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कहलौं न – हम दोसर लोक छी….!! हँ-हँ, बुझि गेलौं अहाँ केहेन लोक छी!! – संतोषीक जोरदार हास्य कविता

कविताः दहेज पर आधारित

– कवि संतोषी, धरान, नेपाल

कहलौं न – हम दोसर लोक छी…..!!

कहलौं न- हम दोसर लोक छी….!!
एलौंह त बैसू कल कुशल सँ, हेबैह करतैह सब रंग बात,
कन्यागत बैनि आयल छी अपनहिं, स्वागत में हम बरक बाप,
लियह न शरबत, अपनहिं गाछक नेबो ऐहि में गारल अई,
ओ कोल्ड ड्रिंक्स हमरहु नै भाबय, ई सब पिनुहार त पागल अई,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी…..!!

लोकक खगता हमरहु घर में, तैं करबै बौआ के वियाह,
कन्यागत त ढ़ेरी आबैथि, मुदा बुझू सब दगध सियाह,
अरे हमरा भल किछुओ नै चाही, पुतहु चाही बस लक्ष्मी जोग,

देब लेब जे करबैह अहाँ, अपनहिं बेटी न करतीह भोग,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी….!!

लक्ष्मी बास बसै छैथि निज घर, दुख संताप पराएलै रहतीह,
घर आंगन त देखिये रहलौं, पुतहु हमर त हराएलै रहतीह,
नै-जथा जमीन नै बेसी हमरा, फुसियौं कहू हमरैह भैरि गाम,
ओ बड़का छहर जे देखनै हेबै, ओ बीस बिगहा धैरि हमरै नाम,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी…!!

आबक धिया पुता के पढ़ाई में, बुझितैह छी होई छैह बाप स भेंट,
बौआ हमर दैबक किरपा सँ, कोनों सीए तीए लग भ गेल सेट,
भैरि दिन ओएह कंपूटरक खेला, आब नै छैह ओकरा किछु टेंशन,
कहैये पप्पा घरे बैसू, हमहीं देब आब अहाँके पेंशन,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी….!!

हँ – बर कनियाँ के देखा सुनी, फोटू फाटू बस दियौह देखाय,
नै – हम नै छी पाय के भूखल, जे देबैह से दियौह सुनाय,
अपनहु मोन में सख हेएत न, से सबटा धैरि लेब पुराय,
गाड़ी घोड़ा कपड़ा लत्ता, गहना जेबर मधुर मिठाय,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी…!!

सांकेतिक गप एकटा बुझियौह – बरिआती रहता सब गिनले चुन्नल,
पीबैये खाई लेल बरिआती न – बात रहय बस मुनले मुन्नल,
टेंट साउन्ड कने भैरिगर राखब – नीक लगै छैह नाचो गान,
दुरागमन हम करबा लेब संगहि – तकरहु पहिने क लेब ओरियान,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी….!!

बरका घर कहाई छी हम सब – चौदह भाई आठ बहिनीक परिवार,
लेन देन अई सब संग हमरा – ताहु लेल रहय परत तैयार,
वियाह बुझू हेतैह धमगीज्जर – दसकोसी में झंडा टांगब,
नै बाबू हम कल जोड़ैत छी – अपना मुहें हम किछु नै मांगब,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी….!!

हम्मर बच्चा हमरैह सन के – कनियाँ ल के नहिं उड़त उड़ान,
पुतहु एतीह साउसक सेवा में – रसतीह बसतीह भैरि जीवने गाम,
की मजाल जे घोघ उठेतीह – तै सब में हमर कनियाँ बर टाईट,
काजे की छैह भानस बर्तन – चुल्हा चेकी आ गोबर माईट,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी….!!

हे चाह सरायल होउ पाबू पीबू – हेबेह करतैह आब समैधि मिलान,
एम्हरूका बस फैनल भ जाय – सुरू हेतैह फेर खान पियान,
सगरहु सब गप किया पसारब – हम अहाँ कोनों निपट अकान,
समाजक कोन छैह एक पेट भोजन – खाएत पीयत आ करत बखान,
कहलौं न – हम दोसर लोक छी……!!

(कन्यागतक जबाब… )

बुझलौं हम – अहाँ दोसर लोक छी….!!
बुझलौंह हम अहाँके मोनक सब गप – बेटाक बाप तैं फान फनै छी,
भले जनक हम धिया के पप्पा – मुदा आब नै हकन कनै छी,
पढ़ल लिखल सज्जन बेटी अई – तकरहि उपर अई हमर गुमान,
ऐहि मोनें अहाँ जौं बेटा बियाहब – सारे तअर में होयत चुमान,
बुझलौं हम – अहाँ दोसर लोक छी…..!!

सह-सह करैछ दहेजिया अजगर – मिथिला लेल अभिशापे छी,
हाटे बाटे बेटा बेचै छी – यौ बाप अहाँ सन त पापे छी,
दहेज मुक्त अभियान चलल छैह – तरघुसकी अहाँ करी सुतार,
डाँर में रस्सा बैन्हि अहाँ के – बीच्चहि चौक में करत उघार,
बुझलौं हम – अहाँ दोसर लोक छी…..!!

हाथ जोड़ि मिनती जन जन सँ – दहेज प्रथा करै जाऊ बंद,
बेटीक बाप सेहो भलमानुष – छुटय हिनकहु गरदैनि सँ फंद,
प्रथा नै ई सब कुप्रथा छी – ‘संतोषी’ हृदय बीच उठय उदवेग,
दहेज मुक्त मिथिला अभियानक – संगहि आब बढ़य ई डेग,

कहलौं न – हम दोसर लोक छी……!!

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