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प्रातःस्मरणीय लक्ष्मीनाथ गोसाईं केँ विशेष स्मरण करैत – मिथिला मे समरस समाज निर्माणार्थ

बाबाजीक विचारोपदेश केर अनुकरण सँ बनि सकैत अछि समरस समाज – विचार

– पारस कुमार झा, बनगाँव, सहरसा

उत्तरभारत के महान संत प्रातःस्मरणीय संत शिरोमणि बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाईं गृहस्थ जीवन मे मोक्ष हेतु कलिकाल मे स्वस्थ तन मे शुद्ध मोन सँ भगवद्कीर्त्तन, परोपकार आ दयाभाव सँ आनन्दित जीवन व्यतीत करवाक उपदेश देलनि। मलेच्छक शासन सँ दुष्प्रभावित समाज मे सनातन धर्म के रक्षार्थ जीवन यापन के सरल मार्ग अपनेवाक प्रेरणा देलनि। मिथिलाक संस्कार के अक्षुण्ण राखि, जाति भेद, वर्ण भेद, पंथ भेद आ रंग भेद के समाप्त कय समरस समाज के निर्माणक लेल घूमि-घूमि प्रयास कयलनि।

हुँनक प्रसिद्ध शिष्य यथा रघुवर गोसाईं, मोहम्मद गोस, जान साहब आदि समरस समाज के सर्वश्रेष्ठ आचरण प्रस्तुत करैत छलाह। जाति-पाति मे बँटल समाजके बाबाक बताओल मार्ग पर चलि एखनहुँ हम सब सामाजिक एकताकेँ अखंडित राखि सकै छी। बाबाजीके प्रसिद्ध कर्मक्षेत्र बनगाँव मे एखनहुँ सब जातिके लोक सौहार्दपूर्ण वातावरण मे होली, दिवाली, ईद आदि पाबनि मनाबै छथि। तजिया के पूजा बनगाँव के गली-गली के सब द्वार पर एखनहुँ आबि देखल जा सकैये। सब जाति के युवा के जन्नी बनि दौड़ैत देखल जा सकैये। ब्राह्मण के गला मिलि मुसलमान केँ होली खेलावैत संगहि एक दोसर के कन्हा पर बैसल बनगाँव मे अगिलो होली मे अहाँ देखि सकै छी।

तेँ मिथिलाक गौरवमयी संस्कार आ परम्पराके निर्वहन बाबाजी के बताओल रस्ता पर चलि आसानी सँ संभव छैक।

दुनियाँ के सर्वश्रेष्ठ मिथिला के पावन वसुंधरा पर हम सब जन्म लेलहुँ से हमरा सभक सौभाग्य। मिथिलाक सर्वश्रेष्ठ संस्कार के संरक्षण आ संवर्द्धन मे अपनो सभहक दायित्व आउ अप्पन दायित्व के निर्वहन सब मिलि निभाउ। बाबाजीके कृपा सम्पूर्ण मिथिला आ सब मैथिल पर बनल अछि आ बनल रहत से विश्वास जगाउ।

जय बाबाजी।

जय मिथिला! जय मैथिली!! जय मैथिल!!!

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