मैथिली भाषा सँ रोजगार आ खुल्ला बाजारः सांस्कृतिक जनजागरण केर महत्वपूर्ण विकास

बाजारवाद और संस्कृतिः मैथिलीक परिप्रेक्ष्य मे

(छूछ आलोचक लोकनिक नजरि खोलबाक लेल विशेष)
 
एखन सोशल मीडिया पर मैथिली गीत-संगीत एवं मनोरंजन मे ‘अश्लीलता’ केर प्रयोग पर खूब जोरदार बहस चलि रहल अछि। हरेक विषय मे समर्थन आ विरोध दू टा पक्ष एहि विषय मे सेहो स्पष्ट छैक। आइ मैथिली जिन्दाबाद पर पुनः एकटा बौद्धिक विमर्श एहि विन्दु पर राखि रहल छी। एहि मे न किनको सँ समर्थन केर आ नहिये कोनो तरहक विरोधक अपेक्षा कयल जा रहल अछि, बल्कि मंथन आ आत्मनिर्णय लेल सब केँ प्रेरणा भेटय, उद्देश्य एतबा टा अछि। महाकवि तुलसीदासजी रामायणरूपी रचना एहि संसार केँ समर्पित करय सँ पूर्वहि गुरु, ब्राह्मण, संत, असंत, खल (दुष्ट) आदि केँ प्रणाम करैत मंगलाचरण मे बड़ा नीक सँ वर्णन करैत कहने छथि – ई संसार नीक आ बेजा घटना सँ भरल इतिहास रखने अछि, एहि नीक आ बेजा मे सँ भला लोक भलाई ग्रहण करत आ दुर्जन सदिखन दुष्टता केँ ग्रहण करत। एकटा पाँति मोन पड़ि रहल अछि –
 
जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥
 
विधाता एहि जड़-चेतन विश्व केँ गुण-दोषमय रचलनि अछि, किन्तु संत रूपी हंस दोष रूपी जल केँ छोड़िकय गुण रूपी दूध केँ मात्र ग्रहण करैत छथि।
 
एहि पाँति अनुसार हमरो लेख मे सँ जे नीक आ उपयोगी बुझी ओतबे ग्रहण करी। बाकी केँ त्यागि दी।
 

१. मैथिलीक स्थान बहुत उच्च अछि लेकिन राज्य संचालक लेल कि?

