–करुणा झा
मिथिला क्षेत्र अतीत काल सँ अपन सभ्यता आ संस्कृति के लेल लोकप्रिय अछि । महान विद्वान आ विदुषी लोकनि के स्वर्णिम इतिहास समेटने ई मिथिला भुमि अपन संस्कृति के लेल विश्वविख्यात अछि ।
जन्म सँ ल क’ मरण धरि के संस्कार, लोक–कथा, गीतनाद, अरिपन, पुरहर आ पावनि तिहार सँ ई मिथिला भुमि सब दिन जगाजिआर रहल अछि । ओना त आजूक युग विज्ञान क युग अछि । आई २१म सदी मे विज्ञान अपन विकास सँ सब क्षेत्र मे अपन अधिपत्य जमौने अछि । मनुक्ख महाप्रयोग मे व्यस्त अछि । चान पर मचान बनाओत । आइ विज्ञान बिना मानव जीवन केर कल्पना बेकार अछि । तइयो, अखनो धरि हमर सबहक संस्कृति, लोक संस्कृति हमर धरोहर अछि । आ मिथिलाञ्चल मे त’ प्रत्येक मास मे कोनो नै कोनो पावैन होइत रहनाइ, आइ महिला सब अपन संस्कृति के कोनो न कोनो रुप मे अखन धरि सहेज क’ राखने अछि । अहि पावनि तिहार केर क्रम मे मिथिला महिला लोकनिक एकटा अनुपम दिन अछि । “वट सावित्री” मिथिला क्षेत्रमे बसोवास करैबला लगभग प्रत्येक समुदाय केर मिथिलानी अय पावनि केँ मनावैत छथि । मुदा, किछु खास समुदायक लेल ई पावनि बहुत महत्वक साथ मनाओल जाइत अछि । जेठ मास क अमावस्या केर दिन ई “वट सावित्री” मनाओल आइत अछि ।
शास्त्र मे वर्णित कथन के अनुसार–अहि दिन सावित्री अपन पाति सत्यवान केर प्राण यमराज सँ लडि क वापस आनै मै सफल भेल छल । सत्यवान जंगल मे लकडी काटै काल वर के गाछ के धोधर सँ साँप निकालि क काटि लैने छलनि । जाहि सँ हुनकर मृत्यु भऽ गेल छलनि । आ सावित्री अपन पति केर प्राण वापस लेबय वास्ते यमराजक पाछु – पाछु जाय लगै छथि । आब अपन जिदपर अडि क’ अपन पति केर प्राण ल’ पति केँ जिवित करैत छथि ।
तहि दिन सँ अहिवाती महिला लोकनि जेठ अमावस्या के दिन वर गाछी के जरि मे विभिन्न प्रकारक फल फुल नैवेद्य चढावैत छथि आ नागदेवता क वास्ते लाबा आ दुध सेहो वर गाछी के जडिमे चढाओल जाइत अछि । आ विभिन्न प्रकारक फूल पात आ वाँसके पंखा सँ सेहो गाछ के हवा देल जायत अछि । एहन अछि श्रद्धा आ अटुट विश्वास । पर्यावरण केर दृष्टिकोणसँ देखल जाय तँ ई पावनि पर्यावरण केर संरक्षण आ संवर्द्धन सेहो करैत अछि । वर के गाछ जे कि बहुत-बहुत दिन धरि रहैत अछि, हजार वर्ष सँ भी बेसी आयु होइत छैक, ताहि गाछक प्रत्येक वर्ष कम सँ कम आजुक दिनक लेल अइ गाछ केँ जोगा कऽ राखल जेनाइ पर्यावरण प्रति हमर सबहक जिम्मेवारीक बोध सेहो करावैत अछि ।
“वट सावित्री”क दिन प्रत्येक मिथिलानी खास क जे नव वर–वधु छथि हुनका सब के वास्ते विशेष आयोेजनाक संग पावनि मनाओल जाइत अछि । नवका वस्त्र पहिरि रंग-विरंगक फल-फुल पकवान बना क’ समूह मे गीत गावैत एक दोसर केँ शुभकामना दैत अपन-अपन पति केर नम्हर आयुक कामना करैत मिथिलानी ई पावनि मनावैत छथि । निश्चित रुपसँ मिथिला मे अखनो लोक संस्कृति हेरायल नहि अछि तऽ ओ केवल महिला लोकनिक कारण । आ जा धरि मिथिला रहल ता धरि मिथिलानी लोकनि “वट सावित्री” मनावैत रहथिन । आ अपन संस्कृति के संरक्षक तथा संवाहक बनि मिथिला के आन बान आ शान के वढावैत रहथिन ।
जय मिथिला । जय मैथिली ।।