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प्रवीण-डायरी २०१२

जनवरी १, २०१२

आदरणीय संपादक महोदय,
विदेह – प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका,
http://www.videha.co.in/new_page_11.htm

श्रीमान्‌ गजेन्द्र ठाकुरजी,

आइ २०१२ ई. के प्रथम दिन भोरे अपन दिनचर्या में फेशबुक पेज पर मिथिला कतेक आगू बढल एहि बात के मंथन करय के क्रम में अपनेक उपहार भेटल – आशीर्वाद भेटल – हृदय गद्‌गद्‌ भेल अछि। भितरका ब्रह्म लिखय लेल माथ के आदेश देलथि आ सहृदयता सँ अहाँके धन्यवाद दैत छी जे हमर भीतर एक द्वंद्व छल जे हम लेखक बनि सकैत छी वा नहि तेकरा समाधान केलक कारण विदेह में हमर टूटल-फूटल कविता के अपने जगह दऽ के जे उत्साहवर्धन आ समर्थन कयलहुँ ओ बहुत महत्त्वपूर्ण लागल। आगुओ हम अपनेक आशा के पूरा कय सकब से भरोस दैत छी।

नव वर्षमें हम कि दऽ सकब… तखन एक भरोस देब जे काल्हि घोषणा कय चुकल छी … विदेह आब मैथिलीके अन्तर्राष्ट्रीय स्तरके पत्रिका के स्वरूप लऽ चुकल अछि आ एकर दर्शन मिथिला के समस्त जनमानस करय एहिपर विचार कयल जाय, एहि लेल खर्च के भार बहुत आयत, हम प्रस्ताव रखैत छी जे एक पब्लिक लिमिटेड प्रकाशन बनायल जाय आ समस्त मैथिलकेर शेयर-पूँजी सँ एहि शुभ कार्य के श्री गणेश कैल जाय। तुच्छ प्रवीण के सेहो किछु लगानी एहि में स्वीकार करब से विनम्र अनुरोध करैत छी। मिथिला-मैथिलीके लेल शरीरके एक-एक बुन्द खून लगाबय के जोश गानल-गूथल लोक में होइत छैक एहि बातके आत्मसात्‌ करैत अपनेक योगदान सँ प्रेरणाप्राप्त प्रवीण गछैत अछि जे एहि शुभ कार्यमें व्यवस्थापन, बाजार-वितरण, प्रचार-प्रसार एवं हर ओ कार्य में अपनेक संग बिना कोनो मनभेद-मतभेद के रहत। एहि सुन्दर उपहार सँ हम सभ ईन्टरनेट सऽ दूर स्वच्छ-सोझ मैथिल केँ अपन सेवा पहुँचा सकब। मिथिला एहि प्रेम सँ ओत-प्रोत रहत। गामके बच्चा सभ सेहो विदेह के अंक सभ पढत। विदेशिया मैथिल सभ पुनः मातृप्रेम पौता। मिथिला एक रहत, कतबू चिचिया के लोक एकरा दू नहि बना सकैत अछि। विदेह के प्रकाशन लेल अग्रिम शुभकामना एवं हर तरहें उत्साह के एहि उपहार के अपने सेहो आत्मसात् करब।

अनुज,

प्रवीण चौधरी ‘किशोर’
एशियन थाई फूड्स प्रा. लि.,
विराटनगर – ९, नेपाल।
९८५२०२२९८१.

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२ जनवरी २०१२

जानकारीमूलक एक विचार-विन्दु
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सर्वप्रथम सौराठ सभा के लेल एक संक्षिप्त परिचय: आइ सँ लगभग ८०० वर्ष पूर्वहि मिथिलाके प्रसिद्ध राजा हरसिंह देव के समय मिथिलामें हर जाति-धर्म के लेल वैवाहिक पंजियनके वकालत कैल गेल आ वैवाहिक अधिकार लेल एक निश्चित नियम जे धर्मसंगत एवं तर्कसंगत छल जे मातृ-पक्ष के ५ पीढी आ पितृपक्षके ७ पीढी तक विवाह लेल निश्चित जोड़ीके खूनके सम्बन्ध नहि हेबाक चाही आ एहि लेल मिथिलामें वैवाहिक सभाके आयोजन (मेला) – अर्थात्‌ एक एहेन जगह सभके जुटान जाहिमें अपन-अपन जाति-कुल-धर्म अनुरूप अपन विवाह योग्य सन्तान लेल जोड़ी निर्धारण कैल जा सकैक। एहेन लगभग ४२ स्थल के नाम लेल जाइछ जतय सभा लागैत छल। एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बात आरो शुरु कैल गेल छल एहि राजा के शासनकालमें – सभ जातिकेँ एकत्वभाव में बान्हय लेल जातिसँ पूर्वहि ‘मैथिल’ जोड़ल गेल छल। अर्थात्‌ मैथिल ब्राह्मण, मैथिल कायस्थ, मैथिल राजपुत, मैथिल केवट, मैथिल मल्लाह, मैथिल कुम्हार, मैथिल धुनियाँ, मैथिल कुजरा – आदि। सभ जातिके अपन-अपन विशेष सिद्धान्तके प्रतिपादन कैल गेल छलैक – एक विशेष सभा जाहिमें पण्डित, विद्वान्‌, जातिके मुखिया-मैंजन आदिके विशाल सहभागिता छलैक। ताहि समयके व्यवस्था अनुरूप इ सभ व्यवस्था बनलैक।

एहिमें मैथिल ब्राह्मणमें किछु कड़ा नियम रहलाके कारण सभाके अनिवार्यता आ सन्दर्भ गंभीर छलैक। उपरोक्त ७ पीढी आ ५ पीढीमें खूनके सम्बन्ध शायद ब्राह्मण एवं कायस्थ में मूलतः रहैक, तदोपरान्त ताहि समयमें जनसंख्या जेकर जतेक रहैक, सुविधा जेहेन रहैक, वैवाहिक सम्बन्ध कायम करैक अन्य आवश्यक संभावना जतेक रहैक ताहि अनुरूपे सभ जाति-धर्मके लेल राजा नियम प्रतिपादित करौलन्हि। आइयो धरि शायद एहि अधिकारके सिद्धान्त सिर्फ ब्राह्मण आ कायस्थ निर्वाह कय रहल छथि। हलाँकि कायस्थमें गोत्रके बाधा नहि रहलाके कारण सभाके महत्त्व बहुत गंभीर नहि रहलनि, मुदा सभाके महत्त्व जेना स्वयंमें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होइत छैक एकरा आत्मसात्‌ करैत विशिष्ट व्यवस्थापन सऽ सभ केओ लाभान्वित भऽ सकैत अछि, एकरा सभ मानैत छथि। रहल गप ब्राह्मणक व्यवस्था कड़ा रहला के कारण – गोत्र अलग, मूल-पाँजि निरीक्षण रहलाके कारण कम से कम ताहि समयमें बिना सभा के तऽ विवाह असंभव छलैक। अतः सभा के कुल ४२ विन्दु समस्त मिथिलांचल में कालान्तर में रहल आ अन्ततः सौराठ सभागाछी जाहिमें बादमें दरभंगा महाराज, सौराठ, कुर्सों ड्योढि, लोहा ड्योढि एवं अनेको मिथिला के ठट्ठ गाम सभ अपन-अपन योगदान दैत एहेन भव्य सभाके व्यवस्थापन कयलाह जेकर पोषण बिहार सरकार तक करय लागल आ एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विन्दु जतय नहि सिर्फ वैवाहिक जोड़ीके मिलान संभव होइक, खुल्ला अवसर वर-कन्या जोड़ी मिलानके लेल भेटैक बल्कि विभिन्न तरफ सऽ एकत्रित भेल लोक अपन-अपन स्तर सऽ मिथिलाके समग्र विकास लेल सेहो सोच-विचार करैथ। आइ-काल्हि एहेन सभा लगाबय लेल नहियो किछु तऽ करोड़ों रुपया के तऽ खाली विज्ञापन देबय पड़ैत छैक – देखैत होयब जे ओ भले अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरुद्ध आन्दोलन होइक वा रामदेवजीके व्यायाम सभास्थल वा लालूजीके लाठी भाँजयवाला प्रदर्शनी या फेर नितीशजीके जनता दरबार – सभमें विज्ञापन खर्चके महत्त्वपूर्ण भूमिका रहैछ आ तेकर बाद टाका-पाइ दऽ के गाम सऽ भीड़ जुटाबयके इन्तजाम – तखनहि सभा के सफल बुझल जाइछ। मिथिला राजके लेल जखन अनशन कैल जाइछ तऽ मुश्किल सऽ २० लाख के मैथिलके आवादीक्षेत्र दिल्लीमें दिल्लीके जन्तर-मन्तर पर ५० गो लोक पहुँचैत छथि। आब बुझि जाउ जे सभाके जोगाड़ में कतेक बेलना बेलयके आवश्यकता छैक। हालहि विद्यापति स्मृति पर्व समारोह २०६८ विराटनगरमें निष्पादित कयल जे अन्तर्राष्ट्रीय स्तरके एक अति सुहावन कार्यक्रमके रूपमें प्रसिद्धि पौलक ताहिमें लाखों रुपयाके खर्च अयलैक। लेकिन हाय रे सौराठ-सभागाछी – बिना पाइ खर्च के स्वतः प्रतिदिन लाखों लोक एहिठाम जुटैत छलाह। सभाकाल में बिना स्वयंसेवक के महादेवके कृपा सऽ सभ किछु नियंत्रित होइत छलैक। लोक अपन बेटा-बेटीके लेल सम्बन्ध निर्धारित करैथ आ लगले हाथ चंगेरामें चुरा आ कस्तारामें दही आ हलुवाई के दुकान सऽ मिठाई किनैत ललका-धोती आ बिहौती साड़ी किनैत लालटेन जराके पहिले बियाह सम्पन्न होइत छलैक आ तदोपरान्त चतुर्थी में कहाँदैन बरियाती यैह किछु १०-११ गोटे पहुँचैथ आ… साधारण खर्च सऽ बियाह सम्पन्न होइत रहैक। आब… ऊफ!

ऊपर सऽ आब मिथिला खाली भऽ गेल छैक – जेना-जेना शिक्षा पद्धतिमें बदलाव अबैत गेलैक आ रोजगार के अवसर व्यवसायोन्मुख संसारमें शहरमें केन्द्रित होइत गेलैक, गामके विपन्नताके सम्बोधन संग बेईमानी भेलैक, लोक गाम छोड़ि शहर भागय लागल। ताहू में मिथिलाके प्रखर बुद्धिमान स्तरके मस्तिष्क तऽ संसार पर राज करनिहार मानसिकता थीक – भले ओ दोसरके दरबारी बनि के किऐक नहि हेतैक, लेकिन संसार पर राज प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष मैथिल के रहतैक। दिल्लीमें भले कोठीके भंसिया काज कय के किऐक नहि होइक, लेकिन सेवत दिल्ली, गामके खेत में ५०% परती छैक… किदैन मतलब। एहेन समय आब बाहरे लोक घरो बनाबय लागल। घरवालीके चाप छैक। खबरदार बुढिया माय-बाप मैर जेतैक, चलिके श्राद्ध कय देबाक अछि… लेकिन धिया-पुताके भविष्य लेल अहाँ गाम के नाम नहि लेब। नै तऽ अहाँ जाउ… हम आ धिया-पुता नहि जायब। … बस, जखन घरके मेलकाइन के एहेन मनोदशा छन्हि तखन… आब… कि कहू।

बेटी जवान भऽ गेल… बेटा जवान भऽ गेल! कुटमैती करबाक अछि। कतेक के बेटा तऽ मराठी-गुजराती पुतोहु बियैह लेलकनि, फिल्ममें जेना हिरो-हिरोइन करैत छैक… प्रेम-विवाह। मिथिलाके जट-जटिन के प्रेम किनकहु थोड़ेकबे न होइछ। आब बियाह केलाके बाद बहुतो परिवार बिखैर गेल। लोक के होश खुलय लागल – फेर सौराठ चाही कि? फेर सभागाछी होइतय?

जी! सभागाछीके जरुरत सभके बुझा रहल छन्हि। गाममें लोक के चाही कमौआ जमाय। बेटीके इच्छा शहरमें रहय के छन्हि से! यौ जी! एतेक तादात्म्य स्थापित करय लेल तऽ वास्तवमें सौराठ सभा फेर लगबाक चाही। पर्यटन के अवसर सेहो बनतैक। कारण आब गौंआ कुटुम्ब थोड़बा औता… आब तऽ औता रिजर्वेशन टिकट सहित शहरी मैथिल। मधुबनी स्टेशन सऽ सीधा सौराठ – ओतहु होटेल ओबेराय इन खुलतैक। अहाँके थोड़ेकबा करय पड़त खातिरदारी, अहाँके घरमें छथिये के… बुढवा-बुढिया सेहो बोकारो-बम्बई सऽ रिटायर्ड भेलाके बाद शहर सऽ घृणा उत्पन्न भेलापर आब गामहिमें मरय के इच्छा सऽ जीवन-मृत्युके बीच झूलि रहल छी। अहाँ ओहिठाम जे कुटुम्ब एता से बेकुफे बनता कि! आ फेर बनतैक शहरी – ग्रामीण मैथिल के बीच एक हाइब्रिड मैरिड रिलेशनसीप – आ तखन मिथिला समृद्ध हेतैक। पुनः सभा जोर पकड़तैक आ मिथिलाके विकास हेतैक। कि नै??

हार्दिक अपील/आह्वान:
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दहेज मुक्त मिथिला एगो छोट संस्था छैक – एखन धरि पंजीकृत नहि भऽ सकलैक अछि। जनैत छियैक कियैक?? कियैक तऽ एहिमें एखन धरि सभ बहरिया युवा-युवती सभ टा सदस्य बनलैक। होशियार अभिभावक सुतले छथिन। संरक्षकमें एहेन चिन्ता नहि जे मिथिलाके विपन्नताके प्रमुख कारण दहेज के अनाचार-व्यवहार थिकैक जे फालतू में सभ पूँजी बनिया ओहिठाम पहुँचाबैत छैक। क्रियाशील पूँजीके संग्रह-पूँजीमें परिणत करैत सिजनल बिजनेस के प्रोफिट पहुँचाबैत छैक। कि हेतैक एहि देखावा सऽ? डेढ दिनकी चाँदनी, फिर अन्धेरी रात! काल्हि सऽ तऽ फेर वैह – पति, पत्नी आ वो के तर्ज पर घरमें कलह हेतैक। ओ खाली अनावश्यक खर्चके देखावाके एक भिडियो सीडी बनतैक जे धिया-पुता देखतैक आ कहतैक… हे देखो! अपना मम एण्ड डैड कैसे शादी किये थे। पहिले कहबी छलैक जे माय-बापके बियाह देखा देबौक… याने एक गैर… आइ-काल्हि हम सभ हंसी-खुशी अपन बच्चा के अपनहि गैर पढैत छी ओ कैसेट देखा के। एहि संस्थाके मूल उद्देश्य छैक जे मिथिलामें सदाचार आबौक, लोक माँगरूपी दहेज के परित्याग करैथ। संगहि एहि संस्थाके एक आरो उद्देश्य छैक जे मिथिला के गाम-गाम कोनो ने कोनो धरोहर अवश्य छैक। गामके लोक में रुचिके कमीके कारण ओ उपेक्षित अवस्थामें छैक। पोखैर छैक तऽ लोक ओकरा भैर रहल छैक, वासडीहके कमीके पूर्तिमें पुरान कर्मठ कीर्तिके मेटा रहल छैक। इ नहि जे ओहि पोखैर में कमल के फूल फूलाय से उपाय करतैक… इ नहि जे ओहि पोखैर में नौका-विहार करय लेल शहरके आदमीके आमंत्रण करैत पर्यटकीय विकास के अवसर उत्पन्न करतैक। तुच्छ राजनीतिक इच्छाशक्ति – तुच्छ जनमानस! विकास के नाम पर लूट-खसोट। पंचायत में दारू-ताड़ी पिबयवालाके हाथमें लाठी दैत राजनेता आलीशान होटलमें रभैस कय रहल छैक। यैह थिकैक विकासशील बिहार के वास्तविक दृश्य! मिथिलामें इ कोना के चलतैक? मिथिला में सभ प्रकार के चिन्ता करनिहार आदम जमाना सऽ पैदा लैत एलय अछि। विद्यापति अही ठाम जन्मलखिन। विद्यापतिके जोड़ नहि लगलैक एखन धरि। अतः एहि संस्थाके आह्वान छैक जे अपने लोकनि संरक्षक वर्ग एकर पोषण करियैक आ मिथिलाके स्वरूपमें आवश्यक सुधार करैत संसार के नवनिर्माण लेल मार्गदर्शन करियैक। सौराठ सभा के पुनरुत्थान लेल इ संस्था गत-वर्ष सऽ कार्य कय रहल छैक आ एहि बेर माधवेश्वरनाथ महादेव मन्दिर जे एक प्राचिन कलाके अनूठा धरोहर थिकैक तेकर जीर्णोद्धार लेल सभक सहयोग के हार्दिक आह्वान करैत अछि।

प्रवीण ना. चौधरी,
अध्यक्ष, दहेज मुक्त मिथिला परिवार
सौराठ सभागाछी।

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७ जनवरी २०१२

प्रस्तावना पत्र:

मैथिली सेवा समिति अन्तर्गत नव-नाट्य संस्था ‘विराट मिथिला नाट्यकला परिषद’ द्वारा सप्ताहव्यापी नाट्य समारोह के प्रस्ताव पर आइ आवश्यक मिटींग भेल। संयोजक राम भजन कामत, सह-संयोजक डोमी कामत एवं सल्लाहकार प्रवीण नारायण चौधरी केर संयुक्त बैठक में आरोहण – गुरुकुलमें एक सप्ताह धरि प्रदर्शित होइवाला नाटक ‘महाकंजूस’ जेकर लेखन-निर्देशन राम भजन कामत द्वारा भेल अछि सैह प्रदर्शन कैल जायत। एहि विन्दुपर अगिला शनि दिन तक अन्तिम निर्णय प्रदर्शन समय, खर्च, एवं आमदनीके स्रोत पर कैल जायत।

धन्यवाद!

हरिः हरः!

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१३ जनवरी २०१२

वास्तवमें मैथिल केर संख्या फेशबुक अधिक सक्रिय छैक – उम्र २० – ३० के ७०%, ३०-४० – २०% आ ४० सऽ ऊपर के बा-मुश्किल १०%।

मैथिल केर एक उचित संस्कार होइछ जे अपन श्रेष्ठके सोझाँ कनेक लेहाज करत, लेकिन फेशबुक पर श्रेष्ठता के आभान एहि बीसी-पच्चीसीके बहुत कम बुझैत छैक आ सामान्यतया अपन उम्रके माँग पुर्ति करैत युवा बेसी व्यस्त बुझैत छथि।

तदापि, मूल संस्कार तऽ कतहु विलुप्त नहि भऽ गेलैक, केवल छिप गेल छैक… से अपन उम्रके माँग पुर्ति भेला के बाद पुनः हुनक सोच बनैछ जे किछु अपन मातृभूमि आ मातृभाषा लेल सेहो करी। एहि धुन में एतेक ग्रुप उत्पादित भेल छैक। लेकिन समुचित मार्गदर्शन आ साधन के कमी के कारण विकास समुचित नहि भेलैक अछि।

सच्चाई इहो थिकैक जे सोच के विकास तऽ भेलैक अछि – संगठन के लेल जुझारुपन तऽ एलैक अछि – जैह किछु विचार प्रगतिके राह पर चलैक लेल बनलैक अछि – अपन ज्ञानके विस्तार सकारात्मक दिशामें होइक से स्फुरणा तऽ एलैक अछि।

चलू! एतबी सकारात्मक बात के लेल हम सभ इ प्रयास करी जे एहेन ग्रुपके उद्देश्य आ एहि दिशामें बढायल गेल डेग के ऊपर श्रेष्ठ वर्गके चेतनाके जगाबी आ हुनका सँ समीक्षा करबाबैत सुधार हेतु आवश्यक नव डेग उठाबी।

हरिः हरः!!

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१३ जनवरी २०१२

चिन्हि जौं सकितहुँ हम के छी प्रिय
कहि सच सकितहुँ अहीं के छी प्रिय

जानि जन्म कतेको लेने हम छी प्रिय
बस बुझि सकितहुँ प्रियतम छी प्रिय

सदिखन स्मृतिमें घुरि-फिरि के प्रिय
जानि मिलन जे देखितहुँ अहीं छी प्रिय

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१५ जनवरी २०१२

मकर संक्रान्तिके शुभ अवसरपर समस्त जनमानस लेल शुभकामना!

मकर संक्रान्ति के त्योहार मोक्ष लेल प्रतिबद्धता हेतु होइछ – निःस्वार्थ सेवा – निष्काम कर्म करैत मुक्ति पाबैक लेल शपथ-ग्रहण – संकल्प हेतु एहि पावनिक महत्त्व छैक। जेना माय के हाथ तिल-चाउर खाइत हम सभ मैथिल माय के ई पुछला पर जे ‘तिल-चाउर बहमें ने..?’ हम सभ इ कहैत गछैत छी जे ‘हाँ माय! बहबौ!’ आ इ क्रम तीन बेर दोहराबैत छी – एकर बहुत पैघ महत्त्व होइछ। पृथ्वीपर तिनू दृश्य स्वरूप जल, थल ओ नभ जे प्रत्यक्ष अछि, एहि तिनूमें हम सभ अपन माय के वचन दैत तिल-चाउर ग्रहण करैत छी। एक-एक तिल आ एक-एक चाउरके कणमें हमरा लोकनिक इ शपथ-प्रण युगों-युगोंतक हमरा लोकनिक आत्म-रूपके संग रहैछ। बेसी जीवन आ बेसी दार्शनिक बात छोड़ू… कम से कम एहि जीवनमें माय के समक्ष जे प्रण लेलहुँ तेकरा कम से कम पूरा करी, पूरा करय लेल जरुर प्रतिबद्ध बनी।

आउ, एहि शुभ दिनक किछु आध्यात्मिक महत्त्वपर मनन करी:

१. मकर संक्रान्ति मानव जीवन के असल उद्देश्य के पुनर्स्मरण हेतु होइछ जाहि सँ मानव लेल समुचित मार्गपर अग्रसर होयबाक प्रेरणा के पुनर्संचरण हेतु सेहो होइछ। धर्म, अर्थ, काम आ मोक्ष के पुरुषार्थ कहल गेल अछि – जे जीवन केर आधारभूत मौलिक माँग या आवश्यकता के द्योतक होइछ। एहि सभमें मोक्ष या मुक्ति सर्वोच्च पुरुषार्थ होइछ। श्रीकृष्ण गीताके ८.२४ आ ८.२५ में दू मुख्य मार्गके चर्चा केने छथि – उत्तरायण मार्ग आ दक्षिणायण मार्ग। एहि दू मार्गके क्रमशः ईशके मार्ग आ पितरके मार्ग सेहो कहल गेल छैक। अन्य नाम अर्चिरादि मार्ग आ धुम्रादि मार्ग अर्थात्‌ प्रकाशगामिनी आ अंधकारगामिनी मार्ग क्रमशः सेहो कहल जैछ। उत्तरायण मार्ग ओहि आत्माके गमन लेल कहल गेल छैक जे निष्काम कर्म करैत अपन शरीर के उपयोग कयने रहैछ। तहिना जे काम्य-कर्म में अपन शरीरके लगबैछ, ताहि आत्माके शरीर परित्याग उपरान्त दक्षिणायण मार्ग सऽ गमनके माहात्म्य छैक। उत्तरायण मार्गमें गमन के मतलब ईश्वर-परमात्मामें विलीन होयब, जखन कि दक्षिणायणमें गमन के मतलब कर्म-बन्धनके चलते पुनः जीवनमें प्रविष्टि सँ होइछ। मकर संक्रान्ति एहि मुक्तिके मार्ग जे श्रीकृष्ण द्वारा गीतामें व्याख्या कैल गेल अछि ताहि के पुनर्स्मरण कराबय लेल होइछ। – अपना सहित सभके लेल शुभकामना! 

२. सूर्य के उत्तरगामी होयब शुरु करयवाला दिन – जेकरा उत्तरायण कहल जैछ। अन्य लोक के लेल ६ महीना उत्तरायण आ बाकीके ६ महीना दक्षिणायण कहैछ।

३. पुराण के मुताबिक, एहि दिन सूर्य अपन पुत्र शनिदेवके घर प्रवेश करैत छथि, जे मकर राशिके स्वामी छथि। चूँकि पिता आ पुत्र के अन्य समय ढंग सऽ भेंटघांट नहि भऽ सकल रहैत छन्हि, तैं पिता सूर्य औझका दिन विशेष रूप सऽ अपन पुत्र शनिदेव सऽ भेट लेल निर्धारित केने छथि। ओ वास्तवमें एक मास के लेल पुत्र शनिदेवके गृह में प्रवेश करैत छथि। अतः यैह दिन विशेष रूप सऽ स्मरण कैल जैछ पिता-पुत्रके मिलन लेल। 

माहात्म्य: सूर्यदेव कर्म के परिचायक आधिदेवता छथि, तऽ शनिदेव कर्मफल के परिचायक आधिदेवता! मकर संक्रान्ति एहेन दिवसके रूपमें होइछ जहिया हम सभ निर्णय करैत छी हमरा सभके कोन मार्ग पर चलबाक अछि – सूर्य-देव द्वारा प्रतिनिधित्व कैल निष्काम-कर्म (प्रकाशगामिनी) या फेर शनि-देव द्वारा प्रतिनिधित्व कैल काम्य-कर्म (अन्धकारगामिनी)।

४. यैह दिन भगवान्‌ विष्णु सदाके लेल असुरक बढल त्रासके ओकरा सभके मारिके खत्म कयलाह आ सभके मुण्डके मंदार पर्वतमें गाड़ि देलाह।

माहात्म्य: नकारात्मकताके अन्त हेतु एहि दिनकेर विशेष महत्त्व होइछ आ तदोपरान्त सकारात्मकताके संग जीवनके प्रतिवर्ष एक नव शुरुआत देबाक दिवस थीक मकर संक्रान्ति। 

५. महाराज भागिरथ यैह दिन अत्यन्त कठोर तपसँ गंगाजीके पृथ्वीपर अवतरित करैत अपन पुरुखा ६०,००० महाराज सगरके पुत्र जिनका कपिल मुनिके आश्रमपर श्रापके चलतबे भस्म कय देल गेल छलन्हि – तिनकर शापविमोचन एवं मोक्ष हेतु मकर-संक्रान्तिके दिन गंगाजल सँ आजुक गंगासागर जतय अछि ताहि ठामपर तर्पण केने छलाह आ हिनक तपस्याके फलित कयलाके बाद गंगाजी सागरमें समाहित भऽ गेल छलीह। गंगाजी पाताललोक तक भागिरथके तपस्याके फलस्वरूप हुनकर पुरुखाके तृप्तिके लेल जाइत अन्ततः सागरमें समाहित भेल छलीह। आइयो एहि जगह गंगासागरमें आजुक दिन विशाल मेला लगैछ, जाहिठाम गंगाजी सागरमें विलीन होइत छथि, हजारों हिन्दू पवित्र सागरमें डुबकी लगाबैछ आ अपन पुरुखाके तृप्ति-मुक्ति हेतु तर्पण करैछ।

माहात्म्य: भागिरथ के प्रयास आध्यात्मिक संघर्षके द्योतक अछि। गंगा ज्ञानके धारा के द्योतक छथि। नहि ज्ञानेन सदृशम्‌ पवित्रमिह उद्यते! पुरुखाके पीढी-दर-पीढी मुक्ति पबैत छथि जखन एक व्यक्ति अथक प्रयास, आध्यात्मिक चेतना एवं तपस्या सऽ ज्ञान प्राप्त करैछ। 

६. आजुक दिनके एक आरो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ भेटैछ जखन महाभारत के सुप्रतिष्ठित भीष्म पितामह आजुक दिन अपन इच्छा-मृत्यु के वरदान पूरा करय लेल इच्छा व्यक्त कयलाह। हुनक पिता हुनका इच्छामृत्युके वरदान देने छलखिन, ओ एहि पुण्य दिवस तक स्वयंके तीरके शय्यापर रखलाह आ मकर संक्रान्तिके आगमनपर अपन पार्थिव शरीर छोड़ि स्वर्गारोहण कयलाह। कहल जैछ जे उत्तरायणमें शरीर त्याग करैछ ओ पुनर्जन्मके बंधन सऽ मुक्ति पबैछ। अतः आजुक दिन विशेष मानल जैछ अन्य दुनिया-गमन लेल। 

माहात्म्य: मृत्यु उत्तरायणके राह अंगीकार कयलापर होयबाक चाही – मुक्ति मार्गमें। ओहि सऽ पहिले नहि! आत्माके स्वतंत्रता लेल इ जरुरी अछि। एहिठाम उत्तरायणके तात्पर्य अन्तर्ज्योति के जागरण सऽ अछि – प्रकाशगामिनी होयबाक सऽ अछि।

एहि शुभ दिन के अनेको अन्य माहात्म्य अछि आ एहि लेल विशेष रुचि राखनिहार लेल स्वाध्याय बहुत पैघ साधन सेहो एहि संसारमें आइयो उपलब्ध अछि। केवल शुभकामना – लाइ-मुरही-चुल्लौड़-तिलवा आ तदोपरान्त खिच्चैड़-चोखा-घी-अचाड़-पापड़-दही-तरुआ-बघरुआ के भौतिकवादी दुनिया में डुबकी लगबैत रहब तऽ मिथिलाके महत्ता अवश्य दिन-प्रति-दिन घटैत जायत आ पुनः दोसर मदनोपाध्याय या लक्ष्मीनाथ गोसाईं के पदार्पण संभव नहि भऽ सकत। अतः हे मैथिल, आजुक एहि पुण्य तिथिपर किऐक नहि हम सभ एक संकल्प ली जे मिथिलाके उत्तरायण में प्रवेश हेतु हम सभ एकजूट बनब आ अवश्य निष्काम कर्म सऽ मिथिला-मायके तिल-चाउरके भार-वहन करबे टा करब। जेना श्री कृष्ण अर्जुन संग कौरवके अहं समाप्त करय लेल धर्मयुद्ध लेल प्रेरणा देलाह, तहिना मिथिलाके सुन्दर इतिहास, साहित्य, संगीत, शैली, भाषा, विद्वता एवं हर ओ सकारात्मकता जाहिके बले मिथिला कहियो आनक लेल शिक्षाके गढ छल तेकरा विपन्न होइ सऽ जोगाबी। जीवन भेटल अछि, खेबो करू… मुदा खेलाके बाद बहबो करियौक। मातृभूमि आ मातृभाषाके लेल रक्षक बनू। मिथिला मायके तरफ सँ तिल-चाउर हमहुँ खा रहल छी, जा धरि जीवन रहत ता धरि बहब, फेरो जन्म लेबय पड़त सेहो मंजूर – आ फेरो बहब तऽ मिथिलाके लेल बही यैह शुभकामनाके संग, मकर संक्रान्ति सँग जे नव वर्षके शुरुआत आइ भेल अछि ताहिके अवसर पर फेर समस्त मैथिल एवं मानव समुदाय लेल मंगलकेर कामना करैत छी।

जय मैथिली! जय मिथिला!
हरिः एव हरः!
ॐ तत्सत्‌!

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१७ जनवरी २०१२

देखू, हमर प्रसन्नता केवल एहि बात के लेल अत्यधिक भऽ रहल अछि जे दहेज मुक्त मिथिला नामक छोट संस्था जे-जे सपना देखलक से सभ आइ बिहारके मुख्यमंत्रीके द्वारा पूरा करय लेल समाचार भेटय लागल अछि। हम एहिमें छद्म स्वार्थ या लाभ या नाम कमेनाइ के बात नहि, केवल मिथिलाके लेल असलियतमें जे विकास के कार्य हेबाक चाही ताहिके ऊपर चर्चा कय रहल छी। मिथिलाके लेल तऽ लड़निहार बहुत लोक बहुत किछु बजैत छथि, आ फुर्सत एतबू नहि जे अपन गामके धरोहरके रक्षा कय सकैथ। केवल गप्प देबयवाला मनोदशा में परिवर्तन नहि आयत तऽ मिथिलाके नाक-नक्श में सुधार कि खाक होयत? यदि नितिश कुमार सुन्दर मधुबनीके यात्रा पर छथि आ एतेक बात प्रत्यक्षतः बहस में आबि रहल छैक तऽ दहेज मुक्त मिथिला काफी प्रसन्न अछि आ रहत। हर ओ मर्दके बेटा नेता जे सोच बढियाँ राखत आ ताहि अनुरूपे काज सेहो करत-करबायत तेकरहि टा नाम अमर रहलैक अछि आ रहतैक।

गप्पी मैथिल मुर्दाबाद – मुर्दाबाद! मुर्दाबाद!

विकासशील मिथिला जिन्दाबाद – जिन्दाबाद! जिन्दाबाद!

जय मैथिली! जय मिथिला!

पुनश्च: जँ मिथिला राज्य अलग बनत तऽ विकास के दर सेहो दस गुणा बढत। लेकिन आइ बिहारमें रहितो यदि एतेक विकास के बात भऽ रहल छैक तऽ हमरा हृदयमें गदगदी अछि। 

 

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१९ जनवरी २०१२

धन्यवाद मुख्यमंत्री, बिहार!!

बहुत अथक प्रयासके सराहना करैत अपने सौराठ सभा के पहचानमें वैश्विक दर्जा दियाबय लेल एक विश्वस्तरीय मिथिला चित्रकला संस्थान के निर्माण लेल पुष्टि कयलहुँ – एहि सँ पुनः सौराठ सभाके महत्त्व समूचा संसारके सामने रहत आ आबयवाला समयमें जे मूल विन्दु वैवाहिक सभा आ पंजी व्यवस्थाके महत्त्व अछि ताहिमें सेहो उत्तरोत्तर प्रगति होयत से आशा अछि। संगहि अपने जे कला तथा संस्कृति विभाग द्वारा श्री श्री १०८ श्री माधवेश्वरनाथ महादेव मन्दिर के पूरा सर्वेक्षण करयलहुँ आ ताहिके जीर्णोद्धार लेल आश्वासन देलहुँ अछि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अछि। एहि सभ कार्यके पूरा करय लेल आदरणीय शेखरचन्द्र मिश्र, श्री गिरिजा किशोर झा, प्रो. सर्व ना. मिश्र, श्री निलाम्बर मिश्र, बाबु कुलधारी सिंह, विधायक महोदय फैय्याज अहमदजी, लगायत समस्त जुझारू महानुभाव आ विशेषतः श्रीमती करुणा झा, राजविराज नेपाल जे ८ तारीखके मिटींगमें देवी दुर्गा समान अपन प्रखर तेज सँ सबके बीच एक शंखनाद केने छलीह से सभ मनोकामना पूरा कय रहल छथि परमाध्यक्ष महादेव – माध्यम पंडित ताराकन्त झा, पार्षद संजय झा आ समस्त प्रबुद्ध आमजन मिथिलाके अपार सहयोग सऽ इ सभ बात संभव भऽ रहल अछि।

माँ मैथिली आ हिनक पुण्य भूमि मिथिला अपने सभके आशीर्वादित आ उर्जान्वित राखैथ जे समस्त मिथिलांचल के जंग लागल धरोहरके सड़ेस सऽ माँजैत नव रंग के कलइ एहेन चढाउ जे एक बेर फेर मिथिलाके चमक संसारके Chamka daik.

E news kaalhi sa samucha ghanghana rahal achhi – Radio, newspaper aa lok-lok ke kaano-kaan samucha Mithila mahan aai bhav-vibhor bha rahal achhi. Jay Ho!!

http://www.jagran.com/bihar/madhubani-8785552.html

Harih Harah!!

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२२ जनवरी २०१२

हम किछु फेशबुक-मित्रकेँ पुनः अपन डायरी सऽ नाम काटि देलहुँ – एकरा हमर अहं के संज्ञा नहि देबैक आ केवल मुद्दा सऽ अहाँके ध्यान विचलित रहैक चलते सिद्धान्त सऽ बान्हल प्रवीण एहेन लोक के अपन मित्रताके योग्य नहि बुझैत बाहर करैक लेल प्रतिबद्ध छैक। एहि बेर किछु नीक नाम जाहिपर कोनो समय हमरा बहुत विश्वास रहैत छल सेहो पड़ल अछि आ हुनकर अनुरोध फेर पेन्डिंग चैल रहल अछि…. लेकिन जाबत अपन मित्रता के माने अहाँ नहि बुझब तऽ मित्र कथी लेल?? नहि चाही हमरा मित्रता। एहि लेल अहाँके दुःख हुवे, तामश चढे वा किछु… कृपया हमरा सऽ दूरी बनेने रहू। किछु मित्रके तऽ हम स्थायी तौरपर ब्लॅक सेहो कय देने छियन्हि। कारण हुनका चाही केवल गप्प… आ केवल छिछोड़ापन्थी… ताहि लेल हम अपन समय फेशबुक पर खर्च नहि करैत छी।

स्मरण रहय – बहुत भाषा आ बहुतो अन्टू-शन्टू-मुद्दा-गप्प सभ के दुनिया देखला के बाद हम अपन समय केवल आ केवल मिथिला आ मैथिली लेल निहीत केने छी।

एक आरो बात कहय चाहब – झूठ-मूठ के प्राइवेट चैट तहू में Hi… Hello… एहि सभ सऽ सम्बोधन करैत हमरा संग गप करय लेल कोनो जरुरी हम नहि बुझैत छी। यदि कोनो जरुरी बात रहय तऽ सुन्दर नाम ‘सीताराम-सीताराम’ या अपन ईशके – परमेश्वरके नाम लैत हमरा संग गप करब शुरु करी।

अहाँके कहियो रहल मित्र,

प्रवीण किशोर

हरिः हरः!

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२१ जनवरी २०१२

Dhirendra Premarshi Jee – द्वारा प्रस्तुत आजुक हेल्लो मिथिला सुनि परमानन्दके प्राप्ति कयलहुँ। आजुक उपवासरूप उपासना के महादेव एतेक नीक – एतेक सुखद अनुभूति देलैथ ताहि लेल अनेको बेर धन्यवाद छन्हि। कान्तिपुर एफ़.एम. पर प्रसारित आजुक रेडियो कार्यक्रममें विद्वान्‌ भाषाविद्‌ डा. राम अवतार यादवजी केँ प्रत्यक्ष अन्तर्वार्ता आ असीम ज्ञान जाहिमें ईमानदार नीतिगत मैथिलीके समृद्ध आ विकसित भाषा श्रेणीमें रखैत वस्तुतः जे बात सभ छैक – जे विभिन्न भाषिका आ शैली-परिवर्तन में तकनीकी पक्ष आ संगहि भाषा राजनीति एवं एकर असर आ अनेको विद्वान्‌ जेना सुभद्र झा, गोविन्द झा, शशिनाथ झा आदिकेर चर्चा सुनलहुँ – ताहि ऊपर सऽ धीरेन्द्र प्रेमर्षिजी द्वारा रहस्योद्‌घाटन करबैत आजुक विद्वान्‌ अतिथिके मुखारवृन्द सऽ अनेको बात सुनलहुँ एहि सँ मन, मगज आ हृदय तिनू तिरपित अछि। प्रयोजन अनुरूप भाषाके स्वरूप परिवर्तन आ राजनीतिके विभिन्न विन्दु पर ईमानदार टिप्पणी सुनय लेल भेटल से आरो सन्तुष्ट कयलक। जिज्ञासू दर्शक लोकनिक प्रश्न सभ सेहो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं मस्तिष्क सँ दुविधारूपी मलके स्वतः हंटाबयवाला छल। हेल्लो मिथिलाके आजुक एहि प्रकरणके ता-जीवन स्मरण राखब।

सत्यम्‌ शिव‍म्‌ सुन्दरम्‌!