 
विश्व केर एक मधुर भाषा मे पड़ैत अछि मैथिली। विद्वान् लोकनि एहि भाषाक बारे मे लिखने छथि जे ई ‘लिरिकल लैंग्वेज’ – ‘लयात्मक भाषा’ थिक। फ्रेन्च केँ सेहो लयात्मक भाषा आ दुनियाक सब सँ अधिक मीठ भाषाक रूप मे मान्यता भेटल छैक आर जँ हम सही स्मृति रखैत छी तऽ कहि दी जे फ्रेन्च केर बाद ‘मैथिली’ सर्वाधिक मीठ भाषा थिक जे डा. सर गंगानाथ झा एवं हुनक सर्वसक्षम पाँचो सपुत जाहि मे डा. अमरनाथ झा समान अगाध विद्वान् केर नाम अबैत अछि, जे स्वयं फ्रेन्च केर नीक ज्ञाता छलाह आर अपन कुलपति पिता सँ इलाहाबाद विश्वविद्यालयक कुलपति पद पर सीधे पदस्थापित भेल छलाह ई हुनकर मत छलन्हि। आर, वैह तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सँ फ्रेन्च केर समकक्षी भाषाक रूप मे मैथिलीक वर्णन कएने छलाह। ईहो सर्वविदित अछि जे प्रयागहि मे एकटा पुस्तक प्रदर्शनीक आयोजन कयल गेल जाहि मे नेहरूजी अतिथिक रूप मे एलाह, ताहि समयक अनेकों अगाध विद्वान् सह मैथिली अभियन्ता लोकनि यथा डा. सुभद्र झा, डा. जयकान्त मिश्र आदिक विभिन्न शोध एवं विचार आदिक संग स्वतंत्र भारत मे मैथिलीक स्थान केँ स्थापित करबाक एकटा बहुत महत्वपूर्ण अभियान सेहो चलि रहल छल, आर नेहरूजी द्वारा मैथिली केँ साहित्य अकादमी मे स्वतंत्र भाषाक मान्यता दियाओल गेल। क्रमशः बहुतो रास उतार-चढाव मे भले बिहार राज्यक दोसर राजभाषा मैथिलीक एकटा अपनहि बेटा मुख्यमंत्रीक पद पर रहितो आखिरकार काँग्रेसक स्थापित राजनीतिक तुष्टीकरणक नीति पर ऊर्दू केँ दोसर राजभाषा बनायल गेल परञ्च बिहारक अपन मौलिक आ सर्वाधिक बाजल जायवला ऐतिहासिक आ साहित्यसंपन्न भाषा मैथिली केँ कोनो स्थान नहि देल गेल, पुनः १९९० केर दशक मे हुनका सत्ता सँ प्रतिस्थापित कयनिहार जनता केँ जाति-पाति मे बाँटि अपन सत्तासुख पूरा कयनिहार बड़का सामाजिक न्याय देनिहार नेताजी तऽ अबैत देरी मैथिली पर से छह मारलनि जाहि सँ बचल-खुचल सामर्थ्य केँ सेहो हत्या करबाक काज कही त अतिश्योक्ति नहि होयत… लेकिन न्यायालय केर शरण मे पहुँचि जयकान्त बाबू समान योद्धा आखिरकार मैथिली केँ फेरो बिपीएससी मे स्थापित करौलनि आ लगत्ते अटलबिहारी वाजपेयीजीक सरकार द्वारा २००३ मे संविधानक आठम अनुसूची मे मैथिली कतेको प्रयासक बाद स्थान पाबि गेल। आब, करीब १५ वर्ष बीतल ई संविधान मे पहुँचलाक बाद… परञ्च राज्य द्वारा एखनहुँ कतेक कोष आ कतेक नीति, कतेक कार्यक्रम आदि विनियोजित अछि से किनको सँ छुपल नहि यऽ। हँ, तखन लोकजागरण बढल आ अधिकार प्राप्तिक दिशा उत्तरोत्तर प्रगति कय रहल अछि। स्वयं जनप्रतिनिधि लोकनिक ध्यान जँ खुलि जायत आ भाषाक आधार पर कयल जायवला विभिन्न कार्यक्रम लेल जँ राज्य केर राजकोषक दरबज्जा खोलबाबय मे बिहारक सत्ता-संचालक आ दिल्ली केन्द्रक सत्ता-संचालक सँ अधिकार लय लेता तऽ निश्चित मैथिली बहुतो भाषा केँ ओकर ओकादि चुटकी बजाकय देखा सकत। इन्तजार करू, गाड़ी स्टेशन सँ खुजि चुकल छैक। वर्तमान समय जाहि तरहक साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आ समग्र विकास लेल जे ‘मिथिलावाद’ केर आवाज वायुमण्डल मे गुंजायमान भेल अछि से स्वतः सब बात केँ पटरी पर आनत। तखन समय लागत, कियैक तँ जनप्रतिनिधि केँ जातीय आधार पर मत ग्रहण करबाक लेल दारू त बन्न भेल, धरि पैसा आ लोभरूपी चारा एखनहुँ मिथिला मतदाता केँ छिन्न-भिन्न कएने अछि, समय ताहि कारण लागि रहल अछि। साक्षरता बढत, जागरुकता बढत, स्थिति स्वतः सुधरत।
 

