आजुक विशेष संपादकीय: सन्दर्भ मिथिलापुत्र विजय प्रकाश द्वारा पुरखौली काजकेँ निरंतरता देबाक महत्त्वपूर्ण योगदान!
मनुष्य-जीवन केर सर्वथा उच्चतम् फलादेश मोक्षक संग जीवन-पर्यन्त लेल वांछित ‘कल्याण’ प्राप्तिक निमित्त गीतोपदेश कहैत अछि: मय्येव मन आघत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय॥ अर्थात् मात्र ‘हमरा’ मे चित्त लगाउ, अपन बुद्धि ‘हमरे’मे लगाउ, निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशय:॥गीता १२ – ८॥ एकर बाद अहाँ ‘हमरे’ मे निवास करब, एहि मे सन्देह नहि!! अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम्॥ एना जँ निरन्तर ‘हमरे’ मे चित्त लगेनाय संभव नहि हो तँ….. अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय॥गीता १२ – ९॥ तखन अभ्यास-योग सँ ‘हमरा’ तक पहुँच बनाउ।
एतय बड़-बड़ गुरुजन सेहो अपन मार्गदर्शन करैत छथि जे अभ्यास-योग कि थिकैक। मानवक मन-मस्तिष्क यानि ‘चित्त’ बड़ चंचल होइत छैक, कियैक तऽ सबहक अपन भोग-विषय छैक, जेना जिह्वा छैक, तऽ ओकर रुचि छैक चटपटा-स्वादिष्ट, ओकरा वैह चाही; आँखि देखय मे उत्कृष्ट-आकर्षक देखय लेल आतुर हेबे करत; हर इन्द्रिय अपन-अपन भोग वस्तु पेबाक लेल ‘चित्त’ केँ चहुँदिशि दौड़बैत रहैत अछि। विषय-भोग सँ चित्त केँ बेर-बेर खिंचैत ईश्वर मे लगेनाय – अभ्यास योग कहाइत छैक।”
उपरोक्त सिद्धतथ्यकेँ आरो आगू बढबैत भगवान् गीता मे अर्जुनक माध्यमे हम समस्त मानव समाज लेल उपदेश करैत छथि: अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव॥ जँ अभ्यास करबा सँ पर्यन्त असमर्थ होइ तँ….. समस्त काज-धाज मात्र ‘हमरे’ लेल करू!! मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि॥गीता १२ – १०॥ एना सब काज ‘हमरे’ लेल कयला सँ सेहो अहाँ सिद्धि – परमानन्द केँ प्राप्त करब! अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रित:॥ जँ समस्त काजो मात्र हमरा लेल करबा सँ असमर्थ छी, तँ हमरहि आसरा मे रहू, सर्वकर्मफलत्यागं तत: कुरु यतात्मवान्॥गीता १२ – ११॥ स्वयं-नियंत्रित बनि समस्त कर्मक फल केँ त्यागू। एहि तरहें गीताक हर संदेश मे मानव-कल्याण निहित छैक।
आध्यात्मिकता संग विज्ञानक सहकार्य मिथिला मे आदिकालसँ होयबाक वर्तमान प्रमाण स्थापित: विजय प्रकाश केर पुस्तक ‘अपनी एकाग्रता कैसे बढायें’
आदिपुरुष कृष्ण सहित समस्त अवतारक रहस्य संग बहुत नजदीक सँ जुड़ल सिद्धभूमि ‘मिथिलाक्षेत्र’ केर अनगिनत सपुत अदौकाल सँ मानव-हितार्थ सर्जनात्मक कार्य करैत आबि रहल छथि। गौतमक न्याय सँ वाचस्पतिक नव्यन्याय धरिक यात्रा हो, कपिलक सांख्य व याज्ञवल्क्यक संहिता सँ हाल धरिक कर्मकाण्डी मर्म हो… सब तरहें मिथिलाक पुण्य योगदान सँ भारतवर्ष फूलित-फलित होइत रहल अछि। आर एहि क्रम मे जुड़ि गेला मधुबनी (मिथिला) वासी हाल बिहार सरकार केर शीर्षस्थ उच्चाधिकारी – राज्य संचालनक मुख्य जिम्मेवारी पर्यन्त निर्वाह करनिहार मुख्य सचिव श्री विजय प्रकाश – जिनकर प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा नेतरहाट आवासीय विद्यालय सँ १९७२ मे केलाक बाद संत जेबियर्स राँची सँ प्रवेशिका संग स्नातक १९७४ आ १९७६ मे केलाक बाद जे १९७९ आ १९८० मे दिल्ली विश्वविद्यालय सँ भौतिकीशास्त्र मे क्रमश: एम.एस्सी. आ एम.