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मैथिली कथा – ॐ अपवित्रःपवित्रोवा

कथा – ऊँ अपित्र:पवित्रोवा

– विजय कुमार इस्सर

~ए सूनू ने ! विवेक वौआक उपनयन त’ आइ भैये गेलैनि । परसूक रिटर्निंग टीकट अछि । फर फरीक सब जुटले छथि । बहुत दिनक बाद गाम एलौं हेँ तहन किएक ने काल्हि भगवानक पूजा करा ली । आब हाले मे कोनों जग परोजन त’ नैँ देखाइए । फेर कहिया गाम आएब पता नैँ ।
~ठीके त । आहाँ हमरा मोनक गप्प कहलहुँ । बहुत दिन सँ घ’रक देवता सभ सुतले छथि। कने सभ केँ जगेब जरूरी । कनी घरक हबा बतास सेहो पवित्र हैत मुदा हम चुप्पे छलहुँ कि चारि-पांच हजार टकाक एक्सट्रा खर्च देखि आहाँ की सब बाजय लागब ।
~हँ हँ बुझलहुँ । फेर हमरे पर सभ दोष उझिल दियौ। हमहीं छी कि एतेक कम दरमहा मे ब्यौत क परिवार के एस्टैंडर मे चला रहल छी। आहाँ बस औफिस आ घर के बाद किछु जानबो करैछी ।
~अरे छोड़ू ने जानू। हम त ओहिना मजाक मे किछु कहि देलहुँ। आहाँ सिरियस मे नैँ ने लिअ ।
~हूँह । मुदा कहि दैत छी सभ ठाम अनसोहाँत बात नैँ कही हँ ।
~अहीं हमर जान छी.. आहीं हम्मर प्राण….
कहू किछु जाय कतय कहबै… कहू हम जाय….
(गीतक दू पांति सुनितहि जांन्हवी मुस्काए लगली)
~हूँ.. आँहू ने…
~ अच्छे छोड़ू । ओहुना काल्हि  बैसारिए रहत। सोचने छलौं कने रोसड़ा जा कय दीदी सँ भेंट करब मुदा ई गर्मी आ राकस रौद के डरें घर सँ निकलब मोस्किल ।
~पंडीजी प्राते एथिन्ह । हुनका कहि देबनि जल्दी सँ आबि सबेर सकाल पूजा करा देथिन्ह किएक त आहाँ सँ उपासे रहब सेहो मोस्किल । आ हे.. विष्णु बौआ के कहि क सभ के हकार पठा देबै आ.. समान सब के लिस्ट बना कय दै देबनि समान सब बजार सँ आनि देता । आहाँ ई गरमी मे कत’ कत’ जाएब ।
~किए विष्णु के गर्मी नैँ लागतै की ?
~अरे ओ गाम मे रहै छथिन्ह हुनका सभ रेहल खेहल छैनि ने ?
~हँ से त ठीके ।
~अच्छे आब सूतू । भोरे उठबाक अछि।
~गुड नाइट जानू।
***
जाह्नवी आ किशोर आइ खूब सबेरे बिछाओन छोड़ि शौच क्रिया सँ निबृत भय तैयार छलथि।
~हे.. जाऊ ने विष्णु बौआ के देखियौक जागि गेल हेथिन्ह । ता धरि हम चाह बना रहल छी। कहबनि भौजी चाह पीबाक लेल बजा रहल  छथि ।
~हँ..हँ कने बढिय़ा सँ दूध बेसी दय के बनाऊ । हम विष्णु के नेनही आबै छी।
कने कालक बाद किशोर विष्णु के संगे आंगन ऐला । विष्णु राति मे देरी सँ सुतलाक कारण ठीक सँ निद्रा मुक्ति नहि पौने छलाह । आंगन मे ढुकितहि कहलन्हि
~गोर लागै जी भौजी । की बात आई भोरे भोर चाहक भोज ठानि देलिऐ । राति मे निन नैँ भेल की ? आकी भैया नैँ सूतय देलनि ।
~अहूँ त’आँखि मलिते आबि रहल छी । ‘खग जाने खग ही के भाषा’। आऊ आऊ बैसू ।
विष्णु किशोर सँ छ मासक मात्र छोट आ सहपाठी से अलग सँ  ते दूनू के लगौंटिया यारी । भौजी संग सेहो खूब खूलि क हँसी मजाक होइत छलैन्ह । सुंदर कप मे  चाह छानि दूनू गोटे के हाथ दैत अपनहुँ लेलनि आ कुर्सी टानि के विष्णु के बगल मे बैस गेली । किशोर चाह लैत
~भौजी चाह त बेजोड़ बनल अछि । अहाँ के हाथ मे गजब के जादू अछि । आब त लगने परोजन मे …
~की करबै बौआ भैया के प्राइवेट कम्पनी के नौकरी छैन्ह । सब समय छुट्टी के किल्लति । उपर सँ दूनू बौआ के स्कूल, आ इंग्लिश मीडियम के नखरा । भरि साल ट्यूशन, कोचिंग आ टेस्ट । ओ त बगल मे बहीन अछि ते कहुना बौआ दूनू के ओतय एडजस्ट कय के ऊपनयन मे आबय परल । नैँ त फरीकीक मामला बुझबे करैत छी।तुरंत सब कहब सूरू क देतै जे हीत नत सर समाज सब छोड़ि देलकैक ।
~हँ ए भौजी बात त ठीके कहलिऐ । मुदा की करबै समय निकलि क एहिना कहियो क चलि आबी । आहाँ के रहने ई आंगन मे कते चहल पहल रहै छलै । आब त भकोभंड लागैत रहै छै ।
