२ मई २०१९. मैथिली जिन्दाबाद!!
सम-सामयिक स्थिति पर आधारित एक लेख
“टिटही आ मैथिल विद्वान्”
राति मे एकाएक टिटही चिड़िया मोन पड़ि गेल छल। काका बड नीक सँ बुझबथिन लोक सब केँ जाहि मे अक्सरहाँ ओ ‘टिटही केर टांग उठाकय राति मे सुतबाक’ मुहावरा खूब प्रयोग कयल करथिन। बस, वैह तरहक परिस्थिति आ ओ मुहावरा मोन पड़ि गेल छल। एखुनका सोशल मीडियाक युग मे वैचारिक सम्प्रेषणक गति खूब बढल देखि रहल छी। एकर कय गोट मनोविज्ञान छैक। विद्वता प्रदर्शन सँ लैत हम ई केलहुँ, हम ओ केलहुँ, हम-हम-हम केर हम्मा गीत सेहो खूब गेबाक रीत देखाइत छैक। किछु चलन-चलतीक रीत देखिकय ई टिटही वला कहावत मोन पड़ि गेल छल….!
हमरा लोकनिक समाजक गोटेक विद्वान् जिनका सोद्देश्य हम ‘कथित विद्वान्’ मात्र कहैत छी कारण ओ लोकनि पाय लेल कार्यपत्र लिखिकय ओहि मे अपन बुद्धिक पेंच फँसा-फँसा इतिहास आ प्रचलित मान्यताक विरुद्ध नव-नव दावी करैत रहैत छथि; टोकि देला पर बखुआइत उल्टे डाँट-दबार करब आरम्भ करैत छथि। एहि मे गोटेक आदरणीय अग्रज सेहो पड़ैत छथि, ताहि सँ नाम लेनाय उचित नहि मानैत छी, मुदा प्रकरण सब कनेक अप्रत्यक्ष ढंग सँ उद्धृत करब त ओहो सब बुझि जेता, अहुँ सब बुझि जायब आ हमर आदर सेहो हुनका लोकनिक प्रति बनल रहत, रुसा-फुल्ली शायद नहि होयत। ओना रुसा-फुल्ली आ दु-गोला फेसबुक पर सेहो खूब होइत छैक। भतबरी केर सेहो कय गोट उदाहरण सोझाँ मे अछि।
जनकपुर नेपालक धनुषा जिला मे पड़ैत छैक। जनकपुर केर वर्णन अनुरूप कतेको रास विशिष्ट साक्ष्य सेहो आजुक जनकपुर मे देखय लेल भेटैत छैक। यथा जनकपुर केर स्वरूपक वर्णन मे एहि ठामक पोखरि – गंगासागर, फल्लाँसागर, चिल्लाँसागर आ कय गोट सागर! एतबा नहि, जनकपुर केर आसपासक क्षेत्र मे जानकी लीलाक कतेको चरित्रक दृश्य एतय फुलहर, धनुषा, सीतामढी आ मिथिला परिक्रमा पथ पर विभिन्न ऐतिहासिक महत्वक प्रतीक चिह्न सँ स्पष्ट छैक। लेकिन ई गोटेक ‘हम्मा-महाशास्त्रक रचयिता’ उपरोक्त कथित विद्वान आइ-काल्हि भत्ता खा-खा कय मिथिलाक इतिहास केँ अपन-अपन बाउ-बाबाक जिरात बुझिकय संकुचित करबाक काज करैत छथि। हमर लेख आ बात-विचार तीत लगतैन, खूब लागौन। धरि, ओ जे मिथिलाक सीमा केँ ‘मिथिलांचल’ यानि ‘दरभंगा-मधुबनी’ मे सीमित करबाक सोच रखता तऽ ई तीत करैला काँचे खाय पड़तन्हि।
पाग सम्मानक प्रतीक एक शिरस्त्राण थिक। दोसर, पाग किछु विशिष्ट सुसंस्कृत जाति द्वारा अपन धार्मिक-सांस्कारिक अवसर पर प्रयोग कयल जायवला परिधानक हिस्सा सेहो थिक। नेपाल मे एखन संचारक्षेत्र मे पढय लेल आ देखय लेल भेटि जाइछ जे ‘किछु समय सँ जनकपुर मे पागक प्रयोग बढि गेल’ अछि। ई संचारकर्मी मित्र लोकनिक कमजोर अध्ययनक कारण ‘जनकपुर मे किछु दिन सँ प्रयोग’ होयबाक बात देखल जा रहल अछि। हुनका लोकनि केँ बुझबाक चाही जे एक-चौथाई सँ सेहो कम मिथिला भूभाग नेपाल मे पड़ैत अछि, जतय बहुदल प्रजातंत्र केर करीब ३ दशक आ संघीय गणतंत्र स्थापनाक लगभग १ दशक जखन कि नव-संविधान निर्माणक मात्र ३ वर्ष पूरा भेल परञ्च ओ संविधान लागू होय मे एखनहुँ बहुत रास रोड़ा-पाथर भरल बाटक नियति देखाइत अछि। पाग केर प्रयोग ‘सम्मान केर प्रतीक’ केर रूप मे भारतक राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, कुलपति, कुलाधिपति, विद्वान् प्राचार्य, प्राध्यापक, चिकित्सक, वैज्ञानिक सँ लैत आइ-काल्हि रुबिया लियाकत समान प्रखर-तेजस्वी महिला टीवी न्यूज एंकर केँ सेहो देल जाइत अछि। आर, सम्मान देबाक समय केकरो जाति आ कि धर्म आ कि लिंग आदि नहि देखल जाइत छैक, ओकर विद्वता, योगदान आ सम्मान योग्य विभिन्न अवस्था केँ देखल जाइत छैक। एहि मे गलत ढंग सँ जातीयता केँ जोड़बाक काज केवल क्षुद्र मानसिकता द्वारा कयल जाइत अछि।