फिल. केलनि। १९८१ केर बैच सँ भारतीय प्रशासकीय सेवा मे प्रवेश करैत बिहार राज्य सरकारक अनेको विभागक मुख्य अधिकारी (सचिव) बनिकय उत्तरदायित्व निर्वाह कएलनि। हिनकर बारे मे ई प्रसिद्धि अछि जे अपने शोध कार्य सँ सृजन आ स्रजन क्षेत्र मे उल्लेखनीय योगदान दैत रहला अछि। शिक्षा क्षेत्र मे सेहो ‘सृजनशील पाठ’ केर विकास लेल हिनकर नामक चर्चा होइत अछि। समृति, विचार, कल्पना, दृष्टिकोण, सूक्ष्म सँ सूक्ष्मतर व्यवस्थापन शक्ति प्रवर्धन आदि लेल अनेको प्रकारक पाठ्य-पुस्तक तथा पाठन-पद्धतिक विकास सेहो हिनका द्वारा कैल गेल अछि। विदित हो जे श्री विजय प्रकाश जी केर धर्मपत्नी श्रीमती मृदुला प्रकाश सेहो एक जानल-मानल विदुषीक संग मिथिला चित्रकला केर इतिहास विषय पर शोध कएने छथि। वर्तमान मे अनेको सामाजिक संस्थाक सक्रियतापूर्वक संचालन सेहो करैत छथि। पति-पत्नी बीचक माधुर्यता एहि निम्न समाचार कटिंग सँ ज्ञात होएबाक संग प्रेरणाक संचरण सेहो करैत अछि।
‘अपनी एकाग्रता कैसे बढायें’ पुस्तक ‘विजय प्रकाश’ केर वैशिष्ट्य लेखनक अनुपम प्रस्तुति
तहिना अपन अध्यक्षीय भाषण मे महामहिम राज्यपाल कहलनि जे आधुनिक शिक्षाक विकास केर प्रक्रिया मे ज्ञान अर्जित करबाक बातकेँ प्रमुखता देल गेल अछि, मुदा एकाग्रता और व्यक्तित्व-विकास जेहेन महत्वपूर्ण तथ्य केँ एहिमे समावेश करब सेहो बहुत जरूरी अछि। ओ कहला जे विषयगत जानकारीक संग-संग ओकर व्यावहारिक पक्ष पर सेहो ध्यान देनाय जरूरी अछि। एकाग्रताक अभाव मे समाज मे सृजनशीलताक विकास नहि भऽ सकैत अछि। राज्यपाल एकाग्रताक लेल पारम्परिक लोक पद्धति, यथा-लोक क्रीड़ा, लोक कला एवं लोक नृत्य आदि केर माध्यम सँ सेहो एकाग्रता विकसित करबाक बात कहलनि। योग आइ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित भऽ गेल अछि, एकरा आधुनिक-शिक्षण-पद्धति मे सेहो महत्व भेटबाक चाही। पुस्तक केर लेखक श्री विजय प्रकाश केँ अत्यंत सरल, सुगम और स्पष्ट भाषा-शैली मे एकटा गंभीर विषय पर तथ्यपूर्ण लेखन लेल हार्दिक बधाई और शुभकामना सेहो महामहिम द्वारा देल गेलनि।
एहि अवसर पर शिक्षा मंत्री प्रशांत कुमार शाही कहलनि जे एकाग्रता पर भारतीय वाङ्गमय मे ज्यादा व्यापक रूप सँ विचार भेल अछि। मनुष्य केर सम्पूर्ण विकास-यात्रा मे सेहो एकाग्रताक पैघ महत्व अछि। शिक्षा मंत्री सेहो लेखक केँ सर्जनात्मक प्रतिभा केर धनी व्यक्ति बतौलनि।
लेखक विजय प्रकाश स्वयं कहलनि जे भारतीय शैक्षिक प्रक्रिया मे एकाग्रता-विकास केँ बहुत महत्व देल गेल अछि। हमरा लोकनिकेँ अपन शिक्षा-व्यवस्था केँ नवाचारी ढ़ंग सँ विकसित करय पड़त। एहि पुस्तक मे एकाग्रता-विकास केर पारम्परिक तरीकाक सम्यक् विवेचनाक संग-संग लोक विधा मे रहल खेल और क्रियाशीलन केर महत्व केँ एकाग्रता-विकास मे काफी सहायक होयबाक तथ्य पर प्रकाश देलनि।एकाग्रता-विकास हेतु ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और आत्मानुशासन केर बहुत महत्व रहबाक बात कहैत एहि पुस्तक द्वारा मानव सभ्यताक विकास हेतु यथोचित योगदान भेटत से आशा जतौलनि।
कार्यक्रम केँ सम्बोधित करैत स्वामी भावात्मानंद स्वामी विवेकानंद केर जीवन-प्रसंग केँ सुनबैत एकाग्रता-विकास केँ जीवनक मूल मंत्र कहलनि। एहि अवसर पर राज्यपाल केर प्रधान सचिव ब्रजेश मेहरोत्रा, डॉ. मृदुला प्रकाश आदि सहित काफी संख्या मे वरीय अधिकारीगण, साहित्यकारगण, सामाजिक कार्यकर्तागण, संस्कृतिकर्मी, बुद्धिजीवीगण एवं नगरक अन्य संभ्रान्त व्यक्तिक उपस्थित छल। (समाचार स्रोत: न्युज२४ डट कम)