कृष्ण मोहन चौधरी । सिरहा, जेठ ३ गते। मैथिली जिन्दाबाद!!
पतिक दीर्घायुक कामना करैत आइ रविदिन मिथिलान्चलक महिला बरसाइत (वट सावित्री व्रत) पाबनि पूजती। व्रतालु महिला भोरे सँ नदी वा पोखरि मे जा क’ स्नान कय बरक गाछतर परम्परागतरुपसँ पूजा-पाठ हेतु उपस्थित हेतीह। मिथिला क्षेत्र मे वा मिथिलानी महिला आनहु क्षेत्र मे बहुत श्रद्धाक संग अहि पाबनि केँ मनबैत छथि।
सावित्री आ सत्यवानक जीवनगाथासं ई व्रत जूडल हएबाक कारणे अहिवातक लेल महत्वपूर्ण मानल गेल पुराणमे उल्लेख अछि। अहि पाबनि मे बरक गाछमे जल चढाओल जाइत अछि त नवका बाँसक बियैन आ तारक पंखा सँ बरक गाछकेँ होंकल जाइत छैक। व्रतालु स्त्रीगण एहि दिन प्रात: काल नित्यकर्म केला उपरान्त सासुर सँ आयल कपड़ा पहिरि सखी-सहेली (अन्य अहिबाती)क संगे मंगलगीत गबैत बरक गाछ केँ पूजैत छथि। व्रती महिला निष्ठापुर्वक गौरी आ विषहरकेँ पूजा कय अन्त मे सत्यसावित्री आ सत्यवानक कथा सुनैत छथि।
वट-सावित्री व्रतक इतिहास – माहात्म्य
ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि केँ हिन्दू महिला वट सावित्रीक व्रत रखैत छथि। शास्त्र केर अनुसार एहि दिन व्रत राखिकय वट वृक्ष केर नीचाँ सावित्री, सत्यवान और यमराज केर पूजा कएला सँ पतिक आयु लंबा होइत छैक और संतान सुख सेहो प्राप्त होइत छैक। मान्यता छैक जे एहि दिन सावित्री यमराज केर फंदा सँ अपन पति सत्यवान केर प्राणक रक्षा केने छलीह। भारतीय धर्म मे वट सावित्री अमावस्या स्त्रीगण मे अहिबाती (सौभाग्यवती) लेल महत्वपूर्ण पर्व होइछ। मूलतः ई व्रत-पूजन सौभाग्यवती स्त्री लेल होइछ।
वट सावित्री पूजन:
पतिक लंबा उम्र केर व्रत रहितो ई आरो सब स्त्रीगण (कुमारि, विवाहिता, विधवा, कुपुत्रा, सुपुत्रा आदि) एकरा करैत छथि। एहि व्रत केँ करबाक विधान ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी सँ पूर्णिमा तथा अमावस्या तक अछि। अलग-अलग क्षेत्र मे अलग-अलग व्यवहार देखल जाइछ। वैष्णव स्त्रीगण भारतक विभिन्न क्षेत्र मे ई व्रत पुर्णिमा दिन रखैत छथि, लेकिन बेसी लोक अमावस्ये दिन एहि व्रत केर संग वरक पूजा-पाठ करैत छथि। आजुक दिन वट (बड़, बरगद) केर पूजन होइत अछि। एहि व्रत केँ स्त्रीगण अखंड सौभाग्यवती रहबाक मंगलकामना सँ करैत छथि। एहि व्रत मे सबसँ अधिक महत्व चना केर होइछ। बिना चनाक प्रसाद ई व्रत अधूरा मानल जाइछ। भरणी नक्षत्र और वृषभ राशि मे संपन्न होमयवला ई व्रत एहि वर्ष रविदिन (17 मई, 2015 ) केँ भरणी नक्षत्र और वृषभ राशि मे संपन्न होमय जा रहल अछि, भारतीय महिला प्राचीन काल सँ करैत आबि रहली एहि परंपराक अनुसार अपन पति केर दीर्घजीवी होयबाक लेल बरगद केर गाछक पूजा और व्रत करती।
स्कन्दपुराण मे कहल गेल अछि –
अश्वत्थरूपी विष्णु: स्याद्वरूपी शिवो यत: अर्थात् पीपलरूपी विष्णु व जटारूपी शिव थिकाह। वट वृक्ष केर जैड़ मे ब्रह्मा जी, गाछ मे विष्णु और डार्हि-पात मे शिव केर वास होइछ। एकर नीचाँ बैसिकय पूजा, व्रत कथा कहला आ सुनला सँ सब मनोकामना पूरा होइत छैक। तैँ कोनो मंदिर मे या बरगद (वट) केर गाछक नीचाँ बैसिकय आजुक व्रत पूजा करी।
अग्निपुराण के अनुसार –
बरगद उत्सर्जन केँ दर्शाबैत अछि। ताहि हेतु संतान लेल इच्छित लोक एकर पूजा करैत अछि। शास्त्र मे कहल गेल छैक जे अमावश्याक दिन वट वृक्ष केर पूजा सँ सौभाग्य एवं स्थायी धन और सुख-शांतिक प्राप्ति होइत छैक।
सावित्री केने छलीह सत्यवान केर रक्षा औझके दिन