हरिः हरः!

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२३ जनवरी २०१२

मित्र-बंधु-सखा-श्रेष्ठ मैथिल एवं समस्त जनमानस! 

आउ, आइ २३ जनबरी, २०१२ ई.; डा. लक्ष्मण झा जी केर १२म पुण्य तिथि – डा. लक्ष्मण स्मृति दिवस के रूपमें हम सभ स्मरण करी आजुक दिन एवं एहेन महान्‌ मिथिला विभुति केर व्यक्तित्व पर मनन करैत एहिसँ किछु जीवनके लाभान्वित बनाबी।

ओना तऽ अरबों-खरबों लोक जन्म लैछ आ मरैछ – जीवन यात्रा करैछ लेकिन बहुत विरले केओ अपन नाम के छाप छोड़ि अपन अमरताके प्रमाणित करैछ। मिथिलाके सौभाग्य जे एहेन अनेको सपुत एहि पुण्य धरतीमें जन्म लेलन्हि अछि। हम बेर-बेर एकहि महत्त्वके अपने सभके सोझाँ रखैत छी जे मिथिलाके धरती सँ जगज्जननी सिया धिया के जन्म भेला सँ अखरा माटिपर गाय-गोबर सँ निपैत पिठार-सिनुरके अहिपन दैत पीढीपर कलश आ सत्यनारायण भगवान्‌ के स्थापना करैत साधारण केराके पातपर लोक साधन करैत समस्त देवी-देवताके इहागच्छ-इहिअतिष्ठ कहैत हाजिर करा लैत छथिन – इ सौभाग्य अन्यत्र कतहु नहि छैक। आब साधक स्वयं यदि दोसराके देक्सी कुर्सी-टेबुल लगाके एसी हवामें सत्यनारायण भगवान्‌ के आह्वान करैथ तऽ एहि में मिथिला कि करत! 

डा. लक्ष्मण झा बहु-प्रतिभावान्‌ आ सादा जीवन उच्च विचार के बहुत पैघ उदाहरण बनलाह। समस्त मिथिलांचल लेल – एतय तक जे मिथिला गणतंत्रके परिकल्पना जाहि में भारत आ नेपाल दुनू तरफके मिथिलाके एकीकरण आ स्वतन्त्र गणतांत्रिक राष्ट्र के परिकल्पना प्रस्तुत कयलन्हि। मैथिली भाषा व साहित्यके जीवन्त राखय लेल अपन हर तरहक कर्मठ प्रयास कयलन्हि। अपन विद्यार्थी जीवनकालहि सँ मानव आ मानवताके धर्म-मर्म आत्मसात्‌ केने डा. झा तत्कालिन पटना साईंस कॅलेज के छात्रावासमें अंग्रेजिया हुकुमतके विरुद्ध अपन सहपाठी मित्र सभकेँ आन्दोलित कयलन्हि जेकर जीवन्त प्रमाण आइयो पटनाके हार्डिंग पार्कमें झंडा फहराबैत युवक केँ गोली खाइत-खसैत-मरैत स्मारक के रूपमें हम-अहाँ देखि रहल छी। क्षमा करब, इ कहानी कतहु लिखल होइ नहि होइ – हम स्वयं अपन किशोरावस्थामें डा. झा केर मुखारविन्द सँ सुनय के सौभाग्य प्राप्त कयने छी। एहि महान्‌ शख्सियतकेँ अपन एक प्रबुद्ध पितामह प्रबोध नारायण चौधरी जे डा. साहेब संग छात्रावासमें श्रेष्ठ मार्गदर्शक एवं सहयात्री छलाह – जिनका लेल डा. साहेबके हृदयमें छात्र-उम्र सँ अगाध प्रेम छल आ अपन जीवनक चौथापनमें ओ समस्त सिपहसलार जे एक साहित्यकार संग स्वाभाविक तौरपर देखल जाइछ ताहि के संग आयल छलाह आ ताहि समय हमर पिता एवं गामके हरेक समाजवादी सिपाही सभकेँ अपन मधुरवाणीसँ प्रभावशाली शिक्षा दैत ओ अपनहि मुँहें हमरा लोकनिकेँ इ कहानी सुनौने छलाह… हंसैत कहलाह जे यदि तेज बुखार नहि आयल रहैत तऽ शायद ओहि दिन हमहुँ शहीद भऽ गेल रहितहुँ, आ अपन खून राष्ट्रके स्वाधीनता लेल जाइत तऽ भाग्य होईत।  हाय रे! हाय रे! महान्‌ आत्मा! अहाँके शत्‌-शत्‌ नमन्‌! देरिये सँ सही लेकिन भारत सरकार हुनक एहि अप्रत्यक्ष मुदा महत्त्वपूर्ण योगदानके सराहना करैत स्वस्फूर्त रूपमें डा. झा केँ १९९१ उपरान्त शायद तेसर या चारिम सूचीमें एक स्वतंत्रता सेनानीके रूपमें सम्मान कयलक। स्वतंत्रता सेनानीके अनुसूची ७ में हुनक नाम विद्यमान्‌ अछि।

डा. झा एक कर्मठ विद्वान्‌ छलाह। हुनक विभिन्न लेख-रचना आम जनमानसकेँ जागृति लेल केवल होइत रहल। हुनक जीवन के अन्त तक ओ अपन गाममें कुटी निर्माण करैत अनेको नवतुरियामें लेखनी प्रति रुचि जगबैत मैथिली आ मिथिलाके सेवामें प्रेरित करैत रहलाह। हमरा स्मरण अबैछ जे हुनक प्रेरणा सँ अनेको युवा अपन लेखन कार्य शुरु कयलक। रसियारी के आसपास – कहुने हमर गाम कुर्सों आ आसपास नदियामी, दसौत, हनुमाननगर, गोरखा, पोहद्दी, गोरौल, कैथवार, विष्णुपुर, महिया, जयदेवपट्टी, पर्ड़ी, तुमौल, घनश्यामपुर, लगमा…. आ कोन गाम में डा. झा केर अनुयायी नहि छल।

डा. झा ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगाके कुलपति छलाह आ हिनक ईमानदारिता आ त्याग एहि उच्च पदके अविस्मरणीय रूपसँ सुशोभित कयने अछि। हिनकर कार्यकालमें अवश्य महत्त्वपूर्ण उपलब्धि भेल होयत। हमरा लग जानकारीके अभाव अछि, अध्ययन कम अछि… परन्तु हिनक अपन पारिश्रमिक समेत केवल एक रुपया लेबयवाला प्रकरण जहिया सुनलहुँ, विश्वास नहि भेल छल, लेकिन श्रद्धा एतेक बढि गेल छल जे एहेन व्यक्तित्वकेर एक छदाम अंश सेहो यदि हमरा में आयत तऽ अपन जीवन धन्य बुझब। अवश्य जीवनमें जँ समय भेटत तऽ एहेन व्यक्तित्वके विषयमें आरो अध्ययन करैत रहब, एहि लेल प्रतिबद्ध छी।

मिथिलाके एहेन विभुतिके बहुत बात इन्टरनेटपर उपलब्ध सेहो नहि अछि, अतः इच्छुक सद्भावना रखनिहार सँ एहि तरफ ध्यानाकर्षण करा रहल छी, जे किछु उपलब्ध भऽ सकय, से सभ संग बाँटी।

अन्तमें एहेन महान्‌ चिन्तक केर विभिन्न कार्यपर आजुक विद्यार्थी वर्गमें अनुसंधान एवं विशेष अध्ययन लेल हमर साग्रह निवेदन अछि। संचार माध्यमसँ निवेदन जे एहेन व्यक्तित्वके मात्र वर्षमें पुण्य तिथि मात्र पर हमरा लोकनि केँ स्मरण नहि करा अन्य दिनमें हिनक विभिन्न कार्य एवं देन पर चर्चा करी। एहि महान्‌ विभुतिके विद्वता एवं कर्मठता के किछु अंश मात्र यदि हमरा लोकनिमें बसत तऽ अवश्य मिथिला-मैथिलीके सनातन महत्त्व जिबैत रहत से हमरा दृढ विश्वास अछि।

धन्यवाद!

हरिः हरः!

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२३ जनवरी २०१२

आउ, विचारी, वर्तमान परिदृश्य के ऊपर! वास्तविकता सारा संसार जनैत छैक जे मिथिलामें मैथिल बहुत कुशाग्र बुद्धिके लोक होइछ, विद्याके धनी होइछ, विचारवान्‌ होइछ, भगवद्‌भक्त होइछ एवं कहियो कोनो वस्तुमें केकरो सऽ कम नहि अछि। परन्तु मैथिल स्वयं किऐक एक-दोसरके टांग खिंचैत काँकोड़ बुद्धि कहैछ। जेना एक मित्र कहने छलाह जे मैथिल आ काँकौड़ एकहि बुझू। जिज्ञासावश पूछल जे से कोना… तऽ निम्न रूपे व्याख्या कयने छलाह:

एगो पथियामें दस-बीस गो काँकौड़ राखि देबैक तऽ सभ ओहि पथिये में पड़ल रहत… केओ बाहर नहि निकैल सकत। से कोना…? तऽ .. काँकौड़में एक गुण होइत छैक जे जौं केओ आगू बाहर निकलय लेल जाइ लागत तऽ दोसर अपन चूट्टा सऽ ओकर टाँग धऽ लेत आ आगू बढनिहार के बलके कमजोर कऽ देत। जेहो आगू बढल छल ओ पुनः पथिया लत्ते-पत्ते खसत।  प्रश्न उठैत छैक जे यदि आगू बढलहबा के पाछू दोसर धेलक आ बढलहबाके सहारे यदि ओहो पार उतरय लेल चाहलक तखन चूट्टा सऽ धरैयवाला प्रवृत्तिके सकारात्मक किऐक नहि मानल जाय? जबाब भेटल जे – सकारात्मक होइत यदि काँकौड़ बढलहबाके वास्तविक बलके ज्ञाता रहैत आ तदनुरूप सहारा लैत पार उतरयके प्रयास करैत तखन!  बहुत मर्म बुझायल एहि सुन्दर तर्कमें!

मनुष्य के यदि काँकौड़ बनय पड़त तऽ चूट्टा कोन? केवल अहंकार के? केवल दंभ के? केवह हिंसा के? केवल ईर्ष्याके? केवल स्वार्थके? केवल लोभके? केवल क्रोधके? केवल अति-महात्त्वाकांक्षाके पुर्ति हेतु गलत बाट के… बाटमें पड़यवाला निर्दोष प्राणीके हंटाबयके – कुचलयके प्रवृत्तिके? मनन करू। हम पुनः स्मरण कराबी – प्रशासन में प्रयुक्त अमैथिल अधिकारी के ओहि टिप्पणी के जाहिमें मैथिलपर शासन करबामें हुनकर सभके विस्मय चरम पर रहैत छन्हि। ओ जिलाधीश होइथ, वा जिला आरक्षी अधीक्षक, आयुक्त, वा कोनो अधिकारीगण जे हिन्दुस्तान के विभिन्न भागसँ आयल छथि… जे नेपालके अनेको भेग सऽ मिथिला क्षेत्रमें अधिकारीरूपमें नियुक्त प्रशासन के जिम्मेवारी लेने छथि – हिनका सभके एहि बातके नीक ज्ञान छन्हि जे मैथिल खण्डी-बुद्धि बौद्धिक प्रजाति होइछ एवं हिनका पर शासन करयके लेल आपस में लड़ेने-भिड़ेने रहू, काज चलैत रहत। एतय तक जे थानामें एगो दरोगा पर्यन्त एकड़-हेक्टर मिथिला भूमि पर अपन दबंगइ सहित शासन करैछ। कोनो बड़का लोकके गाम में जाइछ आ ताहिठाम फल्लां बाबुके कनिकबा तैल्यबोलीके मालिश करैछ, बस बाकी आब के बाजत – चोट्टा तू बजमें… ततेक हिम्मत छौक… बस एहने प्रतिक्रिया सऽ प्रजातंत्रके मखौल उड़ायल जैछ।

एकर समाधान कि? एकजूटता लाबय लेल हमरा सभ के संग केवल एक उपाय जे बहुत कठिनता साथ संभव होइत हम देखैत छी। यदि मैथिल फेर एक बेर अपन-अपन गाम-समुदायके सामूहिक संस्थाके जीवन्त करैथ। यदि सामूहिक लाभ के बातपर सभ टीमवर्क करैत काज करैथ तऽ हृदयमें परिवर्तन जरुर हेतैक। संगठन के महत्त्व जरुर पता चलतैक आ सभ एकजूट जरुर हेतैक। एगो उदाहरण दी: दुर्गास्थानमें नवाह कीर्तन हेतैक, १० गोटे कीर्तन-प्रेमीके इच्छा भेलन्हि आ एहि लेल ओ सभ एक सामूहिक सभाके आयोजन कयलन्हि, विचार-विमर्श शुरु भेल, सभ केओ एक स्वरमें बातके मंजूरी देलखिन आ चन्दा-संकलन के बात तय भेलैक। केओ ५ केओ १० केओ ० केओ दु गो गाइरे पढैत अपन योगदान देलखिन आ एक सामूहिक कल्याणार्थ यज्ञ के आयोजन संभव भेलैक। विचारधाराके भिन्नता सभ ठाम छैक, ओ रहबो करतैक। लेकिन काज एहि बीच निकलैत रहैछ। कीर्तनप्रेमीके द्वारा अग्रसारित आयोजन सऽ नवाह महायज्ञ संपन्न भेलैक आ एकर सद्भावनापूर्ण प्रभाव सऽ सभ केओ लाभान्वित भेलाह। बेशक! यैह ट्युनिंग सऽ काज संभव होइछ। पहिले शायद बेसी लोक संगठन के महत्त्व बुझैत छलैक, बदलैत परिवेशके संग लोक व्यक्तिगत विकेन्द्रणमें बेसी उलझल छैक। आइ कनेक दिक्कत जरुर छैक। लेकिन असंभव नहि छैक। फेर वैह अस्मिताके जगौनैय संभव छैक। शुभकामना आ जागृति लेल आह्वान!

जानकारी दी जे दहेज मुक्त मिथिला एहि लेल आतुर अछि जे सभके सहयोग सऽ संगठन मजबूत बनाबी। एहिमें बहुत सोच-विचार आ घमर्थन सऽ काज बनतैक आ कि बिगड़तैक से विचारू।

हरिः हरः!

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२४ जनवरी २०१२

बंधुगण! विशेषतः लेखन आ सूचना क्षेत्र – संचार क्षेत्रमें रुचि रखनिहार समस्त मिथिलांचल के जनमानस!

आइ अत्यन्त प्रसन्नताके संग इ सूचना अपने सभके लेल लिखि रहल छी जे मिथिला आ मैथिली प्रति अपन समर्पण रखैत विजय चौधरी, मुंबई एक अदम्य नव साहस के परिचय दैत www.maithilinews.com जाहि के मार्फत सऽ मिथिलाके समाचार मैथिलीमें संप्रेषण करता – जेना पहिले सूचना देल गेल अछि जे दैनिक इ-समाचारके रूपमें इ पत्रिका आयत आ तदोपरान्त एकर प्रसारण सेहो टीवी चैनलके माध्यम सऽ २४ घंटा लेल होयत आ शायद प्रिन्ट वर्सन सेहो प्रकाशन होयत आ समस्त मिथिलांचल सहित अन्यत्र एकर बिक्री-वितरण कैल जायत। शायद मैथिलीमें मिथिला मिहिरके बाद विभिन्न अन्य समाचार पत्रिका के संग एहि दैनिक पत्रिका सँ मिथिलावासी के मिडियाके कमी-कमजोरी दूर होयत आ एहिमें मिथिलांचलपर केन्द्रित समाचार सभ पढय लेल भेटत।

एक सूचना इहो अछि जे एहिमें लेखन आ समाचार संप्रेषण के काज सेहो हमहीं सब जे फेशबुक अन्य सोशियल नेटवर्क पर सक्रिय छी – आ मोबाईल फोन के माध्यम सऽ सेहो गाम सऽ लऽ के शहर क्षेत्र – समस्त मिथिला दुनू पार भारत आ नेपाल के समाचार एहि माध्यम सँ आपसमें साझा कय सकब।

हमर विशेष अनुरोध जे अपने जे केओ लेखन क्षेत्रमें छी – जे कोनो समाचार उपलब्ध अछि से प्रेषित करी। एहि लेल आवश्यक सम्पर्क कैल जाउ:

1. Vijay Choudhary 2. Chandan Jha 3. Pankaj Jha

सधन्यवाद!

अपनेक सहयात्री:

प्रवीण

हरिः हरः!

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२९ जनवरी २०१२

एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विचार-विवेचना नेपाली भाषामें गोरखापत्र दैनिक पत्रिकामें श्री जयनारायण झा ‘जिज्ञासु’ जी के आइ पढय लेल भेटल। नेपाल सरकार द्वारा पहिले बेर २०६६-६७ वि.सं. (२००९-१० ई.) में मैथिलीके महान्‌ विभुति कविकोकिल विद्यापतिजीके नामपर विद्यापति कोष के स्थापना कैल गेल छलैक, ताहि अनुरूपें नेपालमें मैथिली साहित्य क्षेत्रमें योगदान देनिहार साहित्यकार आ लेखक सभके प्रोत्साहन करैक लेल समुचित पुरस्कार वितरणके व्यवस्था भेल छैक। नेपाल के राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठान एहि साहित्यिक विकास के प्रतिनिधि संस्था थिकैक आ एहि पुरस्कार वितरण लेल एक समिति के निर्माण सेहो कैल गेल छैक। मुदा अफसोस जे पुरस्कार वितरण लेल जे समुचित प्रक्रिया अपनेबाक चाही से नहि अपना के अपन निजी तौर-तरीकासँ निजी रूपें विज्ञापन देल जा रहल छैक – सेहो सीमित क्षेत्रमें मात्र पढऽ जायवाला पत्रिकामें जे यदि केओ लेख-रचना प्रकाशित केने होइथ वा हुनक पाण्डुलिपि होइन तऽ फल्लाँ बाबु सँ संपर्क करैथ – हुनक टेलिफोन नंबर सेहो देल गेल छैक। एहिमें किछु एहेन व्यक्तित्व सेहो छथि जिनका हम सभ आदर करैत छी। ताहि हेतु हम नाम नहि लिखल। मुदा विचार ppलेल प्रस्तुत कयलहुँ जे इ तरीका कोना उचित भेलैक। किछु दुविधा हमरा मनमें निम्न प्रकार सँ अछि, एकर समाधान आ विचार-विवेचना लेल प्रस्तुत कय रहल छी।

१. प्रस्तुत लेखमें बहुत सुन्दर विचार-विवेचना प्रस्तुत कैल गेल छैक जे मैथिली भाषा साहित्यके पोषण लेल नेपाली साहित्य के समकक्ष प्राज्ञ पुरस्कार के नहि राखि मैथिलीके दोसर दर्जा के भाषा मानि अलग पुरस्कार-व्यवस्थापन नव नेपाल के समावेशी-परिप्रेक्ष्य कतेक उचित – एहिपर अपने लोकनि सेहो विचार राखी।

२. विद्यापति कोषके संचालन लेल प्राइवेट कंपनी आ सीमित संवाद संचरण-प्रसारण कतेक उचित?

३. कि क्षेत्रिय स्तरके पत्रिकामें कोनो निजी नाम सऽ विज्ञापन दऽ के लेखक-रचनाकार सँ आवेदन माँगब जे अपन लेख-रचना आ बायोडाटा के संग सम्पर्क करी उचित तरीक भेल?

४. शिकायत दर्ज कयलापर ओ माननीय व्यक्तित्व के इ प्रतिक्रिया जे गोरखापत्र राष्ट्रिय दैनिक में सेहो एहेन विज्ञापन देल जायत; एहि अनुरूपे लेखक-रचनाकार अपन प्रज्ञा-प्रतिष्ठानमें लेख-रचना जमा कराबैथ आ ताहि पर निर्णायक पुरस्कार वितरण लेल निर्णय लेताह… कि ई सही प्रक्रिया भेलैक??

५. कोनो पत्र-पत्रिका सऽ बहुत नीक स्थानीय सक्रिय संस्थाके एहेन जिम्मा देल जयबाक चाही जाहिसँ पूरा नेपालमें बिना कोनो भेदभावके मैथिली साहित्य लेखन सँ जुड़ल हर व्यक्तितक सूचना पहुँचैत आ संस्थागत रूपमें लेख-रचनाके संकलन होइत आ तदोपरान्त प्रज्ञा-प्रतिष्ठान में जमा कैल जायत तऽ शायद …..

Khair, hamar pen me ekhan ink khatma bha gel… aab bichar karay lel kaafi vindu bhetal achhi. Jaahi pranaali sa ehi puraskaar vitaran kail ja rahal achhi ehi sa Maithili sahitya ke poshann hetaik aa ki je aguwa-jan sabh chhathi o apan-apan collar high karait apan-apan lok ke ehi me protsaahit karataah? 

Harih Harah!! 

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१ फरवरी २०१२

सौराठ फेर चाही – किऐक?

१. दहेज मुक्त विवाह प्रोत्साहन लेल, नहि कि अपन बेटा के बेचैत ओकर भविष्य के एक अहंकारी परिवारके अहंकारी कनियांके हाथ निलामी लेल।

२. मिथिला के महान्‌ परंपरा जाहिठाम नहि सिर्फ वैवाहिक सम्बन्ध आ अधिकार निरीक्षण वा पंजियन होइत छलैक, लोक स्वतन्त्र वातावरणमें वर के चुनाव करैत छलैक बल्कि मिथिलाके लेल नव विकास के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण चर्चा-परिचर्चा सेहो होइत छलैक। आब विद्वत्‌ सभाके रूपमें एकर संरक्षण होइक चाही।

३. हर क्षेत्रके विकास में पर्यटन आ ऐतिहासिक महत्त्वके संरक्षण अत्यन्त आवश्यक छैक, तखनहि ताहि क्षेत्र के अस्मिता के जोगायल जा सकैत छैक। नहि तऽ क्रमशः सभ महत्त्व अपन महत्ता के मरैत छोड़ि देतैक आ तेकर बाद भविष्य में समुद्र के जगह हिमालय के कल्पना केवल आभास कैल जा सकैत छैक। अतः सौराठ पर्यटन के केन्द्र बनैक चाही आ एहि लेल समस्त मैथिलकेँ प्रण लेबाक चाही। मधुबनी सऽ सटल दरभंगा, सहरसा, मधेपुरा, अररिया, पुर्णियां, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, सीतामढी, चंपारण आ समस्त मिथिला क्षेत्रमें नीक पर्यटन के विकास के संभावना छैक। एहि सभके लेल प्रथम विकास सौराठ सभके लेल दरबाजा खोलि सकैत छैक आ एहि लेल पुनः मिथिला के सशक्त समाज के प्रतिबद्ध बनबाक जरुरी अछि।

४. गुजरात में सोमनाथ महादेव स्वयं सौराठ में आबि बसलाह – एकर बहुत पैघ धार्मिक माहात्म्य सेहो छैक। लेकिन एहि लेल नहि तऽ कोनो चेतना क्षेत्रीय लोक में छन्हि जे एहि जगह के धार्मिक पर्यटन लेल विकास कैल जाय आ नहिये कोनो सरकारी पहल भऽ रहल छैक… आखिर सरकार बिना हमरा-अहाँके जगने किऐक जागत… ताहि हेतु सेहो सौराठ के सभागाछीके विकास अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करतैक।

५. दरभंगा राज क्षेत्र आ एहि संस्था द्वारा निर्मित अनेको जगह प्राचिन आ भव्य कलाकृति सभकेँ संरक्षण के संगहि अनेको एहेन महत्त्वपूर्ण धरोहर छैक जाहिके संरक्षण लेल स्वयं स्थानीय नागरिक पहिले जागैथ – प्रवासित भेल मैथिल आइ दुनिया में सगरो पसरल छथि आ क्रमशः अपन अतीत के सेहो ठुकराबैत छथि… एतेक तक जे गोसाउनि-कुलदेवता पूजन तक उठि गेल अछि…  आ एहि सभसँ मिथिलाके गौरवमय अतीत स्वयं पिछड़ल जा रहल अछि। अतः सभागाछीके ताला खुलला सऽ एहि सभमें उल्लेखणीय परिवर्तन आ प्रवर्धन के गुंजाईश बढतैक आ मिथिलाके स्वरूप बदलतैक से विश्वास अछि।

अपने लोकनि सँ बेर-बेर निवेदन जे एहि विन्दुपर गंभीरतापूर्वक विचार करी आ मिथिलाके शुद्ध संस्करण निर्माण में सहायक बनी। विकास सेहो स्वतः पटरी पर आयत एहि विश्वास के संग समस्त जनमानसमें शुभकामना अछि।

नमः पार्वती पतये हर हर महादेव!

हरिः हरः!

सहयोगाकांक्षी:
दहेज मुक्त मिथिला परिवार
सौराठ सभागाछी, मधुबनी।

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२ फरवरी २०१२

Sabhar – Shri Gajendra Thakur, Editor, Videh
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श्रीमान मुख्यमंत्री महोदय,

-बिहारमे मिथिलांचलमे प्राथमिक आ मध्य विद्यालयी शिक्षाक माध्यम मैथिली हुअए

-बिहार सरकारकेँ संविधानक ऐ अनुच्छेदकेँ लागू करबा लेल प्रेरित करबा लेल हाइ कोर्ट पटना मे CWJC No. 7505/98 दाखिल भेल छल जतऽ बिहार सरकार हारि गेल आ ओ सुप्रीम कोर्टमे अपील Civli Appeal No. (s)7266 of 2004 केलक।

-न्यायमूर्ति बी.सुदर्शन रेड्डी आ सुरिन्दर सिंह निज्झर ३० सितम्बर २०१० केँ सुनवाइ केलन्हि। भारतक सुप्रीम कोर्ट १ मइ २०११क अपन निर्णयमे बिहार सरकारक अपील ठोकरा देलक।

-भारतीय संविधानक प्रावधानक अनुसार आब सम्पूर्ण उत्तर बिहार, भागलपुर, देवघर, गोड्डा आ मुंगेर क्षेत्रमे प्राथमिक आ मध्य विद्यालयी शिक्षाक माध्यम मैथिली हुअए से अनुरोध

-समस्त मिथिलावासीक दिससँ ई स्मार-पत्र। सुप्रीम कोर्टक आदेशक पालन हुअए आ जनताक भावनाक सम्मान हुअए

प्रार्थी-

श्री..

श्री…

सुश्री..

श्रीमान मुख्यमंत्री महोदय,

-बिहार में मिथिलांचल में प्राथमिक आ मध्य विद्यालयी शिक्षा का माध्यम अविलम्ब मैथिली हो।

-बिहार सरकार को संविधान के अनुच्छेद को लागू करने के लिए प्रेरित करने हेतु हाइ कोर्ट पटना मे CWJC No. 7505/98 दाखिल हुआ था और बिहार सरकार हार गयी थी पर उसने सुप्रीम कोर्टमे अपील Civli Appeal No. (s)7266 of 2004 दाखिल किया।

-न्यायमूर्ति बी.सुदर्शन रेड्डी और सुरिन्दर सिंह निज्झर ने ३० सितम्बर २०१० को सुनवाइ की। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने १ मइ २०११के अपने निर्णयमे बिहार सरकार की अपील खारिज कर दी।

-भारतीय संविधान के प्रावधान के अनुसार अब सम्पूर्ण उत्तर बिहार, भागलपुर, देवघर, गोड्डा आ मुंगेर क्षेत्रमे प्राथमिक और मध्य विद्यालयी शिक्षा का माध्यम मैथिली हो, यह अनुरोध

-समस्त मिथिलावासी के तरफ से यह स्मार-पत्र। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन हो और जनता की भावना का सम्मान हो

प्रार्थी-

श्री..

श्री…

सुश्री

Krupya – ehi Memorandum ke sabh group par Tag karu aa Bihar Sarkar sa anurodh karu – ehi lel Bihar government ke website sabh par seho ekra preshit kail ja sakait chhaik. Besi sa besi sankhya me ehi kaarya ke prarambh karu. Apan-apan naam aa mobile no. seho dait karab ta aaro prabhaavkaari hetaik.

Harih Harah!!

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२ फरवरी २०१२

*Special Development Package for Mithilanchal

Other vital points: (submitted on page of http://finance.bih.nic.in/)

1. Education medium in primary schools must be turned in native languages. The languages of Bihar such as Maithili, Bhojpuri, Magahi, Santhali, Ho, Uraw, Tharu, and many more must be given proper recognition and allow the children from all classes to choose suitable medium for their education. Government must make it compulsory for every region to attain education of their native language. This will develop the skills and will certainly enhance the literacy in state. For example, Maithili being such a rich language which has given a lot contribution in history of world – it is on the verge of death and government of Bihar would be held responsible for sabotaging its richness. Despite verdict of Supreme Court and High Court (Patna), government of Bihar is declining to provide the education in Maithili on several grounds is really worsening the situation. Maithili must be protected by reinstalling the education system.

2. Floods can be controlled by fulfilling the dream project of Atal Behari Vajpayee Jee – by interconnecting all rivers and making waterways connecting Calcutta Sea Port and providing facilities to Nepal and Bhutan – landlocked countries. Waterways will make Bihar richer than Singapore and its people will get back to their own homeland for employment. This way, Bihari will not have to suffer from racial abuses often ending their lives due to hatred of Asamese and Marathi people. This will also enrich Mithila to regain its original beauty and richness.

3. On the name of Vidyapati, there must be an AIIMS type well equipped Hospital in Darbhanga – facilitating entire region of Mithila and Nepal.

4. In Uchhaith, Madhubani, Kalidasa’s land must be blessed with an international training school for drama and musics.

5. All ponds acquired by government of Bihar must be organized for fisheries and for Makhana cultivation.

6. Paper Mills and Sugar Mills must be operational, sugarcane plantations be promoted.

7. Hydro Power Projects in Koshi at Dagmara must be installed and Kataiya Plant capacity must be increased.

8. Private schools must be taxed.

9. Village panchayats must be given more powers to resolve the village development by yearly planning and budgeting.

10. Organized cultivation must be introduced in idle lands of riversides, these lands must be used for seasonal fruits and vegetables.

Harih Harah!

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३ फरवरी २०१२

पुनर्स्मरण:

सभसँ पहिने एहि लिंक पर क्लीक करय जाउ। एक सभ्य नागरिक के ई कर्तब्य अछि जे एहिठाम अपन विचार सरकार के बजेटपूर्व जनमत संकलन में पठाबथि।

http://finance.bih.nic.in/

काल्हिये सऽ हमहुँ सभ हर जाग्रत सदस्य सभसँ निवेदन कय रहल छी – कतेक लोक अपन राय पठा चुकल छथि। हुनकर राय कि अछि एहि लेल निम्न पोस्ट पर देखल जा सकैत अछि। अहुँके कोनो राय हो तऽ अवश्य पठाउ – बिहार सरकार के अर्थ-मंत्री सह उप-मुख्यमंत्री मा. सुशील कुमार मोदी एवं वित्त सचिव, सह-सचिव आदि के इमेल पता के संग फोन नंबर सेहो उपलब्ध करायल गेल छैक आ इन्टरनेटके युगमें जनताके प्रत्यक्ष सहभागिता के लेल नीक अवसर छैक। अपन भीतर जे भावना अछि तेकरा उजागर करैत नवनिर्माणमें सहयोग करू। हम सभ जे केओ अलग मिथिला राज्य के पक्ष में छी, हमरहु सभके कर्तब्य बनैत अछि जे जाबत बिहार राज्यमें मिथिला अछि ताबत सरकार पर एकर नैतिक पोषण आ विकास लेल दबाव बनाबी। यैह होयत मूल कर्तब्य आ अधिकार के निर्बहन। अतः हम बेर-बेर अपने सभ सँ निवेदन करैत छी जे उपरोक्त लिंक पर जा के अपन-अपन पूर्व बजट सुझाव जमा कराबी।

हरिः हरः!

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४ फरवरी २०१२

मैथिली में संघ लोक सेवा आयोगके परीक्षा लेल आजुक समयमें बहुतो अमैथिल छात्र सेहो रुचि लऽ के पढाई करैत छथि आ सहजता संग कमीशन में सफलता प्राप्त करैत छथि। एहि सन्दर्भ आजुक किछु सान्दर्भिक अध्ययन के क्रममें परीक्षाके प्रश्नपत्रके नमूना देखय में आयल आ एहिठाम बहुत विद्यार्थी वर्ग केँ सदस्य रहलाके कारण राखि रहल छी जे अहुँ सभ अपन मातृभाषाके उपयोगिता आ महत्त्वके आत्मसात्‌ करैत जीवनक सर्वोत्तम कैरियरके चुनाव करी। यदि अन्य राज्यके छात्र मैथिलीमें अध्ययन कय सकैत अछि तऽ अहाँ सभके लेल तऽ आरो सहज बात होयत जे अपन बोलीके भाषारूपमें अध्ययन आराम सँ कय सकब। एहि तरहें मैथिली के साहित्य-समृद्धिमें सेहो सहायता भेटतैक। बहुत दिन सँ मैथिली में बहुतो प्रकार के उपद्रवी तत्त्व पाछू लागिके एकर भविष्य के अंधकार करयमें लागल छैक, बहुत हद तक एकर स्वरूप के बिगाइड़ सेहो देलकैक आ मैथिलीके महत्त्वके मट्टीपलीत करय लेल अधिकांशतः बिहारमें घटना सभ घटलैक, लेकिन बेसी दोष आ उल्हन उपराग के जगह यदि हम सभ अध्ययनमें खर्च करब तऽ सार्थकता बेसी बढियाँ हेतैक आ तखन कनेक गप्पो देबय में सुविधा हेतैक  – नहि तऽ फेर मैथिलके खेती कोना चलतैक।  आउ, एहि पर ध्यान दी। 

हरिः हरः!

UPSC : Civil Services Exam Paper Pattern (Maithili)
Note: Answers must be written in Maithili
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१२ फरवरी २०१२

जीवनमें बहुत बेर परिवर्तन के लेल संकल्प करय पड़ैत छैक, भले ओ संकल्पमें निश्चितताके कमी अयला सँ परित्याग करय लेल सेहो बाध्य होवय पड़ैक, लेकिन परिवर्तन संसार के नियम थिकैक एहि गीता संदेश सँ जीवन ओत-प्रोत बुझा रहल अछि। तीर्थ के महत्त्व तऽ बहुत तरहें हमरा लोकनि केँ पता अछि, मुदा एक आवश्यक परिवर्तन हेतु एकर बहुत महत्त्व छैक से अपन अनुभव सँ कहय चाहब। विधक विधान बहुत विलक्षण छैक आ एहेन कोनो घड़ी नहि जाहिमें एहि बात के अनुभव हमरा लोकनि नहि कय सकी। अतः अपन जीवन के सर्वस्व ईश्वरके शरणमें समर्पित करैत त्यागक भाव सहित सदिखन कर्म करय पर ध्यान केन्द्रित करब ज्ञानीजन के कार्य होयत।

हरिः हरः!

