जनकपुर मे धनुष यज्ञशालाक भ्रमण आ मैथिल बालक संग राम-लक्ष्मणक पहिल भेंटक दृश्य

जनकपुर मे भगवान् मैथिल बालक सब संग केना भेंट कयने छलाह, रुचिगर आलेख पढू!
कल्याणमयी दृश्यावलोकन
 
भाइ ध्रुव शर्मा केर सौजन्य सँ ई सुन्दर चर्चा आजुक दिन पुनः सोझाँ आनबाक लेल भेटल अछि। जनकपुर मे जखन गुरु विश्वामित्रजी संग रामचन्द्रजी आ लक्ष्मणजी आयल छलाह, ओतय धनुष यज्ञ होयबाक बात सुनि कौतुकता सँ भरि गुरुजीक आज्ञा लय नगर भ्रमण हेतु दुनू भैयाँ पहुँचल छथि। आर केहेन दृश्य छैक से तुलसीदासजीक शब्द मे देखू – भाव सीधा ध्रुवजीक शब्द मे आ अनुवाद मैथिली मे राखि रहल छी।
 
श्रीरघुनाथजी केर प्यारा मधुर-सखा मैथिल बालक (हुनकर प्यारा साला लोकनिक आनन्द) :
 
चौपाईः
पुर बालक कहि कहि मृदु बचना। सादर प्रभुहि देखावहिं रचना॥
 
दोहाः
सब सिसु एहि मिस प्रेमबस परसि मनोहर गात।
तन पुलकहिं अति हरषु हियँ देखि देखि दोउ भ्रात॥
 
चौपाईः
सिसु सब राम प्रेमबस जाने। प्रीति समेत निकेत बखाने॥
निज निज रुचि सब लेहिं बोलाई। सहित सनेह जाहिं दोउ भाई॥
राम देखावहिं अनुजहि रचना। कहि मृदु मधुर मनोहर बचना॥
लव निमेष महुँ भुवन निकाया। रचइ जासु अनुसासन माया॥
भगति हेतु सोइ दीनदयाला। चितवत चकित धनुष मखसाला॥
 
जनकनगर केर बालक कोमल वचन कहि-कहिकय आदरपूर्वक प्रभु श्री रामचन्द्रजी केँ यज्ञशालाक रचना देखा रहल छथि।
 
सब बालक अही बहन्ने प्रेम केर वश मे होएत श्री रामजी केर मनोहर अंग केँ छुबि-छुबिकय शरीर सँ पुलकित होइत रहैत छथि आर दुनू भैयाँ केँ देखि-देखिकय ओहि बालक लोकनिक हृदय मे अत्यन्त हर्ष भऽ रहल अछि। श्री रामचन्द्रजी सेहो सब बालक लोकनि केँ प्रेमक वश मे जानि (यज्ञभूमिक) स्थानक प्रेमपूर्वक प्रशंसा कयलनि। ताहि सँ बालक लोकनिक उत्साह, आनंद और प्रेम आरो बढ़ि गेलैक, जाहि सँ ओ सब अपन-अपन रुचिक अनुसार हुनका बजा लैत छन्हि आर प्रत्येक केर बजेला पर दुनू भाइं प्रेम सहित हुनका लोकनिक पास चलि जाइत छथि।
 
कोमल, मधुर और मनोहर वचन कहिकय श्री रामजी अपन छोट भाइ लक्ष्मण केँ (यज्ञभूमिक) रचना देखबैत छथि। जिनकर आज्ञा पाबिकय माया लव निमेष (पलक गिरेबाक चौथाई समय) मे ब्रह्माण्ड केर समूह रचि दैत अछि, वैह दीन पर दया करनिहार श्री रामजी भक्ति केर कारण धनुष यज्ञशाला केँ चकित भऽ कय (आश्चर्य केर संग) देखि रहला अछि।
 
– श्रीरामचरितमानस
 
श्रीमिथिलाबिहारी युगल भ्राता की जय!
हुनक प्यारा-प्यारा सखा मैथिल-बालक लोकनि केर जय जय!
 
– ध्रुव शर्मा
 
हरिः हरः!!