नव पीढीक समस्या: सन्दर्भ मैथिली-मिथिला सँ पहिचानक विशिष्टता
– प्रवीण नारायण चौधरी

वर्तमान समय मैथिलीभाषी-मिथिलावासी दुइ राष्ट्र मे विभाजित अछि। नेपाल केर दक्षिणी तराई आ भारतक बिहार प्रान्त अन्तर्गत गंगा सँ उत्तर नेपालक सीमा धरिक क्षेत्र केँ मिथिलाक्षेत्र मानल जाइत अछि। श्रुति-पुराण आदि मे वर्णित मिथिलाक सीमा सेहो उत्तर मे हिमालयक वन सँ दक्षिण मे प्रवाहित गंगा धरि तथा पूब मे महानन्दा (मूल कौशिकी धारा) सँ लैत पच्छिम मे गंडकीक धारा धरिक क्षेत्र केँ ‘तीरभूक्ति’ यानि मिथिला देश कहिकय वर्णन कयल गेल अछि। ज्ञात मध्ययुगीन इतिहास मे मिथिला पर कोनो एक राजाक अधिकार नहि रहि एतय छोट-छोट कय गोट राज स्थापित रहबाक तथ्य भेटैत अछि। विद्यापतिक जीवनी संग वर्णित राजा शिवसिंह केर कालक्रम मे सेहो मिथिलाक अपन राज्यक स्वरूपक चर्चा भेटैत अछि। एहि सँ पूर्व कर्णाट वंश व विभिन्न अन्य वंश केर राज्यक चर्चा इतिहास मे वर्णित अछि। तहिना बौद्ध साहित्य मे सेहो मिथिला आ एतुका राजाक वर्णन अनेक रूप मे कयल जाइत अछि।
रामायण, महाभारत, विष्णुपुराण, वायुपुराण आदि मे मिथिलाक राजवंश आदिक चर्चा भेटैत अछि। यैह कारण छैक जे जनक आ जानकी मिथिलाक परिचिति केर मूल आधार छथि, धर्म सँ जुड़ल परिचिति रहबाक कारण आ हिन्दू धर्म (सनातन धर्म) केर एकटा महत्वपूर्ण नायक-नायिका राम-जानकी संग मिथिलाक अस्मिता जुड़ल रहबाक कारण ई आइयो संवैधानिक मान्यता नहियो पेने स्थिति मे जन-जन केर मुंह मे – माथ मे – स्मृति मे जियैत अछि। जनकक परिचिति केर महिमामंडन गीता जेहेन गूढ ज्ञानक भंडार मे स्वयं श्रीकृष्ण द्वारा करब, स्वत: बुझय योग्य विषय भेल जे जनक केँ कोना ओ जिबिते मोक्ष प्राप्त राजाक श्रेणी मे रखलनि। जनकक जन्म सँ लैत आजीवन निष्पादित मानुषिक वृत्ति कोनो बंधनकारी नहि होयब, स्वयं श्रीकृष्णहि वर्णित गीताक बहुल्य श्लोक सँ स्पष्ट होइत अछि। विदेह उपनाम सेहो जनकहि केर छलनि। देह रहितो देह सँ अनासक्त! भौतिक सुख-सम्पदा अछैत कहल गेल अछि, मणि-माणिक्य आ सम्पदाक एहने वर्णन कयल गेल अछि जे देखि इन्द्र पर्यन्त इन्द्रलोकक समृद्धि एक बेर बिसैर जाइत छथि। एतबा नहि जनकपालित मिथिलाक लोक केँ सेहो ओतबे सम्मान रामायण जेहेन ग्रन्थ देने अछि।वाल्मीकि रामायण मे एकर विशद चर्चा भेटैत अछि। एतुका नागरिक केँ शिष्ट आ अतिथिपरायण कहल गेल अछि।
मज्झिमनिकाय, निमिजातक, आदि बौद्धग्रन्थ मे सेहो मिथिलाक चर्च भेटैत अछि। महाभारत मे मिथिलाक जनक नाम सँ राजा लोकनिक वंश मिथिलाक सर्वप्रसिद्ध राज्यवंश कहल गेल अछि। महाभारत मे भीम सेन द्वारा विदेहराज जनक केर पराजयक वर्णन अछि। महाभारत केर सभापर्व मे वर्णन कयल गेल अछि जे कोना कृष्ण अपना संग पाण्डव लोकनि केँ लय केँ एहि ठाम आयल छलाह।
महाभारत केर एक कथा अनुसार मिथिलानगर मे भयंकर आगि लगबाक आ ताहि समय जनक मे कनिको विचलन नहि होयबाक रोचक जानकारी भेटैत अछि। एकदम अनासक्तिक संग ओ कहलखिन जे ई बात सही छैक जे हमर राजधानी आइ जरि रहल अछि, मुदा एहि बातक हमरा कनिकबो चिन्ता नहि अछि। कियैक तँ एहि मे हमर किछुओ नहि जरि रहल अछि। ई सब एहि भौतिक संसारक नाशवान पदार्थ थिक। एतहि एकर निर्माण आ नाश दुनू चलैत रहतैक। यैह संसार होइत छैक। यैह कारण छैक जे जनक केँ विदेह कहल गेलनि अछि।
