हीरा बहिनक हीरा भाइ-भाउज-परिवार (लघुकथा)

मैथिली लघुकथा

– रूबी झा

हीरा १७ साल के रहैथि तहने हुनका पर विपत्ति के पहाड़ टूटि गेलनि। पति स्वर्गवासी भ गेलखिन और हुनकर जिन्दगी अन्हार भ गेलनि।हीरा के माँ पहिनहे स्वर्गवासी भ गेल रहथिन। और हुनक पिताजी दोसर विवाह क लेने रहथि और हीरा सब भाइ-बहिन पर बिल्कुल ध्यान नै दैथि। हीरा स जे पैघ भाइ रहथिन जे मात्र हुनका स ४ साल पैघ छलैथ ओ हीरा केँ सासुर स अनला और हीरा केँ अपना बच्चा सब स ज्यादा प्यार-दुलार स रखलैथि। जाबे धरि हीरा के आगाँ में भोजन के थाड़ी नै देथिन भाउज ताबे धरि हीरा के भाई अपना आगाँ में भोजन के थाड़ी नहि लैथि, हल्ला करय लागैथि अपन पत्नी केँ जे हीरा केँ दियौन ना, पत्नी कहथिन एके बेर में दुगो थाड़ी-बाटि ल’ क’ केना आयब भनसा घर सँ, द रहल छियैन ने। एना जखन हीरा केर आगाँ में भोजनक थाड़ी आबि जाइन तहन भाइ अन्न ग्रहण करैथि। हीरा के भाइ केर अपन बेटा-बेटी और जखन पुतौह सब आबि गेलखिन त हुनको सब केँ दिन-राति कहथिन। हीरा केँ कुनु कियो छैन, अहीं सभ ने संतान रूपे छियैन। अहाँ सभ नै करबैन त के करतैन, हम हीरा केँ अनलियैन अहाँ सभ मिलि कय निमाइह दियौन। हीरा केर भाइ आब अहि दुनिया में नै छथिन लेकिन परिवारक बाँकी सदस्य हीरा केँ बहुत प्यार सँ रखैत छथिन। खास कय हुनकर भाउज जे हमर सासु माँ छैथि, कहैत रहै छैथि हमरा स जे अहाँक ससुर अनला हीरा केँ, निमाइह नै पेला, हमरा लेल दुआ करू जे हम निमैह कऽ दुनिया सँ जाय।