लघुकथा
– रूबी झा
कहैय लेल हम सब कहैय छियैय बेटी पुतोहु में कोन अंतर, लेकिन कतेक लोक आकाश-पाताल जकाँ अंतर बुझैत छैथ, बेटी और पुतोहु में।जसोधा कुनू उपाय केनाय नहि छोड़ैत छलैथ जाहि सँ पुतोहु परेशान रहैथि। पुतोहु भानस-भात बना भनसा घर स निकलै छलखिन्ह, जसोधा अपने एक थाड़ी परैसिकय खा लेथि आर फेर दालि-तरकारी में एक सरबा नोन (नीमक) ढारि दय छलखिन्ह। और बीच आंगन में ठाढ भ हल्ला करैय लागैय छलखिन्ह, “देखियौ ने! नै बनबय के मोन रहैय छैक त मना क दिअय, हम अपने बना लेब। कोनो हमर हाथ-पैर टूटल अछि। नै बनबय के मोन रहैय छै त कि पूरा कोहे नोन उझिल देतैक? एहेन मौगी केँ त डेंगा-मारे!” एहि तरहें अनाप-शनाप बाजिकय जसोधा कतेको दिन वर-दिअर (देवर) सँ मारि खुआ दैत छलखिन्ह पुतोहु केँ। एक दिन पुतोहु चाउरक भुज्जा खाय छलखिन्ह, हाथ स भुज्जाक बाटी छीनि ओहि में तेलक शीशी ढारि देलखिन्ह, और भरि आंगन लोक केँ देखाबय लगलखिन्ह, “देखियौ मौगी के सपरतीब! तर भूज्जा ऊपर तेल ध क खाय छलय। लगैयै जेना जमींदारक बेटी रहय।” ओहि दिन पुतोहुक मुँह खुजि गेलैन आ बाजय लगली। जसोधा कहैय छथिन, “देखियौ त मौगी के! हमरा संगे मुँह लगबैया! कते पटर-पटर करैया! ठोर पर ठोर नै बैसैय छैक। हम सब अपन सासुक सोझाँ कल्ला नहि कहियो अलगेलौं।” पुतोहु चुप भऽ गेली आ केवाड़ बंद कय भरि इच्छा कानि अपन नोर अपनहि पोछि चुप भऽ घरक काज में लागि गेली रोज दिन जेकाँ। कि पुतोहु केर जगह पर जसोधा के अपन बेटी रहितथिन्ह त हुनका संगे ई किरदानी करितथिन्ह? कने बतबै जाय-जाउ पाठक सब। हरेक सासु केँ स्वयं पुतोहु बनिकय आ पुतोहु केँ सेहो सासु बनिकय आपस मे सामंजस्य रखले सऽ परिवारक कल्याण होइत अछि, नहि तऽ घर कलह के डेरा होइछ जे स्वाभाविके बहुत डेराओन लगैछ। ओहेन घर मे शान्ति आ सुख केर लेसो तक नहि भेटत कहियो।