~की करियै बौआ किछु दिन के आर कष्ट छैक
~दूनू बेटा दू तीन साल में कोनो ने कोनो लाइन ध लेत तहन हम फ्री भ जाएब । तहन अहाँ के भैया के छुट्टी के के पूछत हम एकसरे चलि एल करब ।
~हँ भौजी तहने ने हमरो सभक उदासी कटत आ उपास सेहो टूटत माने चाह पान सभ भेटैत रहत । विष्णु आ जान्ह्वी के नैन जेना एक दोसर मे डूमि कोनो सुखद स्मृति केलक आ मुँह पर मृदू मुस्कान के आभा पसरि गेल ।
 किशोर जी चाह क कप लेने घर मे जा कोनो कगज ताकैत छला से देरी देखि ओसारा पर आबि टोकारा देलखिन्ह।
~आहाँ दूनू गोटे के चाह पीयल नैँ भेलै की ? सात सँ उपर भ गेलै । विष्णु के की कहबै से कहियौ ने । जाह्नवी अपन स्थिति  सँ सम्हरैत
~ये बौआ ! कने आहाँ मदद करितिऐ त मोन छलै जे भगवानक पूजा करा लितहुँ। आई अहुना बैसलै रहब । पंडित जी अबितहि छथिन्ह । कनी देखियौ ने..
~नीक विचार । शुभस्य शीघ्रम । कहूँ हमरा की कहै छी।
~हम की कहब ? जे करबै से अही जानी।
~ठीक छै ! तहन पंडी जी के कहि दैत छिऐन आ बजार सँ..
~हे ई लिअ । (दू हजारक एकटा नोट दैत ।) जेना जे होइ कम सम मे कने देखि लेबै।
~आहाँ निश्चित रहू भौजी । एते लागबो नैँ करत ।
~हौ विष्णु । कने जल्दी करिह हमरा सँ भूखल बेसी काल रहब संभब नैँ ।
~ठीक छै भैया आहाँक भोजन के टाइम होइत एक बजे तक पूजा सम्पन्न बूझू । विष्णु नोट के डाँर मे खोसैत आंगन सँ विदा भेला ।
 विष्णु अपन जोगार मे लागि गेलथि । दस एगारह बजे धरि सब व्यवस्था टंच भ गेलै । विष्णु टोलक किछु नवतुरिया के अपन संगे भिनसरे सँ  खटा रहल छथि । सभ के देह  विशेष फूर्तिगर बुझि परैत छल जेना विष्णु किछु स्पेशल टोनिक खुआ देने होथि । एम्हर किशोर जी पर भूख आक्रमण करब सुरू क देलक । आंगन में किछु जनानी सेहो आबि गेल छली । किछु वयस्क बूढ़ सेहो कुर्सी ध लेलनि ।
~हौ विष्णु की भेलै हौ ? पंडीजी कखन एथिन्ह । कने देखहक ने ?
~हँ भैया।जे घड़ी नैँ पहुचलथि । अखने फोन केने छलिएन ।
~साढ़े एगारह बाजि गेलै । तोरा सब के टाइम टेबल के कोनो ज्ञाने नैँ छ।
ताधरि पंडी जी साइकिल के घंटी टनटनबैत पहुंच गेलथि ।
~प्रणाम पंडीजी । देरी कै देलिऐ ?
~की कहौं यौ विष्णु ?  ऐ लगन मे चैन कत्त, राति मे विवाह कराब मे बड्ड देरी भ गेलै छल । चारि बजे भोर मे फूर्सत भेल । सभ व्यवस्था भेल छ ?
~सब रेड्डी अछि अपने के देरी छल मात्र।
~किशोर बाबू! अपने चलू आसन पर बैसू । आब देरी नैँ तुरंत पूजा आरंभ केएल जे।
किशोर आँगन मे बनल पूजा मंडप लग कंवल के आसन पर बैसि सभ समान के ठीक ठौर करय लगला।
 ~ यौ विष्णु ! होऊ कने जल्दी सँ खैनी खुआरु ।
विष्णु चुनौटी निकालि कै खैनी बनाबैत पंडी जी सँ सटि कय कहलखिन्ह
~राति मे त कोनो लगन नैँ छै ने ?
~नैँ । कनि आरामो जरूरी छै ।
~बड्ड कमेलिऐ ए लगन मे । साँझ मे किछु खर्च बर्च करियौ ने ।
~कत्तहु कहाँ किछु भेटै छै । ई सार नितिशबा के की फूरेलै भगवाने जानैथ । पंडीजी फुसकी भाषा मे बजलनि ।
~ऊँह । आहाँ चौक पर आऊ ने । हमरा रहैत कोनो अभाव नै । कत्ते चाही । खाली दू के बदला  मे चारि खर्च ।
दूनू गोटेक मूँह पर मंद मुशकी खेल गेलै । विष्णु खैनी ठोकि के पंडी जी के हाथ मे देलखिन्ह । पंडी जी ठोड़ मे ध देलनि ।
~हँ त किशोर बाबू । पवित्री दौं की ?
~औंठी त छैहे पंडीजी ।
~तहन कोनो जरूरी नैँ ।
~हाथ मे जल लीअ ।
पंडी जी अपन देह के नमारि कात दीश ओलती के तरफ थूक फेकलनि । फेर बैसि मंत्रोंचार करय लागलनि ।
~ऊँ अपित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थांगतोपिवा…..।

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