२. स्वयंसेवा पर जियैत अछि सनातन स्थिति आ पद्धति

 
जहिना सूर्य, चन्द्र, तारा, ग्रह, नक्षत्र, दिन, राति, बरखा, रौदा, छाहरि, हवा, बिहारि, ठंढी, गर्मी आदि प्राकृतिक स्थिति, नियति आदि सनातन अपन चक्रीय पद्धति मे चलैत रहैत अछि – ठीक तहिना चलैत अछि ‘सनातन सभ्यता’। सौभाग्यवश मिथिला सनातन सभ्यताक रूप मे विकसित भऽ चुकल अछि। आइ नहि, युगों पहिने। बड़का-बड़का शास्त्र आ पुराण जेकर नाम उल्लेख कएने अछि तेकरा आजुक राजनीति आ बाभन-सोलकन मे व्यस्त भाँड-भरुआ नेता आ कार्यकर्ता भले कि कय सकत? सबसँ सुखद बात ई अछि जे एहि ठामक भाषा, संस्कृति, समाज, मूल्य, परंपरा, मान्यता आ समस्त सम्पदाक रक्षक अछि एतुका सृजनशील समाज आ स्वयंसेवी। एतय जहिना जानकीजी कोनो मायक गर्भ सँ नहि बल्कि प्राकृतिक तत्त्वक समग्र मातृशक्ति ‘वसुधा’ सँ अवतार लेलीह, ठीक तहिना एहि ठामक आवोहवा, माटि, पानि, संस्कार मे ओ शक्ति अछि जे ‘स्वयंसेवा’ केर भावना अपन आत्मविद्या सँ लोक केँ स्वस्फूर्त प्राप्त होइत छैक। किओ कोनो विधा मे, कियो कोनो क्षेत्र मे… लेकिन सब स्वाभिमानी सन्तान कोनो-न-कोनो काज सँ अपन मातृभूमि लेल – माता, पिता, गुरु, ऋषि, देव, पितर आ स्वजन-समाज लेल योगदान देबाक हूबा रखैत अछि। आर, यैह सृजनशीलताक शक्ति सँ मिथिला सनातन सभ्यता बनिकय विश्व मे युगों-युगों सँ जीबित अछि। एकरा कोनो कुचक्री अथवा षड्यन्त्रकारी अथवा बलशाली, अजेय शक्ति तक पराजित नहि कय सकत। छद्म वेशधारी आ जोकर, विदुषक, आदिक बाते कोन! हँ, तखन भ्रमक स्थिति मे काजक गति बाधित होइत छैक। मिथिला केँ एखन ‘शिथिला’ कहबैक त गलत नहि होयत। कारण भ्रम आ नटवरलाल सब मंच सँ विचित्र अवस्थाक सृजन कएने अछि, कतहु ब्राह्मणवाद त कतहु सर्वहारा समाज, ई विभिन्न नकली बौद्धिकता आ दोसराक देक्सी सँ अपन मौलिकताक हत्याक नाटक कनेक भयावह दृश्य देखा रहल अछि, लेकिन ई बेसी दिन नहि टीकत। स्वयंसेवी सर्जक एकरा आगू बढबैत आबि रहला अछि, संगठनक अभाव मे ई सब स्थिति, पद्धति, नियति साफ-साफ देखाइत नहि यऽ, बस एतबे टा।
 