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१३ फरवरी २०१२

Gajendra Thakur (Editor, Videh, Maithili – e-fortnightly-magazine)

आ फेर अहाँकेँ पता चलि जाएत जे मैथिलीक ठिकेदार सभ कोना मैथिलीकेँ मारि रहल अछि, अखन विरोध करू नै तँ ई भाषा किताब मे सिमटि कऽ रहि जाएत।
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उपरोक्त कथन थीक विदेह – संपादक एवं भारत सरकार अधिनस्थ कार्यरत एक अधिकारी वर्गके व्यक्तित्व श्री गजेन्द्र ठाकुर जी के जे वास्तवमें मैथिलीके लेल विशेष रुचि सँ कार्यरत छथि आ बहुत संजीदापूर्वक अपन योगदान दैत अयलाह छथि। जिनकर जे सराहनीय योगदान होयत तेकरा भले साहित्य अकादमी वा मैथिली सऽ जुड़ल कोनो नामी-गिरामी संस्था पुरस्कृत करय वा नहि बल्कि ओ प्रगतिशील प्रतिगामी तत्त्वके विरुद्ध संघर्ष करैत अपन समय सकारात्मकता के प्रसारमें बेसी खर्च करत। विगत किछु दिनसँ अपनेक क्रिया-कलाप में विभिन्न बात जे अहींके पूर्वाग्रह आ छिपल क्रोध के मात्र उजागर कय रहल अछि से देखि हम बहुत आहत छी आ अहाँ के विषयमें अध्ययनमें आवश्यकतानुसार किछु बढोत्तरी कयल अछि। बहुत गंथन-मंथन कयला के बाद यथार्थ चरित्र-चित्रण करब एक अनुज के रूपमें उचित नहि होयत, लेकिन एतेक हम कहि सकैत छी जे यदि कोनो सार्वजनिक मंच पर अपने रहब आ ताहि दिन विषय यैह रहैक जे मैथिली के मारयवाला मैथिलीके ठीकेदार केवल किताबमें सिमटिके राखय चाहैत छथि आ ठीकेदार केवल बाभन (विगत किछु समय तक ब्राह्मण – विदेहपर चर्चाके गंभीरतापूर्वक अध्ययन सऽ सुस्पष्ट) सभ एहि दुष्कर कार्य करय लेल लागल छथि – तहिया जरुर हम खुलि के बाजब आ इ बात स्पष्ट कहब जे आखिर समय के उपयोग कोन ढंग सँ कयला सँ मैथिली वा मिथिलाके कल्याण होयत।

व्यक्तिगत तौरपर अहाँके हरेक योगदान के हम प्रशंसक छी आ जतेक महान्‌ विभुति सभसँ चर्चा होइत अछि ताहिमें सेहो हमरहि आत्मनिर्णयपर सहमति बनैत अछि। लेकिन किछु बात बड़ विस्मयकारी लगैत अछि। एक अनुजके रूपमें विरोध के तरीका लेल हमर सुझाव निम्न अछि:

१. सशक्त संगठन निर्माण आ मैथिली प्रति दुर्व्यवहार के मुद्दा पर प्रकाश – अपन-अपन वैचारिक मतभेद के समाप्त करय लेल समुचित प्रतिकार लेल मिडिया द्वारा बीमार मानसिकतापर प्रहार। जखन अहाँ या अहाँके समर्थन में कार्यरत विभिन्न लेखक, साहित्यकार, कवि, विद्वान्‌ एवं समस्त सरोकारवाला गोष्ठी करैत आम जनके जागृति करैत मिडिया में एहि चर्चाके चलायब तखन अवश्य उपद्रवी तत्त्वके जनमानस विरोध के डर बनतैक आ एकाधिकारवादी कोनो कार्यकारिणीके प्रजातंत्र के जादुइ प्रभावमें रहिके कार्य करय पड़तैक। अहुँ सभकेँ केवल वैह मुद्दा आ सेहो बड़ समझदारी सँ उठबय पड़त जेकरा में वास्तविकता रहतैक। यदि अहाँ वा हम वा केओ अपन घरमें भोज के आयोजन कयके अनेक नौटंकीपूर्ण क्रियाकलाप कय के तखन लाखो अपन बात मनाबैक लेल कोनो तरहक जातिवादी सोचके अग्रसर करबैक तऽ दुनिया अपन जगह सही, मुदा हमरहि-अहाँपर गलत मानसिकता, छुद्र एवं स्वार्थलोलुप-लोभमें फँसल – असंतुष्ट एवं नाजायज आक्रोशमें व्याप्त बुझल जायत।

२. जतेक समय हम सभ आलोचना में – विरोधके गलत तरीका में खर्च करैत छी यदि ततबा समय अपन रचनाके उत्कृष्टता वृ्द्धिलेल खर्च करी, अपनहि पूर्व-निर्माण-रचना आदिपर आत्मालोचना करी तऽ शायद जनमानसके अपन आरो नीक (अन्तर्मनके कुरुक्षेत्रके वजन आ गुणस्तर सऽ कहीं बेहतर) रचना भेंट कय सकब। एखन धरि जतेक रचना आयल अछि ताहिमें आरो बेहतरी के संभावना बनत। हम सभ काफी लाभान्वित होयब। ओहि समय भले पुरस्कार हमर रचना के बेईमान मंशा नहियो करय लेकिन आमजनकेर प्रतिष्ठा जरुर भेटत। अन्तर्मन के असल बल ताहिसँ भेटत। अपना मने मानू जे हम बड़ नीक व्यंजन बनैलहुँ, मुदा स्वाद एकर केहेन भेल से तऽ जनमानसके हाथमें रहतैक, जे एकर स्वाद चाखिकेँ स्वतः वाह-वा-आह कहतैक। बेर-बेर हम अपनहि तैयार व्यंजनके बाल्टीमें भरि करछुले-करछुल पाँतमें परसबैक तऽ जरुरी छैक जे बलजोरी लोक ओकर स्वाद लौक?? आत्मालोचना सेहो जरुरी आ सार्थकतामें समयके खर्च करब आरो जरुरी बुझा रहल अछि।

३. मिथिलामें जातिवादिताके चर्चा निरर्थक छैक। किछु विडियो हम अहाँके देखाबय चाहब। बस काल्हिये हम सभ लगभग ११८ आदमीके जत्था तीरथपर गेल रही आ एहिमें अछूत-छूत के दाकियानूसी विचारकेँ तक्खापर राखि लोक कोना केवल अपन जीवन असल साधनापर ध्यानकेन्द्रित करैत अछि तेकर प्रमाण भेटत। गलत व्याख्या कयला सँ किछु नहि हेतैक।

४. ई बात यथार्थ छैक जे मिथिला कि समूचा संसारमें आइयो संस्कार गुणे लोक के सम्मान भेटैत छैक। पिछड़ल वर्गमें अवश्य प्रवर्धनके असीम आवश्यकता छैक। एहि लेल स्वतंत्र भारतमें अनेको प्रकार के कदम उठायल गेलैक अछि। लेकिन कोनो कदम एतेक बलिष्ठ नहि जे अगड़ा-संस्कारके पछुवा दौक वा एना कहू जे पिछड़ा वर्गके वाञ्छित लाभ अगड़ा-वर्गके टाँग काटिके संभव भऽ सकौक। हमरा प्रसन्नता अछि जे मिथिलामें एहेन कोनो जातिवादिता हावी नहि छैक – बेशक जखन सामंती युग रहैक तखन उत्पीड़न छलैक। आरक्षण के सिद्धान्त उदाहरणार्थ सामने अछि। अनेको सरकारी आयोजना सभके बात सामने अछि।

५. कहबी छैक, United We Stand, Divided We Fall – एकर वजन एक विद्वान्‌ के हम कि वर्णन करी; ई तऽ सभ के पता छैक। दोसर कहबी छैक – जहाँ सुमति तहाँ संपत्ति नाना, जहाँ कूमति तहाँ विपत्ति निदाना! विदेह के स्थापना अहाँ कोन घड़ीमें केने रही, से हम कतहु पढने रही…. दुर्घटना के शिकार आरामके दौरान एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य प्रारंभ भेल। एकर भविष्य बहुत उज्ज्वल छैक, एहि लेल आगू आरो सार्थक स्वरूप निर्माण हेतु प्रभावशाली कर्म निष्पादन करी। अहाँ हर तरहें सक्षम लोक छी, पूँजी अछि, परिचय अछि, प्रकाशन अछि, प्रभाव अछि, प्रवीणता अछि, प्रसंग अछि… सभ किछु अछि।  कोना के अहाँ समान व्यक्तित्व लालूनीतिपर चलैत भविष्य देखैत छी? ई बिलकुल गलत आ विलेनस अछि। प्लीज!

विशेष बादमें! ओना तऽ अहाँ सभ के कहैत छियैक जे स्वस्थ बहस करू… मुदा जखनहि केओ अहाँके विरुद्ध कोनो बात करैत अछि तऽ ओकर पोस्ट मेटा दैत छियैक। एहि प्रवृत्तिके चलते हम निर्ण केने रही जे फेर किछु नहि लिखब…. मुदा आइ फेरो हर जगह ‘बाभन-बाभन’ देखि रहल छी, पुरस्कारके निर्णय के बात देखि रहल छी, अहाँके तथ्यांक सेहो देखि रहल छी, बहुत विद्वान्‌जन सभसँ एहि सन्दर्भ बात कयल आ तदोपरान्त अहाँलेल इ संदेश एतहु आ अन्यत्रो लिखि रहल छी। यदि भऽ सकय तऽ एहि पोस्टके नहि मेटायब, नहि तऽ एकर बाद हमर कोनो पोस्ट हम कहियो नहि लिखब। विदेह अहींके आ कमरेड्स के मुबारक! अनुज के सभ बात स्पष्टरूपेण प्रेमसँ ग्रहण करब आ जे किछु कहऽ के होइ से कहब, मुदा जातिके नाम लऽ के अपन ऊँचाई कम नहि करब। क्षमाप्रार्थी बनैत – प्रवीण!

हरिः हरः!

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१५ फरवरी २०१२

विदेहराज जनकजी केर तत्त्वोपदेश

इन्द्रियाणि बलिष्ठानि न नियुक्तानि मानद। अपक्वस्य प्रकुर्वन्ति विकारांस्ताननेकशः॥
भोजनेच्छां सुखेच्छां च शय्येच्छामात्मजस्य च। यती भूत्वा कथं कुर्याद्विकारे समुपस्थिते॥
दुर्जरं वासनाजालं न शान्तिमुपयाति वै। अतस्तच्छमनार्थाय क्रमेण च परित्यज्येत्‌॥
ऊर्ध्वं सुप्तः यतत्येव न शयानः पतत्यः। परिव्रज्य परिभ्रष्टो न मार्गं लभते पुनः॥
मनस्तु प्रबलं काममजेयमकृतात्मभिः। अतः क्रमेण जेतव्यमाश्रमानुक्रमेण च॥
गृहस्थाश्रमसंस्थोऽपि शान्तः सुमतिरात्मवान्‌। न च हृष्येन्न च तपेल्लाभलाभे समो भवेत्‌॥
विहतं कर्म कुर्वाणस्त्यजंश्चिन्तान्वितं च यत्‌। आत्मलाभेनस सन्तुष्टो मुच्यते नात्र संशयः॥
आत्मा गम्योऽनुमानेन प्रत्यक्षो न कदाचन। स कथं बध्यते ब्रह्मन्निर्विकारो निरञ्जनः॥
मनस्तु सुखदुःखानां महतां कारणं द्विज। जाते तु निर्मले ह्यस्मिन्सर्वं भवति निर्मलम्‌॥
भ्रमन्सर्वेषु तीर्थेषु स्नात्वा स्नात्वा पुनः पुनः। निर्मलं न मनो यावत्तावत्सर्वं निरर्थकम्‌॥
न देहो न च जीवात्मा नेन्द्रियाणि परन्तप। मनएव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः॥
शुद्धो मुक्तः सदैवात्मा न वै बध्येत कर्हिचित्‌। बन्धमोक्षो मनःसंस्थौ तस्मिञ्छान्ते प्रशाम्यति॥
शत्रुर्मित्रमुदासीनो भेदाः सर्वे मनोगताः। एकात्मत्वे कथं भेदः सम्भवेद्‌ द्वैतदर्शनात्॥
जीवो ब्रह्म सदैवाहं नात्र कार्या विचारणा। भेदबुद्धिस्तु संसारे वर्तमाना प्रवर्तते
अविद्येयं महाभाग विद्या चैतन्तिवर्तनम्‌। विद्याविद्ये च विज्ञेये सर्वदैव विचक्षणैः॥
धर्मनाशे विनष्टः स्याद्वर्णाचारोऽतिवर्तितः। अतो वेदप्रदिष्टेन मार्गेण गच्छतां शुभम्‌॥

(श्रीमद्देवीभागवत)

जनकजी कहलखिन – हे मानद (शुकदेवजी)! इन्द्रिय बड़ बलवान्‌ होइत छैक, ई सभ वशमें नहि रहैत छैक। ई सभ अपरिपक्व बुद्धिवाला मनुखके मनमें नाना प्रकारके विकार उत्पन्न कय दैत छैक। जौं मनुख के मनमें भोजनके, सुतयके, सुखके आ पुत्रके …

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अख्तियार के दुरुपयोग

यदा-कदा परिवेश सऽ लऽ के हर तंत्रमें मानुषिक व्यवहार पर छुब्धता प्राप्त करब प्रमुखतः दू कारणे होइछ बुझैछ – १. आशा बिपरीत परिणाम देखला सऽ, वा २. अनीतिपूर्वक दबाव के अनुभूति कयला सऽ।

आशा बिपरीत परिणाम के अबस्था निज-मानसिकता संग जुड़ल होइछ। यदि हम इच्छा के समन नहि करब तऽ अवश्य इच्छापूर्तिके लेल एक लगन जागल रहत आ तदनुसार कर्म-कर्तब्यमें लागल रहब। तथापि सफलता आ असफलता हमरा हाथ में नहि अछि जे हम अपन मानसपटलमें इच्छा प्रति जुड़ाव एतबी बना ली जेकर पूर्ति नहि भेलापर क्रोध उत्पन्न होय आ प्रतिक्रियास्वरूप हम स्वयं नीति-अनिति के विवेक बिसैर जाय आ तदनुरूप निज अख्तियार के दुरुपयोग करैत बहुतो अन्यके अधिकारके दमन करी। अन्यपर दबाव बनाबी आ निज स्वार्थ पूर्तिक लेल हर हथकंडा अपनाबी, ई जनितो जे जीवन के अन्त खोखला छैक। लेकिन ममत्व ‘अपन’ प्रति एतेक जे हर तरहें अनीतिपूर्वक कर्म करय लेल हम सभ तैयार रहैत छी। नीक-नीक लोक सेहो एहि माया सऽ वञ्चित नहि रहि पबैत अछि। मुख्यतः यैह अबस्था में शत्‌-प्रतिशत्‌ प्राणी रहैछ। आजुक अराजकता के मूल कारण लोकक हताशा जे बेहिसाब बढैत-भगैत दुनिया में हम कतहु पाछू तऽ नहि पड़ि रहल छी… एहि अन्तर्मनक भय सँ आक्रान्त हम ई बिसैर जाइत छी जे केवल कर्म करबा पर हमर अधिकार अछि, फल निर्माण हेतु अदृश्य शक्ति के हाथ नियंत्रण रहैछ; आरो विभिन्न कारक तत्त्व जे कार्य निष्पादनमें सहायक होइछ सेहो वैह अदृश्य शक्ति जेकरा आस्थावान्‌ ईश्वर शक्ति कहैछ ताहिके अधीन मानैछ। लेकिन बहस में आस्था आ अनास्था के द्वंद्वके चलते संसार अस्त-व्यस्त रहैछ। सभ बुझितो अबूझ रहैछ। ताहिपर सँ अनेको पंथमत – अहाँ ई करू तऽ एना होयत आ ओ करू तऽ ओना होयत… बस लोक हर तरहें भटकावके भंवरमें फंसब सहर्ष स्वीकार करैछ नहि कि मुक्तिके मार्ग।

दोसर कारण जेकरा हम अनीतिपूर्वक दबावके अनुभूति सऽ जोड़िके देखयके प्रयास कयने छी ताहि अनुरूपे सेहो दोष दोसरके नहि, बल्कि निज स्वभाव के बनैछ। यदि संभव हो तऽ एक बेर फेर अहाँ सभ निम्न तत्त्वोपदेश जे राजा जनकजी व्यासपुत्र शुकदेवजीकेँ सुमेरु पर्वतसँ पिताके बुझेलापर मिथिला आबि गृहस्थाश्रम सभमें श्रेष्ठ आ मोक्ष लेल सेहो सहायक कोना अछि ताहि विषयमें शिक्षा प्राप्त कय रहल छथि आ ताहि घड़ी विदेहराज हुनका ई उपदेश देने छथि – तेकरा पर बेर-बेर मनन करू आ समझ में आयत जे मन के दशा टा सभ तरहक दोष उत्पन्न करय लेल आतुर अछि आ मनहि के दशा के नियंत्रित कयलासँ मुक्तिके मार्ग प्रशस्त होइछ। मन बहुत चंचल होइछ। अतः मन के दोष जे दोसर के व्यवहार प्रति एतेक आकृष्ट किऐक रहैछ जे दबाव भेल, अनीति भेल, अन्याय भेल आ पता नहि ओ सभ भेल जेकर अहाँ आशा नहि करैत रही; एहि तरहें मात्र अनीतिपूर्वक दबावके अनुभूति होइछ। मुदा सामान्यतया लोकमें एतेक आत्मज्ञान होयब कठिन छैक; एतेक तप, एतेक साधना आ एतेक अनुभूति जे हर समय अपन असल आत्मरूपी पहचान संग जुड़ल रहय आ दैहिक संसार सऽ वैराग्य उत्पन्न केने रहय। शुकदेवजी के सेहो एहि उपदेश सँ पहिने यैह प्रश्न छलन्हि – चित्तमें वैराग्य आ ज्ञान-विज्ञान उत्पन्न भेलापर अवश्य गृहस्थादि आश्रममें रहबाक चाही वा वनमें? (श्रीमद्देवीभागवत, प्रथम स्कन्ध, अध्याय १८ श्लोक २३) एहि अबस्थामें सेहो हम सभ अपन अख्तियारके दुरुपयोग करैत छी।

आध्यात्म अनुरूपें उपरोक्त दुनू कारण में निज-दोष के परिणाम प्रत्यक्ष अछि। लेकिन लौकिक व्यवस्थामें अयला उपरान्त अदृश्य शक्ति के द्योतक दृश्य राज्य व्यवस्था आ तेकर विधान के प्रभावी होयब लोकके दिनचर्या आ जीवनयापन के तौर-तरीका निर्धारित करैछ। संविधान के आवश्यकता एहि लेल परम अनिवार्य छैक। जाहि देशमें संविधान जतेक मजबूत आ पारदर्शी आ जतेक जनतामुखी छैक, ताहि देशके समृद्धि ततबा उत्कृष्ट छैक। लेकिन संविधान याने अन्तर्मनके दशा बन्धनगामी छैक वा मुक्तिगामी – एहि में पुनः मानवीय अनुदान के बात प्रत्यक्ष छैक। यदि अख्तियार के दुरुपयोग हेतैक तऽ संविधान संग बलात्कार अवश्यम्भावी छैक। भ्रष्टाचारिता के व्यवहार आइ विकासके मार्गमें सभ सँ पैघ कुण्ठा उत्पन्न कय रहल छैक। विधायिका, प्रशासिका आ एतय तक जे न्यायपालिका – ई तिनू महत्त्वपूर्ण प्रजातांत्रिक अंग पंगु बनल छैक केवल अख्तियार दुरुपयोग के असीमित क्रियाकलाप सँ। व्यक्तिगत सक्रियता सँ लैत समाजिक-सामुदायिक आ राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय सक्रियतामें अख्तियार के सही उपयोग मात्र निकास के मार्ग प्रशस्त करैछ, वरना अनर्थ के आबय सऽ केओ नहि रोकि सकैछ। संसारमें पहिले भऽ चुकल विश्वयुद्ध या महाभारत युद्धमें सेहो अख्तियारके दुरुपयोग मात्र कारण छलैक, एहि बात के हम सभ नहि बिसरी।

प्राकृतिक विपदा में सेहो किछु एहने मानवीय भूल प्रमुख कारक तत्त्व छैक। परिवर्तन संसार के नियम थिकैक – एक पंक्तिमें गीता समूचा बात के लपेट लेने अछि। लेकिन प्रकृति स्वयं त्रिगुणात्मक आ तीन अवयव के समुच्चय-उपसमुच्चय के संख्या जतेक विभिन्नता के स्वामी होइछ। मनन करै जोग बात एतबी जे निज प्रकृति, निज व्यवहार, निज अख्तियार के सदुपयोग-दुरुपयोग आ संसारमें आबय के मुख्य कारण पर हम सभ सदिखन आवश्यक चिन्तन जरुर करी।

हरिः हरः!

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Janak Jee said – Hey Manad (Shukdev Jee)! Senses are too strong to be controlled. These create various pollutions in the minds of immature people. If people desire for food, sleeping, pleasure and son and keep thinking of these in mind, despite declaring renouncement such people remain nowhere. The network of desires and lusts are very lengthy, the thirsts don’t omit at faster pace. Thus for attaining peace in these respects, people must renounce from these desires one by one in serial. People sleeping at higher places only fall, those sleeping downside fear never fall. If someone corrupts after renouncing from these desires, he can not attain any other path ever again. Mind is so strong; it cannot ever be won by people without annexing their senses (called Ajitendriya). Thus, while adopting the various stages of life, we must keep attempting to win over our minds.  One remaining in household life still at peace, wise and with knowledge of Self, he neither becomes nor becomes sad for anything. He maintains equanimity in both gain or loss. He undoubtedly becomes liberated who perform the actions as per ordinances from holy scriptures remaining free from all anxieties and contented with self-performances. The Self cannot be approached directly rather fictitiously. In such a situation, O Brahman! how can a neutral and pure self ever enter into bindings anyway? Hey Twice-Born(Dwij)! Mind alone is cause of pleasure and pain, once it is pacified everything is pacified easily. Despite going on pilgrimages and taking sacred dips if the mind has not been pacified, everything is simply wasted. Causes of bindings or liberation are neither the body, nor the self and nor the senses; but mind alone causes both these bindings or liberation. The self is always pure and liberated, it cannot ever be bounded. As such the bindings and liberation is within mind alone, peace of mind is peace ultimately. Enmity, friendship or neutrality are all different states within mind alone. Gradually by reaching to oneness of mind with self these differences do not exist; these are only the creations of dualities in minds. ‘We are Brahman forever.’ – no need to think so much on this line. Differences in minds are created by undue attachments in the world. Being unknown with knowledge alone causes bindings. Knowledge attaining always removes this state of being unknown with knowledge. For this the wise people should always aspire to know what is knowledge and what is being unknown to knowledge by process of self-studies and self-researches. After destruction of righteousness everything gets destroyed and even the ways of life with various stages and modes get derailed. Thus the welfare is there for people living as per Vedic guidance. (Shrimad-Devi-Bhagavat – Section I, Chapter XVIII, Sloka 24-47!)

Harih Harah!!

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मिथिला के राजा एक नहि बल्कि अनेक!

एक जनक – एक दरभंगा महाराजा! जनकजी के समयक बहुत बात नहि अछि पता – बस कथामें चर्चा-परिचर्चा पढैत-सुनैत किछु-किछु बुझैत छी… जेना काल्हिये श्रीमद्देवीभागवतकेर स्वाध्यायमें व्यासदेव अपन पुत्र शुकदेवजी सँ कहैत देखेलाह जे मिथिलाके राजा जनकजी केर राज बिना दंड विधान के चलैत छैक। ओहिठाम दंड-व्यवस्था केर प्रयोजन नहि छैक। गृहस्थाश्रममें रहितो लोक कोना वैराग्यचित्त छैक से ज्ञान राजा जनकजी सँ मिथिलापुरी में प्राप्त करैक लेल अपन चिन्तित आ विवाह करय सऽ नकारयवाला पुत्र शुकदेवजीके व्यासदेव बुझेलाह। पहिले स्वयं उपदेश कयलाह – परञ्च ताहि उपदेश सँ शुकदेवजीके चित्त स्थिर नहि भेलापर कहला – “अहाँ मनके ग्लानि छोड़ू; यथेष्टरूपसँ सुखोपभोग करू, शास्त्रोक्त ज्ञानके चिन्तन करू आ आत्मचिन्तनमें मन लगाउ। हे सुव्रत! यदि हमर उपदेशसँ अहाँके शान्ति नहि भेटि रहल अछि तऽ अहाँ राजा जनक द्वारा पालित मिथिलापुरी चैल जाउ। हे महाभाग! ओ विदेह राजा जनक अहाँके मोहके नाश कय देता; कियैक तऽ ओ सत्यसिन्धु आ धर्मात्मा छथि। हुनका लग जाके अहाँ अपन सन्देह दूर करू आ वर्णाश्रम-धर्मके रहस्य हुनका सँ यथार्थ रूपमें पुछू।” कनेक ध्यान दियौक एहिठाम – वर्णाश्रम धर्ममें कतहु जातिवादिता के चर्चा तक नहि आयल छैक समूचा उपदेशमें। कतहु उँच-नीचके घृणास्पद आ आपत्तिजनक कोनो गप तक नहि कयल गेल छैक। तखन कालान्तरमें मिथिलाके राजा हरसिंह देव के समयमें अबैत छी आ जानकारी भेटैछ जे ताहि समय पंजी व्यवस्था के प्रविष्टि भेलैक – लोक संस्कार आ गुण अनुरूपे सम्बन्ध कायम करैत छैक। यदि हमर कोनो बात अहाँके वा पाठकके अनसोहँतगर लागत तऽ अवश्यम्भावी स्वाभाविक प्रतिक्रिया होयत। पंजी व्यवस्थामें कुल-मूल-गोत्र-पाँजि-खानदान-व्यवहार आदि अनेक बात के संक्षेपमें समेटैत केवल खूनके सम्बन्धसँ अधिकार निर्णय आ समस्त जातिके पाछू केवल एक मूल जाति ‘मैथिल’ के प्रयोग पुरखा के समृद्ध शक्तिशाली आ दूरदृष्टीक स्वामी प्रमाणित करैत अछि। तदोपरान्त आचार-विचार-व्यवहारमें परिवर्तन आयब कोनो अप्राकृतिक बात नहि छैक। आइ हमर विचारमें जे शुद्धता वा अशुद्धता अछि ओ सदावर्त रहत से बात संभव नहि छैक। परिवर्तन आयब हमरा लोकनिक स्वभाव थीक।

आश्चर्य नहि लागल जे आखिर जनकजीके समयमें बिना दण्ड-विधान के राज होइत रहल छल? यैह विस्मयकारी बात सँ अत्यन्त प्रभावित भऽ के शुकदेवजी तैयार भऽ गेला आ सुमेरु पर्वत सँ चलैत मिथिलापुरी पहुँचि गेलाह – आजुक परिस्थिति उल्टा छैक। आब मिथिलापुरीके लोक शिक्षा ग्रहण करैक लेल कोटा – पिलानी – बंगलौर – मंगलौर जाइत अछि। कारण मूल-तत्त्व जे छलैक से शुद्ध आचरण आ वर्णाश्रम-धर्मके निर्वाह ओ कलुषि-प्रदुषित भऽ गेल छैक। शुद्ध आचार-व्यवहार के प्रचलन बन्द भऽ गेल छैक। तखन शिक्षा के तंत्र पर तऽ राज्य द्वारा एना प्रहार भेलैक अछि से हम कि वर्णन करू – अहाँ स्वयं जनैत छी। दोषी के – एहि लेल सेहो हमरा केकरो पर आँगूर नहि उठेबाक अछि। आत्मचिन्तन केवल एहि लेल होइक जे एतेक समृद्ध साहित्य रहितो – व्याकरण आ सागर सऽ बेसी गहिंर शब्दावलीके रहैत कोना मिथिला-शत्रु एहि साहित्यके जैड़ सऽ काटय लेल आतुर छैक से विगत किछु वर्षक इतिहासमें पता चलैत छैक आ केवल जातिवादिताके हवाबाजी नारा देनिहार नेतागण सभ एहि तरहक क्रियाकलापमें संलग्न देखैत छथि। घरमें सेहो शत्रुके कमी नहि छैक। अपना के ढेर होशियार आ विशाल जाल संजाल के स्वामी देखेनिहार बहुतो लोक अपन राज के दिवास्वप्न देखयमें अधिकांशतः व्यस्त छथि। हुनका सभके साहित्यमें सेहो जातिके प्रभाव – ब्राह्मणवादिताके प्रदर्शन केनिहार लोकसँ नहि केवल शिकायत छन्हि बल्कि घृणा सेहो छन्हि आ आपसी कटौझ सार्वजनिक मंचपर सरेआम देखयमें अबैछ। लोक एक-दोसरके फट्ठा-फराठीसँ फटकारैत कतहु देखा जाइत छथि। विडंबना जे एहि तरहक कार्यमें देखल जाइत छैक जे ब्राह्मण स्वयं ब्राह्मणके गरियाबैत अपन अलग छवि देखाबयमें आतुर रहैत छथि। दस गोट चमचा सऽ घिरल ओ स्वयं के राजा बुझैत छथि आ मिथिलाके निर्माण लेल सोचैत छथि। हस्ताक्षर अभियानमें गाम-गाम प्रचार-प्रसार होइत छैक। दस गो चमचा-बेलचा अपन बुधियारी सऽ नहि कि ईमानदारी सऽ अभियानके कछुवा सऽ बदतर गतिमें हाँकैत रहैत छथि लेकिन सरेआम मंच आ मिडियामें ओ राजा घोषणा करैत छथि जे हम एना आ हम ओना – हम केना – हम… हम… हम…! हाय रे मिथिला के राजा! कर्म शून्ना! बाजब दून्ना!

दरभंगा महाराजके कीर्तिमें सेहो अमरता छन्हि। लेकिन कतहु तऽ त्रूटि छलैक जे ओ अमर कीर्ति आइ धराशायी भऽ रहल छैक आ देखनिहार केओ नहि। राजा हारि गेलाह। संतति रहितो सामर्थ्य या इच्छाशक्ति नहि छन्हि। राज खत्म भऽ गेल छैक। कारण मिथिलामें आब सभटा राजा भऽ गेलैक आ अपन कोठरीरूपी राज्यक रानी के इशारापर नाचनिहार इ नटुवा-राजा कोठरी सऽ बाहर ओसारा-अंगना-दरबज्जा तक पहुँचैत कतेको राजा सऽ भेटैत अछि आ राज्यक लड़ाई लड़ैत अछि। यौ जी! लड़य सऽ फुर्सत हेतैक तखन ने राज-काज देखतैक। एम्हर राजा में यदि एकता बनैत गामरूपी राज्यके कल्याणके बात हेतैक तऽ रानी सभके द्वंद्वरूपी लड़ाईमें कतेको कैकेयी आ मंथरा के भूमिका होइत छैक आ फेर योजना बरमूडा त्रिकोणमें तेना कऽ रहस्यपूर्ण ढंग सऽ गायब भऽ जाइत छैक जेना बुझू जे केओ कोनो योजना बनेनहिये नहि छलैक।

आउ, अन्त करी औझका एहि लेख के संसारके ‘प्रथम संविधान सृजक – मनु’ द्वारा मनुस्मृतिके अष्टम अध्यायमें उल्लेख कैल गेल – राज्यके सीमा तथा कोषके सुरक्षा, विवाद सँ निपटारा के लेल समुचित विधि अपनायब, धर्म विरुद्ध गवाही देबयवाला, झूठ बाजयवाला या धोखा देबयवाला आ अपराध करयवाला के दण्ड देनैय आ दण्ड दैत समय व्यक्तिके सामाजिक स्तर आ अपराध के मात्रापर विचार करब आदि के चर्चा छैक। एहिमें सँ किछु महत्त्वपूर्ण विन्दुके हम एतहु उल्लेख करैक लेल चाहब।

प्रत्यहं देशदृष्टैश्च शास्त्रदृष्टैश्च हेतुभिः।
अष्टादशसु मार्गेषु निबद्धानि पृथक्‌-पृथक्‌॥मनु.८-३॥
तेषामाद्यामृणादानं निक्षेपोऽस्वामिविक्रयः।
सम्भूय च समुत्थानं दत्तस्यानप कर्म च॥
वेतनस्यैव चादानं संविदश्च व्यतिक्रमः।
क्रयविक्रयानुशयोविवादः स्वामिपालयोः॥
सीमाविवादधर्मश्च पारुष्ये दण्डवाचिके।
स्तेयं च साहसं चैव स्त्रीसंग्रहणमेव च॥
स्त्रीपुन्धर्मो विभागश्च द्युतमाह्वय एव च।
पदान्यष्टादशैतानि व्यवहारस्थिताविह॥मनु. ८ – ४, ५, ६, ७॥

राजाके प्रतिदिन अठारह तरह के अलग-अलग विभागमें बाँटल कार्यके प्रत्येक दिन शास्त्रीय दृष्टि सँ स्थानीय परिस्थिति के अनुसार समीक्षा करबाक चाही:

१. उधार लऽ के नहि देनाय या फेर बिन उधार देने मंगनाइ
२. धरोहर सम्बन्धित विवाद
३. कोनो वस्तु, भूमि आदि के स्वामी नहि रहला उपरान्तो ओकरा बेच देनाइ
४. साझेदारीके व्यापार सँ संबंधित विवाद
५. दान में देल वस्तुके वापस लऽ लेनाइ
६. कर्मचारीके वेतन नहि देनाइ
७. प्रतिज्ञापत्रमें लिखल बातके पालन नहि करब
८. विक्रय या क्रय संबंधी विवाद
९. पशु पालयवाला तथा पशुके स्वामीके मध्य विवाद
१०. सीमा सम्बन्धी विवाद
११. गाली-गलौज करनाइ
१२. माइर-पीट सँ सम्बन्धित विवाद
१३. चोरी करय सऽ सम्बन्धित विवाद
१४. बलात्‌ केकरहु सऽ ओकर कोनो वस्तु छीन लेनाइ
१५. दोसरक स्त्रीके हरण कऽ लेनाइ
१६. स्त्री एवं पुरुष के अलग-अलग धर्म-आचार
१७. धनके विभाजन सम्बन्धी विवाद
१८. जुआ खेलब व पशु-युद्धमें बाजी लगायब सम्बन्धी विवाद

राजाके एहि अठारह प्रकारके विषयपर विचार करय पड़ैत छैक। – मनु।

ई मनुस्मृति सँ उद्धृत आ ताहि जमाना के अनुसार निर्मित अछि। आइ-काल्हि विवाद अनेक छैक। १८ गो विषय मात्र नहि रहि गेल छैक। अतः राजा के अपन विषय में वैशिष्टीकरण करय पड़ैत छैक। राज्य निर्धारण सेहो अपन-अपन शैली आ रुचि अनुरूपे होइत छैक। सामर्थ्यके बात सेहो महत्त्वपूर्ण छैक। केवल राजा आ राज्यके इच्छा रखला सऽ कि हेतैक?

हरिः हरः!

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१६ फरवरी २०१२
स्वच्छ समाज के कल्पना करब अपन मानसिक स्वास्थ्यके परिचय करायब समान छैक। जेना शरीर में ब्याधिके प्रवेश आन्तरिक मलवृद्धि सँ होइछ तहिना समाजमें दु्ष्प्रवृत्ति के प्रकोप अस्वस्थता के कारक बनैछ। दहेज मुक्त मिथिलाके परिकल्पना अवश्य स्वस्थ आ बलिष्ठ मानसिकता के धनी व्यक्ति मात्र कय सकैत अछि। दहेज के लेन-देन में भले आइयो बहुतो लोक अपन मान-मर्यादा आ प्रतिष्ठा में वृद्धि रूपमें देखैछ – लेकिन बलजोरी आ नाजायज माँगरूपी दहेज लेनिहार-देनिहार कहियो प्रसन्न नहि रहि सकैत छथि। नजैर खोलि के इतिहासके कोनो उदाहरण के उल्टाबैत देखल जाउ आ एहि सनातन सत्य सऽ रुबरु होउ।

समय-समयपर आह्वान करैत आयल छी जे अपन अमूल्य सहयोग सँ एहि अभियानके अग्रसर करू – यदि सालमें एकहु टा दहेज मुक्त विवाह संपादन करबैत छी तऽ एहि सऽ पैघ दोसर कोनो धर्म आजुक एहि कलिजुगी संसारमें नहि भऽ सकैत अछि। एक अश्वमेध यज्ञके समान कन्यादान में गरीब माता-पिता-अभिभावक के सहयोग करय जाउ। एक बेटीके दहेज मुक्त विवाह याने एक पवित्र गाम के बसायब समान पुण्य कार्य होइछ। आउ एहि ग्रुप पर जुड़ू आ अपन स्वस्थ विचार आ सहयोग सँ एहि मुहिम के समुचित अग्रसरता प्रदान करू।

https://www.facebook.com/groups/dahejmuktmithila/

हरिः हरः!

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१८ फरवरी २०१२
सभ गेल गोइठी बिछय लेल – लूल्ही कहलकै हमहुँ!

देक्सी – नकल में संसार डूबैत छैक – ई कोनो नव बात नहि। शुरु सऽ आदमी देखादेखी बहुत प्रकार के सार्थक वा निरर्थक कार्य करैत आयल छैक। गीतामें सेहो कर्मके प्रकार बुझबैत श्रीकृष्ण कहने छथि जे श्रेष्ठ जे-जे आचरण करैत छथि वैह आचरण लौकिक जनमानस अनुसरण करैछ। (गीता अ. ३ श्लोक २१)

यद्ददाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥३-२१॥

लेकिन एहि अनुसरणमें अपन रुचि आ प्रकृतिरूपी गुणके संयोग-पूँजीके लगानीसँ कर्मफल बनैछ आ कतहु सफलता तऽ कतहु असफलता हाथ लगैछ। तैँ कोनो कार्य रुकल छैक से नहि छैक… सभ ठाम जीवनरूपी गाड़ी अपन गति सँ दौड़ि रहल छैक।

कर्म तऽ करैये टा पड़त – श्रीकृष्ण कहैत छथिन जे कर्महि बले तऽ जनकादि (मिथिलाके राजा जनक व अन्य) पूर्णता प्राप्त कयलथि (गीता – अध्याय ३, श्लोक २०) आ तेकर बादे कहने छथिन जे श्रेष्ठ के अनुसरण करब लोकके स्वभाव होइत छैक।

कर्मणैव हि संसिद्धि मास्थिति जनकादयः।
लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्‌ कर्तुमर्हसि॥३-२०॥

तखन आजुक व्यवसायिक संसारमें व्यक्तिगत लाभार्जनमें पागल भेल लोक-समाज हमेशा दोसरके लाभार्जन करयवाला व्यवसाय के तुरन्त अपनाबय लेल चाहैत अछि। भले हि साधन व खर्च करयके तत्परता सभमें अलग-अलग आ अपन प्रकृतिके अनुरूप होइत छैक आ अवश्य परिणाम अलग-अलग होइत छैक। केकरो १०% लाभके मार्जिन पर संतोष तऽ केओ धरकट-बेईमान सरकारी कर-चोरी करैत एहि मार्जिनके दुगुणा-तिनगुणा बनबैत अछि आ केओ स्वच्छ रूपमें पेट-भरय जोग आत्मसंतोषके मार्जिन सऽ प्रसन्न होइछ। मुनाफाखोर के अन्त सभ केओ जनैत अछि। आइ नै काल्हि खसब तय होइत छैक। कारण चोर के दाढीमें तिनका वाला हाल होइत छैक आ चोरी पकड़ल जाइत छैक। पोल खुलैत दुनिया बदहाल भऽ जाइत छैक। तखन स्वच्छ आचार-विचार नीक। ओना श्रीकृष्ण एक बहुत गूढ रहस्य सऽ पर्दा एना उठबैत छथि:

श्रेयान्‌ स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्‌ स्वनुष्ठितात्‌।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥गीता ३-३५॥

अन्यके धर्मके निष्पादित करय सऽ स्वधर्म में ध्यान लगायब नीक, भले ओ अपूर्ण हि हो। अपन धर्म करैत मरब नीक किऐक तऽ परधर्म अत्यन्त डेरावनापूर्ण भयावह होइछ।

तदापि आइ नकल के दुनियामें हम किछु श्रेष्ठ करी जे अन्यके अनुसरण कयला सँ कल्याणकारी होइक से सोच बहुत कम बल्कि अन्य एना केलक तऽ एना फाइदा भेलैक, हमहुँ एना करब तऽ अवश्य फाइदा प्राप्त करब – एहि मानसिकता के चलते यदा-कदा ओ काज सेहो प्रदुषित भऽ जाइछ। गुण आ प्रकृति अनुरूपे सभ कार्य होइछ। देक्सी केवल ओहि कार्य के होइक चाही जेकरा लेल प्रचूर साधन आ उपयुक्त निर्देशिका उपलब्ध हो। यदि अधकचरा काज होयत तऽ ओ काज केवल घिनायत। डायन कहाँ दैन अधकचरा मंत्र सऽ सिद्धि प्राप्त करैछ। तांत्रिक ताहि हेतु डायन के पकड़यमें सक्षम होइछ। हलाँकि आजुक वैज्ञानिक युगमें डायन प्रथा – तांत्रिक आदि के प्रभावशून्यता प्रमाणित होमय लागल छैक। लेकिन अधकचरा सिद्धिपर फाँगैत यदि कार्य निष्पादन लेल सोचल जेतैक तऽ अवश्य परिणाम उलटा वा कमजोर हेतैक। अतः नकल के अनुसरण सऽ प्रतिस्थापित करैत स्वच्छ समाज-निर्माण में हम सभ सहायक बनी। कौआ रही तऽ कौए के काँव-काँव के बेहतर बुझी, कोयलीके कुहू-कुहू के नकल कौआ के स्वरमें नीक नहि हेतैक।

हरिः हरः!

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एक मर्म एहनो!

