आध्यात्म आ मानव जीवन
– प्रवीण नारायण चौधरी
गृहस्थ जीवन मे सन्तान केर प्राप्तिक सुख सेहो अवर्णनीय अछि। आजुक समय मे बेटा आ बेटी मे कोनो फर्क नहि छैक। तथापि संतान प्राप्ति मे बेटा आ बेटी सभक संतुलन हर गृहस्थक प्राथमिकता मे रहैत छैक। तखन भाग्य सेहो बड पैघ मुद्दा होइत अछि।
राजा दशरथ केँ सन्तान प्राप्ति लेल पुत्रेष्ठि यज्ञ करबाक निर्देश गुरुजन द्वारा भेटलनि। तदनुसार भगवान् राम द्वारा मनु आ शतरूपा केँ देल वचन संग नारद जी केँ सेहो देल वचन केँ निर्वाह करबाक आ आरो कतेको रास पूर्वनिर्धारित मानवोचित कार्य पूरा करबाक लेल साक्षात् नारायण ‘राम’ रूप मे दशरथक घर जन्म लेलनि।
जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल।
चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल॥बालकाण्ड १९०॥
योग, लग्न, ग्रह, वार और तिथि सब अनुकूल भऽ गेल। जड़ और चेतन सब हर्ष सँ भरि गेल। कियैक तँ श्री राम केर जन्म सुख केर मूल थिक।
नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥१॥
पवित्र चैत्र केर महीना छल, नवमी तिथि छल। शुक्ल पक्ष और भगवान केर प्रिय अभिजित् मुहूर्त छल। दुपहर केर समय छल। नहिते बहुत सर्दी छल, नहि धूप (गरमी) छल। ओ पवित्र समय सब गोटे केँ शांति दयवला छल।
आर फेर जखन श्रीराम एहि धराधाम मे आबि जाइत छथि, तखन रामचरितमानस केर ई सुन्दर छंदरूपी स्तुतिक विशिष्टता हृदय केँ कतेक सुख दैत अछि तेकर बाते कि कहू!
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी .
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ..
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी .
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ..
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता .
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ..
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता .
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता ..
ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै .
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ..
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै .
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ..
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा .
कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ..
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा .
यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा .
तदोपरान्त भगवान् राम केर बाललीला सेहो ओतबे रोचक, मन लुभावन छल जे स्वयं शिवजी काकभुशुन्डि जी संग आबिकय अयोध्या मे एक मास रहलथि। जतय-ततय उत्सव भऽ रहल अछि। समस्त लोक उत्सव मे मगन अछि। राजा-रानी आ समाज सब कियो खूब दान-पुण्य कय रहल छथि। बड़ा मनभावन कथा भेटैत अछि।
निरन्तरता मे….
हरिः हरः!!