३. बाजारवाद मे मिथिलाक मौलिक उत्पादन पिछैड़ गेल

 
एतय साक्षरता दर यथार्थरूप मे सामन्तवादक हावी भेलाक कारण एखनहुँ बहुत कम देखैत छी। उच्च शिक्षा हासिल करब तऽ एतुका बहुतायत समाजक लोक लेल कोनो लक्ष्य तक नहि बनैत छैक। बस मैट्रीक पास करू आ सीधा रोजी-रोजगार केर खोजी आरम्भ करू। सेठक कोठी मे चुल्हा-चौका सँ लय कारीगर-मिस्त्री-रेजा (हेल्पर) आ कोनो सेवामूलक कार्य मे एहि ठामक जनता केँ काज भेट गेल, ओ अपन आ अपन परिवारक भरण-पोषण मे लागि जाइत अछि। बड कम लोक अफरात पैसावला अछि आर ओकरा लेल एहि अर्थयुग मे किछो संभव छैक। लेकिन जनसामान्यक दृष्टिकोण सँ मिथिलाक बाजार मे जे चमक-दमक होबक चाही से कतहु नहि देखाइछ। सब मे चाकरी प्रवृत्ति, कोहुना समय गुजारयवला बाध्यता आ प्रवास सँ रोटीक जोगार करबाक नियतिक कारण मिथिलाक बाजार मे मौलिक अर्थ व्यवहार नगण्य छैक। एकटा छोट उदाहरण लेल जाउ – अहाँ केँ मिथिलाक माछ, मखान या पान आब अपन मौलिक रूप मे नहि भेटत। कारपोरेट लेवेल आ कोओपरेटिव (सहकारिता) सिद्धान्त पर आब भले फेर सँ कने-मने मौलिक वस्तुक उत्पादन पर ध्यान गेल अछि, लेकिन सेहो उत्पादन मिथिलाक अपन बाजार लेल कम बल्कि ग्लोबल डिमान्ड केँ पूरा करय लेल बेसी। जेना कटिहार जिलाक गंगा उत्तर भूभाग मे एखन मखानक खेती धानक खेतक आरि केँ उच्च कय मात्र ४-५ फीट पानि बोरिंग सँ जमबैत लाखों हेक्टर मे करबाक बात आ तैयार फसल सँ फ्रीटो लेज, कुरकुरे, पेप्सीको आदि केँ सप्लाई गारंटी करबाक काज…. चम्पारण मे एखनहुँ निजी लगानी सँ कुसियारक खेती अत्याधुनिक सिंचाई सुविधा सँ लैत कीटनाशक, उर्वरक खाद आदिक प्रयोग कय चीनी मील केँ फीड करबाक काज… लेकिन मिथिलाक बाजार मे आत्मनिर्भरता अपनहि उपभोग लेल नहि अछि। एतुका बाजार केर व्यवहार मे आन राज्य मे एतुके लेबर (श्रमिक) केँ खटाकय कयल गेल वस्तुक उत्पादन नीक बाजार लेने अछि। खाद्यान्न मे मकइ, धान, गहुँम, दलहन, तेलहन, आदिक स्थिति एखनहुँ सुधार होबय लेल बाकी देखाइछ। जूट, कपास व विभिन्न नगदी फसल केर स्थिति मे विकास आ पूँजी वृद्धिक बदला गिरावट देखल जाइछ – तुलनात्मक अध्ययन करब तऽ स्वतः स्पष्ट होयत जे कृषक आइ स्ट्रे डौग्स (गलीक कुकूर) जेकाँ दिशाहीन गन्तव्य दिश कियैक उन्मुख अछि। पहिने भंडारण होइत छलैक बखारी, कोठी मे…. आब धीरे-धीरे कोल्ड स्टोरेज आ गोडाउन-वेयरहाउसिंग केर कन्सेप्ट आबि रहलैक अछि। देखा चाही जे राज्य कहिया धरि कृषक केँ आगू बढाकय क्षेत्र केँ आत्मनिर्भर बना सकैत अछि।
 

