व्यंग्य
– सत्य नारायण झा
कतय गेल ई वैज्ञानिक सभ । लगैत अछि नांगरि सुटकंत कए बिल मे नुका रहलैए । केखनो चंद्रमा पर त केखनो मंगल पर रहता ई नकडुब्बा सभ । एखन भूकम्प सँ लोक के की बचेता अपने नांगरि सुटकेने भागल फिरैत छथि । ओह एखन ऱामजीक भाई लखनलाल याद परैत छथि जे कन्दुक इव ब्रह्मांड उठाबो बाला रहितथि त धरतीयो के बुझा दैतथिन । एही बदमासी द्वारे कलियुग पृथ्वीक पैर तोरि देने रहनि । ओह एखन जों भीम भाई जीबैत रहितथि त क्रोशियन प्लेट के आर्य भूमि दिस आबहि नहि दैतथिन, बाहु बल सँ ओकर मुँहे उत्तर मुँहे कए दैतथिन । आ जों राम रहितथि त अपन अमोघ अस्त्र सँ पृथ्वी के स्थिर कए देने रहितथिन । कहियो मजाल भेलनि जे त्रेता आ द्वापर मे डोलती । एहने चालि पर ने हिरिनाक्ष लए कए पाताल भागि गेलनि । ओ त विष्णु भगवान जे सुकर बनि हिनका उपर केलनि । ई आब बर दुलारु जकाँ कए रहल छथि । हिनको अदिन्ता आबि गेल छनि । लगैत अछि लोक के त ई नहिये छोड़थीन मुदा अपनो ई डुबती समुद्र मे । मुदा सभ सँ खचरपनी त भूगर्भवेता सभ केने छथि, अबैत त छनि केकरो मड़ुआ भरि नहि मुदा लोक के हरदम डेरबैत रहब । केकरा नहि बुझल छैक जे भूकम्प बेर घर मे नहि रही । केकरो कहय परैत छैक, गेल रही एकटा औफीस, कि गप्प करत, कनेक हिललै की लत्तेपत्ते सभ भागल । सभ सँ त एकटा बैंक मे एकगोटा रुपया जमा करैत रहथि, फाँर्म आ रुपया कैसियर के देलखीन. कैसियर रुपया गनय लगलाह, आकि बैंकक मकान हिलय लगलैक, कैसियर हाथक रुपया नेने भागल, एमहर कस्टमर के भेलैक जे रुपया लके ई भागल, ओ हल्ला करैत ओकर पाछा दौड़ल । तै ई भूकम्प आब जान पर केने अछि, आब लोक फेर मरैया बनायत आ खर तर रहबाक आदत करहि परतैक, तखन हिनको डर केकरो नहि हेतैक ।