विचार-मंथनः अनुत्तरित प्रश्न?? (एक अवश्य पठनीय लेख)

विचार-मंथन 

– डा. लीना चौधरी

(मूल लेख – हिन्दी मे, अनुवाद – प्रवीण नारायण चौधरी)

अहाँ केँ कोन सवाल सब सँ बेसी विचलित केलक कुंती, पहिल संतान केँ नहि अपना पेबाक पीड़ा या द्रौपदी केँ कोनो सामान जेकाँ अपन पाँचो पुत्र केँ सझिया बाँटि देबाक बात? चूँकि अहाँ स्वयं सेहो स्त्री छलहुँ, तखन द्रौपदीक पीड़ा केँ तँ जरूर बुझि गेल होयब अहूँ। तैयो अहाँ ई निर्णय कियैक लेलहुँ? आ कि संभवतः अहाँ केँ द्रौपदी केँ पेबाक लालसा पाँचों पुत्र मे देखा गेल छल आर अहाँ डरा गेल छलहुँ जे भविष्य मे भाइ-भाइ मे एहि लेल टकराव नहि भऽ जाय? एहि डर केँ समाप्त करबाक लेल अहाँ द्रौपदी केँ ओ डोरी बना देलहुँ जे सभ केँ एक सूत्र मे बान्हि देलक? लेकिन एहि सब मे ओकर पीड़ा केर अनदेखी कय देलक सब कियो, मुदा अहाँ तँ स्त्री छलहुँ अहाँ केना नजरंदाज कय देलियैक? आखि़र अहुँ केँ तऽ बेर-बेर संतान प्राप्ति केर लेल पर-पुरूष सँ याचना करय पड़ल छल, सेहो पांडु (पति) केर कहला पर। ओ पांडु जे अहाँक पति त छलाह लेकिन अहाँ केँ संतान सुख नहि दय सकैत छलाह आर समाजक उल्हन सहबाक क्षमता हुनकहु मे नहि छलन्हि। ताहि लेल ओ अहाँ केँ परपुरूष गमन सँ संतान पेबाक लेल बाध्य कयलनि। पीड़ा तऽ अहूँ केँ भेल होयत, आत्मा तऽ अहूँक छटपटायल होयत! तैयो अहाँ एहेन निर्णय केना लेलहुँ? या फेर अहाँ अपन आत्मा केँ चिर निद्रा मे सुता देने छलहुँ तेँ बहुत सहज भेल एहेन निर्णय केनाय? सवाल त बहुतो रास अछि मुदा जबाब एकहु टा नहि! आ जँ अछियो त एहि पुरूष प्रधान समाज कहियो जरूरत नहि बुझलक एकर जबाब देबाक लेल। कतेक नीक होइतय जे अहाँ स्वयं ओ रास्ता बताकय जइतहुँ अपन आबयवला पीढी केँ जाहि पर चलैत अहाँ अपन आत्माक सवाल केँ शांत कएने होयब! तखन हमहूँ अपन जिज्ञासा केँ शान्त कय लितहुँ। प्रश्न अनुत्तरित अछि कुंती और अनुत्तरिते रहत। कियैक तँ जबाब सुनबाक आ कहबाक साहस नहिये तहिया समाज मे छलय, नहिये आइ एहि समाज मे अछि। गांधारी जतबा अपन आंखि पर पट्टी बान्हिकय जतेक अन्याय केलनि ओतेक अन्याय अहाँ सेहो केलहुँ नहि देखायवला पट्टी अपन मुंह पर बान्हिकय। अहाँ सेहो दोषी बनि गेलहुँ समय आर समाज केर आर ताहू सँ बढिकय स्त्री लोकनिक प्रति जे सवाल आ सिर्फ सवाल टा ठाढ़ अछि हमरा सभक सामने कुंती।