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रमण केर विवाह (मैथिली कथा)

मैथिली कथा – रमण केर विवाह

– प्रवीण नारायण चौधरी

भागवत मंडल केर नाम गामक एक सज्जन आ सम्भ्रान्त व्यक्तिक रूप मे लेल जाइत छलन्हि। २ गोट बेटाक विवाह सेहो अपना सँ साधारण परिवारक बेटी संग कएने छलाह। दुनू बेर मे हुनका द्वारा समधियाना मे पुतोहु नहि बेटी रूप मे पुतोहु लय जेबाक बात कहिकय खूब वाहवाही आ प्रतिष्ठा सेहो अर्जित कयलनि। तेसर बेटा रमण बड़ दुलारू रहथिन। हालहि पुणे मे एकटा नीक प्राइवेट नौकरी पकड़ने छलखिन। बाबू पुछलखिन जे आब तोहर विवाह-दान ठीक करी की…. रमण कहलखिन जे हँ बाबू, विवाह ठीक करू लेकिन बड़का भैया सब जेकाँ बिना दहेज लेने हमर विवाह कतहु नहि ठीक कय देब। बाबू आश्चर्य सँ पुछलखिन रमण केँ जे एना कियैक बजैत छह, बुझल नहि छह जे हमर अपन कतेक प्रतिष्ठा अछि?
 
रमण कहलकनि जे ई सब प्रतिष्ठा कतेक अछि से हम खूब देखने छी। गाम त छोड़ू पड़ोसी सब सेहो कहैत छल जे फल्लाँक बेटा सब केँ छहिये कि जे कियो दहेज दीतय… ताहि द्वारे दहेज मुक्त मिथिला ज्वाइन कय केँ बिना दहेज लेने ई अपन बेटा सभक विवाह करैत छथि। हमरा अपन विवाह मे ई देखा देनाय अछि जे भागवत बाबू लग कतेक सामर्थ्य आ बेटा केहेन पैघ नौकरी करैत छन्हि जे दहेज गनबेलखिन तखन विवाह केलखिन। भागवत बाबू अवाक् रहि गेलाह। अपन जीवनक सारा सिद्धान्त एक्के वेग मे छोटका बेटा द्वारा ध्वस्त कय देल गेलनि। ओ चुप रहि गेलाह। आब कुटमैती लेल जे कोनो प्रस्ताव अबैत छन्हि, ओ स्पष्ट कहि दैत छथिन जे हमर सिद्धान्त त आइयो बिना दहेज लेने विवाह करबाक अछि मुदा बेटा पाँज मे नहि रहल…. ओकरा पड़ोसी-गौआँ केर ओ बातक बड़ा कष्ट भेलैक जे बड़का भाइ सभक विवाह मे लोक सब बाजल। एहि तरहें दिन बितैत रहल, एक समय एलैक जखन रमण केर विवाह वैह गाम-समाज मिलिकय ५ लाख टका नगद, १ गोट मोटरसाइकिल, सोना के अंगूठी-चेन्ह व अन्य समानक संग बरियाती मे २०० लोक लेल अगबे उजरा रंगक स्कोर्पियो गाड़ी सँ लय जेबाक बात लड़की पक्ष गछलक।
 
विवाहक दिन सब किछु छहर-महर चारू पहर होइत रहल। बरियाती सब सेहो तैयार भ’ कय वरक घर आबि गेल छल। बरियाती विदाह होयबाक समय रमण खूब खुशी छल। अपन पड़ोसी-गौआँ सब केँ मुंहतोड़ जबाब दय देबाक गुमान भऽ रहल छलैक ओकरा। ओकरा हिसाब सँ अपन पिताक लुटल इज्जत केँ आइ ओ दहेज लय केँ वापस आनि देने छलय। मुदा रमण केर पिता भागवत मंडल केँ अपन मोन नहि मानलकनि ई सब देखाबटी व्यवहार देखिकय। ओ बुझि रहल छलाह जे ई सब छहर-महर कोनो बेटीवला सँ असूलल गेल दहेजक पाइ पर भऽ रहल अछि, एहि मे हमर अपन जे इज्जत छल से मटियामेट भ’ गेल। आब हम कोन मुंह सँ समधियाना मे बेटी रूपी पुतोहु अनबाक बात कहि सकब! हमर बेटा त दहेजक पैसा मे पहिने बिका गेल। बरियाती जेबा समय ओ मुंह लटकौने दरबज्जा पर बैसल रहलाह, कतबो रमण व गामक आन लोक सब हुनका सँ बरियाती चलबाक आग्रह कयलकनि, लेकिन ओ अपन पगड़ी उतारिकय अपना बदला वैह लय जा केँ समधि केँ दय देबाक आग्रह कयलनि। बरियाती ओ नहि गेलाह, नहिये ओ अपन घर मे पुतोहुक आगमन पर कहियो ओहि पुतोहु केँ बेटीक रूप मे देखबाक हिम्मत जुटौलनि। ओ छोटकी पुतोहु केँ उल्टे हाथ जोड़िकय प्रणाम करैत कहलनि, “अहाँ बड पैघ लोकक बेटी छी, अहाँक पिता बहुत पैघ छथि। ओ हमर बेटा कीनि लेलनि। ई विवाह दहेज लय केँ भेल। हम लज्जित छी। अहाँ हमरा गोर नहि लागू। हमहीं अहाँ आ अहाँक पिता सहित समस्त परिजन केँ गोर लगैत छी। बस, भगवती अहाँ सब केँ सदिखन खुशी राखथि।”
 
रमण केँ धीरे सँ बजाकय भागवत मंडल कहलखिन, “देखह, एतेक दिन हम अपन धर्म निबाहि लेलहुँ, आब हमरा लेल एहि परिवार मे रहनाय संभव नहि अछि। से हम आब एकान्तवास मे रहब। अपने सँ बनायब आ खायब। जहिया मरि जायब, हमर क्रिया-कर्म तों सब कय दिहह।” रमण पिताक एहि तरहक बर्ताव सँ बड़ा कष्टक अनुभव कय रहल छल, लेकिन गलती त ओ कय लेने छल। सिर्फ नोर बहबैत पिताक सिद्धान्त केँ आर बेसी ध्वस्त करबाक हिम्मत नहि जुटा सकल। ओ सहृदय पिता केँ विदाह कय आगामी समय मे दहेजक व्यवहार सँ अपना व अपन परिवार केँ मुक्त रखबाक संकल्प लय अपन गलतीक प्रायश्चित करबाक सोच बना लेलक। लेकिन ओकर मोन मे आइयो ई सवाल छलैक जे हमहुँ भले पिताक देखायल आदर्श बाट पर चलि जायब, लेकिन ई पड़ोसी आ गौआँ कहिया आदर्श केँ बुझि सकत? ई सवाल अनुत्तरित रहितो ओ अपन धर्म केँ निभेबाक सोच सँ अपने एहि गुलामी सँ स्वतंत्रता दिश उन्मुख भऽ गेल छल।
 
हरिः हरः!!

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