हालहि मैथिल ब्राह्मण महासभा द्वारा जनकपुर मे आयोजित ‘जातीय सम्मेलन’ मे ‘पाग जुलूस’ निकालल गेल छल। मिथिलाक मौलिक परिधान केँ जनसामान्य द्वारा प्रयोग करबाक प्रवर्धन एकर उद्देश्य रहय, नहि कि एकल आरक्षण केर कोनो दावी। तथापि, किछु सन्देहक प्रसार होयब दुर्भाग्यपूर्ण छल। भ्रमक कारण ओकरा आरो बल भेटतैक जे सब पूर्वहि सँ अनाप-शनाप बात लिखिकय मैथिली केँ कमजोर करैत आबि रहल अछि। जेकरा भाषाक हित आ समाजक हित लेल कहियो एको रती सोच-समय-सामर्थ्य तक नहि रहलैक ओहो सब भाषा, भेष आ भूषण केर मर्यादा पर बड़का-बड़का कुकाठी-कुतर्क करब शुरू कय देलक। मिथिलाक समग्रता केँ ठेस पहुँचेबाक ओकर मानसिकता केँ ई भ्रम आगू बढेलक। ई बात अलग भेलैक जे कोनो समाज एकल-दुकल जाति सँ स्थापित नहि भेलैक, मिथिला तऽ पूर्णरूपेण वैदिक रीत मुताबिक चलयवला सभ्यता मानल जाइत छैक आर एहि ठामक कोनो विध-व्यवहार वगैर समस्त जाति-समुदाय (श्रम-आधारित वर्ग) केर सहभागिताक पूरा नहि होयबाक पाण्डित्य पर चलैत छैक। सम्मानक प्रतीक आ परिधानक हिस्साक रूप मे पाग केँ अपन अलग मर्यादा छैक, ई हमरा लोकनि नीक सँ बुझी।
निष्कर्षतः एक बात हम सब मोन राखी जे कोनो सभ्यता आ संस्कृति केर कतबो पैघ आ प्रखर वकालत करयवला लोक सिर्फ अपन बुझाइ केँ सर्वोपरि मानि अदौकाल सँ स्थापित परम्परा केँ जबरदस्ती दोषपूर्ण साबित करबाक कुचेष्टा करब से स्वीकार्य नहि होयत। मानव समुदाय लेल सर्वोपरि सिद्धान्त यैह छैक जे देश, काल व परिस्थिति मुताबिक ओ सर्वहित लेल अग्रसर रहय।
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा॥गीता ६ – १७॥
दुःख केँ नाश करयवला योग सिर्फ यथायोग्य आहार और विहार करयवलाक कर्म मे यथायोग्य चेष्टा करयवलाक तथा यथायोग्य सुतब ओ जागयवला टा केर सिद्ध होइत छैक।
एकर व्याख्या बहुत गम्भीर अछि। हम सब एहि पर जरूर मनन करी। टिटही वला कहावत जे राति मे आकाश खसि पड़तैक, कम सँ कम हम टांग उठाकय सुतब जाहि सँ राति मे आकाश जँ खसबो करतैक त ओकरा हम अपन टांग पर उठा लेब, एहि मे सोच काफी वलिष्ठ रहितो यथार्थता केँ परिवर्तन नहि कयल जा सकैत छैक से बात मनन करी।
अन्त मे, एक गोट लेख पढने रही ‘टिटही’ केर बारे मे ‘पंजाब केसरी’ मेः उपरोक्त कहावत मे जेहेन महान सोच एकर छैक, तेहने महान एकर जीवन सँ जुड़ल एकटा आरो प्रसंग छैक। टिटही कहाँ दिना अंडा अपन खोता बनाकय नहि बल्कि जमीनहि पर कोनो सुरक्षित स्थान मे दैत अछि। आर, अन्य पक्षी जेकाँ अंडा केँ सेविकय अपन शरीरक ताप सँ नहि फोड़ैत अछि अंडा ई टिटही… अंडा फोड़ि अपन बच्चाक जन्म देबाक लेल ई सब ‘पारसमणि’ पत्थर केर प्रयोग करैत अछि। आइ धरि मनुष्य केँ पारसमणि भेटनाय दुर्लभ मानल गेलैक, लेकिन नहि जानि टिटही कतय सँ ताकि लैत अछि पारसमणि। आर, पंजाब केसरीक ओहि लेख मुताबिक ई दावी कयल गेल छैक जे टिटही द्वारा आनल गेल ओ पारसमणि जँ कोनो मनुष्य केँ भेटि जाय तऽ ओ करोड़पति बनि जायत।
हरिः हरः!!