वैदिक विवाह मे पति एवं पत्नी बीच सात प्रतिज्ञाक वर्णन

Saptpadiवैदिक विवाह पद्धति मे सप्तपदी एक एहेन प्रक्रिया थीक जेकरा बिना विवाह पूर्ण नहि होइत छैक, कनियां केँ वामांगी तक नहि मानल जाइत छैक, कुमारिपन सेहो अन्त नहि होइत छैक।

पहिले वर अपन कनियां सँ कहैत छथि:
ॐ इष एकपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ॥1॥ ॐ ऊर्जे द्विपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ॥2॥ ॐ रायस्पोषाय त्रिपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ॥3॥ ॐ मयोभवाय चतुष्पदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ॥4॥ ॐ पशुभ्यो: पंचपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ॥5॥ ॐ ऋतुभ्य: षट्पदी भव सा मामुनव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ॥6॥ ॐ सखे सप्तपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ॥7॥

अर्थात्,
अन्नादिक धन प्राप्ति हेतु, चरण पहिल उठाउ हे प्रिये॥
फेर दोसर बल पेबाक लेल, चरण दोसर उठाउ हे प्रिये॥
धन पोषण केँ पेबाक लेल, चरण तेसर उठाउ हे प्रिये॥
सुख सँ घरकेँ भरबाक लेल, चरण चारिम उठाउ हे प्रिये॥
घर-गृहस्थीक पशु-पालन लेल, चरण पाँचम उठाउ हे प्रिये॥
ऋतु अनुकुल आचरण सँ पोषण हेतु, चरण छठम उठाउ हे प्रिये॥
सखि बनू जीवन भरि लेल, चरण सातम उठाउ हे प्रिये॥

ई भेल वरक तरफ सँ कहल जायवला वचन – आब कन्याक दिशि सँ माँगल जायवला वचन सुनू:
१.
तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी।

“यदि अहाँ कतहु तीर्थयात्रा पर जायब तँ हमरो अपना संगे लऽ चलब। कोनो व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य अहाँ करब तँ आइये जेकाँ सब दिन हमरा अपन बाम भाग मे स्थान देब। यदि अहाँ ई स्वीकार करैत छी तऽ हम अहाँक वामांग मे आयव स्वीकार करैत छी।”
२.
पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम॥

“जाहि तरहें अहाँ अपन माता-पिताक सम्मान करैत छी, ताहि तरहें हमरो माता-पिताक सेहो सम्मान करब तथा कुटुम्ब केर मर्यादाक अनुसार धर्मानुष्ठान करैत ईश्वर भक्त बनल रबह तऽ हम अहाँक वामांग मे आयब स्वीकार करैत छी।”
३.
जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं॥

“अहाँ हमरा वचन दी जे अहाँ जीवन केर तिनू अवस्था – ‘युवावस्था’, ‘प्रौढावस्था’, ‘वृ्द्धावस्था’ मे हमर पालन करैत रहब, तऽ हम अहाँक वामांग मे अयबाक लेल तैयार छी।”
४.
कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं॥

“आइ धरि अहाँ घर-परिवार केर चिन्ता सँ पूर्णत: मुक्त रही। आब जखन अहाँ विवाहक बंधन में बँधा रहल छी तऽ भविष्य मे परिवारक समस्त आवश्यकतादिक पूर्ती केर दायित्व अहींक कान्ह पर अछि। यदि अहाँ एहि भार केँ वहन करबाक प्रतीज्ञा करैत छी तऽ हम अहाँक वामांग में आबि सकैत छी।”
५.
स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या॥

“अपना घरक कार्य मे, विवाहादि, लेन-देन अथवा अन्य कोनो कारणवश खर्च करैत समय यदि अहाँ हमरा सँ मन्त्रणा कैल करब तऽ हम अहाँक वामांग मे आयब स्वीकार करैत छी।”
६.
न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत
वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम॥

“यदि हम अपन सखि आदि वा अन्य स्त्रिगणक बीच बैसल छी, तखन अहाँ ओतय सबहक सम्मुख कुनु भी कारण सँ हमर अपमान नहि करब। यदि हहाँ जुआ अथवा अन्य कोनो भी प्रकारक दुर्व्यसन सँ अपना आप केँ दूर राखब तखनहि टा हम अहाँक वामांग मे अयबाक लेल स्वीकार करैत छी।”
७.
परस्त्रियं मातृ्समां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या॥

“अहाँ पराई स्त्रीकेँ माताक समान बुझब और पति-पत्निक आपसी प्रेमक बीच अन्य केकरो भागीदार नहि बनायब। यदि अहाँ ई वचन हमरा दैत छी तऽ हम अहाँक वामांग मे अयबाक लेल स्वीकार करैत छी।”

एखन लेल एतबी… एकर आगाँ-पाछाँ आरो विधान लंबा छैक। कहियो पण्डितगण संग सम्पर्क मे बैसि एहि सब विधान पर चर्चा केला सँ वैदिक महत्त्व हम सब बुझि सकैत छी।

हरि: हर:!!