४. मिथिलाक मनोरंजन बाजार मे विदेशिया नाच हावी

 
कतहु-कतहु पढैत छी जे भोजपुरीक शेक्सपियर मानल गेनिहार महान् व्यक्ति भिखारी ठाकुर महीनों-महीना धरि मिथिलाक्षेत्र मे आबथि, एतय ओ अपन कलात्मक प्रस्तुति देथि जे ‘विदेशिया नाच’ सँ प्रसिद्धि पेलक। तहिना, एतय सँ ओ मौलिक धुन आ गीतनाद सीखिकय अपन कलाकार सब सँ भोजपुरी भाषाभाषी क्षेत्र मे सुनबाबथि जे ओम्हर खूब पसीन करय लोक-समाज। एहि तरहें सांस्कृतिक आदान-प्रदान केर एक मसीहा भिखारी ठाकुर द्वारा मिथिला आ भोजपुरा बीच जेहेन ‘सहोदरी’ केर वातावरण निर्माण कयल गेल तेहेन सांस्कृतिक राजदूत सब एखनहुँ धरि क्षेत्रीय पारस्परिक सहयोग आ सम्बन्ध केँ ‘भाषा-संस्कृति सहोदरी’ मार्फत बढावा दय रहला अछि। एहने एकटा नाम मोन पड़ि रहल अछि नेपाली भाषाक एक महान् संस्कृतिकर्मी चतुर्भुज आशावादी केर, ओ नाटक आ नृत्य संग गीत-संगीत मे सेहो यथासंभव कल्चरल एक्सचेन्ज केर कार्य कयलनि। मैथिली लेल भोजपुरी, अबधी, बंगाली, नेपाली, नेवारी, ओडिसी, थारू, राजवंशी, संथाली, उड़ाँव आदि भाषा निकट पड़ोसी समान अछि आर तरह-तरह केर मिश्रित बोली-उपबोलीक जन्म सेहो भाषा मिश्रण सँ भेल अछि। आर, पड़ोसी संग मित्रता आ भाइचारा बढेबाक लेल ‘सहोदरी’ संस्कृति मे जेबाक चाही। इन्टरनेशनल पोलिटिक्स मे सेहो ‘कल्चरल एक्सचेन्ज’ केर महत्ता आइ डिप्लोमैसी (कूटनीति) मे पर्यन्त देखाइत अछि। लेकिन, दुर्भाग्य एहेन छैक मिथिलाक आन्तरिक विभाजनक राजनीति आ दोसराक वस्तु खूब नीक लगबाक प्रवृत्ति मे आइ मैथिलीक बाजार पर भोजपुरी, नेपाली, हिन्दी व अन्य मिश्रित डीजे आ वेस्टर्न शैलीक निर्मित मनोरंजनात्मक गीत, नृत्य, संगीत, फिल्म, आदि हावी अछि। अपनहि भाषाक माँग कम आ आन भाषाक माँग बेसी भेलाक कारण बाजार मे पूर्ण परतंत्रता देखाइछ। आर, यैह कारण सँ कतेको लोक केँ ई मौका भेटि जाइत छैक जे मैथिलीक बाजार बहुत छोट, मैथिली फल्लाँ-फल्लाँ जातिक भाषा, मैथिली फल्लाँ-फल्लाँ जिलाक भाषा… एहेन-एहेन कतेको भ्रान्ति सब बेसी प्रचारित-प्रसारित करबाक मौका भेटि जाइत छैक। एकटा दृष्टान्त देखू – भारतक बाजार मे अरब, युरोप आदि बाहरी मुल्क केर लोक बहुत प्राचीनकाल सँ व्यापार करय लेल आबय आर कल्चरल एक्सचेन्ज सँ लैत कमोडिटी मार्केट केँ विस्तार भेटैक… एहि क्रम मे जाहि व्यापारी (मर्चेन्ट) केँ मौका भेटैक ओ अपन सल्तनत (शासन) स्थापित करय आ एतुका लोकविविधताक फायदा उठाकय एहि ठाम अपन राज्य चलाबय। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा ब्रिटिश राज केर स्थापना कयल गेल जे लगभग २०० वर्ष धरि भारत पर शासन केलक। जँ मिथिलाक बाजार मे मैथिली समान मौलिक भाषाक माँग नहि होयत तऽ स्वाभाविके एतुका संस्कृति पर दोसरक अधिपत्य होयत। आइ भोजपुरी भाषाक गीत-संगीत-फिल्म लेल ई नीक बाजार बनि गेल अछि। आर, यैह बाजार केँ ध्वस्त करबाक लेल वा कहू न ओकरा सँ अपन मार्केट शेयर लेबाक लेल अफीमी उत्पादन (अश्लील आ फूहर मैथिली गीत) केर मानू बाढि जेकाँ आबि गेल अछि। कारण, बाजार मे ओकर माँग देखल जाइछ। नीक आ मौलिक वस्तुक कतहु चर्चा तक नहि अछि। बौद्धिक आ उच्च विकसित समाज केर लोक आइ अपन घरहि मे नहि बसैत अछि तऽ ओकर च्वाइश आ मार्केट सँ डिमान्डक बाते कि करू! स्वाभाविक छैक जे एहेन दुरावस्था मे बाजार मुताबिक उत्पादन होयत आर ताहि पर आलोचना-समालोचना, विरोध-समर्थन आदि चलैत रहत। बाजार केर अवस्था मे सुधार आनय लेल कि करबाक चाही, विमर्श ताहि दिशा मे कयल जाय।
 

