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ईमानदारीक संगे समझदारी सेहो जरूरी छैक – रूबी झा केर टटका लघुकथा

लघुकथा

– रूबी झा

मुरली बाबू (काल्पनिक नाम) तीन भाय छलाह। साझी आश्रम रहैन। दादाजी घर के मुखिया रहथिन और पिताजी पाँच भाय छलखिन्ह। सब गाम स बाहर रहै छलखिन्ह हिनक पिताजी छोड़ि क। पिताजी और दादाजी मिल क घर-गृहस्थी सम्हारै छलखिन्ह। दादाजी बहुत नामी-गामी और काफी समझदार व्यक्ति रहथिन्ह। दिन हिनक सभ के बहुत नीक स बितैत रहैन दादाजी और भगवती के कृपा स। मुरली बाबू के पिताजी मानसिक रुप स किछु कमजोर रहथिन्ह। मुरली बाबूक काका सब अपन पिताजी स कहथिन्ह जमीन-जाल के बाँट-बखड़ा क दिय। मुरली बाबू के दादाजी के हमेशा एकेटा जवाब रहै छलैन – “तुँ सभ त सरकारी नोकरी करै छैं, बाहर रहै छैं, ई बाल-बच्चा सभ केना पलतै।” दिन बितल। एक दिन मुरली बाबु और हुनक परीवार पर विपत्ति के पहाड़ टूटि गेल। हुनक दादाजी स्वर्गवासी भ गेलखिन्ह और हुनक काका सभ जमीन बाँट-बखड़ा क लेलखिन्ह। मुरली बाबूक हिस्सा में ७ बीघा जमीन और २ टा महींस एलनि। मुरली बाबू के उमर रहैन १६ साल लेकिन सोच और विचार ओहि स बहुत ऊपर। ओ सोचला अगर महींस राखब और एकरा चरैब तीनू भाय त तीनू भाय महींसबारे बनि जैब, से नहिं त एकरा बेच क दमकल कीन लैत छी, अपनो खेती करब और दोसरो केँ खेत पटायब। ओ इहे केला और तीनू भाय मिल क खूब मेहनत केलाह। आय ओ अपन क्षेत्र में कुशल और इज्जत के जिंदगी जिबै छथि। बहुत तरह के व्यवसाय करैत आगु बढला तीनू भाय। आय ओ सभ ३ टा पेट्रोल पंप के मालिक छैथि और ठीकेदारी सेहो करैत छैथि। अपन क्षेत्र में बहुत नाम और सम्मान छैन। आब घरक मुखिया मुरली बाबू छथि, और ओ अपन भाय आ हुनक संतान के अपन संतानों स पैघ बुझै छैथि। और पूरा परिवार हुनकर बात के पालन करैत समय बितबैत छैथि। कहै के तात्पर्य जे मेहनत के संग-संग बुद्धि के सेहो उपयोग करबाक चाही। ईमानदारी के संगे समझदारी सेहो जरुरी छै।

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