संस्मरण
– प्रवीण नारायण चौधरी
सीतामढी एक पूर्ण तीर्थ – वरदान भेटब अवश्यम्भावी
आउ, जानकी जन्मभूमि पुनौराधाम मे एक पुष्प चढाबी!

दुनू बेर २ गोट वरदान भेटल। पहिल बेर मे जानकी जी कहली जे मिथिला समान पवित्र ‘नाम’ केर पुनर्स्थापना लेल तोरा लोकनि यात्रा पर जा रहल छँ से एकदम निर्भय भऽ कय जो, कतहु कोनो शक्ति तोरा सब केँ बाधा आ विघ्न नहि दय सकतौक। आर, से सच्चे, कनियेकालक बाद एगो बाधा देनिहार शक्ति केँ देकुलीधाम महादेव मन्दिर लग प्रकट होइत देरी जानकी जी तेहेन दूत – स्थानीय मुखिया श्री राजेन्द्र प्रसाद यादव केँ पठौलनि जिनकर रूप आ गुण केर बखान कतेको बेर कय देने छी, ओहि पहिल दिवसक रात्रि विश्राम सेहो हुनकहि सान्निध्य मे देकुलीधाम गेस्ट हाउस पर सारा व्यवस्था आ भोजनादिक पवित्र इन्तजाम मे सम्पन्न भेल शिवहर जिला मे। अपन खेतक राहड़िक दालि आ गायक विशुद्ध घरैया घी संग आलू चोखाक सोन्हगर सुगन्ध हमरा आइयो नहि बिसरायल अछि।
दोसर बेर सेहो जानकी जी केर सान्निध्य पाबि बड पैघ वरदान भेटल। ओ कहली जे कोनो शुभ कार्य लेल कदापि हिचकिचाहट नहि राखल करे। तोरा जखन, जतय, जे करबाक इच्छा होउक से कयल कर। हम सदैव तोरा संग रहबौ। आ फेर कि छल… कनेक देरी सँ निकललहुँ आ रस्ता मे कनिकबे काल मे परीक्षा तेहेन आरम्भ भेल जे गाड़ी अचानक एकटा खधारि मे नीचाँ मुंहें ढुलकल आ फेर अचानक… बिना कोनो बेसी डिस्टर्ब भेने गाड़ी स्वतः सड़क पर चढि गेल। ओह! बेर-बेर सोचैत रहलहुँ जानकी जी केर ओ दया आ माया केर विषय मे। संयोग सँ ताहि दिन महान संत रामकथा वाचक मुरारी बापू केर दर्शन सेहो भेल रहय। हुनकर सान्निध्य किछेक पल ठाढ होयबाक आ हुनकर प्रिय वचन सब सुनबाक अवसर सेहो भेटल छल। दिन मे गोशाला घुमबाक, गोशाला केर ओ विशाल व्यवस्था आदिक बात सुनि वसिष्ठ ऋषिक कोपिला नामक गाय केर कथा सब याद करब, पुनः जानकी जी केर मुख्य प्राचीन मन्दिर मे आबिकय अपन नियोक्ता आदरणीय महेश बाबू संग दर्शन-भेंट करबाक सौभाग्य – ई सब सचमुच जीवनक सही लाभ भेटबाक अनुभूति देलक।
तेसर बेरुक संस्मरण सेहो बड़ा सुन्दर अछि। किसलय जी सहित सब मित्र सीतामढी सँ सीधे अपन गाम एलहुँ। माँ केर हाथक सोहारी-तरकारीक भोजन सब कियो कय केँ तृप्त भेलहुँ। माय-बाप जाहि कुटिया मे जीवन बितौलनि ताहि ठाम हम जखन एक रात्रि विश्राम करैत छी त एना बुझाइत अछि मानू वर्षों-वर्ष केर थकान दूर भऽ जाइत अछि। शहर-नगर आ गाम-ठाम घुमैत जे हरारत भेल रहैछ से गामक घर पर एक रातिक विश्राम मे कतय परा जाइत अछि तेकर वर्णन शब्द मे करब हमरा लेल कठिन अछि। आ, ताहि पर सँ भगवती दुर्गा देवीक दर्शन – गामक दुर्गा मन्दिर, जतय हमर प्राण बसैत अछि, सदैव ओतहि विचरण करैत रहैत अछि। होइत अछि जे हरदम ओतय किछु न किछु काज करैत रही। मानसिक रूप सँ ओतहि रहैत छी बुझू। भोरे अपन मुरा पोखरि मे स्नान, पुनः माँ केर हाथक जलपान आ कर्मभूमि विराटनगर लेल प्रस्थान…! जानकी जी संग भेंट बड पैघ स्फूरणादायक सिद्ध होइत रहल अछि।
बहुत उच्च दावी कय केँ अपने भक्त-आस्थावान लेल त किछु नहि कहब – लेकिन जाहि उच्च आस्था आ विश्वास संग हमर उपरोक्त यात्रा होइत रहल अछि बिल्कुल ताहि आस्था संग अपने लोकनि एहि तीर्थ स्थान पर जरूर जाउ। मन्दिरक पाछू ओ पोखरि सेहो घुमि लेब जतय जनक शिरध्वज हलेष्ठि यज्ञ कएने छलाह। जतेक समय भऽ सकय ओहि रमणीय स्थान मे जरूर बितायब। संभव हो तऽ पहिल संध्याकाल मे किछु क्षण बितायब। जगज्जननी जानकी केर मन्दिर मे, पूजारी जी सँ चरणामृत लय, टीका-चानन लगाकय कनेकाल बैसि जायब। विचार करैत रहब जे पुरुषोत्तम राम केर धर्म अनुचरिणी जानकी कोना अपन सहनशक्ति आ समर्पण सँ पतिक मर्यादा केँ एतेक उच्च सम्मान देलीह, अपन निजत्व आ मान-मर्यादा केँ पतिक राजधर्म मे कतहु आड़ नहि बनौलीह – राम हुनकर पति छलाह ताहि लेल विशेष अनुकम्पा करैत न्याय करैथ से चाहबो नहि केलीह, तथा राजाक न्याय प्रणाली मे पत्नीक अग्नि परीक्षाक जाँच हो अथवा गर्भवती पत्नी तक केँ राज्य-निर्वासनक कठोर दंड – लेकिन जानकी सहर्ष स्वीकार करैत बाल्मीकि केर आश्रम मे करुणाक भंडार पुनः अपन पति आ हुनकहि पुरुषोत्तम स्वरूप अंशावतार लव ओ कुश केँ एक सक्षम माता आ गुरु संग वीरांगना सीता बनि युद्ध-कौशल सँ पर्यन्त सुशिक्षित कय देलीह…. वाह जानकी! हे जगत-माता – हे रामभार्या – हे पराम्बा – अहाँक हर रूप केँ हमर प्रणाम!! सीताराम सीताराम सीताराम!!
हरिः हरः!!