५. भाषा रोजगार उपलब्ध करबैत अछि, मैथिली मे काज कयनिहारक माँग पूरा देश मे

 
आइ एकटा केस-स्टडी लेल हम कम सँ २५ गोट सांगीतिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तोता समूहक परिचय समेटलहुँ अछि। अहाँ गौर करू – भाषा सँ रोजगारक ई एकटा अत्यन्त सहज आ सुन्दर उदाहरण थिक। एहि मे जाति-पाति आ उँच-नीच केर बात एकदम नहि छैक। कला आ विद्या सँ आभूषित मिथिलाक कोनो सन्तान मे आत्मविश्वास जागि गेल जे हम अपन स्वर, अपन नृत्य, अपन अभिनय, अपन चित्रकारी, जे कोनो कला अपना मे अछि ताहि सँ बाजार मे उत्पादन आपूर्ति कय सकैत छी – तऽ ओ समूहगत रूप मे ‘कमर्शियल ट्रान्जैक्सन्स’ करब आरम्भ कय दैत अछि।
 
मैथिलीक एकटा गलत परिपाटी कि रहलैक जे शुरुए सऽ ‘पिंगलपन्थी’ मे शुद्ध-अशुद्ध, नीक-बेजा, गलत-सही, आदि अनेकों द्वंद्वात्मक अवस्थाक सृजना कय केँ सर्वस्वीकार्यता आ हरेक स्तर पर व्यवहार मे आनल जाय योग्य एकरा नहि बनल देल गेलैक। एखनहुँ बीच-बीच मे गोटेक ‘सुकीला-मुकीला’ (पोच्छल-पाच्छल आ नामी-गिरामी अपना केँ उच्चवर्ग माननिहार लोक) अपन फुस्टिकबाजी समीक्षा यानि ‘मानक’ पर ई उचित अय, ई अनुचित अय…. गंभीरादेवी जेकाँ गंभीर बात सब बाजिकय एकटा त्रास केर स्थिति बनाकय पुनः कम पढल-लिखल, साहित्यक अल्पज्ञान रखनिहार जनसामान्य केँ मैथिलीक सीमाक्षेत्र मे प्रवेश करय सँ पहिनहि ततेक डरा दैत छथिन जेकर परावार जुनि पुछू। आ, फेर ओहि ‘सुकीला-मुकीला’ सँ ई पुछू जे आखिर जनसामान्यवर्ग जेकरा मैथिलीक कतहु पढाइयो नहि भेलैक ओ जँ हिम्मत करैत लिखब शुरू केलक तऽ ओकरा सही तरीका सँ सुधार आ उत्तरोत्तर प्रगति करबाक बदला एना ‘भारी-सारी-गिरधारी’ बनिकय हतोत्साहित करबाक कोन जरूरत… तऽ बोलती भऽ जाइत अछि बन्न।
 

निष्कर्षः हर हाल मे मैथिली जिन्दाबाद चाही! रोजी-रोजगार लेल सब कियो स्वतंत्र अछि। अहाँक समाज मे केकरो ‘राजाजी बेलाउज के बटन खोलू’ गीत नीक लगैत छैक, अहाँ केँ अपन बहिन-बेटीक चिन्ता होइत अछि तऽ बहिन-बेटी केँ एतेक मजबूत आ हंसिनी समान बनाउ जे अशुद्धि आ अपसंस्कृतिक अवधारणा केँ परित्याग कय केँ अपन अलग नीक योगदान सँ गलत कयनिहार केँ सही मार्ग पर एबाक लेल प्रेरित करय। अपन मौलिक आ मूल्यवान् पारंपरिक स्वरूप केर एतेक बेसी प्रचार करू, जे विदेशिया नाच-गानक प्रसारता केँ कम करत। छूछ आलोचना सँ न अहाँ अपन पेट भरि सकब, नहिये दोसर केँ रोजी-रोटी दय सकबैक। तुलसीदासजीक वचन जेकाँ अपन पैत बचाउ, अहाँक धर्म आ कर्तव्य वैह थिक। ॐ तत्सत्!

 
हरिः हरः!!