वैदिक एवं संस्कृतभाषा मे शिक्षाक महत्व

अपना दिल से जानिये पराये दिल का हाल – हिन्दीक एहि प्रसिद्ध कहाबत अनुसार अपनहि सँ आरम्भ करैत छी। जीवनक लगभग ५ दशकक कइएक बसन्त खेपि चुकल अधवयसू प्रवीण अपन स्वाध्यायक रुचि आ ताहि मे संस्कृत विषय मे उपलब्ध विभिन्न बात-विचार सभक अध्ययन सँ फेरो गहन खोज करय लेल प्रेरित होइत रहैत छी। संस्कृत बहुत प्रिय लगैत अछि आब। एतेक यदि बुद्धि पहिने रहितय त निश्चित शुरुए सँ संस्कृत शिक्षा पद्धति केँ अंगीकार कय अपन जीवनक दशा-दिशा किछु आर बना सकितहुँ… खैर…. जे नहि भऽ सकल ताहि पर माथ भिड़ौने आब जीवनक एहि मोड़ पर संभवे कि होयत! तखन मोनक बात लिखबाक आदति अछि। लिखिकय छोड़ि देला सऽ ओ कहियो न कहियो, कोनो न कोनो रूप मे एहि मानव समुदाय लेल हितकर होइते टा छैक, से सोचि किछु लिखबाक इच्छा जागल फेरो।
संस्कृत मे शिक्षाक परम्परा मिथिला मे बहुत प्राचीनकाल सँ चलैत रहल। वेद, वेदान्त, पुराण, श्रुति-साहित्य पर आधारित कथा, महाकाव्य, आदि अनेकों ग्रन्थक संग जीवनोपयोगी संहिता, सूत्र आदिक निरूपण संस्कृतक विभिन्न विषय मे कयल गेल अछि। मैथिल विद्वान् सभ मे सेहो जे लोकनि लेखक भेलाह ओ सब मानव जीवन लेल कि-कि जरूरी छैक ताहि सब विधा मे अपन कलम चलेलनि। संस्कृतहि सँ लेखन परम्परा मैथिली मे आरम्भ भेल। लोकभाषा मे लेखन करबाक ध्येय संस्कृतक कठिनाई केँ सहज बनायब छल, से बात विद्यापति केर निम्न पाँति सँ स्पष्ट अछि –
देसिल वयना सब जन मिट्ठा – तैँ तैसओं जंपओं अवहट्ठा
ईहो बातक संगहि उल्लेख हेबाक चाही जे जहिया महाकवि विद्यापति संस्कृत केँ छोड़ि ‘मैथिली’ मे प्रवेश कएने छलाह ताहि समय अन्य विद्वान् लोकनि हुनकर रचनाधर्मिता पर सवाल ठाढ करैत हुनका ‘हास्यक पात्र’ सेहो बनबथि। ताहि सन्दर्भ मे ई पाँति स्वतःस्फूर्त वर्णन करैत अछि जे विद्यापति केँ अपन मातृभाषाक महत्व स्थापित करय लेल कतेक बेलना बेलय पड़ल हेतनि –
बाल चन्द विज्जावइ भाषा ।
दुहु नहि लग्गै दुज्जन हासा ॥
श्री परमेश्वर हर सिर सोहइ ।
ई णिच्चई णाअर मन मोहइ ॥
अर्थात् बालचन्द्र तथा मैथिली भाषा देखि कऽ दुर्जन लोक केँ हँसी नहि लगतनि, कारण बाल-चन्द्रमा शिवक मस्तक पर शोभित छनि आ ई भाषा बुझनिहार लोकक मन मोहयवला अछि।
तैँ विद्यापति संस्कृत केँ छोड़ि देलन्हि, रिबेल (बागी) बनिकय सिर्फ मातृभाषा टा लेल संस्कृत केँ दाँव पर लगा देलनि – से बात नहि छैक। हुनक दुइ महान कृत्ति ‘कीर्तिलता आ कीर्तिपताका’ ग्रंथक अलावा ओ संस्कृत मे भू-परिक्रमा, पुरूष परीक्षा, लिखनावली, शैव सर्वस्वसार, गंगावाक्यावली, दानवाक्ययावली, दुर्गा भक्ति तरंगिनी, विभाग सार, न्याय पत्तल, ज्योति प्रदर्पण, वर्षकृत्य, गोरक्ष विजय (नाटक), मणिमंजरी (नाटक) आदि ग्रंथक रचना कयलनि। जतय भूपरिक्रमा मे विद्यापति मुख्य तीर्थ आदिक वर्णन कएने छथि ओतहि लिखनावली मे पत्र लेखन शैलीक विवरण कएने छथि। पुरूष परीक्षा मे ललित कथाक रूप मे धार्मिक तथा राजनीतिक विषयक वर्णन अछि। दुर्गा भक्ति तरंगिनी मे दुर्गाक गहना तथा दुर्गा पूजाक विधि संबंधी बात नरसिंह देवक आदेश पर लिखल गेल। शैव सर्वस्वसार मे भव सिंह सँ लऽ कऽ विश्वास देवी धरिक राजाक कीर्ति कथाक संगहि शिवपूजा विधिक उल्लेख अछि। (सन्दर्भः सन्तोष झा अपन ब्लौग ‘मिथिला-महान’ मे)
आइये ई बात विशेष रूप सँ एहि लेल मोन पड़ि गेल अछि जे विगत किछु समय मे मिथिलाक अगाध विद्वान् पं. रुद्रधर झाक कय गोट आलेख पढय सँ लैत हाल पढि रहल अष्टावक्र संहिता आ तेकर हिन्दी-अंग्रेजी मे अनुवाद सँ मैथिलीक अनुवाद तैयार करबाक क्रम मे संस्कृत श्लोक केँ बुझय मे आबि रहल दिक्कत – एक्कहि श्लोकक अलग-अलग शैली मे अनुवाद, विद्वानहि पाछाँ अनुवाद मे फर्क, ताहि लेल ई लेख लिखिकय नव पीढी सँ मनुहार करय चाहि रहल छी जे अपन मौलिक शिक्षा परम्परा – खासकय मिथिलावासी केँ अपन विद्वान पुरुखा जेकाँ निरन्तर करब आवश्यक अछि। यदि मूलधाराक अध्ययन मे समय कम भेटय तऽ संस्कृतहि शिक्षा लेल किछु सन्तान केँ विशेष प्रेरित करबाक काज हम सब कियो जरूर करी।
अष्टावक्र संहिताक दोसर अध्याय मे जनकजी द्वारा उद्धृत अनेकों वाक्य पढला सँ एकटा नव ऊर्जा भेटबाक संभावना अछि। एहि लिंक पर फोलो करीः http://www.maithilijindabaad.com/?p=12318 – अपन राय-सुझाव सँ सेहो अवगत कराबी।
हरिः हरः!!