लघुकथा
– रूबी झा
रिंकी के भाइ सब ओकर विवाह सोना टुकड़ी खेत बेचिकय कयलनि। कहलैथ हुनकर बड़का भाइ जे ईहो जँ बेटा रहितय तऽ कि हिस्सा नहि लीतय! सैह सोचि एकरा हिस्साक खेत बेच देलियैक। बहुत धूमधाम सँ विवाह सम्पन्न भेलैक। भरि साल पावैन-तिहार होइत सोझे साले दुरागमन भेलैन रिंकी के। जतेक ओरियान रहैन भाइ सब केँ ओहि सँ बहुत बेसी खर्चा कय बहिन केँ विदा केलैथ सब भाइ मिलिकय। जखन सासूर गेली रिंकी त झमाकय खसली, हुनकर पति हुनका एकटा खबासनी सँ ज्यादा किछु नै बुझथिन्ह। भरि-भरि दिन चुपचाप रिंकी भरि घरक काज करथि आर अपन घरक केवाड़ बंद कय कानि-खीझि सुइत रहैथ। कियैक त हिनकर पति हिनका ढंग सऽ टोकबो तक नैह करैय छलखिन्ह, पति केँ पहिनहि सँ अपन भाउज संगे नजायज संबंध रहैन। बात-बात पर बिना कुनू कारणे हुनकर पति हुनका खुब मारि मारि बैसथि। जखन रिंकी केँ बर्दाश्त नहि भेलैन त अपन भाइ सब केँ सबटा कहानी कहि सुनेलीह। भाइ सब एक-दु बेर रिंकी केर सासुर जा कय अपन बहिनोइ (रिंकीक वर) केँ समझेबो-बुझेबो केलखिन्ह। लेकिन ओहि सब सँ रिंकी के पति पर कुनो असर नहि पड़लैन आ रिंकी के ओ प्रताड़ित करैत रहला। एक दिन अचानक रिंकी ककरो दिया अपन भाइ सब केँ संवाद भेजलखिन्ह जे जते जल्दी होइन भैया सब केँ से कहबैन आबय लेल।भाइ सब भागल-भागल पहुँचला रिंकी के सासुर। ओतय बहिनक हालत देखि ओ सब बहुत दुःखी भेला। पूरा देह रिंकी के बिजली के तार सँ हुनकर पति दु-दाईल कय फोड़ि देने रहैथि। अपन गाम वापस आबि रिंकी के भाइ गामक जानल-मानल दस गोटे केँ लय कय हुनक सासुर पहुँचला। बहुत तरह के बात-कथा कहि आगु सँ कहियो एना नहि करबा के हिम्मत करब नहि तऽ अहुँ संगे बहुत गलत होयत से कहि सब गोटे गाम लौटि गेलैथ। किछुवे दिन बीतल कि अचानक रिंकी के पति हुनका छोड़ि अपन भाउज संगे चुपेचाप भागि गेलाह और आबि कय अपन भाइ लग शहर मे रहय लगलाह। भाइ धरि एहि बातक विरोध केलखिन्ह जे तो सब जे करैत छँ से बहुत गलत बात छौक। एक दिन दुनू दियर-भाउज मिलिकय हुनका (रिंकी के भैंसुर) जान सँ मारि केवाड़ मे ताला लगा फरार भऽ गेलाह से आय तक नहि लौटला, रिंकी एखन तक पति के बाट जोहैत अपन दुआरि पर बैसल रहैत छथि। पूरा दुनिया सँ ताना सुनि अपन घर-खानदान केर ईज्जत बचा कोहुना जीवन जीबि रहल छथि एहि राक्षसरूपी संसार मे।