढबाक खराब आदति पड़ि गेल छैक, जाहि कारण सँ एक्कहु टा मैथिली मिडिया दीर्घकाल धरि जीवन्त नहि रहि पबैत छैक, मुदा मैथिली जिन्दाबादक स्थापना एहि परिदृश्य केँ बदलबाक लेल भेलैक अछि। आइ मात्र एक मास आ छ: दिन बीतल अछि – कहू ३६ दिन आ ताहि अनुसारे करीब ३०० पाठक एकरा प्रतिदिन पढैत छथि।

हम सब पत्रकारिताक विज्ञ नहि छी, मुदा व्यवस्थापन पक्षक विज्ञ रहैत सकारात्मक दृश्य बनेबाक महारत हासिल अछि। एहि वेबसाइटक नाम सोद्देश्य ‘मैथिली जिन्दाबाद’ राखल गेलैक अछि – बस एहि लेल जे क्रान्तिकारी नाराक बोध जेकर मैथिली केँ आइ बड पैघ जरुरत छैक ताहि लेल। अहाँ विश्वास कए सकब, एहि भाषाक विरुद्ध कैल जा रहल राजनीति केर स्तर केर? आम जनमानस एहि भाषा मे बाजब पसिन करैत अछि, मुदा नेतागण एकरा किछु उच्च जातिक लोक लेल आरक्षित करैत अछि। आर, एहि तरहें ओ सब स्वयं राज्यक कोनो सहायता, प्रायोजन वा अनुदान पेबा सँ असमर्थ रहि जाइछ, नहिये मिडिया लेल, नहिये छापा कागज तक मैथिली पत्रिका केँ उपलब्ध कराओल जाइछ, नहिये कोनो प्रकारक राज्यक योगदान सँ एहि तरहक छापाखाना आदि केँ मैथिली मे पत्रिका प्रकाशन हेतु सहयोग देल जाइछ जाहि सँ सस्ता-सुभिस्ता दाम पर मैथिलीक पत्रिका उपलब्ध कैल जा सकय आ जाहि सँ भाषाक रक्षा भऽ सकय – बिहार मे स्थानीय भाषा मे पत्रकारिताक विकास भऽ सकय… राज्य मिथिलाक किछुओ विकास नहि होमय देत जाबत एहि तरहक ओछ बुद्धिक राजनेता केँ नहि नकारि देल जायत। दोसर बाट समृद्धि लेल निस्सन्देह वैह अछि जे हमरा लोकनिक महान पुरखा अनुसरण केलनि। हमरा लोकनि कथमपि कोनो राजकीय प्रायोजन पर निर्भर नहि भेलहुँ, हमरा लोकनि अप्पन स्वयंकेर सृजन केलहुँ। हमहीं सब दुनिया केँ सृजन करबाक महान दर्शन देलियैक आर आइ भारत ताहि कारण सँ विश्वगुरु कहबैत अछि, अदौकाल सँ मिथिला स्वयं सृजन मे लागल अछि।

मित्रगण, हम, एकटा व्यवस्थापक आ एहिठामक संपादकोक रूप मे, गर्व करैत मैथिलीक प्रवर्धन किछु एहि तरहें करबाक लेल गछैत छी जे अहाँ सब सेहो हमर चुनौती केँ याद करब – बस देखैत चलू। हम सब कहियो भीखमंग नहि रही, नहिये आइ से छी जे केकरहु सँ किछु माँगी। हमरा लोकनिक सृजनशीलता संसारकेँ शीघ्रे हमरा सबहक पहिचानक संग सामर्थ्य केँ मानबाक लेल बाध्य करत। आगू चाकर रूप मे हम सब कहियो नहि जानल जायब, बस मैथिली केँ जिन्दाबाद होएबाक आशीर्वाद टा ग्रहण करय दियौक!! अपन भाषा व समाचार केँ अहिना पढैत रहू। दिन मे एक बेर वेबसाइट पर जरुर आयल करू, ठीक जेना समाचारपत्र पढैत छी। जल्दिये सांगठनिक क्षेत्रसँ विज्ञापन सेहो एतय आओत जे हमरा सबहक भाषा व भूमि लेल कैल जा रहल आन्दोलन केँ दान देत। हमरा लोकनि केवल बहरिये द्वारा नहि हासिया पर राखल गेल छी, अपनहु बहुत सामर्थ्यवान मुदा यथार्थत: दरिद्र मानसिकताक लोक अहाँक अपन भूमि, भाषा, संस्कृति आ समग्र मे पहिचानक वास्ते कैल जा रहल कार्य सँ ईर्ष्या करैत छथि, कहियो मदैद हेतु हाथ शायदे बढबैत छथि जाहि सँ गंभीर मुद्दा जे मैथिलीभाषी लोक केँ विशिष्ट पहिचानक संवैधानिक सम्मान हो, विशेषत: जखन हमरा लोकनि संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बासिन्दा छी। हम सब बुझैत छियैक जे चाकरपंथी (गुलामी) हुनका लोकनिक मस्तिष्क मे बैस गेल छन्हि, अपन भूमिक विकासक बदला अनके सेवा करैत ओ बेहतरीक अनुभूति करैत छथि, ओ सब विदेहक नाम सँ जानल जायवला पुरखाक सिखाओल मार्गक उन्टा दिशा मे जायकेँ खूब आश्वस्त छथि आ तैँ भौतिकवादी बनि गेल छथि, मुदा विश्वास राखू, दृश्य जल्दिये बदलत।