एक युवा हमरा सँ निजी वार्तालापके क्रममें कहैत छथि जे दहेज विरोधी हमहुँ छी मुदा माता-पिता एहि बात के नहि मानयलेल तैयार छथि, हुनकर तर्क छन्हि जे बिना दहेज विवाह करब तऽ व्यवहार जे अनिवार्य छैक आ परंपरा रहि आयल छैक – जेना साँठ, गहना, भार, बरियाती, इत्यादि सभके खर्च कोना जुटतैक। ताहि हेतु दहेज हमर माँग अनुसार चाहबे करी। हलाँकि पुत्र अपन माता-पिताके एहि बात पर प्रतिकार कयलखिन, लेकिन हमर व्यक्तिगत रायमें माता-पिता अन्य नहि भऽ सकैत छैक, बरु हुनकर सम्मान करियौन आ हुनकहि मर्जी सऽ आगाँ के निर्णय करू। हमर निजी विश्वास यैह अछि जे दहेज के व्यवहार यदा-कदा बहुत व्यवहारिक सेहो छैक। अवश्य यदि अहाँ घोघटमें बनारसी साड़ी के आश रखबैक, कनियांके माय के लेल साड़ी चाही, भौजाइ के लेल चाही, दीदी, पीसा, बहिन, बहनोइ, चाचा, चाची, मामा, मामी, बाबा, बाबी, नाना, नानी… आ जाइन मिथिलांग के व्याख्या के कतय अन्त करबैक से अहाँ आ समाज बेहतर बुझैत छैक; तऽ कि वर-पक्ष दु-चारि कट्ठा सलटाके अपन बेटाके विवाह करौक वा व्यवहार पुर्ति लेल कर्जा उठाके कोरम पुरा करौक से कतेक जायज हेतैक? एहेन परिस्थितिमें जौँ लड़काके पिताके इच्छा छन्हि जे कोनो बेटीवाला एहि सभ बात के व्यवस्था तय करैथ तखनहि बेटाके विवाह करब तऽ कोना जायज नहि भेलैक? तखन समन्वय कोना हेतैक? बेटा के एक पाइ लेबाक इच्छा नहि आ पिता बिना व्यवहार पक्ष के निर्वाह केने कुटमैती नहि करता, आखिर समाज में सभक अपन एक कुल-खानदान-मर्यादा आदि के बात सेहो छैक। चतुर्थी में माछ-दही आ एगो भार – फेर साँठ – फेर मधुश्रावणी में खर्चा… यौ जी एतेक लंबा प्रक्रिया छैक जे केओ डेरायल रहैछ। या तऽ लड़का बुधियारी करैथ, तेतबा त्यागके भाव आ व्यवहार के मर्यादा – माता-पिताके सम्मान एवं हरेक बात के चिन्ताके जायज बुझैत छथि तऽ अपन कमाइ सऽ एहेन आदर्श उपस्थित करैथ जे साँपो मैर जेतैक आ लाठियो नहि टूटतैक। लेकिन सभ सँ बढियां जे चट मंगनी पट बियाह करैथ – आइ विवाह एकदम साधारण खुशीमें – कम खर्चमें – एक जोड़ धोती आ एक जोड़ साड़ी के खर्चामें वा जतेक संक्षिप्त में समेट सकैत समेटैथ आ आडंबरमें नहि फंसैथ, कारण मिथिलांग जे अपन मड़ौसी के स्वाहा करय लेल विवश करैत हो तेहेन परंपरा के जियाबय के शायद जरुरैत नहि छैक। या फेर बेटीवाला बेटीके प्राकृतिक अधिकार के मनन करैत कम से कम बेटावाला केँ अपन कोनो खर्च एहि सभ तरहक व्यवहार-पुर्तिमें नहि करय दौथ तखनहि आदर्श बनतैक। लेकिन मानवताके मूल्य में दुनू-तिनू आ सभ घोल-फचक्का के समाधान निकालब कठिन रहितो अनिवार्य छैक।

अहाँ सभके राय कि अछि? ओ विद्यार्थी सेहो एहि बहसमें भाग लैथ से निवेदन। हुनकर नाम आ पता हम एहिठाम नहि खोलय चाहब। लेकिन हुनका एकटा भरोस देबय चाहब जे हमरा ओ अपन पिताके फोन नंबर मंगला पर उपलब्ध करौलाह छथि से हम सभ हुनका संग बात करैत किछु आदर्शवाद के उदाहरण निर्माण करैक लेल आ विद्यार्थीके नैतिक मूल्यके उच्च स्थान पर रखैक लेल आग्रह करबैन। एहि लेल ओ आश्वस्त रहैथ।

हरिः हरः!

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१९ फरवरी २०१२
६ फरबरी हम माघी कामर यात्रा पर निकलल रही आ हमर अनुपस्थितिके फायदा उठाके अपन कोनो कुटिल मित्र जिनका हम ‘मैथिल एडमिन्स क्लब’ के एडमिन बनेने रही तिनका सनकी चढा के आनन्द झा एवं हुनक किछु पूर्वाग्रही सहयोगी जे केवल साधारण जनकेँ बरगलाबयमें लागल रहैत छथि, सभके फोन पर आ मेसेज द्वारा केवल एतबी समझाबयमें लागल रहैत छथि जे प्रवीणजी हमर एना बेइज्जती कयलथि, कृष्णानन्दजी एना गरियेलैथ आ पंकजजी सभ केवल प्रवीणजीके बात में ओझरायल रहैत छथि… दहेज मुक्त मिथिला के निर्माता हम छी, लेकिन हमरे ग्रुप सऽ बाहर कय देलाह… राजु ठाकुर, प्रकाश चौधरी, लगायत विभिन्न अन्य संस्थापक सदस्य सभ दहेज मुक्त मिथिला नामक पाकिस्तानी ग्रुप सऽ आइ केवल प्रवीण चौधरी द्वारे बाहर छथि… इत्यादि अनेको बना-सोनाके गप सब सुनाबैत रहैत छथि… आ तहिना कोनो एक एडमिन के सनकी चढा के ओ मैथिल एडमिन्स क्लब पर जोड़ल गेल विभिन्न सदस्य के रिमूव करबावैत अन्तमें ओ एडमिन अपनो लिव लऽ लेलक आ एहि तरहें ग्रुप स्वतः अस्तित्वविहीन भऽ गेल। ई समस्त क्रियाकलाप हम जखन बाबाधाम के लेल गंगाजल भरल कामर उठेने रही ताहि समय कैल गेल। हमरा दया अबैत अछि जे एहेन कुकृत्यके सजा जँ भेटतैक ओ बहुत वीभत्स हेतैक – सेहो हमरे दुःखी करत… लेकिन नियम छैक, यदि हम गलत कर्म करब तऽ गलत प्रारब्ध बनत आ ताहि अनुरूपे गलत सजा-परिणाम हमरहि भुगतय पड़त। लेकिन समस्त फेशबुकपर उपलब्ध जनमानसकेँ एहि बात सँ परिचित करायब आ आनन्दके शौख जे हम नेता बनी आ एहि तरहक हथकंडा अपनाबैत बनी से कोना पूरा हेतैक एहि पर ओकरा सद्‌बुद्धि प्रदान करबाक प्रयास करै जाउ। अन्यथा अपनहि हाल पर छोड़ि देल जाउ। बरगलाबयके गुण हिनक शायद कहियो नहि सुधरत। अफसोस तऽ अछि लेकिन प्रयास जारी अछि जे पुनः ओ पुरान ग्रुप के जिन्दा करी वा फेर नव-निर्माण करी। ईश्वरके कृपासऽ ई काज हमरा लेल १० मिनट के अछि। धन्यवाद! हरिः हरः!
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दहेज मुक्त मिथिला के प्रयास में अहाँके योगदान:

१. अपन परिवार व पड़ोसमें चर्चा करब जे इन्टरनेट पर सक्रिय युवा वर्गमें एहेन चाहत छन्हि जे विवाह में बेटा व बेटी – लड़का व लड़की के समान दर्जा भेटैक।

२. अन्य संस्कार समान वैवाहिक संस्कार में सेहो दुनू पक्ष आडंबर सऽ दूर साधारण प्रसन्नताके संग संपूर्ण जीवन लेल गठबंधन में प्रवेश केनिहार जोड़ा के लेल धार्मिक शुद्धताके संग बिना कोनो दबावके यज्ञ सम्पन्न करैथ। कर्ज लऽ के विवाह आदि नहि करैथ।

३. अपनेक आस-पड़ोस जे विद्यालय छैक ताहिठाम सप्ताहांत पर एक गोष्ठी जरुर करबाबी आ दहेज के कुरूपता के चलते जे बेटीके लोक कोइखे में मारि रहल छथि आ ताहिके चलते महिला-पुरुषके जनसंख्या में जे असंतुलन उत्पन्न भऽ रहल छैक आ एक समय एहेन आबि सकैत छैक जहिया कतेको लड़का के कुमारे प्राण त्याग करय पड़तैक आ नव-पीढीके जननिहाइर के संख्या सीमित रहलाके कारण अनावश्यक छीना-झपटी आदि हेतैक, अपराध बढतैक… संहार हेतैक… बुझि सकैत छी जे भयावह स्थिति बनतैक। एहि सभ बात के चर्चा आइये सँ विद्यालय आ कॅलेजमें करेनाइ जरुरी। कम से कम ओकरा सभके पीढी स्वच्छ बनैक।

४. अपनेक क्षेत्रमें जे केओ दहेज मुक्त विवाह कय रहल छथि वा स्वेच्छाचार सऽ दहेज के आदान-प्रदान कय रहल छथि… एहेन वैवाहिक सम्बन्ध के चर्चा-परिचर्चा एतय करू। हमरा सभके संस्थाके तरफ सऽ सम्मान – यश उपलब्ध कराबय लेल आवश्यक प्रमाणपत्र उपलब्ध करबियौन। आगुओ एहि बात के चर्चा करियौक जाहिसँ अन्य मानवमें सेहो एहि मानवता के बात के संचरण होइक।

५. यदि संभव हो तऽ अपन क्षेत्रके कोनो एक धरोहर के पहिचान करू आ ताहि के परिमार्जन-परिष्करण लेल संस्थागत रूपमें हम सभ कि कय सकैत छी से जानकारी देल जाउ।

हरिः हरः! https://www.facebook.com/groups/dahejmuktmithila/

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भ्रमके त्याग सहज संभव नहि!

विगत किछु दिन पहिने एक लेखमें राजा जनकजी द्वारा गृहस्थाश्रम के श्रेष्ठतापर व्यासपुत्र शुकदेवजीके उपदेश लिखने रही, लेकिन आगू कि देखल से बतायब जरुरी बुझि रहल छी।

शुकदेवजी कहैत छथि जे हम संतुष्ट नहि भेलहुँ श्रीमान्‌ – हमर सन्देह जस के तस अछि, केनाहू ई दूर नहि भऽ रहल अछि। (श्रीमद्देवीभागवत – प्रथम स्कन्ध, अध्याय १९ – श्लोक ४८):) हुनकर तर्क निम्न छन्हि।

वेदधर्ममें हिंसाके बाहुल्य अछि, एहिमें हिंसाके अनेक प्रकारक अधर्म छैक। वेदोक्त धर्म मुक्तिप्रद कोना भऽ सकैत छैक? सोमरस-पान, पशुहिंसा और मांस-भक्षण तऽ स्पष्ट अनाचार छैक। सौत्रामणियज्ञमें तऽ प्रत्यक्षरूप सऽ सुराग्रहणके वर्णन कैल गेल छैक। अही तरहें द्यूतक्रीड़ा आ अन्य विभिन्न प्रकारके व्रतके वर्णन कैल गेल छैक। सुनल जैत छैक जे प्राचिन कालमें शशबिन्दु नामक एक श्रेष्ठ राजा छलाह जे बड़ धर्मात्मा, यज्ञपरायण, उदार आ सत्यवादी छलाह। ओ धर्मरूप सेतुके रक्षक तथा कुमार्गगामी सभके समाधानकर्ता छलाह। ओ पुष्कल दक्षिणावाला अनेको यज्ञ सम्पादित कयने छलाह। ताहि यज्ञ सभमें बद्ध पशुके चर्मसँ विन्ध्यपर्वतक समान ऊँच पहाड़-जेकाँ बनि गेल। मेघके वर्षा के जलसँ चर्मण्वती नामक शुभ नदी बहि चलल। ओ राजा सेहो दिवंगत भऽ गेलाह, लेकिन हुनकर कीर्ति भूमण्डलपर अचल भऽ गेलैक। जखन एहि तरहक धर्मक वर्णन वेदमें अछि, तखन बुझू जे हमर श्रद्धाबुद्धि एहि में नहि अछि। स्त्रीके संग भोगमें पुरुष सुख प्राप्त करैत अछि आ से नहि भेटला पर बहुत दुःखी होइत अछि; एहेन अबस्थामें कहू जे ओ जीवन्मुक्त कोना भऽ सकैत अछि?

जनकजी बुझबैत पुनः कहैत छथि:

यज्ञमें जे हिंसा देखा रहल अछि ओ वास्तवमें अहिंसा कहल गेल अछि; किऐक तऽ जे हिंसा उपाधियोग सँ होइत अछि ओ हिंसा कहैत अछि, अन्यथा नहि – यैह शास्त्रके निर्णय अछि। जेना भिजल लकड़ीक संयोगसऽ बनल आइगसऽ धुआँ निकलैत अछि, अन्यथा धुआँ नहि देखैत अछि, तहिना वेदोक्त हिंसाके अहाँ अहिंसा बुझू। रागीजन द्वारा कैल गेल हिंसा टा हिंसा भेल, ओहीठाम अनासक्त जन लेल ओ हिंसा नहि कहल गेल अछि। जे कर्म रागरहित आ अहंकाररहित भऽ के कैल जाइत अचि, ताहि कर्मके वैदिक विद्वान्‌ मनीषीजन नहि कैल गेल समान कहैत छथि। रागी गृहस्थ द्वारा यज्ञमें जे हिंसा होइत अछि, वैह हिंसा भेल। जे कर्म रागरहित आ अहंकार शून्य भऽ के कैल जाय, से जितात्मा मुमुक्षुजनके लेल अहिंसा मात्र भेल।

शुकदेवजी पुनः प्रश्न करैत छथि:

हमर हृदयमें ई शंका भऽ रहल अचि जे मायामें संलिप्त रहैत केओ मनु्ष्य निःस्पृह कोना भऽ सकैत अछि? शास्त्रके ज्ञान प्राप्त करैत नित्यानित्यके विचार कयलापर सेहो चित्तसऽ मोह नहि दूर होइत छैक। तखन भला ओ मनुष्य मुक्त कोना भऽ सकैत अछि?? मनुष्यक मनमें स्थित मोहके दूर करय लेल केवल शास्त्रबोध समर्थ नहि भऽ सकैत अछि, जेना खाली दीप जराबयके बात करय सऽ अन्धकार दूर नहि होइत छैक। अतः बुद्धिमान्‌ मनुष्यके चाही जे ओ कहियो केकरो सऽ द्वेष-भाव नहि राखय, गृहस्थ सऽ भला से कोना सम्भव छैक?

आइयो कि अपनेक धनप्राप्तिके कामना, राज्यसुख तथा युद्धमें विजय प्राप्त करयके अभिलाषा शान्त नहि भेल अछि, तखन भला अपनेक जीवन्मुक्त कोना भऽ सकैत छी? एखनहु चोरके प्रति चौरबुद्धि – तपस्वीके प्रति साधुबुद्धि अपनेक अछिये। अपन-दोसरके भेदभाव सेहो अपनेमें अछि, तखन भला अपने विदेह कोना?? एखनहु अहाँ कड़ू, तीत, कसैला, खट्टा रसादि के संग नीक-बेजायके ज्ञान राखिते छी। अहाँके चित्त शुभ कर्ममें रमैत अछि, अशुभ कर्म में नहि। जाग्रत्, स्वप्न, सुषुप्ति – एहि सभ अवस्था अपनेकेँ समयानुसार होइत रहल अछि; तखन भला अपनेकेँ तुरीयावस्था कोना भेटि सकैत अछि?? घोड़ा, रथ, हाथी तथा पैदल सैनिक – ई सभ हमर अधीन अछि आ हम एहि सभके मालिक छी – से अहाँ अपनाके मानैत छी वा नहि? अहाँ मधुर भोजनके प्रसन्नतापूर्वक अथवा बेमनसँ खायते हैब। कि अहाँ माला आ साँपमें समान-दृष्टिवाला छी? विमुक्त पुरुष तऽ ओ कहैत अछि जे माइटके ढेला आ सोनाके समान बुझैत हो, सब जीवमें एकात्मबुद्धि राखैत हो तथा जीवमात्रके उपकार करैत हो। हमर मन घर-स्त्री आदिमें कहियो नहि लगैत अछि। एहि लेल एसगरे निःस्पृह भावसँ सदिखन विचरण करैत रही – यैह हमर विचार अछि। निःसंग, ममतारहित आ शान्त भऽ के खाली पत्ता, मूल, फल आदि ग्रहण करैत हम निर्द्वंद्व आ अपरिग्रही होइत मृगके समान स्वच्छन्द विचरण करब। गृह, धन तथा रूपवती स्त्री सऽ हमर समान विरक्तचित्त आ गुणातीतके कि प्रयोजन अछि?

Continued….

Harih Harah!! 

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चर्चाके लाभ दूरगामी असर छोड़ैछ!

हरेक १० गोटा के बात पढला-सुनला सऽ ई सुनय लेल भेटैत छैक जे दहेज के विरोध तऽ कइयेको वर्ष सऽ भऽ रहल छैक, कतेको सुपर हिट चलचित्र बनलैक, कतेको नाटक बनलैक, कतेको कथा-उपन्यास लिखेलैक, कतेको समाज-परिवारमें संकल्प लियेलैक… मुदा फेर जखन बियाहके बेर अबैत छैक तऽ सभटा नियम-आदर्श-संकल्प ताखपर राखि के लोभ आ लालचमें लोक फंसैत छथि आ दहेजरूपी दानव अपन अट्टहास एहि करबटे वा ओहि करबटे लैते रहैत अछि। लोक निर्लज्ज बनि जाइत छथि। आदि-आदि।

सीधा देखब तऽ अवश्य उपरोक्त बात सत्य प्रतीत होयत। दहेज के व्यवस्था अप्राकृतिक नहि छैक। प्राकृतिक अधिकार के संवरण थिकैक आ ताहि घड़ी दहेज के प्रतिकार नहि बल्कि सत्कार मात्र होइत छैक। लेकिन दहेज के विरोध तखन उठैत छैक जखन माँगरूपी दहेज लादल जाइत छैक। आ माँग के न्याय कि?

बेटावाला के ई दावी जे हमर बेटा बड़ होशियार,
बहुत पैघ हाकिम बहुत पैघ ओहदेदार,
एकर हिस्सामें जमीन के रसदार,
गाममें इज्जत के मारामार,
कर-कुटुम्ब के सेहो भरमार,
तखन कोना ने दहेजक व्यवहार?

एतेक बात सोचैत समय बेटावालाके बिसरा जाइत छैन जे बेटीवाला के संगमें सेहो छैक लाचारी आ बेटीके सेहो अस्तित्व छैक। हुनकहु में कला-कौशल-बुद्धिमानी-होशियारी आदि छैक। हुनकहु खानदान आ विवेकशीलता आबयवाला समय में बेटावाला के खानदान-कुल-शील के निर्वाह करयमें सहायक बनतैक। लेकिन नहि… एतेक सोचब सभके वश के बात नहि छैक। बस मोट में अपन समस्यापर नजैर रहैत छैक आ अहाँ मरैत छी तऽ मरू।

तखन कि चर्चा-परिचर्चा सऽ कोनो सुधार नहि भेलैक? एतेक जागृतिमूलक प्रयास सऽ‍ कतहु जागृति नहि एलैक??? एलैक आ खूब एलैक। आइ गाम-गाम बेटी सभ पढाई के प्रथम अधिकार बुझैत छैक। अभिभावक सेहो लाजे पाछू बेटीके पढाबय लेल आतुर रहैत छथि। दहेज के बात दोसर श्रेणीमें चलि गेलैक अछि। हलाँकि इ बात शायद ५०% में मात्र अयलैक अछि, बाकी ५०% आइयो बेटीके अधिकारके दमन करैत दहेज के चिन्तामें डूबल रहैत छथि। ई नहि सोचैत छथि जे जौँ बेटी पैढ-लिख लेत तऽ संसार ओकर अनुसारे चलतैक। ओ केकरहु सऽ पाछाँ नहि रहत। अपन रोजगार करैत एहेन संसार बनाओत जे मिथिलाके दंभी दृश्य नहि बल्कि असल मजबूत नींब आ ताहिपर बनल सुन्दर महल के प्रदर्शन करत। आइ मिथिला यदि विपन्न अछि तऽ बस एहि लेल जे एतुका बेटीपर अत्याचार कैल गेल, शिक्षा सऽ वंचित राखल गेल, गार्गी, मैत्रेयी, भारती आदि के संख्या में भारी कमी आयल… बस केवल एक चिन्ता जे विवाह कोना हेतैक… एतबी में डूबल अभिभावक सदिखन अपना के जुवा खेलैत वर तकैयामें मस्त रखलैथ आ बेटीके विवाह याने गंगा-स्नान – आफियत! एहि मानसिकता के संग आगू बढैत रहलैथ जे मिथिलाके घोर विपन्न बनौलक। लेकिन आब परिवर्तन के वयार चैल चुकल छैक। आब तऽ इहो सुनयमें आ देखयमें अबैत अछि जे घरवाला घरवाली के स्थान लय रहल छथि। भले धुआँवाला चुल्हा नहि फूकय पड़ैन, लेकिन गैस चुल्हापर लाइटर खटखटा रहल छथि आ छोलनी-करछुल भाँजि रहल छथि – मेमसाहेब लेल चाय सऽ लऽ के खाना आ धियापुता के हग्गीज तक चेन्ज कय रहल छथि। बेटी केकरहु सऽ कम नहि रहल आब। बेटाके आवारागर्दी के सेहो बेटी नकैर रहल छथि। ई सभ चर्चा-परिचर्चा आ जागृतिके पसारयवाला अभियानके असर थिकैक। एहने असर लेल दहेज मुक्त मिथिला अग्रसर छैक। आउ एहि मुहिममें अहुँ सभ अपन योगदान दियौक। अपन-अपन स्तर सऽ लोक के जागृतिमें असरदार बनू।

हरिः हरः!

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मिथिला-मैथिलीके नामपर कुकृत्यका रिकार्ड बनानेवाले कुछ गद्दारोंसे सावधान:

१. ऐसे लोग नाम तो हमेशा मैथिली और मिथिलाका लेते हैं, परन्तु कर्म के नामपर शुन्यता इनका सबसे पहला पहचान होता है। आप यदि इनसे पूछेंगे कि क्या आपने आजतक ऐसा कुछ काम किया है जिससे मिथिलाके लोगोंमें या फिर मैथिलीकी समृद्ध साहित्यमें प्रवर्धनका कार्य हुआ हो – तो या आपको केवल खोखली ढांढस बन्धानेवाली बातें करते या फिर बगलें झाँकते नजर आयेंगे।

२. इनका दूसरा धर्म है दूसरों में दोष देखना और अपने करणियोंपर कभी आत्मालोचना तक नहीं करना। इनसे आप कभी किसी विषयोंपर चर्चा करेंगे तो अपनी समझको केवल आगे रखेंगे और बलथुथ्री अर्थात बलधकेल अपनी बात मनवानेके लिये व्यक्तिगत छिछोड़ापन्थी जैसे तुच्छ हरकत करनेमें शीघ्रता दिखायेंगे।

३. दूसरोंके द्वारा किये गये कुछ अच्छे प्रयासोंका नकल करेंगे – वो भी बिना दृष्टिकोण और विचारवान्‌ बने हुए ऐसा करते हुए कहींके नहीं रहते हुए…. काम शुरु कर लेंगे ऐसा मानो कितना बड़ा उपकार होनेवाला है, लेकिन बेहतर और प्रतिबद्ध सोचकी कमीके कारण कमजोर प्रदर्शन दिखाते हुए उन महान्‌ कार्यों-समारोहोंका अस्तित्व पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करबा देंगे जिससे आमजन बरगलाते हुए आगे ऐसे कार्योंपर भरोसा ही न करें और इस प्रकार औचित्यका भी खात्मा करके समाजिक सौहार्द्रको बिगाड़नेवाले उग्रवादपंथ का सृजक बनते हैं।

४. यह सच है कि इनमें भी मिथिलाकी स्वाभाविक तीक्ष्ण बुद्धि है, पर इसका सदुपयोग और सार्थकता पर ध्यान न देकर केवल उम्रदोष और ढीठाई के कारण दुरुपयोग और निरर्थकता से अन्य लोगोंमें मिथिला-मैथिलीके प्रति दुर्भावना फैलाते हैं।

५. यह छद्म स्वार्थ और दिवास्वप्नमें संलिप्त निकम्मे किस्मके लोग केवल मूल्यहीन क्रियाकलापमें व्यस्त होते हैं।

माँ मैथिली जिन्होंने मिथिलाकी पावन धरती से स्वयं अवतरित होकर यहाँके लोगोंमें पुण्यता प्रदान किया है, मैं केवल उनसे आज पीड़ित होकर निवेदन करता हूँ कि ऐसे तो विभिन्न प्रकृतिके पुत्र होना एक ही पिताके घर संभव होता ही है, परन्तु कुटिलता का कुछ ऐसा सजा इन्हें दें कि जीवनमें दुबारा कभी ये कुटिल न बनें।

जय मैथिली! जय मिथिला!

हरिः हरः!

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शिवपूजनके सर्वोत्तम विधिक वर्णन
(अध्याय १३ – संक्षिप्त शिवपुराण – रुद्रसंहिता)

ब्रह्माजी कहैत छथि – आब हम पूजाके सर्वोत्तम विधि बता रहल छी, जे समस्त अभीष्ट तथा सुखकेर सुलभ कराबयवाला अछि। देवता एवं ऋषिगण! अहाँ सभ ध्यान दऽ के सुनू। उपासकके चाही कि ओ ब्राह्म मुहूर्तमें सुइत के उठय आ जगदम्बा पार्वती सहित भगवान्‌ शिवके स्मरण करय तथा हाथ जोड़ि मस्तक झुकाके भक्तिपूर्वक हुनका सँ प्रार्थना करय – ‘देवेश्वर! उठू, उठू! हमर हृदय-मन्दिरमें शयन करनिहार देवता! उठू! उमाकान्त! उठू आ ब्रह्माण्डमें सभके मंगल करू। हम धर्मके जनैत छी, लेकिन हमर ओहिमें प्रवृत्ति नहि होइत अछि। हम अधर्मके जनैत छी, लेकिन हम ओकरा सऽ दूर नहि भऽ सकैत छी। महादेव! अहाँ हमर हृदयमें स्थित भऽ के हमरा जेना प्रेरणा दैत छी, वैह टा हम करैत छी।’ एहि तरहें भक्तिपूर्वक कहैत अपन गुरुदेवकेँ चरणपादुकाके स्मरण करैत गाम सऽ बाहर दक्षिण दिशामें मल-मूत्र त्याग करय लेल जाय। मल-त्याग कयलाके माइट आ जल सऽ धोइत शरीर शुद्ध कय के दुनू हाथ-पैर धो के दतमैन करी, सूर्योदय होयबा सँ पहिने पहिले दतमैन कय के मुँहके सोलह बेर जलके अञ्जलिसँ धोइ। देवतागण एवं ऋषिगण! षष्ठी, प्रतिपदा, अमावस्या आ नवमी तिथिकेँ आ रवि दिनकेँ शिवभक्तके यत्नपूर्वक दतमैन के त्यागि देबाक चाही। छूट्टी अनुसार नदी आदिमें वा घरहिमें नीकसँ स्नान करबाक चाही। मनुष्यके देश आ कालके विरुद्ध स्नान नहि करबाक चाही। रविवार, श्राद्ध, संक्रान्ति, ग्रहण, महादान, तीर्थ, उपवास-दिवस अथवा अशौच प्राप्त भेलापर लोक गरम जलसँ स्नान नहि करय। शिवभक्त मनुष्य तीर्थ आदिमें प्रवाहके सम्मुख भऽ के स्नान करय। जे नहाइके पहिले तेल लगाबय चाहय, ओकरा विहित आ निषिद्ध दिनके विचार कैये कऽ तैलाभ्यङ करबाक चाही। जे प्रतिदिन नियमपूर्वक तेल लगबैत हो, ओकरा लेल कोनो भी दिन तैलाभ्यङ करब दूषित नहि होइछ अर्थात्‌ जे तेल इत्र आदि सँ वासित हो, तेकर लगायब कोनो दिन दूषित नहि होइछ। सैरसोके तेल ग्रहणके छोड़ि दोसर कोनो भी दिन दूषित नहि होइछ। एहि तरहें देश-कालके विचार कैये कऽ विधिपूर्वक स्नान करय। स्नानके समय अपन मुखके उत्तर अथवा पूर्वके तरफ रखबाक चाही।

उच्छिष्ट वस्त्रके उपयोग कखनहु नहि करय। शुद्ध वस्त्र सऽ इष्टदेवके स्मरणपूर्वक स्नान करय। जेहि वस्त्रके दोसर धारण केने हो अथवा जे दोसरके पहिरयके वस्तु हो वा जे स्वयं रात्रिकालमें धारण केने हो, वैह वस्त्र उच्छिष्ट कहैछ। एहिसँ तखनहि स्नान कैल जा सकैत अछि, जँ ओकरा धूवल गेल हो। स्नानके पश्चात्‌ देवता, ऋषि तथा पितरके तृप्ति देबयवाला स्नानाङ्ग तर्पण करबाक चाही। ओकर बाद धुलल साफ वस्त्र पहिरय आ आचमन करय। द्विजोत्तमगण! तदनन्तर गोबर आदिसँ लीप-पोति स्वच्छ कैल गेल शुद्ध स्थान में जाय के ओतय सुन्दर आसनके व्यवस्था करय। ओ आसन विशुद्ध काठके बनल हो, पूरा पसरल व विचित्र हो। एहेन आसन सम्पूर्ण अभीष्ट तथा फलके प्रदायक होइछ। तेकर ऊपर बिछाबय लेल यथायोग्य मृगचर्म आदि ग्रहण करय। शुद्ध बुद्धिवाला पुरुष ताहि आसनपर बैसिकय भस्म सऽ त्रिपुण्ड्र लगाबय। त्रिपुण्ड्रसँ जप-तप तथा दान सफल होइत छैक। भस्मके अभावमें त्रिपुण्ड्रके साधन जल आदि कहल गेल अछि। एहि तरहें त्रिपुण्ड्र कयके मनुष्य रुद्राक्ष धारण करय आ अपन नित्यकर्मके सम्पादन कयके फेर शिवके आराधना करय। तत्पश्चात्‌ तीन बेर मन्त्रोच्चारणपूर्वक आचमन करय। फेर ओतय शिवके पूजाके लेल अन्न आ जल लाबिके राखय। दोसर जे कोनो वस्तु आवश्यक हो, ओ यथाशक्ति जुटाकय अपन पास राखय। एहि प्रकार पूजनसामग्रीके संग्रहक करैत ओतय धैर्यपूर्वक स्थिर भाव सऽ बैसय। फेर जल, गन्ध आ अक्षत सऽ युक्त एक अर्घ्यपात्र लऽ के ओकरा दाहिना भागमें राखय। एहिसँ उपचारके सिद्धि होइछ। फेर गुरुके स्मरण कय के हुनकर आज्ञा लऽ के विधिवत्‌ संकल्प करैत अपन कामना के अलग नहि राखैत पराभक्तिसँ सपरिवार शिवके पूजन करय। एक मुद्रा देखबैत सिन्दूर आदि उपचारद्वारा सिद्धि-बुद्धिसहित विघ्नहारी गणेशके पूजन करय। लक्ष आ लाभ सऽ युक्त गणेशजीके पूजन कयके हुनक नामके आदिमें प्रणव आ अन्तमें नमः जोड़िके नामके चतुर्थी विभक्तिके प्रयोग करैत नमस्कार करय – यथा ॐ गणपतये नमः अथवा ॐ लक्षलाभयुताय सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः। तदनन्तर हुनका सँ क्षमा-प्रार्थना करैत फेर भाइ कार्तिकेयसहित गणेशजीके पराभक्तिसँ पूजन करैत हुनका बेर-बेर नमस्कार करय। तत्पश्चात्‌ सदिखन हुनक द्वारपर ठाड़्ह रहनिहार द्वारपाल महोदयके पूजन करैत सती-साध्वी गिरिराजनन्दिनी उमाके पूजा करय। चन्दन, कुङ्कुम तथा धूप, दीप आदि अनेक उपचार तथा नाना प्रकारके नैवेद्य सऽ शिवा के पूजन कयके नमस्कार करयके बाद साधक शिवजीके समीप जाय। यथासम्भव अपन घरमें माइट, सोना, चाँदी, धातु या अन्य पारा आदिके शिव-प्रतिमा बनाबय आ ताहिके नमस्कार करैत भक्तिपरायण भऽ हुनकर पूजा करय। हुनक पूजा भेलापर सभ देवतागण पूजित भऽ जाइत छथि।

माइटके शिवलिङ्ग बनाकय विधिपूर्वक हुनक स्थापना करय। अपन घरमें रहनिहार लोककेँ स्थापना-सम्बन्धी सभ नियमके सर्वथा पालन करबाक चाही। भूतशुद्धि एवं मातृकान्यास कयके प्राणप्रतिष्ठा करय। शिवालयमें दिक्पालके सेहो स्थापना कय के हुनकर पूजा करय। घरमें सदैव मूलमन्त्रके प्रयोग करैत शिवके पूजा करबाक चाही। ओतय द्वारपालके पूजाक सर्वथा नियम नहि अछि। भगवान्‌ शिवके समीप अपन लेल आसन के व्यवस्था करय। ताहि घड़ी उत्तराभिमुख बैसि फेर आचमन करय, ओकर बाद दुनू हाथ जोड़िके फेर प्राणायाम करय। प्राणायामकालमें मनुष्यके मूलमन्त्रके दस आवृत्ति करबाक चाही। हाथसँ पाँच मुद्रा देखाबय। ई पूजाके आवश्यक अंग थीक। एहि मुद्राके प्रदर्शन कयला उपरान्त मनुष्य पूजा-विधिके अनुसरण करय। तदनन्तर ओतय दीप-निवेदन कयके गुरुके नमस्कार करय आ पद्मासन या भद्रासन बान्हिके बैसय अथवा उत्तानासन या पर्यङ्कासनके आश्रय लैत सुखपूर्वक बैसय आ पुनः पूजनके प्रयोग करय। फेर अर्घ्यपात्रसँ उत्तम शिवलिङ्गके प्रक्षालन करय। मनके भगवान्‌ शिवसँ अन्यत्र नहि लऽ जाइत पूजासामग्रीके अपन नजदीक राखि निम्नाङ्कित मन्त्रसमूहसँ महादेवजीके आवाहन करय।

आवाहन
कैलासशिखरस्थं च पार्वतीपतिमुत्तमम्‌॥४७॥
यथोक्तरूपिणं शम्भुं निर्गुणं गुणरूपिणम्‌।
पञ्चवक्त्रं दशभुजं त्रिनेत्रं वृषभध्वजम्‌॥४८॥
कर्पूरगौर दिव्याङ्गं चन्द्रमौलिं कपर्दिनम्‌।
व्याघ्रचर्मोत्तरीयं च गजचर्माम्बरं शुभम्‌॥४९॥
वासुक्यादिपरीताङ्गं पिनाकाद्यायुधान्वितम्‌।
सिद्ध्योऽष्टौ च यस्याग्रे नृत्यन्तीह निरन्तरम्‌॥५०॥
जयजयेति शब्दैश्च सेवितं भक्तपुञ्जकैः।
तेजसा दुस्सहेनैव दुर्लक्ष्यं देवसेवितम्‌॥५१॥
शरण्यं सर्वसत्त्वानां प्रसन्नमुखपङ्कजम्‌।
वेदैः शास्त्रैर्यथागीतं विष्णुब्रह्मनुतं सदा॥५२॥
भक्तवत्सलमानन्दं शिवमावाहयाम्यहम्‌।

‘जे कैलासके शिखरपर निवास करैत छथि, पार्वती देवीके पति छथि, समस्त देवतागणसँ उत्तम छथि, जिनक स्वरूपके शास्त्र सभमें यथावत्‌ वर्णन कैल गेल अछि, जे निर्गुण रहितो गुणरूप छथि, जिनक पाँच टा मुँह, दस टा हाथ आ प्रत्येक मुखमण्डलमें तीन-तीनटा आँखि छन्हि, जिनक ध्वजापर वृषभके चिह्न अङ्कित अछि, अङ्गकान्ति कर्पूरके समान गौर अछि, जे दिव्यरूपधारी, चन्द्रमारूपी मुकुटसँ सुशोभित तथा माथपर जटाजूट धारण करयवाला छथि, जे हाथीके खाल पहिरैत आ व्याघ्रचर्म ओढैत छथि, जिनक स्वरूप शुभ अछि, जिनक अङ्गमें वासुकि आदि नाग लिपटल रहैत छथि, जे पिनाक आदि आयुध धारण करैत छथि, जिनक आगू आठो सिद्धि निरन्तर नृत्य करैत रहैत अछि, भक्त समुदाय जय-जयकार करैत जिनक सेवामें लागल रहैत अछि, दुस्सह तेजके कारण जिनका तरफ देखब तक कठिन अछि, जे देवतागण सँ सेवित छथि तथा समस्त प्राणीकेँ शरण देवयवाला छथि, जिनक मुखारविन्द प्रसन्नतासँ खिलल रहैछ, वेद आ शास्त्र जिनक महिमाके यथावत्‌ गान केने अछि, विष्णु आ ब्रह्मा सेहो जिनकर स्तुति करैत छथि तथा जे परमानन्दस्वरूप छथि, ताहि भक्तवत्सल शम्भु शिवकेँ हम आवाहन करैत छी।’

एना साम्ब शिवके ध्यान करैत हुनका लेल आसन दी। चतुर्थ्यन्त पदसँ क्रमशः सब किछु अर्पित करी – यथा: साम्बाय सदाशिवाय नमः आसनं समर्पयामि – इत्यादि। आसनके पश्चात्‌ भगवान्‌ शंकरकेँ पाद्य आ अर्घ्य दी। फेर परमात्मा शम्भुकेँ आचमन कराकय पञ्चामृत-सम्बन्धी द्रव्यसँ प्रसन्नतापूर्वक शंकरकेँ स्नान कराबी। वेदमन्त्र अथवा समन्त्रक चतुर्थ्यन्त नामपदकेँ उच्चारण करैत भक्तिपूर्वक यथायोग्य समस्त द्रव्य भगवान्‌केँ अर्पित करी। अभीष्ट द्रव्यकेँ शंकरके ऊपर चढाबी। फेर भगवान्‌ शिवकेँ वारुण-स्नान कराबी। स्नानके बाद हुनक श्रीअङ्गमें सुगन्धित चन्दन तथा अन्य द्रवके यत्नपूर्वक लेप करी। फेर सुगन्धित जलसँ हुनका ऊपर जलधारा खसबैत अभिषेक करी। वेदमन्त्र, षडङ्ग अथवा शिवकेँ ग्यारह नाम द्वारा यथावकाश जलधारा चढबैत वस्त्रसँ शिवलिङ्गके बढियाँ सऽ पोछी। फेर आचमनार्थ जल दी आ वस्त्र समर्पित करी। नाना प्रकारके मन्त्रसँ भगवान्‌ शिवकेँ तिल, जौ, गेहूँ, मूँग आ उड़ीद अर्पित करी। फेर पाँच मुखवाला परमात्मा शिवकेँ पुष्प चढाबी। प्रत्येक मुखपर ध्यानके अनुसार यथोचित अभिलाषा कयके कमल, शतपत्र, शंखपुष्प, कुशपुष्प, धत्तूर, मन्दार, द्रोणपुष्प, तुलसीदल तथा बिल्वपत्र चढाकय शंकरकेँ विशेष पूजा करी। अन्य सब वस्तुकेँ अभाव रहलापर शिवकेँ केवल बिल्वपत्र टा अर्पित करी। बिल्वपत्र समर्पित भेलासँ शिवकेँ पूजा सफल होइछ। तत्पश्चात्‌ सुगन्धित चूर्ण तथा सुवासित उत्तम तैल (इत्र आदि) विविध वस्तु सभ बहुत हर्षके संग भगवान्‌ शिवकेँ अर्पित करी। फेर प्रसन्नतापूर्वक गुग्गूल आ अगुरु आदिक धूप निवेदन करी। तदनन्तर शंकरजीकेँ घी संग जरैत दीप दी। एकर बाद निम्नांङ्कित मन्त्रसँ भक्तिपूर्वक फेरो अर्घ्य दी आ भाव-भक्तिसँ वस्त्रद्वारा हुनक मुखकेर मार्जन करी –

अर्घ्यमन्त्र:
रूपं देहि यशो देहि भोगं देहि च शंकर।
भुक्तिमुक्तिफलं देहि गृहीत्वार्घ्यं नमोस्तु ते॥

प्रभुजी! शंकरजी! अपनेकेँ नमस्कार अछि। अहाँ एहि अर्घ्यकेँ स्वीकार करैत हमरा रूप प्रदान करू, यश प्रदान करू, भोग प्रदान करू आ भोग तथा मोक्षरूपी फल प्रदान करू।

एकर बाद भगवान्‌ शिवकेँ भाँति-भाँतिके उत्तम नैवेद्य अर्पित करी। नैवेद्यके पश्चात्‌ प्रेमपूर्वक आचमन कराबी। तदनन्तर साङ्गोपाङ्ग ताम्बूल बनाकय शिवकेँ समर्पित करी। फेर पाँच बत्तीके आरती बनाकय भगवान्‌केँ देखाबी। एकर संख्या एहि प्रकारें अछि: पैरमें चैर बेर, मुखके समक्ष एक बेर तथा सम्पूर्ण अंगमें सात बेर आरती देखाबी। तत्पश्चात्‌ नाना प्रकारके स्तोत्रसँ प्रेमपूर्वक भगवान्‌ वृषभध्वजके स्तुति करी। तदनन्तर धीरे-धीरे शिवकेँ परिक्रमा करी। परिक्रमाके बाद भक्त पुरुष साष्टाङ्ग प्रणाम करी आ निम्नाङ्कित मन्त्रसँ भक्तिपूर्वक पुष्पाञ्जलि दी:

पुष्पाञ्जलिमन्त्र:
अज्ञानादि वा ज्ञानाद्यद्यत्पूजादिकं मया।
कृतं तदस्तु सफलं कृपया तव शंकर॥
तावकस्त्वद्‌गतप्राणस्त्वच्चित्तोऽहं सदा मृड।
इति विज्ञाय गौरीश भूतनाथ प्रसीद मे॥
भूमौ स्खलितपादानां भूमिरेवावलम्बनम्‌।
त्वयि तातापराधानां त्वमेव शरणं प्रभो॥

‘शंकर! हम जे अज्ञानसँ या जाइन-बुझि जे पूजन आदि कयलहुँ अछि, ओ सभ अपनेक कृपासँ सफल हो। मृड! हम अहाँके छी, हमर प्राण सदैव अहींमें लागल अछि, हमर चित्त सदैव अपनेक चिन्तन करैत अछि – से बुझैत हे गौरीवर! हे भूतनाथ! अहाँ हमरापर प्रसन्न होउ। प्रभुजी! धरतीपर जेकर पैर लड़खड़ाइत छैक, ओकरा लेल धरती मात्र सहारा बनैत छैक; तहिना जे अपनेक प्रति अपराध कयलक अछि ओकरा लेल अपनहि शरणदाता थिकहुँ।’

– इत्यादि रूपसँ बहुत-बहुत प्रार्थना करैत उत्तम विधिसँ पुष्पाञ्जलि अर्पित कयला उपरान्त पुनः भगवान्‌केँ नमस्कार करी। फेर निम्नाङ्कित मन्त्रसँ विसर्जन करबाक चाही:

विसर्जन:
स्वस्थानं गच्छ देवेश परिवारयुतः प्रभो।
पूजाकाले पुनर्नाथ त्वयाऽऽगन्तव्यमादरात्‌॥

‘देवेश्वर प्रभो! आब अपने परिवारसहित अपन स्थानलेल प्रस्थान करी। नाथ! जखन पूजाके समय हो, तखन फेरो अहाँ एतय सादर पदार्पण करी।’

एहि तरहें भक्तवत्सल शंकरजीकेँ बेर-बेर प्रार्थना करैत हुनकर पूजाके विसर्जन करी आ ओहि जलकेँ अपन हृदयमें लगाबी तथा मस्तकपर चढाबी।

ऋषिगण! एहि तरहें हम शिवपूजनके सभ विधि बता देलहुँ, जे भोग आ मोक्ष देवयवाला अछि। आब आरो कि सुनय चाहैत छी?? – ब्रह्माजी!