सावित्री सेहो यमराज सँ अपन पति सत्यवान केर प्राणक रक्षा केली। सावित्री और सत्यवान केर कथा सँ वट वृक्ष केर महत्व लोकमानस मे प्रवेश करैत सावित्री द्वारा अपन पतिक प्राण रक्षा कय सकबाक आशीर्वाद पेबाक दृष्टान्त सँ ई परंपरा स्थापित भेल। यैह वृक्ष सत्यवान केँ अपन शाखा और शिरा सँ घेरिकय जंगली पशु आदि से हुनक रक्षा केने छल। अही दिन सँ जेष्ठ कृष्ण अमावस्या केँ वट केर पूजाक नियम शुरू भेल। शनि देव केर कृपा पेबाक लेल चाही तऽ वट वृक्ष केर जैड़ केँ दूध और जल सँ सींचन करू, ताहु सँ त्रिदेव प्रसन्न हेता और शनि केर प्रकोप कम होयत। तहिना धन और मोक्ष केर चाहत सेहो पूरा होयत। वट वृक्ष केर पूजा आजुक दिन आमतौर पर केवल महिला करैत छथि जखन कि पुरूष केँ सेहो एहि दिन वट वृक्ष केर पूजा करबाक चाही, एकर पूजा सँ वंश केर वृद्धि होइत छैक। ई मत विज्ञ ज्योतिषी व धर्म मर्मज्ञ केर थीक।
चना कियैक जरुरी छैक….
सावित्री और सत्यवान केर कथा मे एहि बातक चर्चा भेटैत छैक जे जखन यमराज सत्यवान केर प्राण लैत जाय लगला तखन सावित्री सेहो यमराजक पाछु-पाछु चलय लगली। यमराज सावित्री केँ एना पाछु अयबा सँ रोकलनि, ताहि लेल ओ सावित्री केँ तीन टा वरदान सेहो देलनि। एक वरदान मे सावित्री मांगली कि ओ सौ पुत्र केर माता बनथि। यमराज कहलनि जे ‘एहिना होयत’। एकर बाद सावित्री यमराज सँ कहली कि हम पतिव्रता स्त्री छी और बिना पतिक संतान कोना संभव हेतैक। सावित्रीक बात सुनिकय यमराज केँ अपन गलती बुझय मे आबि गेलनि। ओ गलती सँ सत्यवान केर प्राण वापस करबाक वरदान दय चुकल छलाह। एकर बाद यमराज चनाक रूप मे सत्यवानक प्राण सावित्री केँ सौंपि देला। सावित्री चना केँ लऽ कय सत्यवानक लाश लंग एली और चनाकेँ मुंह में राखिकय सत्यवान के मुँह मे फूंकि देली। एना केला सँ सत्यवान जीवित भऽ गेला। ताहि सँ वट सावित्री व्रत मे चनाक प्रसाद चढ़ेबाक नियम अछि। जखन सावित्री पतिक प्राण केँ यमराजक फाँस सँ छोड़ेबाक लेल यमराजक पाछु जा रहल छलीह ताहि घड़ी वट वृक्ष सत्यवानक मृत-शरीर केर देख-रेख केने छल। पतिक प्राण सहित वापस अयला पर सावित्री वट वृक्ष केर आभार व्यक्त करबाक लेल ओकर परिक्रमा कयली ताहि सँ वट सावित्री व्रत मे वृक्ष केर परिक्रमा करबाक सेहो नियम अछि।
एना करी वट सावित्री व्रत और पूजन
सुहागन स्त्री वट सावित्री व्रत केर दिन सोलह श्रृंगार करैत सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाई सँ सावित्री, सत्यवान और यमराज केर पूजा करथि। वट वृक्ष केर जैड़ केँ दूध और जल सँ सींचन करैथ। एकरा बाद कच्चा सूत केँ हरैदमे राँगिकय वट वृक्ष मे लपेटैत कम सऽ कम तीन बेर परिक्रमा करैथ। वट वृक्ष केर पत्ता केश मे लगाबथि। पूजाक बाद सावित्री और यमराज सँ पतिक लंबा आयु एवं संतान हेतु प्रार्थना करथि। व्रती केँ दिन मे एक बेर मीठ भोजना करबाक चाही। वट सावित्री व्रत सौभाग्य देमऽवाला और संतान केर प्राप्ति मे सहायता देमऽवाला व्रत मानल गेल अछि। भारतीय संस्कृति मे ई व्रत आदर्श नारीत्व केर प्रतीक बनि चुकल अछि। एहि व्रत केर तिथि केँ लऽ कय भिन्न मत अछि। स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण केर अनुसार ज्येष्ठ मास केर शुक्ल पक्षक पूर्णिमा केँ ई व्रत करबाक विधान अछि, ओतहि निर्णयामृत आदिक अनुसार ज्येष्ठ मास केर अमावस्या केँ व्रत करबाक बात कहल गेल अछि।
कि उद्देश्य अछि वट सावित्री पूजनका..
