विचार
– रोशन जनकपुरी
नेपालमे मगही भ्रम बाहेक दोसर किछु नहि थिक। ई मुख्यतः गंगा नदीक ओहि पार अर्थात् दक्षिणपट्टी आर किछु भाग गंगाक उत्तरपट्टीक भाषा थिक। ओहि दिश सँ आयल किछु लोक नेपाल मे आयल तेकरा द्वारा बाजल जायब भऽ सकैत अछि। ताहि सम्बन्ध मे किछु नहि कहक अछि। वस्तुत: नेपाल मे आर प्रदेश नम्बर २ मे विशेष कय केँ मैथिलीभाषी क्षेत्रमे सांस्कृतिक एवं भाषिकरुपमे ब्राह्मणवादी भेदभाव ओ वर्चस्वक कारण समाजमे विद्यमान कटु अन्तरविरोधक फाइदा उठबैत गोटेक तत्त्व द्वारा मगहीक तर्क कयल जा रहल अछि। नगर अभिजात्य वर्ग तथा जातिगत हिसाब सँ अशुद्ध कहाइत अवहेलित होइत रहल आ विशाल श्रमजीवी समुदाय द्वारा बाजल जायवला ठेंठी मैथिलीक विशिष्ट रुप थिक। सामान्य अर्थमे ठेंठ कहब धुर देहात ( रिमोट भिलेज) होइछ, आर ओतय बाजल जायवला मैथिली केँ ठेंठी कहल गेल अछि। लेकिन जेना नगरक सभ्यता सदिखन ग्रामीण चेतना व संस्कृति केँ पिछड़ा, गँवार आर अशुद्ध बुझलक, ठेंठी संग सेहो यैह व्यवहार भेल।
ग्रियर्सन होइथ अथवा सुनीतिकुमार चटर्जी या राहुल संकृत्यायन या आधुनिक भाषिक विद्वान लोकनि, सभक अनुसार मगही पटना, सोनपुर सँ अधिकतम मुजफ्फरपुर धरि होयब उल्लेखनीय रुपमे बाजल जाइछ। नेपालमे मगहीक वकालत भाषिकरूपमे अपनहि पैर मे कुरहैर मारब समान थिक। एकटा प्रश्न त सहजे उठैत छैक कि ई मगहीक अगुआ लोकनि पहिने कतय रहथि? ओ लोकनि देशमे गणतन्त्र एलाक बादे टा कियैक देखेलाह? ई मगहीक बहस सप्तरी सँ सर्लाही धरि मात्र अछि, जतय मैथिलीक पहिचान आर आन्दोलन एकदम पुरान अछि। वस्तुतः मैथिलभाषी क्षेत्रमे मगहीक वकालत कय अपन भाषिक परिचय ओ अस्तित्वपर प्रहार थिक। मैथिलीका विविध स्वरूपक बारे डा. रामावतार यादवक अनुसन्धानात्मक लेखादिक अध्ययन उचित होयत। एतय मगही मातृभाषी लोकनिक अधिकारक संग केकरो विमति नहि भऽ सकैत अछि। लेकिन जाहि तरहें विकृत तर्क तथा तथ्यक आधारपर मगहीक वकालत कयल गेल अछि, ओ हास्यास्पद अछि। एतय मगहीक लोककथा सँ किछु पाँति उद्धृत कयल गेल अछि, जे पक्कापक्की एहि क्षेत्रक केकरो मातृभाषा नहि थिक:
‘एगो हलन महतो जी । उनका दूगो औरत हल । एगो हल ब्याही आउ एगो हल अर्घी । दूनों से एकेक गो लइका हले । महतो जी एगो गाय पोसले हलन । उन्कर दूनो औरत पिंगल पढके पीर होयल हल । ——उकरा सोच के महतो जी एगो आउ गाय खरिद लेलन । —-एक दिन देखलन अर्घीके बछिया खोला के सब सब दुधवा पीले हे । —महतो जी सोचलन कि अर्घी के लइकवा हमरे हे । (स्रोत: मगध की लोक कथाएं : संचयन, संकलक – नारायण प्रसाद । गुगल सँ प्राप्त वाक्यांश।)’ ।
ई कथा लम्बा अछि, एतय भाषाक स्वरूपसँ परिचित करेबाक वास्ते मात्र राखल गेल अछि। निश्चय टा सप्तरी सँ सर्लाही, किछु रास रौतहट धरि बाजल जायवला ठेंठीक स्वरूप ई नहि थिक। तखनहुँ मगहीक वकालत अधिकांश ठेंठी भाषी समुदायमे बेसी देखल जा रहल अछि। ई आत्मघाती अछि, एहि सँ हुनका लोकनिक भाषिक अस्तित्व प्रभावित होयब देखाइत अछि। ई खतरनाक कियैक अछि कहला सँ ई एक गोट सुनिश्चित अभियान जेकाँ विकसित होइत जा रहल अछि। निश्चय टा एकर पाछाँ राजनीतिक उद्देश्य छैक जे समयक संग खुजैत जायत। बुद्धि पहुँचय, एखन एतबे कहल जा सकैत अछि।
अपना लोकनि नेपाली समाजक राजनैतिक आर सामाजिक परिवर्तनक जटिल एवं संवेदनशील चरणमे छी आर एहि समय कयल गेल निर्णय सभक दूरगामी परिणाम होयब निश्चिते टा अछि। एकटा ऊर्दूक पाँति छैक – लम्हों ने खता की और सदियों ने सजा पायी। ताहि लेल सबकियो मिलिकय गम्भीर भऽ कय सोचू आर एकटा हार्दिकतापूर्ण समाजक निर्माण करय लेल सोचू।
जतय धरि नामक प्रश्न अछि, नामक राजनीतिक उद्देश्य अन्तरविरोध सभकेँ समाधान करयमे सहयोग करब तथा हार्दिकता उत्पन्न करब थिक। नाम पैघ-छोट होबक कोनो अर्थ नहि छैक। हार्दिकता, मेल आ सामाजिक साहचर्य एवं अपनत्व मुख्य थिक। एहि अर्थमे प्रदेश नम्बर २ मे मधेश, मैथिली आर भोजपुरी मुख्य क्षेत्रीय आ भाषिक अन्तरविरोध सब थिक, जेकरा सम्बोधन करब आवश्यक अछि। एहि अर्थमे हमरा विचारमे प्रदेशक नाम मिथिला भोजपुरा मधेश राखब उचित होयब देखाइत अछि। एहि सँ एक हदतक संस्कृतिक राजनैतिक अन्तरविरोध केर हल कय सकैत अछि। तत्कालिक राजनैतिक स्वार्थ सँ ऊपर उठिकय सब सभक अस्तित्व स्वीकार करयमे सभक हित होइत देखाइत अछि।