हरिः हरः!

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२० फरवरी २०१२
भक्तगण,

अपार हर्षके साथ आपको महाशिवरात्रिके शुभ अवसर पर शिवलिङ्ग पूजनोत्सवके लिये आमंत्रित कर रहे हैं।

कृपया पूजन सामग्रीका इन्तजाम स्वयं करें: रोली, अबीर, बुक्का, नारा, केसरिया, चन्दन, चावल, यज्ञोपवित, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी), वस्त्र-उपवस्त्र (धोती, अंगोछा, दुपट्टा), माला, छुट्टा फूल, बिल्वपत्र, धतूरा, विजया (भांग), पान, सुपारी, लौंग, इलायची, इत्र, ऋतुफल (केला, सन्तरा, सेव आदि), कपूर, धूपबत्ती, घृत-दीप, रूई, दियासलाई, मिठाई, नारियल, पंचमेवा, दीया, कसोरा, गंगाजल।

ध्यानम्‌:
वन्दे महेशं सुर-सिद्धि-सेवितं भक्तैः सदा पूजित-पादपद्यम्‌।
ब्रह्मेन्द्र-विष्णु-प्रमुखैश्च वन्दितं ध्यायेत्‌ सदा कामदुघं प्रसन्नम्‌॥

पूजा-विधान

प्रातः कृत्यादिकं कृत्वां, पूजागृहं गत्वा, आसने उपविश्य, दीपं प्रज्वाल्य, ‘ॐ दीं दीपनाथाय नमः’ इति दीपं सम्पूज्य,

ॐ अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशः।
सर्वेषामनुरोधेन पूजाकर्म समारभेत्‌॥
इति भूतापसर्पणं कृत्वा, पूजामारभेत्‌। तद्यथा –

ध्यानम्‌ –
ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं
रत्‍नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्‌।
पद्मासीनं समन्तात्‌ स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिल-भयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्‌॥१॥
बन्धूकसन्निभं देवं त्रिनेत्रं चन्द्रशेखरम्‌।
त्रिशूलधारिणं देवं चारुहासं सुनिर्मलम्‌॥२॥
कपालधारिणं देवं वरदाभय-हस्तकम्‌।
उमया सहितं शम्भुं ध्यायेत्‌ सोमेश्वरं सदा॥३॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, ध्यानं समर्पयामि।

आवाहनम्‌ –
आयाहि भगवन्‌ शम्भो! शर्व त्वं गिरिजापते।
प्रसन्नो भव देवेश! नमस्तुभ्यं हि शङ्कर! ॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, आवाहनं समर्पयामि।

आसनम्‌ –
विश्वेश्वर महादेव राजराजेश्वरप्रिय! ।
आसनं दिव्यमीशान दास्येऽहं तुभ्यमीश्वर! ॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, आसनं समर्पयामि।

पाद्यम्‌ –
महादेव महेशान महादेव परात्पर! ।
पाद्यं गृहाण मद्दतं पार्वतीसहितेश्वर! ॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, पाद्यं समर्पयामि।

अर्घ्यम्‌ –
त्रयम्बकेश सदाचार जगदादि-विधायक! ।
अर्घ्यं गृहाण देवेश साम्ब सर्वार्थदायक! ॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, अर्घ्यं समर्पयामि।

आचमनीयम्‌ –
त्रिपुरान्तक दीनार्त्तिनाशक श्रीकण्ठ शाश्वत।
गृहाणाचमनीयं च पवित्रोदक – कल्पितम्‌॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, आचमनीयं समर्पयामि।

गोदुग्धस्नानम्‌ –
मधुरं गोपयः पुण्यं पटपूतं पुरस्कृतम्‌।
स्नानार्थं देवदेवेश गृहाण परमेश्वर! ॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, गोदुग्धस्नानं समर्पयामि।

दधिस्नानम्‌ –
दुर्लभं दिवि सुस्वादु दधि सर्वप्रियं परम्‌।
पुष्टिदं पार्वतीनाथ! स्नानाय प्रतिगृह्यताम्‌॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, दधिस्नानं समर्पयामि।

घृतस्नानम्‌ –
घृतं गव्यं सुचि-स्निग्धं सुसेव्यं पुष्टिमिच्छताम्‌।
गृहाण गिरिजानाथ स्नानाय चन्द्रशेखर! ‌॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, घृतस्नानं समर्पयामि।

मधुस्नानम्‌ –
मधुरं मृदु मोहघ्नं स्वरभङ्गविनाशनम्‌।
महादेवेदमुत्सृष्टं तव स्नानाय शङ्कर! ॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, मधुस्नानं समर्पयामि।

शर्करास्नानम्‌ –
तापशान्तिकरी शीता मधुरास्वादसंयुता।
स्नानार्थ देवदेवेश! शर्करेयं प्रदीयते॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, शर्करास्नानं समर्पयामि।

शुद्धोदकस्नानम्‌ –
गङ्गा गोदावरी रेवा पयोष्णी यमुना तथा।
सरस्वत्यादि-तीर्थानि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

वस्त्रम्‌ –
वस्त्राणि पट्टकुलानि विचित्राणि नवानि च।
मयाऽऽनीतानि देवेश! प्रसन्नो भव शङ्कर! ॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, वस्त्रं समर्पयामि।

यज्ञोपवितम्‌ –
सौवर्णं राजतं ताम्रं कार्पासस्य तथैव च।
उपवीतं मया दत्तं प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम्‌॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, यज्ञोपवितं समर्पयामि।

गन्धम्‌ –
सर्वेश्वर जगद्वन्द्य दिव्यासन-समास्थित! ।
गन्धं गृहाण देवेश! चन्दनं प्रतिगृह्यताम्‌॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, गन्धं समर्पयामि।

अक्षतान्‌ (गन्धोपरि शुक्लाक्षतान्‌) –
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठाः शुभ्रा धूताश्च निर्मलाः।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर! ॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, अक्षतान्‌ समर्पयामि।

पुष्पाणि –
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो! ।
मयाऽऽहृतानि पूजार्थं पुष्पाणि प्रतिगृह्यताम्‌॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।

बिल्वपत्राणि –
बिल्वपत्रं सुवर्णेन त्रिशूलाकारमेव च।
मयाऽर्पितं महादेव! बिल्वपत्रं गृहाण मे॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, बिल्वपत्राणि समर्पयामि।

धूपम्‌ –
वनस्पतिरसोत्पन्नो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्‌॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, धूपं समर्पयामि।

दीपम्‌ –
आज्याक्त-वर्त्ति-संयुक्तं वह्निना दीपितं तु यत्‌।
दीपं गृहाण देवेश! त्रैलोक्यतिमिरापह! ॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, दीपं समर्पयामि।

नैवेद्यम्‌ –
अपूपानि च पक्वानि मण्डका वटकानि च।
पायसं सूपमन्नं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्‌॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, नैवेद्यं समर्पयामि।

आचमनीयम्‌ –
पानीयं शीतलं शुद्ध गाङ्गेयं महदुत्तमम्‌।
गृहाण पार्वतीनाथ! तव प्रीत्या प्रकल्पितम्‌॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, आचमनीयं समर्पयामि।

करोद्वर्त्तनम्‌ –
कर्पूरादीनि द्रव्याणि सुगन्धीनि महेश्वर! ।
गृहाण जगतां नाथ! करोद्वर्त्तनहेतवे॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, करोद्वर्त्तनं समर्पयामि।

फलानि –
कूष्माण्डं मातुलिङ्गं च नारिकेलफलानि च।
गृहाण पार्वतीकान्त सोमशेखर शङ्कर! ॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, फलानि समर्पयामि।

स-पूगीफल-ताम्बूलादीनि –
पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्‌।
गृहाण देवदेवेश द्राक्षादीनि सुरेश्वर! ॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, स-पूगीफल-ताम्बूलादीनि समर्पयामि।

दक्षिणाम्‌ –
हिरण्यगर्भ – गर्भस्थं हेमबीजं – समन्वितम्‌।
पञ्चरत्‍नं मया दत्तं गृह्यतां वृषभध्वज॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, कर्पूर-नीराजनं समर्पयामि।

नीराजनम्‌ –
अग्निर्ज्योति रविर्ज्योति – र्ज्योतिर्नारायणो विभुः।
नीराजयामि देवेश पञ्चदीपैः सुरेश्वर! ॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, कर्पूर-नीराजनं समर्पयामि।

पुष्पाञ्जलिः –
हर विश्वाखिलाधार निराधार निराश्रय! ।
पुष्पाञ्जलिं गृहाणेश सोमेश्वर! नमोस्तु ते॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।

प्रार्थना –
हेतवे जगतामेव संसारार्णवसेतवे।
प्रभवे सर्वविद्यानां शम्भवे गुरवे नमः॥
साम्ब-सदाशिवाय नमः, क्षमा-प्रार्थनां समर्पयामि।

हरिः ॐ!

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२० फरवरी २०१८
परती खेत – लहलहाइत खेत

देखहक भैया लोकक हाल, अपने करनी भेल बेहाल
एक खेत हरो नहि जोतलक, दोसरके भेल मालामाल!

जेहने रहतैक हाल खेतमें तेहने बढियां बनतैक जीत
बिहैन के नस्लक बेहतरी, तेतबा सुन्दर ताल-बेताल!

सोच अपन दृष्टिकोण अपन छैक परती छोड़य के पाछू
गहुँमक सिजन बितियो जेतैतऽ दोसर बाली हेतै बहाल!

कतहु कलम छै गाछी छै सभ ठाम लगै छै अलगे वस्तु
सभ फल-फसल भोग बनैछै नहि अछि केओ कतहु बेहाल!

ईशक खेती जीवक रचना एहने तर्ज पर देखियौ भजार
सभ-किछु में जे जाइतक झगड़ा बन्द करू भारी जंजाल!

हरिः हरः!

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२२ फरवरी २०१२
Dear Mr. Hemant Jha & Vishwa Maithil Sangh – Delhi!

I am very glad to read your repeated message at several Facebook pages as below:

Quote:
Hemant Jha
Vishwa Maithil Sangh officially announces……..Bihar Shatabdi Mahotasav would be celebrated on 18th March 2012, Sunday
Time : 11am – 5pm
Venue: Sant Nirankari Samagam Ground near Burari crossing, Delhi
Chief Guest : Honerable Chief Minister of Bihar, Sh. Nitish Kumar

Jai Mithila……Jai Bihar…..Jai Bharat ! – Unquote!

There are some questions every Maithil seeks answers from Bihar and every Bihari leaders.

1. Why Bihar has ignored Mithila and its rich heritage to be included in recent Bihar Geet officially declared by Government of Bihar – especially during the leadership of Nitish Jee? Is it repeat of Ajaatshatru’s attack on Mithila? Is it biases against making Mithila deprived of any identity in coming future?

2. Maithili is well recognized language and 26th in the list of world languages by number of speaking this language. Why then end the era of education in primary schools for Maithili?

3. Even the Supreme Court of India rejected the appeal of Government of Bihar against verdict of Patna High Court that in favor of Maithili – then why no right to education in Maithili medium and why such contempt of the Supreme Court and High Courts of Justices? What does this attitude prove of Bihar for Maithili and Mithila?

4. It may be true that people demanding a separate state of Mithila have been following the decency and seeking resolution through peaceful demonstration at Delhi and otherwise but not so much in Mithila – however, the adamant attitude being shown by responsible governments of state and center for not declaring special development packages of Mithila region; does it indicate the provocation by states for inviting a blasting approach from Maithils which may also contain several types of damaging and blood shedding protests, movements, blockades, etc.?

5. Mithila since time eternal is known as hub of education – why it is thrown to be such poor that Maithil teachers are migrating to other parts of nation and world? Why can’t government think of renewing that culture within Mithila alone? Can the Videha – the Yajnavalkya – the Gaargi – the Maittreyi – the Mandan – the Ayachi – the Bharati – the Vidyapati – the all famous entities who not only contributed for Mithila but for entire world not be accommodated in model universities of Mithila alone?? The one Lalit Narayan Mithila University got olden and there are no additional world class standards added here – no international faculties – the baccalaureate – or even the Tantra Vidya, Jyotish Vidya, Arthashastra, Raajneetishastra, Nyayshastra and several higher scriptural based fundamentals could establish in Mithila’s institutions to attract the world communities to come here and learn those things?? Why no care on these values really?? Why such dishonesty?? Why not serious feasibility studies that would promote more people of Mithila to know the value of their ancient highest culture and traditions rather than wasting brains in putting odd labors in garments and factories of NCR?

6. There are talks and gossips going for fisheries and Makhana farming will be industrialized… what is the progress?

7. In recent times, honorable CM – Bihar visited core district of Mithila – Madhubani and declared several projects – quite worthy and precious projects – indeed a welcome step from Government of Bihar is done… why not the same processes continue for all the districts in Mithila region having miraculous and glorious potentials to flourish?

I believe, I have put up these questions both for introspection of the government of Bihar and the entrepreneurs of Mithila region. I have serious complains and dissatisfaction with self-developing attitude of Maithils who corner themselves from participating in above process and feel happy with little they earn from the breads of others by exchanging such a precious intellectuality and the worthy inner capabilities elsewhere. They must also realize their duties and rights for Mithila. I believe, Mithila still lives just because a very few people in Mithila still think in similar direction and they do too. Let people not reach to the conclusion – Love Mithila or Leave Mithila type slogans and action. Let tolerance still remain within limits. Once these tolerances are crossed the borders, I believe, there will be a very serious demand of what Dr. Laxman Jha raised ever. Let things get controlled in time. Let it not be so late – please. Thanks.

Harih Harah!

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२३ फरवरी २०१२
स्वतंत्र विचार

नेपालमें बहुदल प्रजातंत्र लेल संघर्ष आ तदोपरान्त भ्रष्टाचार, भाइ-भतीजावाद आ राष्ट्रके सही दिशामें नेतृत्व देबयमें कमी-कमजोरी के चलते जनतामें राजनेता प्रति अविश्वास – अचानक राजा विरेन्द्र के सपरिवार मारल जेनाय आ फेर राजा ज्ञानेन्द्र द्वारा सत्तासीन होयब – राष्ट्रमें राजाके छवि एक कर्मठ शासकके रूपमें स्थापित करय के प्रयास – पूरा अधिराज्य भ्रमण करब आ जनतामें विश्वास लेल एक आशा जगायब; समानान्तर दोसर पंक्तिमें मुख्यधाराके नेतृत्वकर्ता केर अराजक गतिविधि व राष्ट्रके अनिश्चितता के तरफ जाइत देखि माओवादके शुरुआत आ क्रमशः जनयुद्ध के एहेन उग्र रूप जाहिमें राज्यके आवश्यक प्रतिरोध आ दमन के बावजूद अतिशय वृद्धि आ नाहकमें बीसो हजार जनता के युद्धमें शहीद होयब…. तदोपरान्त जन-आन्दोलन आ अन्तिम अहिंसात्मक सत्याग्रह जाहि के आगू नेपाल नरेश द्वारा समर्पण आ जनताके अधिकार जनते के हाथमें समर्पित करब – पुनः नेपालमें गणतंत्रके स्थापना आ माओवादी दलके मुख्य भुमिका में हावी होयब – पुनः तेसर धारा मधेश के दमन विरुद्ध सुसुप्त लड़ाई के बिस्फोट आ खतरनाक आन्दोलन जाहिमें मधेशीके मुक्ति के बात सामने आयब आ राज्य द्वारा दमनके प्रयास असफल भेलापर समुचित सम्बोधन आ फेर जाति-वर्ग-विभेद के अन्त करैक मुक्तिगामी अनेको बात विभिन्न दिशा सँ शुरु होयब – कतेक मूलधारमें रहैत संघर्ष करब आ कतेक अन्य बाट सेहो अपनायब – उचित-अनुचित अनेको तरहें नेपालमें अस्त-व्यस्त शासन प्रणाली बनब, व्यवस्था होयब, आ अन्तरिम संविधान के निर्माण भेला उपरान्तो कोनो प्रकार के संतुष्टि केम्हरो नहि होयब… अपरिपक्व राजनीतिज्ञ आ दूरदृष्टिके अभाव संगहि मिथ्याचार अर्थात्‌ अन्दर किछु आर आ बाहर किछु आर के प्रदर्शन करैत नेपाल में नव-संविधान आ शान्तिके प्रयास निरंतरता पाबि रहल अछि। झगड़ा सुलझाबय लेल सभ के संग न्याय के भरोसा देल जा रहल अछि। एतय तक जे अनेको मसौदापर निष्पक्ष आ समावेशीपन के सेहो विश्वास दियाओल जा रहल अछि। लेकिन अप्रत्यक्ष रूपे किछु बात असहज – अप्रत्याशित – आशंकापूर्ण – अविश्वासपूर्ण आदि सेहो भऽ रहल छैक। एकर वास्तविकता भले कोनो वैमनस्यतापूर्ण नहि होइक, लेकिन अबस्था एतेक अराजक छैक जे एक-दोसरपर विश्वास कायम करब कठिन छैक। ई जाति-वर्ग विभेद विरुद्ध के झगड़ा एतेक उलझनवाला होइत छैक जे मधेशी के पहाड़ीपर – पहाड़ीके मधेशीपर – मधेशीके थारूपर – थारू के मधेशीपर… राई, लिंबु, तमाङ्ग, नेवार, खस, आदि अनेको पहचान के अस्तित्व लेल लड़निहारके आपसमें अविश्वास के माहौल छैक। होइत छैक जे हमर अधिकार के फेरो दमन नहि भऽ जाय… राष्ट्र कोन दिशामें जा रहल छैक, आर्थिक प्रगति वा विकास के गति कोना बदतर ढंग सऽ रुकल छैक, अनिश्चितताके दौर हर तंत्रके खराब केने जा रहल छैक – एहि सभपर कोनो खास चिन्ता करनिहार बुद्धिजीवीवर्ग के चौ तक नहि अलगय दैत छैक मुदा अपन-अपन-अपन करैत लड़यवाला के संख्या दिन-प्रति-दिन बढल जा रहल छैक।

आर जे होइ, लेकिन एक बात स्पष्ट छैक जे यथास्थितिवादी शासकवर्गके मानसिकता कतहु ने कतहु बेईमान जरुर छैक। सभसँ जड़ियायल संस्था राजसंस्था भले चुप भऽ गेल हो – भले अपन उपस्थिति यदा-कदा कोनो-कोनो अवसरपर मात्र उजागर करैत हो, मुदा अन्य विभिन्न वर्ग दोसरके मुक्तिसऽ ईर्ष्या जरुर करैत छैक आ फेर सऽ नेपाल में वैह पुरान अपन एकल-सम्राज्यके अबस्था सृजन करय लेल आतुर जरुर छैक। एहेन लोक संक्रमणके अबस्था के संकुचित नहि करैत एकरा आरो विस्तृत करैक लेल विभिन्न अन्तर्घातके काज आ षड्‌यन्त्र कय रहल छैक जाहि सँ कहियो ओझरी सोझराउ नहि आ फेर सऽ ओकरहि मीठ-तीत शासन कायम रहौक।

कतेको सरकार बनल आ बदलल – संविधान के बनब सेहो धीरे-धीरे एक निश्चित रूप तक पहुँचल। लेकिन एहि बीच किछु एहनो प्रयास देखल जा रहल छैक जे सहमति के नहि बल्कि विमतिके पसारयवाला आ रहस्यपूर्ण तरीका सँ पुनः पुरान अबस्था के बहाल करयवाला होइक। हालहि जयप्रकाश गुप्ताजी के अपन विभिन्न मंत्रित्वकालमें अर्जित संपत्ति भ्रष्टाचार के माध्यम सऽ भेल से न्याय विशेष अदालतके फैसला के विरुद्ध निर्धारित करब – अन्तर-अदालत द्वंद्वके परिचायक अछि। एक अदालत द्वारा जेपी निर्दोष प्रमाणित होइत छथि आ पुनः अदालतके उच्च तह में विशीष्ट न्यायिक खंडपीठ द्वारा दोषी प्रमाणित होइत छथि – एहेन आरो किछु फैसला एक सन्देह उत्पन्न करैत छैक जे कहीं न्यायपालिका में सेहो कोनो रूढिवादिता वा यथास्थितिवादी विचारधारा तऽ कार्यरत नहि छैक। ई सन्देह के अबस्थामें हम स्वयंके देखि रहल छी आ विस्मित छी जे जेपी समान प्रखर आ प्रजातंत्रवादी नेताकेर राजनीतिक हत्या तऽ नहि थिक? आशंकाके अबस्थामें नवचेतना के संचरण आ अनुसंधानके कार्य गहराई में जा के होइक से कामना करैत छी। जेपी सऽ बेहतर वा कम भ्रष्ट तऽ हम कोनो नेता वा व्यक्ति-विशेष के नहि देखि रहल छी… लेकिन ई हमर भ्रम भऽ सकैत अछि। नेपालके अबस्थामें सुधार लेल हमहुँ आशावादी छी आ रहब।

Harih Harah!

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२३ फरवरी २०१२
स्वच्छ हृदय – स्वस्थ विचार

मनुष्य वा जीव वा एतय तक जे निर्जीवरूपा प्रकृति के अपन स्वभाव, स्वरूप, संरचना, संस्कार, सुन्दरता, सजीवता, सुरम्यता, सृजनशीलता… अलग-अलग होइत छैक। एहि सभके लेल व्यवहार एकमात्र परिचायक होइत छैक जे कतय स्वस्थ विचार भेल आ कतय अस्वस्थ विचार। मानसिकता आ नैतिकता – एहि दू के सहारे व्यवहार परखब सहज छैक। दोसरके व्यवहार तखनहि परखल जा सकैत छैक जखन अपन व्यवहार परखि संयमित – नियंत्रित निज-स्वच्छता स्थापित कैल गेल हो। ताहिठाम मात्र दोसरपर आलोचना वा प्रशंसा शोभा पबैत छैक। जाबत हम स्वयं अपन विचार के स्वच्छ नहि बनयलहुँ अछि, हमरा नैतिक रूपमें कोनो आनपर कहियो टिप्पणी करयके अधिकार नहि अछि। एतय तक जे अपन विचार के स्वच्छता लेल हृदयमें स्वच्छता जरुरी, एहि बातके आत्मसात्‌ कैल व्यक्ति मात्र अधिकार पबैछ जे अन्यके चरित्र-चित्रण करय; आ ओकर चित्रण अक्सरहाँ सुन्दर आ मान्य होइत छैक।

आध्यात्म अनुसार हृदय ईश्वरके बास-स्थल थीक, एकरा अस्वस्थ करबा लेल निकृष्ट कर्म करब मूल बात थीक।

धन्यवाद!

हरिः हरः!

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२६ फरवरी २०१२
भैगनीक दहेज मुक्त विवाह
Dahej Mukt Vivah:

Bandhugann! jena kahane rahi, hamar bhaigni ke vivah dahej mukt parsu 24 February Isvar ke aseem anukampaa sa puraa bhel.

Ehi me kichhu baat ke lel samaaj hamaraa dosh delain, ahu sabh ke samaksh rakhait chhi, kanek vichaaru aa nyay karay jau. 

1. Jahiya ham larka ke parichay aa prastaav sunlahu, abhibhaavak sang baat kayalahu ta aadarsh vivah karab aa dahej ke paai nahi chaahi, muda vyavahaar je aavashyak se jarur pura kail jaay e aashaa rakhait chhi.

2. Ham apan vivah ke samay seho bilkul yaih prastaav rakhne rahi aa hamra pasand paral. Apan bhaigni ke vivah ham ehne pariwar me karab se nirnay lelahu.

3. Larkavaalaa ke ghar 5 gote kutmaiti ke haami uparaant pahuchal gel aa aavashyak upahaar jaahi me larka ke pariwar ke har sadasya lel kapara, larka ke kapara, kichhu sona ke gahana, larka ke lel aaro kichhu-kichhu upahaar aadi la ke gelahu aa tadoparaant varta shuru bhel.

4. Larka ke pita ke ichhaa je putohu ke kam se kam gala me haar, kaan me baali/jhumka, naak me nathiya, mangalsutra, paayal, bichhiyaa… aa je saamaanyatayaa gahanaa del jaait chhaik se debain. Lekin etek vyavasthaapan ham aha ke taraf sa kay deb kaaran jameen bechi aha apan e sabh shoukh puraa karab se hamaraa pasinn nahi parat – se ham swayam kahalahu. Baat tay bha gel.

5. Takhan vivah me je bariyaati aa dhumdhaam sa karay ke hunak vichaar dekhaliyain seho hamara swayam ichhaa chhal je samajiktaa me pratishthaa anuroop seho kichhu baadhyataa aa kartavya hamar sabh ke achhi aa ham sabh oho pura karab, kahaliyain. Bahut prasann bhelaa.

6. Larka taraf sa eko pai ke kharch nahi karay parain, se prayaas karait ham eho gachhaliyain je vivah ke raatik kharcha, chaturthi ke bhaar, dwiraagmaan ke saath aadi sabh ham sabh swayam karab aa prayaas e rahat je sabhta neeke karab. Kutumb ke khushi ke paraawaar nahi rahal, aa hamhu sabh khush bhelahu. Dwipakshiy sauhaardra kaayam bhel. Bhojan-bhaat (Khaanpeen) bhel. Vidayi me 5 tuk vastra bhetal aa lagbhag 4 mahina ke bhitar vivah karab seho tay bhel.

7. Bariyaati 300 km dur sa autaa aa sankhya lagabhag 50 rahat, 1 sanjhu je aai-kaailh chalay laagal achhi se shayad aha sabh ke suit nahi karat muda ki nik hetaik se kanek vichar karay jaau…. well… hamhu 1 shanjhu ke jhamaaral lok siddhaant banene je dur sa bariyaati aa 1 sandhya bhojan karabait vidayi karab kanek nik baat nahi… se ham puraanaa tarz par chalab gaichh lelahu. 

8. Bariyaati ke sankhya 50 go rahalaa par vidayi ke bhaar seho lelahu.

9. Sabh mila ke vivah me 5-6 laakh kharch bhel. Pareshaani bhel lekin vachanbaddhtaa ke nirvaah lel kono shikaayat nahi bhel. Samucha samaj me pratishtha bhel lekin bahut lok ehi pattern ke dahej sa badtar bujhalaa… 

10. Ma Bhagavati aa samast subhechhujan ke aashish sa sabh kaarya sa nivrutt bhelahu aa kichhu hisaab-kitaab maatra baaki achhi.

11. Dunu nav-vivaahit jora aashirvaadit rahait apan nav jeevan sukhmay aa bhaktipoorvak jeebaith se kamana.

Aha sabh ke raay me e vivah ke ki kahal jaay? Aadarsh Vivah – Dahej Mukt wa kichhu aar?

Harih Harah!

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२७ फरवरी २०१२
अत्यन्त प्रसन्नता के संग अहाँ सभ के सूचित करी जे आइ मैथिली फिल्म्स नामक ग्रुप पर सौराठ सभागाछी आ एहिठामक पवित्र अधिकार निर्णयके आ पंजीकरणके परंपरा पर चर्चा चलेने रही आ संवाद लेखन लेल आमंत्रित केने छलहुँ लेखकगण सभ सँ… ताहि क्रम में एक फिल्म निर्देशक श्री यशेन्द्र प्रसाद (Yashendra Prasad) द्वारा अन्तर्राष्टीय जगत्‌केँ परिचायक वृत्त-चित्र निर्माण हेतु प्रायोजक के तलाश हेतु कहल गेल आ लगभग दस लाख रुपया के सहयोग के माँग राखल गेल अछि। यदि एहि तरहक प्रायोजनमें केओ इच्छूक होइ तऽ अपन नाम प्रस्तावित करी। ओना ई प्रोजेक्ट एतेक सान्दर्भिक व सारगर्भित छैक जाहिमें हम सभ दहेज मुक्त मिथिला व अन्य संस्था सभके संयुक्त प्रयास सऽ सफलतापूर्वक निष्पादित कय सकैत छी। अहाँके सुझाव सेहो मूल्यवान अछि। कृपया सहयोग हेतु अपन विचार प्रकट करी।

हरिः हरः!

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२७ फरवरी २०१२
As One Thinks, So One Receives

A magician was showing his tricks before a king. Now and then he exclaimed: “Come confusion! Come delusion! O King, give me money! Give me clothes!” Suddenly his toungue turned upward and clove to the roof of his mouth. He experienced kumbhaka. He could utter neither word nor sound, and became motionless. People thought he was dead. They built a vault of bricks and burried him there in that posture. After a thousand years someone dug into the vault. Inside it people found a man seated in Samadhi. They took him for a holy man and worshipped him. When they shook him his toungue was loosened and regained its normal position. The magician became conscious of the outer world and cried, as he had a thousand years before: “Come confusion! Come delusion! O King, give me money! Give me clothes!”

God is the Kalpataru, the wish-fulfilling tree. You will certainly get whatever you ask of Him. But you must pray standing near the Kalpataru. Only then will your prayer be fulfilled. But you must remember another thing. God knows our inner feeling. A man gets the fulfilment of the desire he cherishes while practising Sadhana. As one thinks, so one receives.

Harih Harah!

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१ मार्च २०१२
ब्राह्मणक दुर्दशा आ ब्राह्मण स्वयं जिम्मेवार!

आजुक कलियुगमें अल्पसंख्यक ब्राह्मण संग घोर दुर्व्यवहार आब सरेआम देखल जा सकैत अछि। आ ब्राह्मणमें तेजके एहने कमी भेल अछि जे ओ एहि दुर्व्यवहार के संग होरी गबैत रहैत छथि आ अपना आपके बुधियार आ ब्राह्मणके पक्ष लेनिहार तऽ ब्राह्मण रहितो सवर्ण के हितमें आन्दोलन करनिहार आदि बुझैत मने-मन गुनधुनमें लागल रहैत छथि। ब्राह्मण के अपन वृत्ति तऽ छोड़िये देलाह – जे समाजिक संवरणमें योगदान दैत छलाह ताहू में स्वयं ऊपर विभिन्न आरोप-प्रत्यारोप देखि आब घर सँ बाहर तक निकलयमें हिनका लोकनिकेँ अनावश्यक बुझैत छन्हि। एहि जातिमें नहि तऽ एकता संभव भेल आ नहिये कोनो विद्रोह के भावना। जेम्हर देखू तेम्हर लोक ब्राह्मणकेँ गरियाबयमें लागल छथि। गैर पढनिहार पहिल व्यक्ति सेहो ब्राह्मण स्वयं होइत छथि। एहि ब्राह्मणकेँ बुझैत छन्हि जे हम सवर्णके ठीकेदारी कय रहल छी, जखन कि सवर्ण के एहेन कोनो माँग यथार्थके धरातल पर हम एतेक दिन में कतहु नहि देखल अछि। समाजमें ब्राह्मणके बौद्धिक क्षमता के सभ सम्मानके दृष्टि सऽ देखैत छैक, बेशक स्वभाव होइछ जे ईर्ष्यालू बनब आ बढल लोक संग अनेरौ कऽ प्रतिस्पर्धा करब, ढूइस लड़य लेल जायब आ जखन हरेस खायब तखन लागब गरियाबय जे ब्राह्मणे सभ सभके दमन केलखिन। यैह हाल होइत छैक एकहि परिवारमें यदि दस भैयारी रहल आ केओ कमजोर क्षमतावान अछि तऽ सभ गोटा ओकरा तरफ तकैत बेचारा-बेचारा दस बेर बाजल आ ओकर ताहि दुर्दशाके जिम्मेवारी अन्य सबल भाइ पर देलक। एहि तरहें सबल भाइ दोषी बनैत छथि। यदि सबल अपन निर्बल भाइके डेन पकड़ि आगू विकास हेतु बेईमान बनलाह तखन दोषारोपण जायज छन्हि – लेकिन सामान्य परिस्थितिमें सबल भाइ के दोष मढब मुदा निर्बल भाइ के बेहुदगी आ कमजोर प्रदर्शन लेल कोनो सोच वा सार्थक दिशा प्रदान नहि करब केहेन मानसिकताके परिचायक अछि, ताहिपर आत्ममंथन करू।

हमर एक हिदायत अछि ब्राह्मण आ सभ के लेल – जाहि जगह समुदाय के संग दुर्व्यवहार होइ तेहेन जगह के बहिष्कार करू। आइकाल्हि विदेह नामक ग्रुप पर काफी विरोधाभासी आ राजनीतिक बातमें ब्राह्मणके समूहगत बदनाम कैल जा रहल अछि। एहि पाछू कतेक स्वार्थ छिपल अछि तेकर समस्त जानकारी विज्ञ मैथिल के पास उपलब्ध अछि। उदाहरणार्थ विदेह के १०१म अंक के संपादकीय पढू – एहिमें कतेक पूर्वाग्रही आ बतहपनीवाला भाषाके प्रयोग अछि से सुस्पष्ट भऽ रहल अछि। लेकिन संगहि इहो बात स्पष्ट अछि जे आखिर सहसंपादक शिव कुमार झा ‘टिल्लू’ अपन पिता स्व. कालीकान्त झा ‘बुच’ केर साहित्य जगत द्वारा भेल असम्मान के खब्बीस कोन-कोन बहाना सँ निकाललाह छथि। अहिना विदेह संपादक महोदय श्री गजेन्द्र ठाकुर के किछु दिन पूर्वक भड़ास के विषयमें अनुसंधान कयलापर पता चलल जे बहुत मोटगर-डटगर गहिंर पोथी ‘अन्तर्मनक कुरुक्षेत्र’ के रचना कयलाह मुदा ताहि पुस्तक के मैथिली महासागरमें कोनो विशिष्ट पहचान नहि देल गेल आ कि विदेह समानान्तर सम्मान के घोषणा करैत साहित्य अकादमी पर विभिन्न तरहक असंतोष प्रकट करय लगलाह। बात नाजायज छन्हि सेहो नहि, बहुत हद तक तर्कसंगत बात कहैत छथिन लेकिन बिख एतेक माथपर चढल छन्हि जे समूचा ब्राह्मण जातिके मैथिलीपर एकाधिकार देखय लगलाह। पाग-चानन-टीका सँ रिसाइत समूचा तंत्रपर आंगूर उठबय लगलाह। अपन आत्मनिरीक्षण कम आ दोसर के आइना बेसी देखाबय लगलाह। कुरहैर आ बाँस बीच वार्तालाप मोंन पारू आ हिनक विदेह द्वारा भड़ास आ ब्राह्मणके गरियायब – एहि बात पर गौर करू। मैथिली समुद्रमें हिनका द्वारा नव-नव सितुआ आ डोकी में मोती भैर-भैर जोड़ैक काज भऽ रहल अछि। हाइकू आ रुबाई संग गजल के बरसात नित्य दिन भऽ रहल अछि। दोसरके ब्राह्मणवादिता – पाग, टीका, चानन आदिके आरक्षित वर्ग लेल छैक से बतायल जा रहल अछि। मिथिलामें जे स्वागतमें पाग आ माला के प्रचलन छैक तेकरा सेहो ब्राह्मणवादिता संग जोड़ल जा रहल अछि। चाचा-भतीजावाद के दोषके ब्राह्मणवादिता संग जोड़ल जा रहल अछि। सवर्णके चिन्ता गैर-जरुरी तरीकामें जाहिर कैल जा रहल अछि। बिन बात के बतंगर सेहो बनायल जा रहल अछि। विरोधके समाजिक सीमा नांघल जा रहल अछि। जे एतेक समृद्ध मैथिलीके इतिहास ठाड़्ह केलक तेकर सभ योगदान के दरकिनार करैत घोर स्वार्थी आ छूद्र मानसिकताके संग एना गरियायब कदापि उचित नहि छैक। कतबो ब्राह्मण गलती कयलैथ – लेकिन हुनक जे योगदान के गहिराई छैक तेकरा नापब एहेन छूद्रतापूर्ण व्यवहार सऽ कदापि नहि अन्ठायल जा सकैत छैक। अतः हमर ई आह्वान अछि जे एहेन घोर उपद्रवी तत्त्वके प्रतिकार हो आ एहेन पत्रिका जाहिके द्वारा कोनो एक जातिपर कुठाराघात कैल जा रहल हो तेकर बहिष्कार कम से कम ब्राह्मण जरुर करैथ। यदि संभव हो तऽ एहि पत्रिकामें केवल सवर्णके योगदान सऽ विकास होइक – एहि लेल आवश्यक सहयोग कैल जाय।

हरिः हरः!