आजुक दृष्टिकोणक अभिव्यक्ति अंग्रेजी मे केलहुँ कियैक तऽ ओहि बेवकूफ सबकेँ ई पढय लेल जे हम सब कतए धरि पहुँचि सकलहुँ अछि, आ कतए जायब, से भेटतनि।

शुभे हो शुभे,

प्रवीण नारायण चौधरी

मात्र आ मात्र प्रभुजीक शरणस्थली मे, जेकरा हमर प्रिय उक्ति सँ बेर-बेर संबोधित करैत छी:

हरि: हर:!!

🙂

मूल आलेख अंग्रेजी मे:

Congratulations Maithili Jindabaad Team and Well-Wishers!!

Today, we have crossed 10,000 visitors – it is all due to quality of Maithili we cater for increasing the readability in this sweet language.

Although, the people have more been addicted to read things without cost and that is the reason non of the Maithili media could survive for a long time, but creation of Maithili Jindabaad has been done to change the scenario. It is just one month and 6 days – say, 36 days and thus the average visitors we attain is nearly 300.

We are no way the experts of journalism, but we have expertise in management and creations of positive scenarios. The name of the website has been purposely put Maithili Jindabaad – just because the terminology of revolutionary slogan is desperately required for Maithili. Can you believe, the level of politics against this language? The commoners love to speak this language, but the leaders make it reserved for upper classes people. And that way they themselves fail to attain the state supports, sponsorships and contributions – neither the media, nor the newsprint papers for Maithili newspapers, nor any state aid to run those presses to print the newspapers in Maithili at cheaper rates and let language survive – let journalism flourish in local languages in Bihar… state would never let anything of Mithila develop well unless such mean-minded politicians are not driven out. Second way to prosper is the same courses of actions which our great ancestors followed. We never relied on state sponsorship, we created ourselves. We gave to the entire world the great philosophy of creating things and today India is Vishwa Guru only because of Mithila which has been creating throughout the prehistoric ages.

Friends, I, as a manager and also as an editor there, boast to make Maithili prosper in such a way that you guys would recall my challenge – just keep on seeing. We were never the beggars, nor we are today ready to beg for anything. Our creativity would compel the world to recognize us and our capabilities soon. We will never be known as Chaakars further, let Maithili attain the bliss to become Jindabaad!! Keep reading your own language and news like this. Keep on visiting the website once in a daytime, same as you read the newspaper. Soon we will have corporate sectors advertisements here which will donate to the ongoing movement for our language and land. We have not only been marginalized by outsiders, but many of our own generous people are so poor really that they can be jealous of your working for own land, language, culture and overall an identity, but hardly they extend their hands to cooperate for the grave cause that gives every Maithili speaking people a specific identity to be recognized specially by the constitution – especially when you are in a federal democratic republic nation. We understand that the chaakarpanthee (slaveries) have settled in their minds, they feel better serving others, rather than developing their own lands… they are very much relaxed by going beyond the teachings of our forefathers known as Videhas, they have become opposite so the materialistics, but believe me, scene will soon change.

I today express my vision only in English because let those assholes read what we are up to and where we would lead to.

Regards,

Pravin Narayan Choudhary

With only and only support of His refuge, duly endorsed with my favorite quotation:

Harih Harah!!