टिटहीक एक आर खासियत

मान्यता अनुसार टिटही अपन अंडा कोनो खोंता बनाकय आ आन चिड़ियाँ जेकाँ अंडा सेविकय अपन सन्तति (ऐगला पीढी) केँ एहि धराधाम मे नहि आनि एक विचित्र प्रक्रिया सँ अपन अस्तित्व केँ पीढी-दर-पीढी चलबैत अछि। कहल जाइछ जे टिटही अपन अंडा जमीन पर दैछ। अंडा सँ अपन चुजा केर जन्म दय वास्ते ओ सब ‘पारसमणि’ पाथर केर प्रयोग करैछ।
पारसमणि पाथर अनमोल चीज मानल जाइछ। लोहा केँ स्पर्श करय त सोना बना दियए, सेहो कहल जाइछ। ई पाथर साधारणतया केकरो नहि भेटैत छैक। लेकिन मान्यता अनुसार टिटही केँ एहि पाथर केर ज्ञान रहैत छैक आर ओ अपन अंडा सँ बच्चा पेबाक वास्ते एहि पाथरक प्रयोग करैत अछि।

टिटही अधिकांशतः रात्रिकालीन समय मे विचरण करैत अछि। ओकर विचरणक समय सेहो ब्रह्म-मुहूर्त बेसी होइछ। सूर्योदय सँ पहिने धरि ओकर आबर-जात बेसी देखल जाइछ। खेत-मैदान आ निर्जन स्थान मे बेसी घुमैत भेटैछ। टिटहीक टिटियाअब दिनक समय अशुभ मानल जाइछ। बुढ-पुरान लोक टिटही सँ जुड़ल आरो बहुत रास रहस्यपूर्ण कथा-गाथा सुनबैत भेटैत छथि।
मिथिला मे कोनो किंवदन्ति जँ पुरान लोकक मुंहें सुनैत छी त एकर मतलब अपने-आप मे एकटा गहींर रहस्य केर परिचायक होइत अछि। विज्ञान आ इतिहासक दावी सँ इतर मैथिली साहित्य मे ई मौखिक रूप सँ प्रयोग होयवला मोहावरा मे बहुत तागत होइत छैक। टिटहीक सम्बन्ध मे ‘रातिक समय सुतैत काल टांग उठाकय सुतबाक’ बात सेहो किछु असाधारण रहस्य केँ इंगित करैत अछि। लौकिक कहिनी पर विशेष दृष्टि व विचार रखनिहार साहित्यकार लोकनि एकरा बेसी नीक सँ फरिछा सकैत छथि।

हरिः हरः!!