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हे द्विज – हे ब्राह्मण!

पृथ्वीपर अहाँ के बहुत भार वहन करय पड़ैछ आ एहि लेल ईश्वर अहाँमें विशिष्ट बौद्धिक क्षमता प्रदान केने छथि। जौँ अहाँ अपन एहि विशिष्टताके सदुपयोग नहि करब तऽ ब्राह्मणके ऊपर आजुक कलियुगमें जेना अत्याचार होवय लागल छैक से आरो बढिते जेतैक, सभ दिस अराजकता पसरतैक आ समूचा संसार स्वयं गलत-कर्तब्य करैत विनाशोन्मुख हेतैक। अतः ईश्वरके ऐश्वर्य जे अहाँ सभमें अछि तेकर सदुपयोग लेल अहाँमें संकल्प-शक्तिके कमी नहि आबक चाही। अहाँपर बहुत भार अछि। हम बेर-बेर लिखैत छी, कहैत छी – मनन करैत छी जे जाबत अहाँ अपन वृत्तिमें शुद्धता नहि आनब, संसारमें कदाचार, भ्रष्टाचार, अनाचार आदि कम नहि होयत। अतः चाणक्य बनिके चन्द्रगुप्त लेल ईमानदारी सँ राजनीति के संचालन करू।

धन्यवाद!

हरिः हरः!

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३ मार्च २०१२
मिथिलामें भगवतीके पातैर देबाक आ कुमैर-ब्राह्मण भोजन करेबाक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण परंपरा अछि आ फेर एक बेर फागुन पुर्णिमाके अवसर पर घरहि एहि दिव्य व्यवहार प्रति लोक जागरुक रहत – लेकिन अफसोस जे भक्तिमें कतेक कमी आबि गेल छैक जे आब शुद्ध दूध नसीब होयब असंभव छैक। पैसा के लोभ में लोक माल-जाल पोसितो शुद्ध दूध खयबाक-खुवेबाक नैतिकताके ताख पर राखि ईश्वर संग डेरायब तक बिसैर गेल छैक। कहू – कोना हेतैक मिथिला के जय? बाबा पहिले कचके दूध भैर फूलही लोटा – आजुक लीटर सऽ शायद ४ लीटर अँटैवाला सऽ भिनसरे दरबाजा पर पिबैत छलाह – पोता के फैरेक्स आ लैक्टोजेन के अलावा दोसर कोनो वस्तुमें शुद्धता नसीब नहि भऽ रहल छन्हि… आ ने एतेक होशियारी छन्हि जे दरबाजापर दू-चारि गो मालजाल पोसता आ दूध शुद्ध ग्रहण करताह।

तदापि होली के शुभकामना अछि, खूब रंग खेलाउ आ अशुद्ध दूध सऽ नहाउ… सुधाके बरसात भऽ रहल अछि, रसगुल्ला के अंबार लागि रहल अछि… लेकिन वैह दूधे अशुद्ध, दही अशुद्ध… सभटा अशुद्ध!

हरिः हरः!

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४ मार्च २०१२
होली आबि गेल अछि – जेम्हर-तेम्हर रंग-अबीर-हंसी-मसखरी आ होलीके नाम पर जेहो न सेहो सभ होवय लागल अछि। एगो सार्थक काज केलहुँ कि नहि से नहि पता मुदा ढाही खेलैक लेल होली के भैर साल के इन्तजार जे केलहुँ तेकर बदला आब ढूसि-ढूसि-चैत-चैत करैत जवानीके दौड़ैत खून के बताह कुकूर जेकाँ हुलकाबय लागलहुँ अछि। आबि गेलै न समय – जैम के ताड़ीखानामें पसीबा हाथक ताड़ी आ मघैया डोमक मारल सनगोहिक चखना अघोड़ी समान भक्षण करैत केओ पूछत तँ लाल-ढापूस आँखि बहार कऽ के कहि देबैक जे होली है…  चरित्र के दुष्कर प्रदर्शन कय लेब आ कहि देबैक जे बुरा न मानो होली है… वाह रे मानव – वाह रे लीला! होली के बेला! ताड़ी कि आब तऽ बिहार सरकार सेहो खूल्ला दारू के ठेक्का दैत गाम-गाम में अल्कोहल के नदी बहा रहल अछि। बिगड़ल साँड़्ह सभ तऽ पीबिते छल – देखौंस में छोटका-सुकुमार धियापुता सेहो अपन ठोड़क लाली दारुवे के स्पिरिट सऽ जरा रहल अछि। भाँग-गाँजा के लीला प्राकृतिक रहितो बहुत कम्मे लोक में पचबैक शक्ति छैक, तथापि कोनो वस्तुके प्रयोगकर्ताके कमी नहि छैक। गाम में नशा आ चरित्रहीनता – लगैत अछि जे बारहमासा होली के हवा बहा देने हो। शहरमें अपराध, नशा, चरित्रहीनता – हर तरहें जीवन में हो-हल्ला तऽ पहिले से रहबे कैल, एहिमें आइयो कोनो कमी आबि गेल से बात नहि छैक। होली थिकैक भैया! आउ ने दू पेक मारी आ तेकर बाद चलब फल्लाँ गामवाली संगे रभाइस के रंगमें होली खेलायब। हाय रे होली! जोगीरासारारारा – ई गेनिहार एक श्रमजीवी वर्ग छल लेकिन आब अपनाकेँ सुसंस्कृत बुझनिहार सेहो मस्त होइत गावय लगलाह छथि। कारण ओ कइये कि सकैत छथि? हुनको गर्दैनमें नीलकंठ जाबत नहि बसैत छथिन, शान्ति नहि भेटैत छन्हि। नस्ल नशा में डूबल छैक – तखन एखन तऽ होली के कालकूट विष के मौसम चुनौती दऽ रहल छैक। खूब धुनकी में रहू। कोनो एहेन अवसर नहि जहिया होली नहि!

ओना – होली के असल सार्थकता यैह छैक जे अपन भीतर जे हिरण्यकशिपुरूपी अहंकारी राक्षस वास कय रहल अछि तेकरा अपन अन्तर्यामीरूपी नारायणक नरसिंहावतार निजात्मासँ मारिके ओकर खूनमें स्वयंके सराबोर करी आ एहि अवसरपर हल्लूक होइत अपन ईष्ट-मित्र-स्वजनसंग उल्लासके संग मिलन-समारोह करी जे एक बेर फेर दुरमतियाके दूर करैत सुमतिया के समेटलहुँ अछि। सुसंस्कार के पुनः अपना आपमें धारण हेतु गोसाउनि केँ मनेलहुँ अछि। सुमंगल-गान हेतु विभिन्न रंगके अबीर सँ जेट-छोटके मनुहार केलहुँ अछि। आबयवाला सालमें पुनः जीवनचर्या एहेन होइ जाहिमें अन्तर्मनरूपी प्रह्लादपर कोनो निज-दुराचारी स्वभावक हिरण्याक्ष-हिरण्यकशिपु-होलिका हावी नहि होइक आ सदिखन ईश्वरके शरणमें रहैत जीवनरूपी नाव आगू बढैत रहैक।

शिवमठ पर राम खेलै छथि होली – शिवमठ पर!
किनका के हाथ कनक पिचकारी – किनका के हाथ अबीर झोली
हो-हो किनका के हाथ अबीर झोली!
शिवमठ पर….

यदि होलीके दिन भक्त प्रह्लाद पर भेल कृपा के आभान नहि तऽ ओ होली नहि गोली थीक – एहि गोली सँ बचू आ केवल भक्तिपूर्ण भावना सँ भरल होली खेलाउ। जोगीरा-सारारा सेहो गाउ लेकिन ईश्वर के उपस्थिति बिना सब सून। स्मरण रहय!

हरिः हरः!

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५ मार्च २०१२
गाम के बेटा – सभ के आँखिक तारा – सभके दुलार-प्यार-विश्वास के जितैछ… जेकरा में गाम प्रति समर्पण आ सेवा लेल साधन व शक्ति के उपयोग करय के क्षमता रहैत छैक। फल्लाँ बाबु के बेटा बड़ पैघ लोक – लेकिन गाम के सेवा में मलिनता राखैत छथि… आब कहू जे ग्रामीण फल्लाँ बाबुके बेटा के अनेरौ नाम गेतनि? ई संभव नहि भऽ सकैत छैक। यदि गाम के लेल त्याग करबैक तखनहि गामक लोक अहाँ लेल समर्पित रहत। अहाँके नऽ बुझैत अछि जे गाम में खाली राजनीति करनिहार ओछ सोच के आ झगड़लगौन लोक सभ बेसी छैक – तेकर माने कि… अहाँ जे कर्ज खेने छियैक गामक से नहि चुकेबैक? यौ! साइड-साइड कतेक दिन खेलेबैक? फेर वैह गाम काज देत। कतबू शहर में महल बनेबैक, यदि गाम के पहचान खत्म तऽ अहाँके पहचान सदा के लेल खत्म। गाम में गोसाउनि भगवती कुलदेवी-कुलदेवता छथि। हुनका बेसी बिगाड़यके काज जुनि करू। खतरामें पड़ि जायब। बहुत भेल नौटंकी। चलू – आबो गाम चलिके एकर धुमिल-धुसरित अस्मिता प्रति सजगता जगाबी। जैँ अहाँ सभ गाम छोड़ि के दूर बैसल खाली मखौल उड़ा रहल छियैक तैँ गाम विपन्नताके प्राप्त भऽ रहल छैक। यदि आइयो अहाँ सभ बाप-पुत-भाइ-बँधु अपन-अपन भागके काज कय देबैक तऽ गाम लहलहा उठतैक। से नहि तऽ खाली खोखला इज्जत लेल बेहाल भाग-दौड़ के जीवन शहर में जिबैत रहू… लोक चचरीपर पचकठियो देबय नहि आयत। बिजलीवाला दाहगृह में बेटा झोंकि देत आ कने-मने छौड़ लऽ के कोनो चभच्चा-नदीमें भसिया देत। बूड़ि नहितन! गप मारता भारी-भारी आ काज किछु नहि। अगबे शान नहि चलत। चलू एहि बेर होलीमें गाम!

खराब नहि मानब, होली थिकैक। हमहुँ भाँग खेने छी।

हरिः हरः!

पुनश्च: निचुलका लेख शिवजी के जीवन-दर्शनवाला जरुर पढब आ कंजूस नहि बनब। ॐ!

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६ मार्च २०१२
पैघ-पैघ बात बखारनिहार के कमी नहि – काज करय बेर में नाँगड़िसुटका के बरसात छैक।

बेर पर कहियो काज देबय लेल विरले कोनो बेटा जन्मैछ, जँ कय देलक ओ महान्‌ छैक॥

होलीके जोगीरा खूब गबैत अछि – अनकर धन लूटि मौज करैत अछि।

बेईमानीके राज चलैत अछि – धर्म के रक्षा में कमी आयल छैक।

धर्मो रक्षति रक्षितः।

हरिः हरः!

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१० मार्च २०१२
आइ हेल्लो मिथिला – कान्तिपुर एफ़.एम. पर आदरणीय धीरेन्द्र प्रेमर्षि (Dhirendra Premarshi) भाइजी दहेज मुक्त मिथिला के अभियान के चर्चा कयलन्हि आ किछु सुझाव सार्वजनिक रूपमें देलन्हि – जे स्वयं अपन विवाहमें दहेज लेने रहैछ हुनक अभियानमें संग अयलाह सऽ एहि अभियानके महत्त्वपर प्रश्न उठैछ। संगहि स्मरण कयलाह जनकपुर के एक संकल्प दिवसके जाहिमें कहाँदैन लगभग २००० आदमी सभ मंचपर चढि दहेज नहि लेब नहि देब शपथ लेलाह आ किनको सऽ जखन भाइजी पूछलखिन जे कि बात छैक जे सभ शपथ लेलाह ओ सभ निर्वाह तऽ करता कि ने… तऽ कहाँदैन जबाब भेटलन्हि जे धू! बैसल-बैसल हाथ-पैर टटा गेल छल तऽ स्टेजपर चैढके सभ जे बजलाह से हमहुँ बाजि एलहुँ। अर्थात् संकल्प केवल नाम लेल, व्यवहारमें दहेज के व्यवहार के परित्याग नहि करब। भाइजी के चर्चामें अभियान के सार्थक दिशा-दशा पर कोनो नव प्रकाश नहि रहलन्हि आ एकतरफा हुनका एना बुझेलन्हि जे एहि मुहिममें अपन विवाहमें लेनिहार लागल छथि जिनका आब कोनो तरहें वैराग्य उत्पन्न भेल अछि से सार्थकता प्रदान नहि करैछ। वास्तवमें एहि मुहिममें लागल बेसी लोक दहेज के शुरु सऽ विरोधी रहल आ अपन विवाहमें सेहो नहि लेनिहार सभ मात्र छथि, आ किछु व्यक्तित्व जे स्वयंकेर विवाहमें विभिन्न कारण सँ दहेज लेनिहार छथि जे अपन अभिभावककेँ एहि लेल नहि समझा सकल छलाह जे एहि तरहें भविष्यमें हुनका असम्मान भेटतन्हि ओ आब अपन प्रतिबद्धता संग आगामी समयमें एहि के प्रतिकार लेल तैयार छथि तऽ कि हर्ज?

Harih Harah!

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११ मार्च २०१२
मनके भीतर घाव छौ तऽ बनमें कोना के शुद्ध!
अपन टेटर सुझौ नहि तैयो बुझें जेना से बुद्ध!

माथ कटोरी मुँहक फान अलगे-अलगे बनलैय
प्रकृति अनुरुपें चरित्र होइक तय एना जे युद्ध!

सूरज उगय नित्य समय पर डूबितो सभ दिन
तैयो बुद्धिक फेरावाला ओ दरसय केना के उध!

आत्मचिन्तन कथमपि कहियो नहि सोहय
लेकिन टिटही बनल टाँग उठेने तेना रे फुद्ध!

उठा प्रेम सँ डेन पकड़ि जे खसल पड़ल छै बाट
मिलिजुलि हल कर जटिल अराजकता के विरुद्ध!

हरिः हरः!

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१६ मार्च २०१२
बचपन सऽ रेडियो के अर्थ आ उपयोग के बुझैत आयल छी आ ताहिमें आकाशवाणी दरभंगा के महत्त्व – फेर संध्याकाल बटुक भाइ, खुरखुर भाइ, आ नाम बिसरा गेल अछि लेकिन मैथिलानी दीदी सभ के संयुक्त गाम-घर आ विभिन्न शीर्षक सँ प्रसारित विभिन्न मैथिली कार्यक्रम के आनन्द अपने तऽ कमोसम मुदा समस्त ग्रामीण जनमानस लेल बेसी देखैत रहलहुँ। चूँकि ओ समय हमरा लोकनिक अध्ययन के होइत छल – तदापि कहियो-कहियो कार्यक्रमके आनन्द उठा लैत छलहुँ। सभके लेल संदेश रहैत छलैक। पढनिहार धिया-पुतासऽ लऽ के खेतमें मेहनत करैत सभके लेल जिनगी कमेनिहार कृषक लेल तक – समाचार के बाते कि कहू – देश-विदेशके हर दशाके वर्णन प्रादेशिक समाचार, बिबिसी हिन्दी, अल-इण्डिया रेडियो आदि अनेको कार्यक्रम के महत्त्व रेडियो मार्फत मात्र बुझलियैक। बाद में टेलिविजन आबि रेडियोके आवश्यकतामें बहुत पैघ कमी अनलकैक – तदापि रेडियोके दिवानगीमें कमी नहि अयलैक, कारण जे एक छोट यंत्र द्वारा सुनैत भेटैत छैक, सुतैत कालतक सिरहानामें रेडियो राखि आनन्द लैक हदतक देखने छी, आ फेर हमरा सभके तऽ अंग्रेजी सिखय लेल रेडियो टा सहारा छल से लोक नहि देखय या बुझय ताहि अनुसारे सुतली राइतमें विदेशिया तरंगपर जाइत रेडियो के महत्त्व बखूबी बुझने छियैक।

लेकिन समय के धार सभ दिन एकहि रंग नहि होइत छैक आ जीवनमें व्यवहार समयानुसार परिवर्तित होइत रहैत छैक। तैयो स्वाभाविक प्रेम के कनेकबो टा के भोरुकबा सऽ भोर होइत धैर मन-मस्तिष्क जागल सूरज के उदय तक इन्तजार करैत छैक। हेल्लो मिथिला कान्तिपुर समस्त मैथिल लेल यैह जागृतिके काज केलक जेना हमरा बुझैत अछि। हालहि किछु दिन पूर्वहि हेल्लो मिथिला अपन जीवनकाल के दसम वर्ष पुरा कयलक अछि। एहि कार्यक्रम के लगभग शुरुवे सऽ निरंतर श्रोता रहि आयल छी। जतेक समय भेटैत अछि ततेक एहि कार्यक्रमके आनन्द जरुर उठबैत छी। शुरु-शुरु में एहि कार्यक्रम के मार्फत लोक रेडियो द्वारा अपन सगा-सम्बन्धीके हेल्लो कहैत शुरु कयलक – हेल्लो कहैत अपन फरमाइश सुनलक – हेल्लो के रस्ते राजनेता सऽ बात कयलक – हेल्लो-हेल्लो-हेल्लो मिथिला चारू कात शोर मैच गेल। संचालक धीरेन्द्र-रुपा …. क्रमशः….

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बचपन सऽ रेडियो के अर्थ आ उपयोग के बुझैत आयल छी आ ताहिमें आकाशवाणी दरभंगा के महत्त्व – फेर संध्याकाल बटुक भाइ, खुरखुर भाइ, आ नाम बिसरा गेल अछि लेकिन मैथिलानी दीदी सभ के संयुक्त गाम-घर आ विभिन्न शीर्षक सँ प्रसारित विभिन्न मैथिली कार्यक्रम के आनन्द अपने तऽ कमोसम मुदा समस्त ग्रामीण जनमानस लेल बेसी देखैत रहलहुँ। चूँकि ओ समय हमरा लोकनिक अध्ययन के होइत छल – तदापि कहियो-कहियो कार्यक्रमके आनन्द उठा लैत छलहुँ। सभके लेल संदेश रहैत छलैक। पढनिहार धिया-पुतासऽ लऽ के खेतमें मेहनत करैत सभके लेल जिनगी कमेनिहार कृषक लेल तक – समाचार के बाते कि कहू – देश-विदेशके हर दशाके वर्णन प्रादेशिक समाचार, बिबिसी हिन्दी, अल-इण्डिया रेडियो आदि अनेको कार्यक्रम के महत्त्व रेडियो मार्फत मात्र बुझलियैक। बाद में टेलिविजन आबि रेडियोके आवश्यकतामें बहुत पैघ कमी अनलकैक – तदापि रेडियोके दिवानगीमें कमी नहि अयलैक, कारण जे एक छोट यंत्र द्वारा सुनैत भेटैत छैक, सुतैत कालतक सिरहानामें रेडियो राखि आनन्द लैक हदतक देखने छी, आ फेर हमरा सभके तऽ अंग्रेजी सिखय लेल रेडियो टा सहारा छल से लोक नहि देखय या बुझय ताहि अनुसारे सुतली राइतमें विदेशिया तरंगपर जाइत रेडियो के महत्त्व बखूबी बुझने छियैक।

लेकिन समय के धार सभ दिन एकहि रंग नहि होइत छैक आ जीवनमें व्यवहार समयानुसार परिवर्तित होइत रहैत छैक। तैयो स्वाभाविक प्रेम के कनेकबो टा के भोरुकबा सऽ भोर होइत धैर मन-मस्तिष्क जागल सूरज के उदय तक इन्तजार करैत छैक। हेल्लो मिथिला कान्तिपुर समस्त मैथिल लेल यैह जागृतिके काज केलक जेना हमरा बुझैत अछि। हालहि किछु दिन पूर्वहि हेल्लो मिथिला अपन जीवनकाल के दसम वर्ष पुरा कयलक अछि। एहि कार्यक्रम के लगभग शुरुवे सऽ निरंतर श्रोता रहि आयल छी। जतेक समय भेटैत अछि ततेक एहि कार्यक्रमके आनन्द जरुर उठबैत छी। शुरु-शुरु में एहि कार्यक्रम के मार्फत लोक रेडियो द्वारा अपन सगा-सम्बन्धीके हेल्लो कहैत शुरु कयलक – हेल्लो कहैत अपन फरमाइश सुनलक – हेल्लो के रस्ते राजनेता सऽ बात कयलक – हेल्लो-हेल्लो-हेल्लो मिथिला चारू कात शोर मैच गेल। संचालक धीरेन्द्र-रुपा मिथिलाके लेल एक नव क्रान्तिके संस्थापक बनलैथ आ इतिहासमें यदि स्वर्णाक्षर में नाम लिखल जेतैक ताहिमें एहि विलक्षण दम्पत्तिके नाम अवश्य रहतैक। ओना तऽ संचालकद्वय स्वयं आवश्यक हरेक पहलू पर अत्यन्त गम्भीरता आ शालीनताके संग ध्यान दैत आम जनमानस के मैथिलीके मिठास मिथिला के संदर्भ संग जोड़ने रहैत छथि, लेकिन जहिया-जहिया कोनो खास व्यक्तित्वके हेल्लो मिथिला रेडियो कार्यक्रमपर दसो मिनटके लेल आमंत्रित करैत समस्त मिथिलाके लोकमें विशिष्ट सोच आ दृष्टिकोण सँ अवगत करबैत छथि – हम एहि बात के बहुत पैघ प्रशंसक छी। आगामी समयमें सेहो एहि कार्यक्रम द्वारा मिथिला के सर्वाङ्गीण विकास हेतु करैथ – विकास में साहित्य, भाषा, संस्कृति, शिक्षा, समाजिकता के संग आर्थिक रूपें प्रगति पर चर्चा होइत रहैक। एहि कार्यक्रममें फोनपर जाहि तरहें लोक अपन सगा-सम्बन्धी-मित्रादिके लेल जेना शुभकामना-सिनेहक संदेश आदि दैत छथिन एहि सँ श्रोता के संख्या मिथिलाके हर-क्षेत्रमें बनैत छैक। हलाँकि बेसीकाल संचालकद्वय व्यक्तिगत बात सभ सेहो समेटैत छथिन – लेकिन कार्यक्रमके कुशल संचालनके पूर्ण जिम्मेवारी हुनकहि लोकैन पर रहैत छन्हि तखन एहिमें कोनो प्रकार के टिप्पणी कहीं अनधिकृत नहि हो – ताहि हेतु हम एहि कार्यक्रम के केवल प्रशंसक आ नीक ग्रहण करनिहार बनी आ समस्त मिथिलांचल अहिना एक-दोसर संग जुड़ल स्नेह आ एकताके सूत्रमें बन्हायल रहैथ – यैह शुभकामना दैत छी।

हरिः हरः!

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१९ मार्च २०१२
औरत की दुश्मन है औरत यहाँ
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औरत की दुश्मन है औरत यहाँ
फिर भी औरत ही बेचारी यहाँ।

हर हादसे का मुजरिम
क्या आदमी ही है ?’हाँ’
इल्ज़ाम लगा औरत
बन गई बेगुनाह।

भ्रूण से जन्म तक वो चाहे यही
हो लड़का ही पैदा न लड़की कभी
लड़की जो जन्मी तो कर्ज से भरी
लड़का ले आएगा धन की पोटली
लड़की पराई न काम की किसी
लड़के से जीवन की नईया टिकी
ये सोच,सिर्फ आदमी की नहीं है यहाँ
औरत ही ज़्यादा है स्वार्थी यहाँ।

हैवानियत है मर्दों की चारों तरफ
क्या यही इक पहचान, उनके लिए
बेचारियत है औरतों की चारों तरफ
क्या यही सच्चाई है,उनके लिए ?

हैवानियत का ताज है आदमी के सर
इस पीड़ा को कैसे वो,पिये हर पल
अबला है औरत और मासूम भी
इस आड़ में ही औरत,बेफिक्र यहाँ
न खुद से है प्यार,न खुद की है चाह
है औरत ही दुश्मन,औरत की यहाँ।

इस शीर्षक से अल्पेश आर्य ‘टाओ’ जीका कविता मुझे बहुत ही भाया और सच भी है कि यदि औरत को औरतकी दयनीयता समझ में आ जाये तो इस संसार से अपराध बहुत जल्द खत्म हो जाये! मुझे अफसोस है पर मैं मानता हूँ कि औरतें ज्यादा ही बेवकूफ होती हैं जो अपनी इज्जत को खुद निलाम करती हैं। पर मैं इसी औरतकी कोखसे उत्पन्न हुआ हूँ, ये मेरी माँ हैं। मैं इन्हें अपनी भोली माँ समझकर बारंबार प्रणाम करता हूँ।

मेरी एक बात सुन लो ऐ जहाँ
औरत ही औरतका दुश्मन यहाँ!
जब ये जगें तो दहेज क्या
सारा अपराध ही खत्म हो इस जहाँ!

हरिः हरः!

पुनश्च: इनके तस्वीरोंमें बुद्ध धर्मका सराहनीय संदेश है जो मुझे बहुत भाता है, समय अनुसार आप भी इसपर मनन जरुर कीजियेगा। हरिः हरः!

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२० मार्च २०१२
मिथिलामें पहिले संपन्नता अपन छलैक, आइ गुलामीके मानसिकता बेसी आ अपन समुदाय-समाज-क्षेत्रके संपत्तिके सुरक्षा सऽ बेसी दोसरके सहारे व्यक्तिगत सम्पत्ति निर्माण करयके प्रचलन के कारण हम सभ बेसी पछड़ल छी, मिथिला सेहो पछड़ल अछि।

मिथिलामें समाजिक विभेद एतेक बेसी छैक जेकर कारण आपसी समन्वय कम आ ईर्ष्या-द्वेष-जातीयता आदिके आगि में सभ केओ झुलैस रहल अछि। जे स्वयंके चालाक आ चतुर बुझैत छथि – जे शिक्षित छथि ओ काते-काते अपन काज कतहु रहिके चलाबैत छथि आ जखन फुर्सत भेटैत छन्हि तऽ आबिके दु-चारि उपदेश छाँटैत छथि नहि कि शपथ लैत छथि जे हम ई नहि ई काज मिथिलाके लेल जरुर करब।

यदि हम गलत होइ तऽ एतय उपस्थित हम स्वयं समेत सँ आग्रह जे आउ एहि बात लेल शपथ खाइत मिथिलाके सेवामें अपन प्रतिबद्धता प्रकट करी आ ई बाजी जे हम फल्लाँ नै फल्लाँ काज मिथिला, मैथिल समुदाय, मैथिली भाषा-साहित्य-संस्कृति लेल करब।

आउ, शपथ ली!

हम स्वयं माँ मिथिलाके साक्षी मानैत एहि बात के शपथ लेने छी जे अपन समाज लेल दहेज मुक्ति आन्दोलन के जोर-शोर सँ यथार्थके धरती पर उतारब आ संगहि मिथिलाके विभिन्न धरोहरके संरक्षणार्थ आवश्यक कदम उठायब। एहि लेल सभ गाम यदि भीख तक माँगय पड़त तऽ सेहो माँगब। वर्तमानमें सौराठ सभापर कार्यरत छी आ माधवेश्वरनाथ महादेव मन्दिरके जीर्णोद्धार हेतु सभ सँ आह्वान करैत छी। दहेज मुक्त मिथिला नामक ग्रुप के संग हम सभ एहि तरह के समाज सेवाके काज करय चाहैत छी आ एहिमें अपने समस्त गणमान्यसँ सदस्यता लैत उद्देश्य पोषण करैक लेल अनुरोध करैत छी।

हरिः हरः!

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समस्त मिथिलावासी-मैथिलभाषी!

समस्त अपेक्षित आ खास कऽ के युवा निबंधकार मित्र मैथिल छात्र सभसँ हार्दिक निवेदन जे निम्न अनुरोध पर अपन योगदान दैत एहि आयोजन के पूर्ण रूप सऽ सफल बनाबी। उम्रके खास ध्यान राखैत – योग्यताके खास ध्यान राखैत मैथिली भाषामें जाहि तरहें एहि आयोजनके राखल गेल अछि ओ बहुत महत्त्वके अछि आ एहिसँ आजुक युवा जिनका लेल हर तरहें मैथिली संग बिछोह उत्पन्न करय के दुष्प्रयास चारू तरफ सँ भेल तेकर प्रतिकार समेत एक लक्ष्य रखैत एहि आयोजनमें बेसी सँ बेसी किशोर-किशोरी-युवा-युवती भाग लैथ ताहि हेतु समस्त फेसबुकिया मित्रवर्गसँ सेहो निवेदन करैत छी।

एहि तरहक प्रतियोगिता सँ मैथिली भाषाके संवर्धन होइत रहत – मैथिली सनातन छथि, ई बनल रहती आ षड्यन्त्रकारी शक्ति सभ दिन हारैत रहत। तखन ओकरा लेल कि लिखी जे स्वयं अपन माय के असम्मान करैत अपन भाषा के संग वैरी करैत अछि। बस सुप्रसिद्ध कविवर सियाराम झा के ओ कथनी जे पैढियो-लिखि जौं नहि बाजैछ अपन मातृभाषा मैथिली, मोंन करैछ एहेन लोकके कान पकैड़के ऐंठदी – एहि उक्ति के स्मरण करैत कहब जे अपन चिनवार, अपन गोसाइं आ अपन गाम के जे केओ छोड़ैत अछि ओ धोबीके कुकूर समान बनैत अछि। बस, हम सभ एहेन नहि बनी।

धन्यवाद!

हरिः हरः!

अपनेक विश्वासी आ निर्लोभ सेवक –

दास प्रवीण!

Kishan Karigar

दिल्ली सँ प्रकाशित मासिक मैथिलि “*मिथिलांचल टुडे ” पत्रिका * के द्वारा
कक्षा ८ सँ ल के बी.ए/बी.एस.सी/ बी.कॉम/इंजीनियरिंग /चिकित्सा विज्ञानं के
छात्र हेतु एकटा निबंध प्रतियोगिता रखल गेल अछि .
निबंध के विषय :- *”मातृभाषाक माध्यम सँ विज्ञानं एवं प्रोद्योगिकी के शिक्षा
कतेक सार्थक अछि “*
जाही में प्रतिभागी हेतु नियम :-
१. कक्षा ९ सँ – स्नातक तक के छात्र भाग लय सकैत छथि
२. उम्र सीमा – १२ वर्ष -२२ वर्ष
३.रचना मौलिक हेबाक चाही एवं स्व लिखित हेबाक चाही
४.आलेख मैथिलि भाषा में हेबाक चाही
५.रचना पठेबक अंतिम तिथि – 31 मार्च २०१२
६. प्रतिभागी लोकनि अप्पन आलेख [email protected] या B-2/333
Tara Nagar, Old Palam Road Sec-15 Dwarka New Delhi-110078. पर पठाबी
७. आलेखक संग अप्पन परिचय एवं पत्राचारक पता अबश्य पठाबी

*निर्णयाक मण्डली में छैथि* :- १.डॉ. कैलाश कुमार मिश्र २.डॉ. प्रेम मोहन
मिश्र ३. श्री गजेन्द्र ठाकुर ४. डॉ. शशिधर कुमार
*पुरस्कार [:-*] निबंध प्रतियोगिता में चयनित प्रतिभागी के समुचित पुरस्कार राशी
एवं प्रमाणपत्र पठौल जाएत

भवदीय
डॉ. किशन कारीगर
संपादक (मिथिलांचल टुडे)

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२२ मार्च २०१२
समस्त मिथिलावासी के लेल आ बिहार सरकार के लेल एक अत्यन्त प्रेरणादायक उदाहरण – मिथिला क्षेत्र में पर्यटन के गुंजाइश बहुत जबरदस्त छैक, लेकिन हम सभ एहि विन्दुपर सोचियो के किछु करयमें पाछू पड़ि जाइत छी। एहेन कोनो गाम नहि, कोनो टोल नहि, कोनो डेग नहि जतय मिथिलामें जादुई बात नहि हो – लेकिन क्रमशः ओ सभ समाप्त भऽ गेल। मुश्किल सऽ गोटेक गाममें – गोटेक धाममें आब पर्यटन के संभावना बचल अछि। एहि लेल सर्वप्रथम ग्रामीण आ स्थानीय नागरिक केँ स्वयं एहेन आकर्षण उत्पन्न करय पड़ैत छैक जाहिके चलते आस-पड़ोस के लोक दर्शनीय स्थान पर आबैथ। बताउ, आब पुरान मन्दिरमें गामके लोक भगवान्‌ छोड़ि जौँ भूत-प्रेत देखय लागत तऽ बगलके गामबाला तऽ दिनो-देखार ओहि रास्ता चलब बन्द कय देतैक या नहि? मेला-हटियाके रूपमें आइयो मिथिलामें लोक पर्यटनके संरक्षण करैत अछि। धार्मिक आस्थाके केन्द्र मिथिलामें आइयो अनेको मन्दिर आ सार्वजनिक दर्शनीय स्थल सभ छैक जेकर विकास पर्यटन विकास के रूपमें कैल जा सकैत छैक। स्थानीय उत्पादन के विशिष्टता दोसर प्रमुख बात होइत छैक जाहिसँ लोक दूर-दूरसँ कतहु जाइत-अबैत छैक। एहि सभ तरफ यदि हम सभ कदम उठाबी तऽ अवश्य भविष्य नीक बनतैक।

तऽ कि… एहि बेर सौराठ सभाके दरम्यान एक पर्यटकीय मेला लगायल जाय?

विचार राखू।

हरिः हरः!

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ये करना होगा
वो करना होगा
पर करते नहीं
कुछ वक्त पर
बस बोल लो
बस लिख लो
पर याद करो
जब-जब किये
तभी हुआ
हर काम
पहुँचे लक्ष्यपर
फिर भी
किसीके बोलनेकी
छूट रुकता नहीं
बस बोल लो
बस बोल लो!

हरिः हरः!

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We are fortunate to have available a lots of things through internet today. History is a very interesting subject, I feel it now. When it was my age to study these things, I simply made fun of it thinking studying sciences alone would make me a man on earth… alas! I missed it.
All around us, we can see several conflicts today and History is the best tool to resolve. Bihar Diwas is being celebrated and some of my Maithil brothers/sisters are annoyed due misconception being propagated – the hatred being distributed that Bihar snatched away the autonomy of Mithila. I still wonder to see how things can be presented by twisting the facts and history. There are several examples – people can take the references of and prove that Mithila though remains as a natural region, state, federal, dominion and everything that requires for an independent nation; but it has been mingled into several states formed time to time without caring much to remain protective with its border and territory. The sweetness of language is same as in the behaviors of Mithila’s inhabitants. Kings were called Videha – that means – they cared damn to this material existence and were always conscious for super existence – spiritual realizations were the primary goals here as per guidelines of scriptural ordinances since Vedic era.

Now what Bengal or Bihar or Nepal can spoil its originality – this is the question for me to ponder on. I still believe, these are simply the noises and politics. Mithila surely requires political visions for its existence, but never on the ground of fabricated facts. Mithila must remain as pure as its natural existence. It is a full autonomous federal still without any boundary or capital, materially divided in two nations India and Nepal. Maithils are majorly happy with these two countries – in India, Bihar is allegedly discriminating Mithila and same being done in Nepal – but Maithils are strayed without proper leadership. This is their fate. Maithils are fortunately skilled to adjust in any country, any situation and under any law. They are all with Videha’s gins. It is not advocated that politics is not in their nature, it is filled from cap to pie but that they trade for others, not for self. Chanakya can make Chandragupta a King, himself not as he did promise to his mother. Honesty and truthfulness are the true ornaments of majority in intellectual Maithils and thus they worry not much for their own lands. They are simply happy in different parts of the world today.

Question remains in my mind – Is it signalling the end of Mithila’s existence as if they are dispersed seeds in whole world without having power to germinate in every soil rather live happily? What will happen after me – I mean after end of this era? Will their upcoming generation in dispersed form will manage to exist with the essence and existence of Maithili and Mithila?

I surrender to Thee! O Lord! O Janaki! O SitaRam! You better take care of my land and my people!

Jay Maithili! Jay Mithila!!

PS: Bihar or Bengal cannot be enemy of Mithila, Maithils must introspect for their own deeds. Thanks! 