तहिना मिथिला केँ जैन तीर्थ केर रूप मे सेहो प्रसिद्धि भेटल अछि। जैन ग्रंथ ‘विवधकल्प सूत्र’ मे एहि नगरी केँ जैन तीर्थ कहिकय वर्णन कयल गेल अछि। एहि ग्रंथ सँ जनतब भेटैत अछि जे एकर एक अन्य नाम ‘जगती’ सेहो छल, एकरे समीप कनकपुर नामक नगर रहय जतय मल्लिनाथ और नेमिनाथ दू तीर्थंकर लोकनि जैन धर्म केर दीक्षा लेने छलाह आर एतहि हुनका सबकेँ ‘कैवल्य ज्ञान’ केर प्राप्ति सेहो भेलनि। एतहि अकंपित केर जन्म भेल छल। मिथिला मे गंगा और गंडकी केर संगम स्थल अछि। महावीर एतय वास केने छलाह तथा अपन परिभ्रमण मे ओतय अबैत-जाइत छलथि। जाहि स्थान पर राम और सीताक विवाह भेल छलन्हि ओ शाकल्य कुण्ड कहाइत छल। जैन सूत्र-प्रज्ञापणा मे मिथिला केँ मिलिलवी कहल गेल अछि।
जातक अनुसार ई नगरी तीन टा खाधि – उदक-परिखा (जल सँ भरल खाधि), कर्दम-परिखा (थाल-कादो सँ भरल खाधि) आ शुष्क-परिखा (सूखायल खाधि) – कहबी छैक जे ई तीनू तरहक खाधि प्राय: ओहि नगर मे होइत छल जेकर महत्व बेसी होइत छलैक। वैशाली नगर मे सेहो ई तीनू तरहक खाधिक उल्लेख कयल गेल अछि। बुद्धकाल मे ई दुनू नगर वज्जिसंघ मे अबैत छल।
टीका टिप्पणी और संदर्भ – भारतकोश अनुरूप वर्णित उपरोक्त बहुतो तथ्यक आधारग्रन्थ मे वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड ४८-४९, वाल्मीकि रामायण, १,७१,३, वायु पुराण ८८, ७-८, विष्णु पुराण ४, ५, १, विष्णु पुराण ४, १३, ९३, विष्णु पुराण ४, १३, १०७, मज्झिमनिकाय २, ७४, ८३, जातक सं. ५३९, महाभारत, शांतिपर्व २१९ दक्षिणात्य पाठ महाभारत, सभापर्व ३०, १३, शांतिपर्व २१८, १.
किछु विशेष बात:
ऐतिहासिकताक समृद्धि आ सभ्यताक विकासक अनेकों कथा-गाथा श्रुति आधारित बेसी अछि। कारण अपना मिथिला मे बौद्धिक सामग्री सेहो कोनो विद्वानक मृत्युगतिक प्राप्तिक संग फेंकि देबाक, नष्ट कय देबाक प्रचलन हमहुँ सब अपन जीवनक आरम्भकाल धरि देखने छी। बहुतो परिवार मे किनको लिखल-पढल डायरी अथवा पोथी-पतरा आदि हुनकर वस्त्र-विस्तर आदिक संग फेंकि देबाक चलन केर कारण हो अथवा उचित संग्रह-प्रकाशनक अभावक कारण, लिखित इतिहास मे बहुतो बात जनसामान्य केर पहुँच मे नहि रहल। निश्चित ओहेन परिवार जे विद्या आ बौद्धिकता केँ सर्वोपरि मानलनि, ओ लोकनि एहि महान सभ्यताक मूल्यवान इतिहास आ बौद्धिक सामग्री केँ बचेबाक भरिसक प्रयास करैत रहला आर एहि तरहें हमरा लोकनिक अपन मूल्य आ मान्यता कोहुुना सुरक्षित रहि सकल कहि सकैत छी।
वर्तमान पीढी मे आन भाषा-संस्कृति केर प्रभाव एतेक गहींर धरि पड़ि गेल अछि जाहि सँ अपन भाषा, संस्कृति, परम्परा, मूल्य ओ मान्यता पर आधारित निजत्व सँ ओकरा जोड़ब एकटा कठिन चुनौती बनि गेल अछि। पैघ-पैघ विमर्श मे हम सब भाग लैत छी ताहि ठाम नव पीढीक उपस्थिति तक नगण्य देखि चिन्तित होइत छी। विद्यालय मे नगण्य, समाज मे नगण्य – तखन निजताक सुरक्षा आगामी समय मे के करत, ई एकटा पैघ सवाल अछि। स्वयं अभिभावक पीढी अपन सन्तान आ आगामी पीढी केँ एहि दिश कोनो लगाव उत्पन्न करबाक काज नहि करब, उदासीन रहब, तखन एकटा समृद्ध सभ्यता सचमुच इतिहास टा मे देखायत। अपन पहचान – मैथिल पहचान केँ बचेनिहार कियो कतहु नहि भेटत।
हरि: हर:!!
(ई लेख शाश्वत मिथिलाक प्रकाशनाधीन स्मारिका लेल लिखल गेल अछि। ध्यानाकर्षण Raj Kishore Jha Sir)