सौभाग्य केर वृद्धि और पतिव्रत केर संस्कार केँ आत्मसात करनाय एहि व्रतक मूल उद्देश्य अछि। कतेको व्रत विशेषज्ञ एहि व्रतकेँ ज्येष्ठ मास केर त्रयोदशी सँ अमावस्या धरि तीन दिन तक करबा मे भरोस रखैत छथि। एहि तरहें शुक्ल पक्ष केर त्रयोदशी सँ पूर्णिमा तक सेहो ई व्रत कैल जाइछ। विष्णु उपासक एहि व्रत केँ पूर्णिमाक दिन करब बेसी हितकर मानैत छथि।
वट सावित्री व्रत केर दर्शनिक दृष्टिकोण
दार्शनिक दृष्टि सँ देखल जाय तऽ वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व-बोध केर प्रतीकक नाते सेहो स्वीकार कैल जाइछ। वट वृक्ष ज्ञान केर निर्वाणक सेहो प्रतीक होइछ। भगवान् बुद्ध केँ सेहो यैह वृक्ष केर नीचाँ ज्ञान प्राप्त होयबाक मत प्रचलित अछि। ताहि हेतु वट वृक्ष केँ पतिक दीर्घायु बनेबाक लेल पूजनाय एहि व्रतक अंग बनि गेल। महिला व्रत-पूजन केर कथा कर्म केँ संग-संग वट वृक्षक आसपास सूतक ताग सँ परिक्रमा करैत लपेटैत बान्हैत छथि।
वट सावित्री व्रत केर कथा-
सावित्रीक जन्म सेहो विशिष्ट परिस्थिति मे भेल छल। कहल जाइत छैक जे भद्र देश केर राजा अश्वपति केँ कोनो संतान नहि छलन्हि। ओ संतान केर प्राप्ति हेतु मंत्रोच्चारणक संग प्रतिदिन एक लाख आहुति देलाह। अठारह वर्षों तक ई क्रम चलैत रहल। तेकर बाद सावित्रीदेवी प्रकट होइत वर देलनि जे ‘राजन! अहाँक घर मे एक तेजस्वी कन्या जन्म लेत।’ सावित्रीदेवी केर कृपा सँ जन्म लेबाक कारण कन्याक नाम सावित्री राखल गेल। कन्या पैघ भेली, ओ अत्यन्त रूपवती भेली, योग्य वर नहि भेटला पर दु:खी पिता हुनका स्वयं वर खोजबाक अधिकार देलनि। सावित्री तपोवन मे घूमैत-घूमैत ओतहि साल्व देश केर राजा द्युमत्सेन जिनकर राज्य कियो छीन लेने छलन्हि, तिनकर पुत्र सत्यवान केँ देखिकय सावित्री पतिक रूप मे हुनके वरण केली। कहल जाइछ जे साल्व देश पूर्वी राजस्थान या अलवर अंचल केर आसपास छल। सत्यवान अल्पायु छलाह। ओ वेद ज्ञाता छलाह। नारद मुनि सावित्री संग भेट करैत सत्यवान सँ विवाह नहि करबाक सलाह देलनि लेकिन सावित्री सत्यवानहि संग विवाह रचेली। पति केर मृत्युक तिथि मे जखन किछुए दिन बाकी रहल छल तऽ सावित्री कठोर तपस्या सेहो केली, जेकर फल हुनका बाद मे भेटलनि।
पूजन-विधान:
पूजाक समय डाली मे सत्यवान तथा सावित्री केर मूर्ति केर स्थापना करी। ताहि डालाकेँ वट वृक्ष केर नीचाँ राखि दी। तेकर बाद ब्रह्मा तथा सावित्री केर पूजन करी।
पुन: निम्न श्लोक सँ सावित्री केँ अर्घ्य दी : –
अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते॥
पूजा मे जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिजायल चना, फूल तथा धूप केर प्रयोग करी।
जल सँ वटवृक्ष केर सींचन करैत ओकर गाछक चारू कात कच्चा तागा लपेटिकय तीन बेर परिक्रमा करी।
बड़क पत्ता केँ गहने पहिरिकय वट सावित्री केर कथा सुनी।
भीजल चना केर छिलका निकालिकय नकद रुपया राखि सासुजी केर चरण-स्पर्श करी।
पूजा समाप्ति पर ब्राह्मण केँ वस्त्र तथा फल आदि वस्तुसँ बांस केर पात्र मे राखिकय दान करी।
अंत में निम्न संकल्प लैत उपवास राखी :
मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये।
(स्रोत: हिन्दी.वनइन्डिया.कम.एस्ट्रोलोजी)