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फेसबुक के माध्यम सऽ मिथिला राज्य लेल संघर्ष के हम पूरा समर्थन दैत छी, लेकिन छद्म बात के सहारा लऽ के कदापि नहि। बिहार अवश्य मिथिलाके विकास लेल उपेक्षा करैत अछि, एहि लेल हम बिहार के विरोध करैत छी। लेकिन बिहार अपन स्थापनाके शतक समारोह मना रहल हो तेकर हम विरोध किऐक करी – हम देखादेखी अपन मूल-राज्यके प्रति लोक में विद्वेष भावना एहि लेल किऐक बिगाड़ी जे यैह मिथिला राज्यके निर्माणमें बाधक बनल। यदि हम गलत होइ तऽ आदरणीय महानुभाव लोकनि जे एहि बातके प्रचार कय रहल छथि जे बिहार के बनब मात्र मिथिलाके बनबामें बाधक भेल से कोनो प्रकार के ऐतिहासिक प्रमाण प्रस्तुत करैथ। एहि लेल जे कोनो तथ्य होइक से आगू जरुर राखैथ। बहस के दरम्यान एक बेर आदरणीय अमरनाथ बाबु (दिल्ली) कहने छलाह जे भाषाके स्थान अष्टम्‌ सूचीमें नहि भेलाके कारण स्वतंत्र भारतमें मिथिला राज्यके निर्माण नहि भऽ सकल छल आ किछु अमैथिल द्वेष-भावना सऽ मैथिलीके भारतके संविधानके अष्टम्‌ सूचीमें स्थान नहि होवय देने छलाह – जेकरा बादमें अथक प्रयास सऽ पूरा कयल गेल। किछु फोटोग्राफ सेहो देलाह जे हम शेयर करय लेल जा रहल छी। एहि में अटल बिहारी वाजपेयीजीके खूब सराहना कयलन्हि, संगहि डा. सी. पी. ठाकुरके सेहो सराहना कयलन्हि। फोटोमें शत्रुघ्न सिन्हा के उपस्थिति देखौलन्हि। आरो गणमान्य नेता सभके स्मरण कयलन्हि। हम पुनः हुनका सभके नमन्‌ करैत छी। तखन कोनो नियमके बात कहलैन जेकर आधारपर राज्यके स्वरूप के मान्यता भेटैत छलैक ताहिमें भाषा प्रमुख छलैक, ताहिके रिक्त-स्थान पूर्ति भेलाके बाद आब मिथिला राज्य निर्माणमें कोनो बाधा नहि अछि आ आइ नहि काल्हि हेबे टा करतैक से भरोस देलैन। लेकिन एहि बात के लेल आम जनमानसमें कतेक खुलदुल्ली छैक आ कतेक पीड़ा के एहसास जे बिहार हमरा सभके मौलिक अधिकार के हनन कय रहल अछि, कयलक अछि… एहि सभके लेल जागृति पसारबाक बहुत पैघ जरुरत छैक। एहि बात के आत्मसात्‌ कयलन्हि आ एहि लेल कार्य भऽ रहल छैक, निरंतर करय पड़तैक। हम सहमत छी। संगहि अपन स्तरसँ हम तऽ यैह कहब जे आम-जनमानसके हमरा लोकनिक कोनो बातके संग लगाव तखनहि औतैक जखन हम सभ जमीनी स्तरपर किछु एहेन कार्य करी जाहिसँ समाज सुधार सेहो हेतैक आ जागृति सेहो पसरतैक। एहि लेल बहुत काज छैक – जेना गाम-गाम जे पारंपरिक धरोहररूपी संस्था छैक जे सभके जोड़िके दलीय शक्तिके – संगठनात्मक शक्तिके महत्त्व बुझबैत छैक ताहिपर कार्य करैत सभ बात कैल जा सकैत छैक। संगठन के विस्तार एहि तरहें करबाक जरुरी छैक।

बिहार के स्थापना १९१२ ई. में वृहत बंगाल सऽ अलग कय के भेल छलैक। ताहि समय बिहारमें आजुक उड़ीसा, झारखण्ड आ किछु आरो भाग जे किशनगंज जिला के रहैक ततेक भेटल छलैक। १९३६ ई. में उड़ीसा के स्वतंत्र राज्यके दर्जा भेटलैक। तहिना २००० ई. में झारखण्ड के स्वतंत्र राज्य के दर्जा भेटलैक। आ भारत के गृहमंत्री पी. चिदंबरम के मानल जाय तऽ आब यदि कोनो नव राज्य के निर्माण हेतैक तऽ मिथिलाके नाम सेहो रहतैक – कहल गेल छैक। बहुत प्रतिबद्ध मिथिलाके नेता सभ एहि लेल संघर्ष कयलन्हि छथि आ एतेक माँग सम्बोधन होयब मामूली बात नहि छैक। तखन आजुक परिस्थितिमें यदि बिहार दिवस मनायल जाइत छैक तऽ मिथिला राज्य निर्माण प्रक्रियापर kono tarahak prashna thaarh hetaik se ham nahi maanait chhi. Bihar Diwas ke celebration aajuk Bihar ke public me vibrant energies bhair rahal chhaik. Diwas – samaroh manaybaak yaih khaasiyat chhaik. Samuchaa sansaar me positive message pasair rahal chhaik. Bihar chhori Canada, USA, Russia, Japan, Germany, Maldives, aa sansaar ke anya bhaag me – Bharat ke anya bhaag me basal Bihari ke naak garva sa pasair rahal chhaik aa o sabh apan grih-rajya prati samarpan badha rahal chhathi. Ehen ghari me kichhu Maithil neta bahut hoshiyaari nahi kay rahal chhathi je anerau ke hallaa machaa ke apan kamazori ke jhaapay ke prayaas kay rahal chhathi. Yadi ehi jagah saarthak naaraa ke sang apan Maithil ke jaagriti lel kono kaaryakram karitaith tekar paigh mahattva jarur banitaik.

Dosar sa daah kam, apan shaan sa karma besi karu.
Dosar ke pragati sa nahi jair, apan dharati la maru!!

Jay Maithili! Jay Mithila!!

Harih Harah!!

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२४ मार्च २०१२
प्रिय भाइ-बहिन-मित्र!

आइ एक बेर फेर स्वाध्यायमें अमृतरसके पान करैक लेल अवसर प्राप्त भेल। नवरात्रा चलि रहल अछि। राम-नवमी आबि रहल अछि। सीता-राम भगवान्‌ केर विलक्षण चरित्र के गान तुलसीदासजी एतेक सहज आ सुन्दर कयने छथि जेकर रसमें के नहि सराबोर होइछ। तैय पर सऽ सुन्दरकाण्डके पाठ – आह! पद-पदमें ज्ञान छैक। जेना देखियौक! आजुक पाठमें आयल हनुमान-विभीषण संवाद! मात्र किछु चौपाई आ दोहामें कतेक गहिंर बात के प्रस्तुति कैल गेल छैक। यैह अमृतधारा थिक जाहिसँ समस्त मानव समुदाय लाभान्वित होइथ, हम निम्न रूपें राखि रहल छी।

१. रामायुद अंकित गृह लंकामें – निसाचरके बीच सेहो भक्त अपन पहचान बनबैछ। विभीषणजीकेर गृहपर धनुष-बाण देखि हनुमानजी सुखी भेलाह। 
२. राम-राम तेहिं सुमिरन कीन्हा – सज्जन अपन शानदार कर्तब्य कदापि नहि छोड़ैछ। ईश्वरके नाम सुमिरन आवश्यक छैक। 
३. साधु संग हठ करितो संगतमें हनुमानजी कहैत छथि जे हानि नहि छैक। सज्जन के सभ पसन्द करैत छैक। 
४. आपसी परिचयमें मूल परमपिताके गुणसमूह सुनैत दुनू भक्त शिरोमणि मस्त होइत छथि। सत्संगमें विरोध नहि, सुकुन बेसी भेटैत छैक।
५. विभीषणजी कहैत छथि जे निसाचर सभके बीच हम तहिना रहैत छी जेना दाँतके बीच जीभ! तामशी शरीर रहितो श्रीरामजी के चरण में सहज प्रेम अछि, बस यैह टा साधन अछि।
६. बिनु हरि कृपा मिलहि नहि संता – बिना ईश्वरके कृपाके सत्संग लाभ असंभव अछि।
७. तखन हनुमानजी कहैत छथिन – सुनहु विभीषण प्रभुकी रीति! करहि सदा सेवक पर प्रीति! प्रभु सदिखन सेवक पर प्रीति रखैत छथि।
८. प्रभुजीके प्रेम के पुनः हनुमानजी बखान करैत कहैत छथिन जे भला हमर कोन बड़का कुल अछि – जातिके चंचल हम बानर छी आ हर तरहें हम नीच छी – जे भोरे-भोर हमर नाम लैत अछि ताहि दिन ओकरा भोजन पर्यन्त नहि भेटैत छैक – प्रभुजी हमरा ऊपर कृपा कयलन्हि अछि – कहैत-कहैत हनुमानजीके आँखिसँ प्रेमके अश्रु बहय लगैत छन्हि।
९. जे जनितो एहेन मालिक के छोड़ैत अछि, ओ भला कहू जे किऐक दुःखी नहि होयत?

उपरोक्त समस्त बातमें जे मर्म छैक आ जेना प्रभु-प्रेमके अनुभूति छैक एहिपर बेर-बेर मनन करय जाउ।

हरिः हरः!

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आइ मैथिलकेर विवाह के चतुर्थीमें होवयवाला भोजनके सचार देखि ५६ भोगके बात दिमागमें आयल छल – लेकिन पता लागल जे ५६ भोग तऽ भगवान्‌ के जे प्रसाद भोग लगायल जाइत छन्हि तेकरा कहल जाइत छैक आ एहि क्रममें एक नीक वेबसाइट भेटल, अहाँ सभ सेहो देखू।

http://chappanbhog.wordpress.com/

तेकर बाद हमरा स्मृतिमें आयल जे श्री सीताराम भगवान्‌के विवाह के समय जे स्वागत-सत्कारमें मिथिलाके परंपरा के व्याख्या श्रीरामचरितमानसमें तुलसीदासजी कयने छथि। आउ सेहो देखी:

बारात का जनकपुर में आना और स्वागतादि

चौपाई :
कनक कलस भरि कोपर थारा। भाजन ललित अनेक प्रकारा॥
भरे सुधा सम सब पकवाने। नाना भाँति न जाहिं बखाने॥1॥

भावार्थ:-(दूध, शर्बत, ठंडाई, जल आदि से) भरकर सोने के कलश तथा जिनका वर्णन नहीं हो सकता ऐसे अमृत के समान भाँति-भाँति के सब पकवानों से भरे हुए परात, थाल आदि अनेक प्रकार के सुंदर बर्तन,॥1॥

फल अनेक बर बस्तु सुहाईं। हरषि भेंट हित भूप पठाईं॥
भूषन बसन महामनि नाना। खग मृग हय गय बहुबिधि जाना॥2॥

भावार्थ:-उत्तम फल तथा और भी अनेकों सुंदर वस्तुएँ राजा ने हर्षित होकर भेंट के लिए भेजीं। गहने, कपड़े, नाना प्रकार की मूल्यवान मणियाँ (रत्न), पक्षी, पशु, घोड़े, हाथी और बहुत तरह की सवारियाँ,॥2॥

मंगल सगुन सुगंध सुहाए। बहुत भाँति महिपाल पठाए॥
दधि चिउरा उपहार अपारा। भरि भरि काँवरि चले कहारा॥3॥

भावार्थ:-तथा बहुत प्रकार के सुगंधित एवं सुहावने मंगल द्रव्य और शगुन के पदार्थ राजा ने भेजे। दही, चिउड़ा और अगणित उपहार की चीजें काँवरों में भर-भरकर कहार चले॥3॥

अगवानन्ह जब दीखि बराता। उर आनंदु पुलक भर गाता॥
देखि बनाव सहित अगवाना। मुदित बरातिन्ह हने निसाना॥4॥

भावार्थ:-अगवानी करने वालों को जब बारात दिखाई दी, तब उनके हृदय में आनंद छा गया और शरीर रोमांच से भर गया। अगवानों को सज-धज के साथ देखकर बारातियों ने प्रसन्न होकर नगाड़े बजाए॥4॥

दोहा :
हरषि परसपर मिलन हित कछुक चले बगमेल।
जनु आनंद समुद्र दुइ मिलत बिहाइ सुबेल॥305॥

भावार्थ:-(बाराती तथा अगवानों में से) कुछ लोग परस्पर मिलने के लिए हर्ष के मारे बाग छोड़कर (सरपट) दौड़ चले और ऐसे मिले मानो आनंद के दो समुद्र मर्यादा छोड़कर मिलते हों॥305॥

फेर वैवाहिक-विधि-व्यवहार सम्पन्न भेला उपरान्त भोजन करेबाक परंपरा देखू:

चौपाई :
पुनि जेवनार भई बहु भाँती। पठए जनक बोलाइ बराती॥
परत पाँवड़े बसन अनूपा। सुतन्ह समेत गवन कियो भूपा॥1॥

भावार्थ:-फिर बहुत प्रकार की रसोई बनी। जनकजी ने बारातियों को बुला भेजा। राजा दशरथजी ने पुत्रों सहित गमन किया। अनुपम वस्त्रों के पाँवड़े पड़ते जाते हैं॥1॥

सादर सब के पाय पखारे। जथाजोगु पीढ़न्ह बैठारे॥
धोए जनक अवधपति चरना। सीलु सनेहु जाइ नहिं बरना॥2॥

भावार्थ:-आदर के साथ सबके चरण धोए और सबको यथायोग्य पीढ़ों पर बैठाया। तब जनकजी ने अवधपति दशरथजी के चरण धोए। उनका शील और स्नेह वर्णन नहीं किया जा सकता॥2॥

बहुरि राम पद पंकज धोए। जे हर हृदय कमल महुँ गोए॥
तीनिउ भाइ राम सम जानी। धोए चरन जनक निज पानी॥3॥

भावार्थ:-फिर श्री रामचन्द्रजी के चरणकमलों को धोया, जो श्री शिवजी के हृदय कमल में छिपे रहते हैं। तीनों भाइयों को श्री रामचन्द्रजी के समान जानकर जनकजी ने उनके भी चरण अपने हाथों से धोए॥3॥

आसन उचित सबहि नृप दीन्हे। बोलि सूपकारी सब लीन्हे॥
सादर लगे परन पनवारे। कनक कील मनि पान सँवारे॥4॥

भावार्थ:-राजा जनकजी ने सभी को उचित आसन दिए और सब परसने वालों को बुला लिया। आदर के साथ पत्तलें पड़ने लगीं, जो मणियों के पत्तों से सोने की कील लगाकर बनाई गई थीं॥4॥

दोहा :
सूपोदन सुरभी सरपि सुंदर स्वादु पुनीत।
छन महुँ सब कें परुसि गे चतुर सुआर बिनीत॥328॥

भावार्थ:-चतुर और विनीत रसोइए सुंदर, स्वादिष्ट और पवित्र दाल-भात और गाय का (सुगंधित) घी क्षण भर में सबके सामने परस गए॥328॥

चौपाई :
पंच कवल करि जेवन लागे। गारि गान सुनि अति अनुरागे।
भाँति अनेक परे पकवाने। सुधा सरिस नहिं जाहिं बखाने॥1॥

भावार्थ:-सब लोग पंचकौर करके (अर्थात ‘प्राणाय स्वाहा, अपानाय स्वाहा, व्यानाय स्वाहा, उदानाय स्वाहा और समानाय स्वाहा’ इन मंत्रों का उच्चारण करते हुए पहले पाँच ग्रास लेकर) भोजन करने लगे। गाली का गाना सुनकर वे अत्यन्त प्रेममग्न हो गए। अनेकों तरह के अमृत के समान (स्वादिष्ट) पकवान परसे गए, जिनका बखान नहीं हो सकता॥1॥

परुसन लगे सुआर सुजाना। बिंजन बिबिध नाम को जाना॥
चारि भाँति भोजन बिधि गाई। एक एक बिधि बरनि न जाई॥2॥

भावार्थ:-चतुर रसोइए नाना प्रकार के व्यंजन परसने लगे, उनका नाम कौन जानता है। चार प्रकार के (चर्व्य, चोष्य, लेह्य, पेय अर्थात चबाकर, चूसकर, चाटकर और पीना-खाने योग्य) भोजन की विधि कही गई है, उनमें से एक-एक विधि के इतने पदार्थ बने थे कि जिनका वर्ण नहीं किया जा सकता॥2॥

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*भोजनके चारि प्रकार – चर्व्य, चोष्य, लेह्य, पेय अर्थात्‌ चिबायके खाय जोग, चुइसके खाइ जोग, चाटिके खाइ जोग आ पीबिके खाइ जोग! 
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छरस रुचिर बिंजन बहु जाती। एक एक रस अगनित भाँती॥
जेवँत देहिं मधुर धुनि गारी। लै लै नाम पुरुष अरु नारी॥3॥

भावार्थ:-छहों रसों के बहुत तरह के सुंदर (स्वादिष्ट) व्यंजन हैं। एक-एक रस के अनगिनत प्रकार के बने हैं। भोजन के समय पुरुष और स्त्रियों के नाम ले-लेकर स्त्रियाँ मधुर ध्वनि से गाली दे रही हैं (गाली गा रही हैं)॥3॥

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व्यंजनके छह टा रस होइत छैक – खटरस: मीठगर, नुनगर, खटगर, तीतगर, – २ रस के नाम स्मरण नहि आबि रहल अछि। 
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समय सुहावनि गारि बिराजा। हँसत राउ सुनि सहित समाजा॥
एहि बिधि सबहीं भोजनु कीन्हा। आदर सहित आचमनु दीन्हा॥4॥

भावार्थ:-समय की सुहावनी गाली शोभित हो रही है। उसे सुनकर समाज सहित राजा दशरथजी हँस रहे हैं। इस रीति से सभी ने भोजन किया और तब सबको आदर सहित आचमन (हाथ-मुँह धोने के लिए जल) दिया गया॥4॥

दोहा :
देइ पान पूजे जनक दसरथु सहित समाज।
जनवासेहि गवने मुदित सकल भूप सिरताज॥329॥

भावार्थ:-फिर पान देकर जनकजी ने समाज सहित दशरथजी का पूजन किया। सब राजाओं के सिरमौर (चक्रवर्ती) श्री दशरथजी प्रसन्न होकर जनवासे को चले॥329॥

हरिः हरः!

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२५ मार्च २०१२
मैथिली फेर ब्रह्माण्ड-शासिका बनती!

रावण केर अत्याचार जखन जगज्जननी सियाजी पर भेल तखन विचारणीय बात छैक जो आततायी सामान्य नर-नारी जनमानसके ऊपर अपन रौब कोन तरहें चलेने होयत। कोसलाधीश दशरथजीके वरवधु आ मिथिला नरेश जनकजीके पुत्री सीताजी याने ‘मैथिली’ के अपहरण रावण लेल बहुत महंग पड़ल। आउ एहि प्रसंग सऽ किछु बात आजुक मैथिली प्रति विद्वेष-भावना आ गंदा राजनीतिके तुलना करी।

आजुक सुन्दरकाण्डके प्रसंग छल हनुमानजी द्वारा अशोक वाटिकामें जाय माँ सीताजी के देखब आ दुःखी होयब, पुनः रावण द्वारा सीताजीके त्रास देखायब आ फेर त्रिजटा द्वारा त्रास देखेनिहैर पिशाचिनी सभके सावधान करब जे ओ सपनामें रावणके नाश प्रत्यक्ष देखलक अछि। हनुमानजी द्वारा सीताजी के सुधि लेबाक लेल लंका आयब तऽ स्वाभाविक रूपमें श्रीरामके विरह आ एक नारी-स्वरूपा जगज्जननी सुकुमारि सिया के अपहरण तऽ दुखदायी छहिये… रावण अपन धौंस सीताजीपर प्रकट करैछ लेकिन पतिव्रतामें प्रातःस्मरणीय सियाजी रावणके कोन तरहें संबोधन करैत छथिन से देखल जाउ:

सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनि करइ बिकासा॥
अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहि रघुबीर बान की॥

रावण कहैत छन्हि जे हम अहाँके सभ तरहें सर्वोच्च सम्मान देब आ अपन मंदोदरी समेत सभ रानी-पटरानीके अहाँकेर दासी बना देब, बस एक बेर रामचन्द्रजीके बिसैर अहाँ हमरा दिस नयन भैर देख टा लियऽ। सीताजी दुष्ट रावणके दिस बिन तकने श्रीरामचन्द्रजीके अपन मानसपटलमें राखि घास दिस तकैत बजैत छथिन ‘रे दसमुख! भगजोगनीके प्रकाश सऽ कि कहियो कमलिनी फूलाइत छथि? तों अपनो लेल एहने मनहि-मन बुझ। तोरा श्री रघुवीरके बाण के सुइध नहि छौक।

रावण स्वयंके भगजोगनी आ श्रीराम के कमल फूलके फूलेनिहार अर्थात्‌ सूर्यके समान तुलना सुनि एतेक तामशमें आबैछ जे चट्‌ दिना तलवार निकैल लैछ आ कहैछ जे आबो हमर बात मानि लियऽ हे सुमुखि सीता, नहि तऽ प्राण सऽ हाथ धोबय पड़त। सीताजी फेर कहैत छथिन –

स्याम सरोज दाम सम सुंदर। प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर॥
सो भुज कंठ कि तव असि घोरा। सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा॥2॥
चंद्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल संजातं॥
सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा॥3॥

रे दशग्रीव! प्रभुजीके भुजा तऽ श्याम कमल केर माला समान सुंदर आ हाथीके सूँड समान पुष्ट छैक, या तऽ वैह भुजा हमर कंठमें पड़त या फेर तोहर भयानक तलवार मात्र पड़ि सकत। रे शठ! सुन, यैह हमर सत्य-प्रतिज्ञा अछि।

सीताजी फेर कहैत छथिन – हे चंद्रहास (तलवार)! श्री रघुनाथजीक विरहकेर अग्नि सँ उत्पन्न हमर एहेन भारी जलनके तू हैर ले, हे तलवार! तू शीतल, तीव्र आ श्रेष्ठ धारा बहबैत छेँ, तू हमर दुःखक बोझके हैर ले।

सीताजी के एहेन कठोर मुदा पतिव्रता धर्मके ज्ञान आ सम्मान सँ – तेजसँ भरल ओजपूर्ण बात सुनिके रावण समान कठोर निर्दयीके मस्तिष्क सेहो अवाक्‌ रहि गेलैक। ओ मात्र अपन गिदरभभकी देखबैत रहब उचित नहि बुझलक आ पिशाचिनी सभके आदेश दैत जे सीताजी के डरा-धमका के ओकर पक्षमें करय कहि ओतय सँ खाली हाथ आ निराश मन सऽ हँटि गेल।

मैथिली ऊपर रावण (कोनो राजनीतिक विद्वेष) के प्रलोभन – भयभीत करयवाला चन्द्रहास के परिहास टा बनैत छैक। मैथिली कोनो साधारण नहि थिकी। ई तऽ मर्यादा पुरुषोत्तमके हृदयमें बसनिहाइर थिकी। मैथिली भाषा होइथ, व्यवहार होइथ, संस्कृति होइथ वा सम्मानके द्योतक कोनो वस्तु, भावना – जे किछु होइथ – सदिखन अपन सनातन प्रभाव सँ प्रखर रहैत छथि। लेकिन मैथिली के आइ रावण सँ बेसी यदि भय आ त्रास देखाबयवाला केओ छन्हि ओ नैहर-सासुरके लोक स्वयं। अपन बेटी-बहिन-पुतोहु प्रति बेईमान मंशा रखनिहार अनेको रावण आइ मिथिला आ कोसलपुर में स्वच्छन्द विचरण कय रहल छथि आ लंकाके निसाचर सऽ लड़यके हिम्मत तऽ बहुत दूर, ओ अपनहि घरमें नैतिकता के एहेन परित्याग कयने छथि जे घरके बेटी-पुतोहु स्वयं हिनका सऽ त्रसित कोहुना-कोहुना अपन इज्जत-मर्यादाके बचाबयमें लागल छथि। जखन एहि रावणरूपी भाइ-बाप-पुरुष परिजनँ छुटकारा भेटैत छन्हि कि अपनहि घरमें हजारो पिशाचिनी के त्रास हिनका ऊपर दहेज सहित अनेको उत्पीड़न के कहर बरसाबैत रहैत छथि। मैथिली सनातन रहितो एना अफरातफरी मचल बुझा रहल छैक जे आब कि होयत, फेर कि होयत!

यदि अपन मातृभाषा आ मातृभूमिके स्वाभिमान लेल मातृपुत्र तैयार नहि – मातृशक्ति तैयार नहि – तखन तऽ स्वराज्य के संग स्वाभिमानके हर अस्मिता सरेआम बाजारमें निलाम होयत। आउ, एहि लेल प्रण करी जे हम मैथिल अपन सर्वस्व सँ अपन मातृभूमि, मातृभाषा, मातृशक्ति, मातृसम्मान, मातृ-अस्मिताके रक्षा करब। एहि लेल लंकाके रावण सऽ बादमें लड़ब, पहिले स्वयंके घर उपजल अनेको रावण के अपन नियंत्रणमें करब हमर सभके प्रथम कर्तब्य थीक। जहिया निज कर्तब्यसँ अहंताके मारि भगायब, फेर मैथिली अपन परचम्‌ संसार कि ब्रह्माण्डमें फहरौती।

जय मैथिली! जय मिथिला!

हरिः हरः!

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बहुत आनन्दकेर समाचार जे दिल्लीमें मैलोरंगके आयोजना आ साहित्य अकादमी के सहयोग सँ कथा-रविन्द्र ‘सगर राति दीप जरय-७६’ कार्यक्रम सफलतापूर्वक सम्पन्न भेल आ एहिमें मैथिलीके मूर्धन्य कवि-कथाकार सभ सहभागी बनलाह। आयोजक के हार्दिक धन्यवाद आ साहित्य अकादमी प्रति सेहो आभार जे अहिना प्रतिबद्ध आ ईमानदार आयोजक वर्गकेँ सदिखन प्रोत्साहित करैत रहैथ।

कोनो कार्यक्रम आयोजन करब साधारण बात नहि होइत छैक आ बहुत शालीनता के संग हिम्मतपूर्वक कोनो कार्य निष्पादन होइत छैक। मैलोरंग एवं समस्त सहभागी कथाकार-साहित्यकार आ विशेषतः महेन्द्र मलंगिया जे अपन उम्र के एहि मोड़पर सेहो मैथिलीके सेवामें मलंगिया गाम सऽ बहुत दूर तक यात्रा करैत मैथिली के सनातन स्वरूपके रक्षार्थ पहुँचलाह।

जय मैथिली! जय मिथिला!

पुनश्च: एहि आयोजनमें किछु असन्तुष्ट पक्ष सेहो बनलाह जे पूर्ववत्‌ अपन दखलंदाजी चाहैत छथि, लेकिन मैथिल परंपरा एतेक कमजोर नहि जेकरा केओ एक व्यक्ति वा कोनो एक संस्था अपन ढंग सऽ तोड़-मरोड़ कय सकत। सुझाव आयोजन सँ पूर्व देबाक लेल शायद कोनो रोक नहि छैक आ आयोजन उपरान्त आपसी थाल-खीच खेलाइ लेल सेहो आवश्यकता नहि पड़ैत। लेकिन खंडी मैथिल के अपन ताण्डव करऽ से के रोकि सकैत अछि। हमर बात अहाँ काटू आ अहाँके बात हम काटब।  यैह चलैत आयल अछि आ चलबो करत। दुनिया सुधैर गेल, मैथिल के सुधरयमें समय लागत। शाप के बात सच छैक, विश्वास मानू। हास्य के संग सच्चाई के प्रत्यक्ष प्रमाण फेर सोझां में अछि।

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२६ मार्च २०१२
आमंत्रण पत्र

राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन २०६८
राजविराज, सप्तरी, नेपाल
चैत्र १८-१९ गते, २०६८। (मार्च ३१, अप्रील १, २०१२ ई.)
आयोजक: मैथिली साहित्य परिषद, राजविराज

उद्‌घाटन समय: दिनके ११ बजे
स्थान: प. वि. माध्यमिक विद्यालय, राजविराज

कार्यक्रम संयोजक: श्री विष्णु कुमार मण्डल

मूल नारा: “जे बजैत छी सैह मैथिली”।

अपार हर्षके संग अपने लोकनिकेँ सूचित कय रहल छी जे समस्त नेपालमें कार्यरत विभिन्न मैथिली-मिथिलासेवी संघ-संस्था सभक सहभागिता साथ नया नेपालकेर निर्माणाधीन संविधानमें मैथिली भाषाक सम्मानजनक स्थिति हेतु सम्माननीय प्रधानमंत्री डा. बाबुराम भट्टराई जी के मुख्य आतिथ्यमें द्विदिवसीय ‘राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन – २०६८’ केर आयोजन नेपालक प्राचिनतम संस्था मैथिली साहित्य परिषद्‌, राजविराज द्वारा होमय जा रहल अछि।

नेपालक संविधानमें मैथिली भाषाके सम्मानजनक स्थान आ भाषिक एकताक मूल उद्देश्य प्रति समर्पित एहि समारोहमें निम्न कार्यक्रम सभ करबाक योजना अछि।

पहिल दिन:
१. सांस्कृतिक झाँकी-प्रदर्शनी
२. सम्माननीय प्रधानमंत्री डा. बाबुराम भट्टराई जी द्वारा समारोह के विधिवत्‌ उद्‌घाटन एवं संबोधन
३. मैथिली भाषाके वर्तमान स्वरूप एवं समसामयिक विषयपर प्रा. अमरकान्त झा द्वारा कार्यपत्र प्रस्तुति
४. सांस्कृतिक कार्यक्रम

दोसर दिन:
५. कार्यपत्र प्रस्तुति उपरान्त मंथन-समीक्षा
६. साहित्यिक गोष्ठी
७. राजविराज घोषणापत्र जारी

समस्त मैथिली-मिथिलासेवी संघ-संस्था एवं व्यक्तित्व सँ एहि कार्यक्रममें बैढ-चैढके सहभागी बनबाक लेल निवेदन करैत छी।

निवेदक:
प्रवीण ना. चौधरी
महासचिव, मैथिली सेवा समिति,
विराटनगर, नेपाल।

विशेष जानकारी के लेल सम्पर्क: श्री शुभचन्द्र झा ९८४२८५५२४७

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हनुमानजी संकटमोचन छथि – दुःखहरण लेल प्रत्यक्ष छथि – मिथिलाक मैथिली लेल हनुमानजी के?

एहेन कोनो गाम नहि – कोनो शहर नहि – कोनो जगह नहि जतय बजरंगबली नहि या हिनकर भक्त नहि! किऐक तऽ महादेव के एक रूप हनुमानजी सदिखन सेवाभाव सऽ अपन जीवन चरित्र केने छथि आ प्रभुजी सीताराम भगवान्‌ के शरण में रहैत सदिखन सुन्दर आशीर्वाद प्राप्त कयने छथि – अपना लेल कि रखता ओ बस शरणागत भक्त लेल सभटा खजाना खोलिके रखने छथि। आइ भिनसरमें सीताजी के विरहके अग्निक चर्चा – रावणक त्रास आ समाधान लेल विकलताके बात केने रही। परम-विरहाकुल सीताजीकेँ देखि – हनुमानजी अकुला गेला आ तुरन्त मनोहर मुंद्रिका (सीताजी केर प्रेमक निशानी जे प्रभु श्री रामचन्द्रजी देने छलाह) से सोझाँमें फेंकि सीताजीके विस्मित करैत छथि – दुःखी तऽ ओ छलथिये, लेकिन मुंद्रिका देखि ओ मिश्रित प्रतिक्रियाके स्थितिमें अबैत छथि। तदापि घोर सोचमें पड़ैत छथि जे आखिर एहि जगह ई अँगूठी कतय सऽ कोना आबि गेल… प्रभुजी तऽ अजेय छथि… हुनका तऽ केओ किछु बिगैड़ नहि सकैत अछि… तखन फेर… एतबा में हनुमानजी कहैत प्रभुजीके गुणगान करय लगैत छथि। सीताजी प्रकट होयबाक लेल निवेदन करैत छथि, मुदा प्रकट भेलाके बाद भक्तप्रेमी हनुमानजीकेँ देखि सीताजी मुँह फेर लैत छथि… किऐक… धूर… ई बानर कोना एतेक नीक गान कय सकैत अछि। हाय रे भोला अनमोला! रूप केहेन-केहेन धरैत छथि – आ काज कतेक महान्‌ करैत छथि। हम-अहाँ तऽ सभटा जनैत छी ने यौ… चलु मुदा जगज्जननी चरित्र प्रस्तुत कय रहल छथि – मुँह फेरि लैत छथि। मुदा हनुमानजी मैयासँ कहैत छथि जे माँ, अहाँ एना अविश्वास नहि करू… ई अँगूठी हमही अनलहुँ अछि, प्रभुजी हमरा निशानीके रूपमें अहाँ लग अपन पहिचान बनाबय लेल देने छलाह। तैयो सीताजीके विश्वास नहि होइत छन्हि – पूछैत छथि जे आखिर एक नर (श्रीराम) केँ बानर केर संग कोना? कनेक कालके लेल हमहुँ-अहाँ सीताजीके स्थानपर रही आ सहज-मानवीय बुद्धिसँ काज ली तऽ अटपटा नहि लागत। संसार में आइयो कतेक लोक के अहिना लगैत छैक। लेकिन रामजी बेसी एहने कूल-मूल सभसँ सत्संग केने छथि – अहाँ सभ के तऽ विश्वास किऐक नहि होयत। अहाँ सभ तऽ मिथिलावासी थिकहुँ… रामजीके पाहुन जे बुझैत छियन्हि। लेकिन अहाँके बेटी सियाजी के एहेन विकट परिस्थितिमें संकटमोचन हनुमानजी पाहुनके औंठी देखेलखिन – तैयो बचियाके विश्वास नहि भऽ रहल अछि। मैथिलानी होइते छथि बड़ भोली – आ बुद्धि ततेक जे अपनो सुधि-बुधि बिसरायल रहैत छन्हि।

लेकिन हनुमानजी संपूर्ण वृत्तान्त कहैत छथि आ माँ सीताके सभटा विश्वास होइत छन्हि। लेकिन विश्वास भेला सऽ विरहके धधक कहाँ कम भेलन्हि? जाहि तरहें रावणक फाँसमें फैँसि गेलीह आ प्रभुजी के मुँह देखना कतेक घड़ी-दिवस बीत गेलन्हि से कष्ट के कोना भगेती? कहय लगलीह – विरहक समुद्रमें डूबैत हमरा लेल अहाँ जहाज समान भेलहुँ – हे पुत्र हनुमान! प्रभुजीके अनुज सहित कुशलता सुनाउ पहिने। हमर स्वामी तऽ कोमल हृदय आ कृपालु छथि… ओ एहेन निष्ठुर कोना भऽ गेल छथि? सेवक केँ सुख देनाय तऽ हुनक स्वाभाविक बैन छन्हि, कि ओ केखनहु हमरो स्मृतिमें अनैत छथि? हे पुत्र! कि हुनक कोमल श्यामल कान्तिके हमरा फेरो दर्शन कहियो होयत? आ… सियाजी कनैत बजलीह जे हे नाथ अहाँ हमरा बिसैर गेलहुँ। हनुमानजी सियाजीसँ प्रभुजीके सभ कुशल-क्षेम कहैत एक पंक्तिमें एतबी कहिके पूर्ण सान्त्वना दैत छथि जे माँ अहाँ के दुःखसँ ओ बहुत दुःखी छथि – जनि जननी मानह जियँ ऊना। तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना॥ हे माँ! अहाँ अपन मन छोट नहि करू, अहाँ सऽ हुनकर प्रेम दुगुना छन्हि। तेकर बाद माँ सीताके धीरज दैत हुनक संदेश निम्न पाँतिमें वाँचैत छथि:

हे सीते! अहाँके वियोगमें हमरा लेल सभ पदार्थ प्रतिकूल बनि गेल अछि। गाछकेर नव-नव कोमल पत्ता मानू जे आइग-समान, राइत कालरात्रिक समान, चंद्रमा सूर्यक समान आ कमलकेर वन भालकेर वन समान बनि गेल अछि। मेघ मानू खौलैत तेल के बरखा कय रहल अछि। जे हित करयवाला छल, ओहो सभ पीड़ा देबय लागल अछि। त्रिविध (शीतल, मंद, सुगंध) वायु साँपक श्वास-समान (जहरभरल आ गरम) बनि गेल अछि। मनक दुःख कहि देला सऽ किछु घैट जाइत छैक, लेकिन केकरा सऽ कहू? ई दुःख केओ नहि जनैत अछि। हे प्रिये! हमर आ अहाँकेर प्रेमक तत्त्व (रहस्य) केवल हमर मनहि टा जनैत अछि। आ, से मन सदिखन अहीं लग रहैछ। बस, हमर प्रेमकेर अर्थ एतबीमें बुझि जाउ।

प्रभुजीकेर संदेश सुनैत देरी जानकीजी प्रेम में मग्न भऽ गेलीह। हुनका अपन शरीर तक सुधि बिसरा गेलन्हि।

हनुमान्‌जी फेर कहलखिन जे माँ अहाँ धैर्य धारण करू, केवल प्रभुजीके स्मरण करू। कायरताके परित्याग करू। राक्षसके समूह फतिंगा आ प्रभुजीके बाण अग्नि – एकरा सभके जरले बुझू। हुनका जँ खबैर कय देने रहितियैन तऽ ओ कदापि विलंब नहि करितैथ। जखनहि रामबाणरूपी सूर्य उदय होयत कि राक्षसरूपी अंधकार के अस्त बुझू। हम तऽ एखनहि अहाँके एतय सऽ लऽ के जा सकैत छी, मुदा हमरा प्रभुजीके आदेश नहि अछि। ओ एहिठाम औता अपन बानरी सेनाके संग आ एहि समस्त राक्षसक समूह के मारि अहाँके मुक्त कऽ के एतय सऽ लऽ चलता। यैह में हुनक यशगान सेहो हेतन्हि।

लेकिन मैथिली के फेरो बुझाइत छन्हि जे सभ कि अहीं समान बच्चा सभ छथि हे हनुमान – आ कि हनुमानजी अपन विशाल रूप प्रकट करैत छथि। पुनः माँके भरोस होइत छन्हि जे प्रभुजी जाहि सेना कऽ लऽ के आबि रहल छथि ताहिमें कतेक पैघ-पैघ योद्धा सभ छैक। एतबा नहि, एक अत्यन्त प्रखर तेज सऽ भरल बात हनुमानजी कहलन्हि जे माँ सीताके बहुत नीक लगलन्हि आ आत्मविश्वास के बढाबयवाला भेलन्हि।

सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल।
प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल॥

हे माता! सुनू! बानरमे बहुत बल-बुद्धि नहि होइत छैक, लेकिन प्रभुजीके प्रताप सऽ बहुत छोट साँप सेहो गरुड़के खा सकैत छैक। अर्थात्‌ अत्यंत निर्बल सेहो महान्‌ बलावान्‌ के मारि सकैत अछि। केवल प्रभुजीके आशीर्वाद टा चाही।

स्मरण योग्य एहि पाँति टा के ध्यान करी हम मैथिल! यैह उक्तिरूपी हनुमानजी आइयो साक्षात्‌ छथि, सोझाँ छथि – मैथिलीरूपी सीताके शोक हरण करय लेल यैह टा काफी अछि। बस मनन एहि पर करी जे अधीर बनि ओछ आ ओजविहीन क्रियाकलाप हम सभ नहि करी।

जेना हनुमानजीकेँ रामभक्त के रूपमें चिह्नित कयके माँ सीताजी आशीर्वाद दैत छथिन जे “आसिष दीन्हि राम प्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना॥” – तहिना आजुक मिथिलाके मैथिली समर्पित मिथिलापुत्र हनुमानजीकेँ अपन आशीर्वचन सँ ओत-प्रोत रखती, से विश्वास मानू। जेना हनुमानजीकेर मुँह सँ माय के आशीर्वाद पैयलाके उपरान्त गद्‌गदी किछु एना निकललैन्ह –

बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा॥
अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ बिख्याता॥

हनुमान्‌जी बेर-बेर सीताजी के चरणमें माथ नमबैत हाथ जोड़ि कहलैथ – हे माता! आब हम कृतार्थ भेलहुँ। अपनेक आशीर्वाद अचूक होइछ, यैह बात प्रसिद्ध अछि।

अवश्य, मैथिली के हृदय जे जितत से बनत हनुमान आ पायत माँके अचूक आशीर्वाद एहि में कतहु दू मत नहि। एहि प्रसंग के अन्तमें अपन मूल उद्देश्य के प्रथम चरण पूरा भेल देखि हनुमानजीकेँ जोर सऽ भूख लगैत छन्हि। जखन अहाँ सभ सेहो अपन कार्य कय लैत छी तऽ भूख लागब स्वाभाविके छैक। काल्हि देखी जे कोना के भूख के हनुमानजी शान्त करैत छथि – माय के सेहो पूरा आशीर्वाद भेटले रहैत छन्हि। तखन फेर चिन्ता कि? जे खाउ, माय के पहिने कहि दियौन जे माय आब ई खाय के मन होइत अछि।  जाउ, आब अहुँ सभ खाउ आ हमहुँ किछु खाइ। फेर आयब।

जय मैथिली! जय मिथिला!

