कविता
– प्रवीण नारायण चौधरी
मिथिलाक हाल बदहाल
जतय लोक केँ अपन भाषा, भेष आ भूषण सँ
स्वयं लज्जा बोध होइत अछि
जतय दूरक ढोल सोहाओन आ
बारीक पटुआ तीत होइत अछि
जतय सब जाति आ समुदाय में
अंतर्विरोध आ अन्तर्विभाजन चरम पर अछि
जतय जनकक समाजवाद आ सामाजिक न्याय कम
बाहरी शासक केर फूट डालो राज करो बेसी चलैत अछि
जतय वेद आ वेदांत केर जीवनशैली बिसरिकय
भौतिक सुख सुविधा लेल भागमभाग मचल अछि
भूगोलविहीन राज्यहीन ओ प्राचीन मिथिला में
आइ केवल आ केवल गुलामी मानसिकता हावी अछि
तेकर कि खराबी गानल जाय
तेकर कतेक खराबी गानल जाय
गनि गनि कतेक कानल जाय
जहिना तहिना बाँचल जाय
समय कोनाहू काटल जाय!
Bhagwan Jha सर द्वारा प्रश्न पुछल गेल य जे मिथिलाक खराब पक्ष की-की?😊 हुनके जबाब देबाक क्रम में उपरोक्त बात कहल य।
हरि हर!!