पुरुखा वर्गक समृद्धिक द्योतक थिक पंचांग अनुसार जीवन-पद्धतिक संचालन

विशेष सम्पादकीय

१८ मई २०१९ – मैथिली जिन्दाबाद!!

मैथिली पंचांग केर प्रकाशन भऽ गेल अछि ‘नव-वर्ष’ २०१९-२० ई. केर। महत्वपूर्ण पाबनि आदिक तिथि निर्धारित कयल गेल अछि। तहिना उपनयनक दिन, विवाहक दिन, द्विरागमनक दिन, मुण्डनक दिन आदिक निर्धारण सेहो कयल गेल य। ई वर्षक गणना १४२७ साल केर रूप मे कयल गेल य। एहि सालक पदाधिकारी संग वर्षा आ धान्य आदिक फलाफल सेहो निर्धारित कयल गेल य।

बहुत रास जानकारी एहेन जे हम सब कतेको लोक अनभिज्ञ रहलहुँ अछि, पंचांग मे हमर-अहाँक रुचि आब बहुत बेसी नहि रहि गेल तैँ। लेकिन, हमरा लोकनिक पुरुखा आ परम्परा – ज्योतिषीय गणना केँ बहुत उच्च स्थान पर रखैत रहलाह, तेकरा अनुपम मानबाक एकटा ठोस प्रमाण थिक ई पंचांग। हम पुरुषहि वर्ग टा नहि, बहुल्य नारी समाज सेहो आब व्रत आ पूजादिक ज्योतिषीय गणना केँ गौण मानैत छथि। एकर बहुत रास कारण छैक।

१. सर्वप्रथम हमरा लोकनि रोजी-रोटीक चक्कर मे अपन मूल स्थान आ मौलिक धर्म केँ निभाबय सँ नितान्त दूर भऽ गेलहुँ अछि।

२. अपन पारम्परिक महत्ता केँ हम सब संभवतः कम कय केँ आँकय लागल छी।

३. विज्ञानक युग मे विज्ञानक कतेको चमत्कार सँ अपना केँ एहि पारम्परिक मूल्य आ मान्यता सँ बहुत बेसी आगाँ (एडवान्स्ड) बुझैत छी।

४. महिला समुदाय आब घरेलू कामकाजी नहि रहि गेलीह, ओहो लोकनि नौकरिहारा पतिक संग स्वयं सेहो नौकरीपसन्द बनिकय अर्थ आर्जन दिश उन्मुख बनि गेलीह जाहि सँ घरहु केर माहौल मे ‘मिथिलांग’ नहि जिबैत देखा रहल अछि।

५. आर त आर, हम सब स्वयं अपन भाषा तक केर व्यवहार कम कय देलहुँ आ अन्य भाषाक उपयोग घरहु मे, बाल-बच्चाक संग बदलि देलहुँ, जे कि अशुद्धताक जड़ि थिक।

आरो गोटेक कारण भऽ सकैत छैक। जँ किनको दिमाग मे आबय त जरूर मोन पाड़ि देब। हमरो प्रकाश भेटत।

सवाल छैक जे एहि पंचांग द्वारा निर्धारित तिथि केँ ‘शुद्ध’ अथवा ‘शुभ लग्न’ केना मानल गेलैक आ कियैक मानल गेलैक ताहि पर मंथन करबाक माहौल हम सब नहि बना पबैत छी। पुरुखा वर्गक विज्ञ दृष्टि सँ निर्धारित एहि परम्परा केँ आजुक समय मे विरले कोनो-कोनो परिवार अपनौने भेटैत अछि। आब त विवाह, उपनयन, मुण्डन आदिक संस्कार पर्यन्त ‘शौर्टकट’ मे आ अपन-अपन सुविधाक अनुसार लोक करय लागल अछि। पता नहि जनेऊ केर महत्व एकर तागे जेकाँ नकली बुझैत अछि लोक वा आर किछु – परन्तु घरक गोसाउनिक आगाँ मातृका पूजा करबाक आवश्यकता बहुत कम लोक केँ बुझाइत देखि रहल छी। लेकिन, हमरा ई कहय मे कनिको हर्ज नहि बुझा रहल अछि जे एहि तरहक वर्णसंकरताक कारण मिथिला सभ्यताक नाश भ’ रहलैक अछि, आर संगहि हमरा लोकनि अपन भविष्यक सन्तति केँ नास्तिक संसार मे रहबाक आत्मघाती रास्ता स्वयं तैयार कय रहल छी जे कोनो दृष्टि सँ नीक नहि।

एक आम आह्वान स्वरूप एहि लेख केँ स्वीकार करब – आह्वान ई जे जहिना भाषा-संस्कृति केँ बचेबाक लेल ‘विद्यापति स्मृति’ केर संग मिथिला महोत्सव आदिक आयोजन करैत छी, ताहि ठाम एहि सब महत्वपूर्ण तत्त्वगत विषय पर सेहो विमर्श अपन आगामी पीढी, महिला समुदाय आ सखा-सखी, बंधु-बांधव संग जरूर करी।

अन्त मे राजकिशोर झा जी प्रति आभार प्रकट करब जे आइ एहि पंचांग केर ई दुइ गोट पन्ना हमरा सभ संग शेयर कयलनि अछि। एहि सँ बहुत रास जिम्मेदारीक बोध होयबाक संग-संग पुरुखा लोकनिक समृद्धिक परिचय सेहो भेटल। पुनः आभार ओ धन्यवाद! मिथिला केर जय हो। मैथिली केर जिन्दाबाद हो।

हरिः हरः!!