हरिः हरः!

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संस्कृत के देवभाषा कहल जाइत छैक – आधुनिकता के फैशनमें पश्चिम भारतीय संस्कृति पर अपन कहर एहेन बरसेलक जे भारतमें सेहो प्राथमिक विद्यालय सँ लैत उच्च-स्तरके शिक्षा संस्कृत माध्यम सऽ लेनिहार के कमी भऽ गेल अछि। अंग्रेजी के प्रभाव मैकाले के कहल-सोचल अनुसार एहेन भेल जे भारत के मूल भाषा आ शिक्षा पद्धति आइ भारतहिसँ गायब भऽ रहल अछि। लेकिन देवभाषा थिकैक तऽ सनातन स्वरूप कायम रहबे करतैक। आब यदि भारत नासाके माँग अनुसार १००० संस्कृत के विद्वान्‌ पठाबय सऽ असमर्थ छैक – या विद्वान्‌ स्वयं एतेक आत्मविश्वास के धनी नहि जे एहेन मौका के फायदा उठा सकैथ; जे-से… अमेरिका आब संस्कृत के ताकतके आत्मसात्‌ करैत अपनहि देशमें नर्सरी सऽ संस्कृत के पढाई शुरु करौलक अछि। अन्तो-अन्तो एहि समाचार सँ यदि हमरा सभमें चेतना जागय जे नहि सिर्फ देवभाषा संस्कृत बल्कि अपन मातृभाषा के कोनो अन्य भाषा सँ बेहतर प्रभाव होइत छैक तऽ शायद हमरा सभके कल्याण जरुर होयत। अपन मूल सभ्यता आ संस्कृतिके संरक्षणमें सभ केओ आगू बढू आ अपन धिया-पुताके प्रारंभिक ज्ञान कम से कम अपन मातृभाषा मैथिली (जिनकर जे हो…) में आ तदोपरान्त देवभाषा संस्कृत के शिक्षा अनिवार्य रूपमें दियाबी। एहि सँ मस्तिष्क स्वच्छ-समझ राखत आ कोनो बात के सहजता साथ आत्मसात्‌ करयमें सक्षम होयत।

हरिः हरः!

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२७ मार्च २०१२
श्रेष्ठकेर त्याग – हनुमानजी सेहो बंधनमें! मिथिला में कि?

माँके आशीर्वाद – माँपर भेल अत्याचार के मनन करैत हनुमानजी आब राक्षस के घरमें एहेन उत्पात मचेला जाहिसँ छोटका-मोटका में तऽ जे त्रास पसरलैक से एक भेल, रावण समाद पबिते अपन बलवान्‌ पुत्र अच्छकुमारके पठौलक तेकरो बध कय देलखिन – लेकिन आब रावण अतुलनीय जोद्धा इन्द्रजीत मेघनादके पठौलन्हि जेकरा संग विभिन्न तरहें हनुमानजी लड़लाह आ अन्ततोगत्वा मेघनाद हिनका असाधारण बुझैत ब्रह्मास्त्रके प्रयोग कयलक तखन सिर्फ एहि विशिष्ट अस्त्रके महिमाके रक्षार्थ पवनपुत्र स्वयंके समर्पित करैत मुरुछित भऽ गेलाह आ तदोपरान्त मेघनाद हिनका नागपाश सँ बाँधि रावणक दरबार दिसि लऽ गेल। तुलसीदासजी के विलक्षण प्रस्तुति एहि शब्दमें अति मनन योग्य अछि:

ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार॥

अहु सऽ आगू लिखैत छथि तुलसीदासजी – जे सत्यके मर्मके हमरा सभके लेल एतेक सुन्दर आ सहज रूपमें रखैत अछि:

जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥

जिनक नाम मात्र जप कय के ज्ञानी-विवेकी मनुष्य संसार (जन्म-मरण)के बंधन के काटैत अछि, हुनक दूत कि बंधन में आबि सकैत छथि? बस, प्रभुजीके कार्य लेल हनुमानजी स्वयंके बन्हबा लेला।

आब तऽ बड़का तमाशा ठाड़्ह भऽ गेल – जाहि लंकाके समस्त निशाचर समाज त्रसित भेल छल आखिर ओ बन्हा गेल – सुनैत देरी चारू तरफ सऽ लोक एहि कौतुक दर्शन लेल आबि गेल। हनुमानजी रावणक विलक्षण दरबार में पहुँचैत छथि – ओहिठाम देवता आ दिक्पाल सभ सेहो बहुत नम्रताके संग रावणक भय सँ त्रस्त बस रावणकेर भृकुटि दिस ताकि रहल छथि। लेकिन हनुमानजी अत्यन्त निःशंक-निर्भय बनल डटल ठाड़्ह छथि। आगू रावण संग कोन बहादुरीके संग ओ अपन नीतिपूर्ण बात रखताह तेकर प्रतिक्षा करू आब।

एहि प्रसंगमें श्रेष्ठक त्याग – त्यागक पाछू के सुन्दर उद्देश्य – ई बहुत अनुकरणीय बात अछि। मिथिलामें सभ श्रेष्ठ छथि – सभ एक-पर-एक छथि। कोनो ऐश्वर्यके कमी नहि। लेकिन मानसिक दरिद्रता एहेन जे त्याग तऽ दूर त्याग लेल कहनिहार तक के पसिन्न नहि करैत छथि। आइ यैह कारण भेलैक जे विद्वान् के खान कहाइवाला मिथिला पेटपोसा निसाचर के बथान बनि गेल अछि। व्यक्तिगत स्वार्थ सऽ ऊपर कोनो विचार नहि। गाम कनैत अछि ताहि सऽ कोनो मतलब नहि। अपने परदेश में गाड़ी-मकान आ अपन धियापुता लेल नीक शिक्षा-दीक्षाके इन्तजाम मात्र जीवनक उद्देश्य होइछ। मैर गेला के बाद संतान सद्‌गति प्रदान हेतु सेहो कोनो उपाय करताह आ कि आधुनिकता के नामपर बिजली दाहगृहमें झोंकि किछुवे कालमें अस्ति-प्रवाह करैत अपन उतरी उतारि सेहो भसिया देताह – एहेन भऽ गेलाह मिथिलाके महापुरुष सभ! गामक संस्कृति – पारिवारिक संस्कार विलुप्तप्राय भेल जा रहल अछि। त्याग माने बेवकूफी। आइ बेवकूफ केओ बनि सकैत अछि कि?

मिथिलालेल जे हनुमान केर चर्चा काल्हि केने रही ताहिके युक्ति सँ मुक्ति जरुर हेतैक, एहि पर मंथन जरुरी छैक।

हरिः हरः!

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२८मार्च २०१२
हनुमान्‌-रावण संवाद – संत सदिखन कल्याण मात्र चाहैत छथि! कि मिथिला संतविहीन भऽ गेल?

आइ, पहिले लिखब किछु छंद:

तू हंसि ले मुदा मानि ले एते हमर बात
जुनि कर मनमर्जी लऽ ले प्रभुके साथ!

बल जे छौ से छल छौ देखाबा,
एखन छौ जानि तखन कि हेतौ
तैयो दमक के धमक चमक सऽ,
जुनि कर जीवन बर्बाद!
मानि ले एतेक बात!
लऽ ले प्रभुके साथ!

धन्य पिता ओ जगमें सभक,
हमर तोहर कि खेती?
सभ हुनकहि थीक, तैयो हम तू,
जानि कतेको भटकी!

बस मानि ले – बस मानि ले
तू जानि ले – तथ जानि ले
जुनि कर जीवन बर्बाद!
मानि ले एतेक बात!
लऽ ले प्रभुके साथ!

एहि संवादमें बहुत किछु सिखयवाला बात अछि। एहिपर हम सभ मनन करी। एहेन नहि छैक जे रावण हमरा-अहाँ वा केओ व्यक्तिमें नहि अछि। अछि! हमर अहं, हमर झूठ के अभिमान, छल, बल, कपट, द्रोह, संदेह, द्वंद्व, हठ, मूढता – एहेन हरेक लक्षण जे हमरा सभके क्षणिक सुख लेल प्रेरित करैछ, ओ सभ रावणकेर प्रतिनिधित्व कय रहल अछि। लेकिन संगहि परमपिता परमेश्वर सेहो हमरहि अहाँमें छथि – रावणमें सेहो ओ छलाह। जीवनकेर स्वतंत्र अस्तित्वमें हुनक सनातन नियम अनुसार हमहुँ-अहाँ स्वतन्त्र छी कर्म करय लेल। अवश्य नियंत्रण एखन आ हर घड़ी हुनकर छन्हि, लेकिन जाहि अभियांत्रिकी सऽ हमरा सभके निर्माण भेल अछि ताहि पर कार्य करब आ भविष्य लेल गति तय करब लेल हम सभ अवश्य स्वतन्त्र छी, जे स्वतन्त्रता हुनकहि देल अछि।

आब यदि हम सभ जीवनके एहि अनमोल घड़ीके ईश्वरके ऐश्वर्य चोरी करयमें खर्च करी तऽ एक बेर के लेल तऽ केओ नहि रोकत… परन्तु रोकय लेल हनुमानजी निज-प्रकृतिमें तऽ विराजमान छथिये, समस्त जनमानसमें संत-समाज – श्रेष्ठ गुरुजन सभ सेहो हमरा अहाँ के लेल आवश्यक स्वरूप निर्धारण करैत छथि। लेकिन निज-स्वतंत्रताके दमन केओ नहि कय सकैछ। ईश्वरके यैह सर्वमान्य सिद्धान्त छन्हि।

सुन्दर काण्डमें आजुक प्रसंग अछि रावणसंग हनुमानजीके संवाद – ब्रह्मास्त्र प्रयोग कयलापर इन्द्रजीत मेघनाद द्वारा स्वयं बन्हनमें पड़ैत हनुमानजी रावणकेर विलक्षण दरबार में निःशंक ठाड़्ह छथि ई देखि अभिमानी रावण हुनका सऽ पूछि बैसैछ जे सारा वाटिका उजाड़ि एतेक लोक के संहार करैतो – एतय तक जे हमर पुत्र अच्छकुमार के बध के अपराध केने हनुमान तों एतेक निःशंक – निडर हमर दरबार में ठाड़्ह कोना छेँ?  हनुमानजी बहुत युक्तिपूर्वक रावणके बुझेलखिन:

जिनक बल पाबि माया संपूर्ण ब्रह्माण्डकेर रचना करैछ,
जिनक बल सऽ सृष्टिके सृजन, पालन, संहार होइछ,
जिनक बलसँ सहस्रमुख शेषजी ब्रह्माण्डके सिरपर रखैछ,

जे देवगणकेर रक्षा लेल अनेको प्रकार के देह मे जैथ,
जे मूढ-अभिमानी-क्रोधी-कामी के शिक्षा दैथ,
जे शिव-धनुष तोड़ि सभ राजा के घमंड हरैथ,
जे खर-दूषण-त्रिशिरा-बाली सम अतूल्यके मारैथ,

जिनक लेशमात्र बलसँ तों जगके स्वामी बनें!
जिनक निज अंगकेर तों चोरी केलें!

रे मूढ रावण! हम हुनकहि दूत छी!
तोहर सभ खेल हमरा पता अछि,
तों सहसबाहु संग लड़लें,
बालि संग युद्ध कय कोन जस पेलें!

अरे! भूख लागल तऽ फल हम खेलहुँ,
बानर छी से गाछो तोड़लहुँ,
हमरा जे मारलक ओकरे मारलहुँ,
देह सभक प्रिय हमहुँ बुझलहुँ!

यैह अपराध मोर पुत्र तोर बान्हल,
एहि सऽ नहि हम बनल अभागल,
हम प्रभुजी के काजहि लेल बनल!

हाथ जोड़ि एतबी तोरा कहबौ,
छोड़ अभिमान सीख मोरा सुनि ले,
त्यागि भ्रम बस प्रभुजी भजि ले,
जे सभ कालहु के छथि खाइ,
हुनका संग कि बैरी करैय,
मान कहब मोर जानकी दे भाइ!

ओ छथि प्रिय शरणागतवत्सल,
रक्षा-दया के सागर धाम,
शरण जे जाय से माफी पाबय,
तोरो रखथुन शरणमें राम!

धरे हुनक पद हृदयमें हरदम,
अचल राज्य चलबे तों सदिखन,
पुरखाके यश चन्द्र समान,
जुनि बन करिया दाग बेइमान!

राम नाम बिनु शोभा नहि छै,
मद-मोह छोड़ि तों सोच-विचार,
सजल-धजल नारी बिनु कपड़ा,
कथमपि नहि शोभय संसार!

रामविमुख संपत्ति-प्रभुता सभ,
रहितो बनय खुद काल समान,
बिना कोनो स्रोत के नदी जेना,
बरखा बितैत बनैत अन्जान!

सुन दसकंधर! केओ नहि बचेतौ,
द्रोह तोहर बड़ दूर्भागी,
कोटि देव रक्षा नहि करथून,
रामक द्रोही जे अभागी!

मोह जेकर बस मूल छौ,
अभिमान तमी तों छोड़ि दे,
स्वामी कृपालु बस रामचंद्र,
हुनकहि भजन तों गाबि ले!

लेकिन हनुमानजी के भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और नीति भरल हितवाणीके बात पर मनन के बदला अभिमान के नशा के प्रभाव देखियौक जे रावण एहि समस्त बातके हंसीमें उड़ाबैत अछि आ उलट हनुमानजीके कहैछ जे मृत्यु हुनक नजदीक अछि….! हनुमानजी आब केवल मुस्कुराइत ई बुझि जाइत छथि जे एकरा मतिभ्रम छैक, कहैत छथिन जे उल्टा हेतौक। खिसियायल रावण पुनः अपन क्रोधके दंभ भरैछ, राक्षस सभ हनुमानजी तरफ दौड़ैछ – लेकिन नीति-निपुण विभीषणजी ताहि घड़ी ओहिठाम अबैत छथि आ दूतपर संहार के विरोध करैत छथि – सभ हुनकहि बातके मानैछ आ तेकर बाद काल्हि सुनब जे ढेर होशियार लोक कोना कऽ ढेरी होशियारी देखबैछ आ कोना लंकामें आगि लगैछ।

मिथिलाके पुरखा पुलस्त्य ऋषि, आजुक संतान रावण समान दंभी-अभिमानी जे पुरखा के ऐश्वर्यपर चमैक रहल अछि… केओ बुझेबो करैत छैक जे एना केला सँ कल्याण छैक तऽ रावण समान खोंखिया उठैछ। तदापि किछु विभीषण तऽ रहिते छथि, ….

Mithila ke Hanuman Jee ke kalyaankaari upadesh jarur bacha sakait chhaik, Vibhishan kadaapi Ravan ke ahit nahi chahait chhalaah. Bas, manan yogya baat etabi je Hanuman aa Vibhishan aa Ravan anya me khoja sa bahut neek je sabh ke swayam me darshan kari aa Matribhumi ke asmitaa ke raksha lel – Maithili ke raksha lel pran li.

Jay Maithili!

Harih Harah!

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लंका में अग्निकाँड! मिथिलामें आपसी-द्वेषके आगि!

औझका प्रसंग अछि लंका दहन! काल्हि जखन विभीषणजी रावणके दरबारमें दूत पर प्रहार के उचित नहि कहलन्हि आ एहि बात के सभ समर्थन कय देलखिन तेकर बाद फैसला लेल गेल जे बंदरके सभ सऽ बेसी ममत्व पूँछ पर होइत छैक। किऐक नहि कपड़ा तेलमें भिजा एकर पूँछपर बान्हि आगि लगा देल जाय। जखन ई पूँछविहीन बंदर अपन स्वामी (रामजी) जिनकर ई खूब बड़ाई कयल अछि तिनका लग जायत आ हुनको संग लऽ आनत, देखी जे कतेक सामर्थ्य छन्हि हुनका।

हनुमानजी मनहिमन हँसय लगलाह जे सरस्वतीजी एकरा ऊपर आबि गेल छथि। एम्हर सभ राक्षस सभ आइग लगाबय के तैयारी करय लागल – हनुमानजी माया पसारैत पूँछ एतेक पैघ बना लेला जे कहाँ दैन समूचा लंका में जतेक कपड़ा आ तेल छल से ओहि में समा गेल। राक्षस सभ खूब मजा लऽ रहल छल – जखन मूर्खता कपार पर चढल रहैत छैक तऽ बस खाली मजे टा सुझैत छैक। केओ हनुमानजीके लात लगा रहल अछि, तऽ केओ किछु खिल्ली उड़ा रहल अछि, पूरा नगर घुमा रहल अछि – सभ तमशबीन बनल देखि रहल अछि। ढोल आ ताली बजा-बजा राक्षस सभ खूब झूमि रहल अछि। नशाके झोंक नाशके द्योतक होइत छैक, नशा जखन हाबी रहैत छैक तखन तऽ नशेरी आ दर्शक दुनू के मजा अबैत रहैत छैक। पूरा नगर घुमबैत अन्तमें हनुमानजी के पूँछमें आगि लगा दैत छन्हि। तुरन्त हनुमानजी एकदम छोट रूप बनौला आ फुदैक के एगो सोनक अटारी (महल) पर चैढ गेलाह। ई देखैत देरी राक्षसक स्त्री सभ भयसँ भैर गेल। आ ई देखू!

हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास॥

ताहि घड़ी भगवान्‌ के प्रेरणा सँ उन्चासो पवन चलय लगलाह – हनुमानजी खूब जोर सऽ अट्टहास कयलन्हि आ पुनः एतेक पैघ बनि गेलाह जे आकाशमें ठेकय लगलाह आ दौड़ैत-दौड़ैत एक घर सऽ दोसर घर पर चढैत चारू कात आइग-आइग – बस आइगके भयंकर लपट के झपट चलय लागल। लंका धू-धू कयके जरय लागल। जहतर-पहतर कोलाहल – बाप-बाप – त्राहिमाम मचि गेल। सभ बाजय लागल जे पहिले सऽ बुझैत छलहुँ जे ई कोनो साधारन बानर नहि जरुर कोनो देवता थिक।

महाकवि तुलसीदासजी के विलक्षण रचना ‘रामचरितमानस’ जे मूलतः शिव-पार्वती संवाद सऽ मानव-कल्याण लेल पृथ्वीपर आइ विद्यमान अछि – एहि घड़ी शिवजी माता पार्वतीसँ कि कहैत छथि से मनन योग्य अछि।

हे मैथिल! मिथिलाके लंकामें जाहि तरहक आगि लागल अछि ताहि के प्रमुख कारण सेहो शिवजीके एहि उक्तिमें छिपल अछि। जाहिठाम के पुरखा केँ काल्हि पुलस्त्य ऋषि समान यशस्वी के रूपमें हम सभ तुलना करैत अपन निज व्यवहारके रावणी कहने रही से झूठ अभिमान सँ कल्याणकारक तत्त्वकेँ हम सभ परित्याग करैत छी, अपमान करैत छी आ खतराके स्वयं बजबैत छी। अपन धिया-पुताके अपन संस्कार नहि दऽ केबाहरी संस्कार के पिशाची चोला ओढाबैत छी, तखन मिथिलामें आगि कोना नहि लागत? आइयो मिथिलाके आइगमें कम से कम उन्चासो पवन के भागीदारी नहि भेलन्हि अछि, एखन धरि तऽ बस किछु मैथिली-दुश्मन मात्र अहाँ के पहचान समाप्त करय लेल उपद्रवी हवा चलबैछ। लेकिन अन्य के दोख तखन जखन घरमें हम सभ स्वच्छ रही। घरके घूर पर नियंत्रण नहि तऽ बहरी हवा के कोन दोख?

सुनू शिवजी के परम ज्ञानमय उक्ति:

साधु अवग्या कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥
जारा नगरु निमिष एक माहीं। एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥

साधु के अपमान के ई फल थीक जे नगर, अनाथ समान जैर रहल अछि। हनुमानजी एकहि क्षणमें समूचा नगर जरा देला, केवल एक विभीषण के घर नहि जरल।

ताकर दूत अनल जेहिं सिरिजा। जरा न सो तेहि कारन गिरिजा॥
उलटि पलटि लंका सब जारी। कूदि परा पुनि सिंधु मझारी॥

हे पार्वती! जे अग्निकेँ बनेनिहार छथि, हनुमानजी हुनकहि दूत छथि। एहि कारण सँ ताहि अग्निसँ हुनका कोनो हानि नहि पहुँचल। उलैट-पलैट समूचा लंका जरा देलाह। तदोपरान्त ओ समुद्रमें कूदि पड़लाह।

सियावर रामचन्द्रजी की जय!

मिथिलामें खण्डी बुद्धि मैथिल – एक-दोसर के प्रेम बाँटय के जगह खाली ‘तुँ कि कहमें तों कि रौ… तोरा सऽ तऽ हम छी रौ’… एहि पुरान लोकगीत के धून पर थिरकैत अपन मिथिला अपनहि हाथे जरा रहल छथि। सीताजी (मैथिलानी) के दहेज बले कोनो घरके शान बनायब तऽ एहि पापक भागी बनबे करब। स्वच्छ आचार आ बेटी-कुमैर के जेना पूजा करैत आयल छी, तेना करब तऽ पुनः मिथिलाके ऐश्वर्यमें वृद्धि होयत। एक लाइन, दू लाइन आ हे हैया तीन लाइन।

बेटा बेटी एक समान – दुनू के होइ एकहि सम्मान!

जागू मैथिल – दहेज भगाउ!

बेटीके कोइखमें जुनि मारू!

शिक्षापर सभके समान अधिकार!

हरिः हरः!

**
२९ मार्च २०१२
सीता तहिया आ आब!

प्रसंग सुन्दरकाण्डके अछि जे लंका-दहन उपरान्त हनुमानजी – प्रभुजीके दूत माँ सियाजीके सुधि लऽ के तुरन्त प्रभुजीके पास वापसी करैक लेल अबैत छथि – सीताजी के सोझाँ हाथ जोड़ि ठाड़्ह होइत हुनकासँ कहैत छथि जे हे माता! हमरा कोनो निशानी देल जाउ, जेना प्रभु रघुनाथजी हमरा अपनेक लेल मुँद्रिका देने छलाह – तुरन्त सीताजी अपन चुड़ामणि उतारि हुनका दैत छथि आ अपन समाद किछु एना कहैत छथि:

प्राणनाथ के हमर प्रणाम कहबनि!
सभ तरहें वैह टा पूर्णकाम कहबनि!
दीनदयालु छथि से विधान कहबनि!
संकट असह दूर हो से जान कहबनि!

इंद्रपुत्र जयन्तके गाथा यैद करेबनि!
प्रभुजीके बाणक तेजी सेहो सुनेबनि!
मास भितर नहि औता नाथ कहबनि!
हम जियैत नहि पौता सेहो बुझेबनि!

कहु कोना हम राखब प्राण, अहुँ आब जायब जे गाम?
अहुँ देखि बड़ शीतल जान, पुनः दुसह मो आठो याम!!

हनुमानजी फेर बहुत तरहें बुझेला-समझेला, सभ तरहें माँ जानकीजी केँ धीरज देला आ हुनक चरणकमलमें प्रणाम करैत प्रभुजी श्रीरामजीके पास गमन केला।

हे आजुक सीता! हे आजुक राम!
बस विचारू स्वयं निज कर्तब-काम!

जौं नहि रहत आदर्श के मान
बिगड़त सभटा सगरो शान!!

हरिः हरः!

**
बहुत हार्दिक धन्यवाद जे अपने लोकनि बहुत सुन्दर प्रयास सऽ मैथिली लेखक आ संस्कृतिकर्मी लेल एक मंच निर्माण फेसबुक जगत में केने छी। हमर जुड़य के अनुरोध स्वीकार करैत एहि मंचपर सदस्यता प्रदान करय लेल हार्दिक धन्यवाद! आशा अछि जे हम एहि मंचके गरिमा बनाके राखयमें अपन सर्वोत्तम प्रयास जरुर करब। सहयोग आ मार्गदर्शन केर आकांक्षा रहत।

अबिते पहिले श्री अजित आजादजीकेर एक उक्ति स्मरण करय चाहब – मैथिल खण्डी बुद्धि के होइत छथि – हम सभ बुझितो यदि सैह रहब तऽ हम एहि में एगो आरो उक्ति जोड़य चाहब जे मैथिल पढल-लिखल मूर्ख सेहो होइत छथि। हमर एहि बात के वा कहियो कोनो बात के व्यक्तिगत रूपमें नहि लेब आ नहिये कहियो व्यक्तिगत रूपमें कोनो चर्चामें सहभागी बनय लेल बाध्य करब। ज्ञानक महासागरमें लेखक आ संस्कृतिकर्मी के भूमिका बहुत सार्थक छैक आ अपनेक संगत सऽ नहि सिर्फ हम बल्कि समस्त संसार लाभान्वित होइत अछि। ताहि जगत्‌में सेहो आपसी खींचतान – अनावश्यक ‘दूर-छी-धूर-जी’ हेबे टा करतैक, एहि स्वाभाविक सत्यके आत्मसात्‌ करैत आगू बढब मात्र मैथिली-मिथिला-संसार लेल सार्थक हेतैक।

हरिः हरः!

https://www.facebook.com/groups/181460425238184/

पुनश्च: एहि पोस्टके हम अपन प्रोफाइल पर समस्त मित्रमंडलीकेर आम जानकारी लेल सेहो दऽ रहल छी, कारण कोनो भी परंपरामें नव-पीढी के लोक केँ जोड़ब बहुत जरुरी अछि। अपने सभ संग यदि नव-पीढीके योग्य लोक सभ जुटता तऽ अवश्य ई परंपरामें नव प्रकाश पसरतैक। जय मैथिली! जय मिथिला!

**
३० मार्च २०१२
जीवन के लेखा-जोखा – के कतेक पाइनमें!

साधारण गणित छैक! स्वामी रामसुखदासजी कहलाहा एक बेर हमर आध्यात्मिक गुरु शेयर कयलन्हि आ हमर ई कर्तब्य बनैत अछि जे एहि प्रभावशाली ज्ञान केँ अहाँ सभ सँ सेहो बाँटी। कारण एक समय में बहुतो ज्ञान लोक जल्दी सऽ दोसर के नहि बताबैक आ एहि तरहें बहुतो केँ ज्ञान-विभेद के कारण जीवन संघर्षमय बनलैक। एहि कठिनाई के दूर करय लेल अपन जीवन के कोनो भेद के भेद नहि बनेने हमर प्रयास रहैछ जे अपने सभसँग ओ सभटा जहिना के तहिना बाँटी। बाकी जीवनमें समय के आर कि सदुपयोग हेतैक हमरा लेल? फेसबुक के उपयोग एहि सऽ नीक दोसर कि हेतैक? आउ, मनन करी। हमर लेख कनेक लंबा होइत छैक, हमरो पता अछि। अभगला सभ लेल नहि होइत छैक ई…जेकरा खाली चाही हाइ, ओकरा हम पहिले कहैत छी बाइ! 

जीवनके जमा-खर्च!

दिनमें होइत छैक २४ घंटा!
काज भेल आवश्यक ४ टा!
हर कार्यके लेल बराबर घंटा!
एक-एक के ६-६ घंटा!

भोजन-भ्रमण – (आहार-विहार) लेल ६ घंटा!
विश्राम-शयन लेल ६ घंटा!
चिन्तन-भजन लेल ६ घंटा!
कर्म-श्रम लेल ६ घंटा!

चाहे हो ओ भोजन-भ्रमण के लेल देल समय वा हो विश्राम-शयनमें देल समय, ई दुनू भेल खर्च!
चाहे हो चिन्तन-भजन लेल देल समय वा हो कर्म-श्रम लेल देल समय, ई दुनू भेल आमद!

आब जोड़ू अपन-अपन नित्य-आचार-व्यवहार सऽ – कि अछि जीवनके उपलब्धि!

जेना:
१. नित्य भोरे उठि ५ बजे – करी आवश्यक शौच-स्नानादि-पूजा-पाठ ८ बजे तक – तऽ ३ घंटा आमद केर भेल! + ३
२. ८ बजे नाश्ता लेल गेलहुँ – ९ बजे तक तैयार भऽ गेलहुँ – १० बजे कार्यालय पहुँचलहुँ – तऽ २ घंटा खर्चा केर भेल! – २
३. १० बजे सऽ १२ बजे धरि कार्यालयमें सभ काज ईमानदारी सऽ निबटेलहुँ – तऽ २ घंटा आमद केर भेल! + २
४. १२ बजे फेर चाय पिबय लेल संगी सभ संग चौक पर गेलहुँ – घंटा भैर बस हा-हा-ठी-ठी समय बिताबैत फेर कार्यालय लौटलहुँ – तऽ १ घंटा खर्चा केर भेल! – १
५. १ बजे सऽ कार्यालयमें काजक मात्रा देखि फेर या तऽ ईमान सऽ काजे कयलहुँ या फेर बुझू जे फेसबुक पर भीड़ गेलहुँ – बाजि गेल समय आब ४, तऽ ३ घंटामें जे सही उपयोग भेल, ओ काज द्वारा भेल हो या फेसबुक पर सार्थक चर्चा कयला सऽ भेल हो… समय भेल आमद लेल खर्च। मानि के चलू एक बेर जे एहि उदाहरण में बड़ नीक लोक छथि तऽ सार्थक कार्यमें समय लगौलाह – तऽ ३ घंटा भेल कर्म-श्रम के अर्थात्‌ आमद के! +३
६. ४ बजे फेर पान खाइत घर तरफ प्रस्थान कयल – ५ बजे तक घर पहुँचलहुँ – अर्थात १ घंटा खर्चा के भेल। – १
७. ५ बजे सऽ बारी/बगीचा जाइत खुरपी-पाइन सऽ बाग सजेलहुँ – घर के अन्य काज लेल सेहो आवश्यक बस समय खरचलहुँ। अर्थात्‌ १ घंटा आमद के भेल। + १
८. ६ बजे सऽ ८ बजे धरि धिया-पुता के स्वयं पढेलहुँ – फेर २ घंटा आमद के भेल। +२
९. ८ बजे सऽ १० बजे धरि टीवी-बीबी धूम मचेलहुँ – २ घंटा खर्चाके भेल। -२
१०. १० बजे के बाद शयनमें गेलहुँ – फेर भोर में नं १ सऽ नित्य-दिन समय खर्च होवय लागल। परिवर्तन अनुसार जमा-खर्च करैत रहू। शयन के समय खर्चा के – अर्थात्‌ एतय -७

आब उपरोक्त उदाहरण में १ सऽ लऽ के १० तक के कूल योग: +३-२+२-१+३-१+१+२-२-७ = -१

अर्थात्‌ उपरोक्त उदाहरणवाला के जीवन में सेहो वासलात ऋणात्मक छन्हि, भले परिमाण मात्र १ हो। अर्थात्‌ दिनके ११ घंटा आमदमें, १३ घंटा खर्चामें : एकरामें परिवर्तन आनय के बात अपन हाथ में छैक। लेकिन एहि मापदंड के लेल जखन हम सभ मनन करब तखनहि टा।

सभके जीवन में मानवताके असल अर्थ सुस्पष्ट हो आ सभ एहि मानवीय दुनियाके अभिनेता बनैथ। यैह शुभकामनाके संग!

हरिः हरः!

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सीताजीके सुधि लैत लंका दहन उपरान्त हनुमानजी के पुनः प्रभुजी के पास लौटब!

आजुक समस्त वृत्तान्त एतेक रमणीय आ महत्त्वपूर्ण अछि जे हम बिना कोनो टिप्पणी के केवल एकर अध्ययन पूरा करैय जाउ, सानुवाद हिन्दीके निम्न सुन्दर पंक्ति पूर्णरूपेण पढैत जीवन में स्वयं के हनुमानजीके स्थान पर राखि जीवनकेर उद्देश्य के सीताजी के सुधि लेब समान बुझैत आब पुनः प्रभुजी संग दर्शनके जीवनकेर सफलता मानैत ई समस्त बात हुनकहि कृपा सऽ सम्भव होइछ एकरा आत्मसात्‌ करैक लेल निवेदन अछि। अवश्य परिणाम एतेक सुखदायक छैक जे आइ जेना प्रभुजी अपनहि हनुमानजी के प्रति एहेन उद्‌गार प्रकट करैत छथि सैह उद्‌गार ओ हमरो-अहाँके जीवन प्रति प्रकट करताह आ समस्त संसार एहि बात – एहि यशके गान करैत अपन-अपन जीवनरूपी अभियानमें सफलता प्राप्त करताह।

अगिला दिन अभियान पर कोना चलब तेकर चर्चा करब – लेकिन आइ एहि पूरा गाथामें प्रभुजी द्वारा कतेक सुन्दर आशीर्वाद भेटैछ से देखू। ओहू सऽ पहिने, सियाजी के सुधिके प्रभुजी समक्ष हनुमान्‌जी कोन विशेषताके संग रखैत छथि से देखू। तुलसीदासजी के लेखनी के विलक्षणतामें ईश्वरके कृपा देखू। महादेव एहि समस्त वृत्तान्तके कहैत कोना मग्न होइत छथि – कोना सुधि बिसरा जाइत छथि से देखू। बस आजुक कथा-विश्लेषण के बात एतबी कहैत अहाँ सभकेँ एहि परमानन्द में हमर लंबा गप के असर नहि पड़य ताहि हेतु एतहि विराम दैत छी।

क्रमशः….

हरिः हरः!

**
३१ मार्च २०१२
कथीके पैघ?

कहबी छैक जे कर्म शून्ना आ बाजब दून्ना! कि एहेन लोक केवल बाजि के पैघ भऽ सकैत अछि? अगबे नेता सभ खूब छिड़ियायल भेटत। नेतागिरी के दावा के आधार कि – तऽ बौद्धिक क्षमता सऽ केवल ई कहनैय जे एना होइ, ओना होइ, ई गलत भेल, एकरा एना करू, अहाँ के एना करबाक चाही… अहाँ … अहाँ… अहाँ… पचासो टा काज लेकिन सभटा लोके करय… यौ जी! अहाँ नेताजी स्वयं कतेक केलहुँ? फुसिये के पैघ?

जे पैघ छैक से पैघ काज करैछ। समाज में दबल-पिछड़ल कोना आगू बढत ताहि पर किछु सोच के संग कर्तब्य निर्धारित करैछ, कर्म करैछ आ स्वाभाविक रूपमें सभके नजरिमें ओ अभिवादनशील बनैछ। संस्कृत में जे श्लोक छैक:

अभिवादनशीलस्य चराचरस्य – चत्वारि तस्य वर्धन्ते – आयुर्विद्याऽयशोबलम्‌॥

अवश्य एहि पैघ लोक के यैह पहचान जे ओ कतेक अभिवादनशील अछि – ओकर आयु, विद्या, यश आ बल – एहि चारि में आशीर्वाद सँ वृद्धि ओकर जीवनके ऊँचाई निर्धारित करैछ।

तखन मिथ्या आ आडंबर सऽ कतेक पैघ आ कतेक ऊँच बनल जा सकैत छैक से अंदाज लगायब कठिन नहि। मिथ्या सऽ हम केकरो झूठ आश्वासन या भरोसा दैत रहबैक, लेकिन काज तऽ रुकले रहतैक। आडंबर सऽ अपन सिंह में तेल देखबैत रहबैक, लेकिन सच्चाई के आँत तऽ सुखैले रहतैक। तखन कहू जे पैघत्व कति काल टिकत?

अहाँ देखू – मिथिला के नेता सभक हाल। मिथिलाके लेल चिन्तित सभ छथि। ई हेबाक चाही – ओ हेबाक चाही – सभ कहता। लेकिन किनको में एतबु सोच नहि जे ओ हेबाक चाही बात पर कार्य सेहो करी। मैथिली के दुर्दशा लेल सभ चिन्तित छथि, लेकिन मिथिलाके हरेक विद्यालयमें जा के आइयो यदि शिक्षा के लचर व्यवस्था प्रति सजग बनता आ शिक्षक सभ सँ मैथिलीके शिक्षा लेल अतिरिक्त भार वहन लेल सेहो कहता से किनको कहाँ फुर्सत छन्हि? मिथिला लिपि सिखय लेल धिया-पुताके उत्साहित करता से कहाँ संगठन छैक जे करा सकैक? सौराठ सभा समान उच्च मूल्य के सभा पुनः लगैक ताहिपर सेहो कोनो योगदान कहाँ छन्हि… सत्रह टा प्रश्न धरि पूछय लेल सभ आगू रहता। भाषण के समय में मंच पर हमरा आसन्न ग्रहण कराबय ताहि पर धरि सभके नजैर रहतैन। मंचपर चढला के बाद भले दू लाइन बाजल होइन वा नहि! एहि प्रवृत्ति के आजुक युग में वास्तवमें कोनो मोल नहि भेटैत छैक। तदापि ई संस्कृति घटैक नाम नहि लऽ रहल छैक।

आब चली आइ देखी जे नेपाल में पहिल बेर भऽ रहल एहेन अदम्य साहस संग कार्यक्रम राष्ट्रीय सम्मेलन २०६८ राजविराजमें केहेन आ कोन विन्दुपर घोषणापत्र जारी करैछ। अवश्य ई एक ऐतिहासिक हेतैक से हमरा व्यक्तिगत रूपमें पूरा विश्वास अछि। संगहि एहि कार्यक्रममें सम्माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा व्यक्तिगत रुचि लेब मैथिली के नीक भविष्य के द्योतक अछि एहि में दू मत नहि। कनेक समय के चुनाव रामनवमीके माहौल में उचित नहि भेल जेना बुझाइत अछि आ एहि कारणें बहुतो ठामक संस्थाक प्रतिनिधि शायद नहि आबि पबैथ सेहो लागि रहल अछि। लेकिन आब हम सभ विराटनगर सऽ बेसी सऽ बेसी लोक एहि में सहभागी बनैक लेल विदाह भऽ रहल छी।

जय मैथिली! जय मिथिला!

नमः पार्वती पतये हर हर महादेव!

हरिः हरः!

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