मैथिल ब्राह्मणक वैवाहिक परंपराक इतिहास ओ गरिमा: वर्तमान कियैक अछि विपन्न

विशेष संपादकीय

मैथिल ब्राह्मणक वैवाहिक प्रक्रिया पूर्ण आ वैज्ञानिक

1002दुनियाक सर्वोत्तम वैवाहिक प्रक्रिया मे सँ एक ‘मैथिल ब्राह्मण’ केर मानल जाइछ। गोत्र आ मूल सँ शुरु होइत वैवाहिक अधिकार लेल जाँच प्रक्रिया, तदोपरान्त सिद्धान्त लेखन, खानपीन (घरदेखी), तिलक, विवाह, चतुर्थी, मधुश्रावणी, कोजगरा, द्विरागमन व अनेको प्रक्रियाक विशेष वैज्ञानिक महत्त्व सँ सर्वथा मजबूत कुटमैती मैथिल ब्राह्मण मे होइछ से कहबा मे कोनो अतिश्योक्ति नहि होयत। बदलैत युग मे घटैत पारंपरिक रीति ओ रिवाज सँ आब भले ई प्रक्रिया एकदम छोट बनि गेल अछि, लेकिन व्यवहारिक संसार मे आइयो अधिकांश विधिकेँ पूरा करबाक प्रयत्न मैथिल ब्राह्मण मे कैल जाइछ।

वैवाहिक विधानक संछिप्त चर्चा

विदित अछि गोत्र मिलान करबाक समय ध्यान राखल जाइछ जे वर व कन्याक गोत्र एक नहि हेबाक चाही। वैवाहिक अधिकार निर्णयक अन्य प्रमुख शर्त अछि जे पैतृक सात पीढी धरि आ मातृक पाँच पीढी धरि वर व कन्याक बीच कोनो प्रकारक रक्त-संबंध – अर्थात् कोनो प्रकारें पूर्व-संबंधी नहि होयबाक जाँच मे सफलता पेलाक बादे वैवाहिक अधिकार निर्णय देल जाइछ। एहि तरहक जाँच ओ निर्णय लेल दुनू पक्षक पैतृक सात पीढी आ मातृक पाँच पीढीक परिचय सहित पंजी पुस्तिका सँ आपसी-संबंधक सूक्ष्म निरीक्षण कैल जाइछ। पंजिकार जिनक अधिनस्थ पंजी पुस्तिका संरक्षित रहैछ, ओहि वर्गक विज्ञ द्वारा अधिकार निर्णय कैल जाइछ। निर्णयानुसार दुनू पक्ष अपन सहमति सँ ‘सिद्धान्त’ लिखबैत छथि। ई सिद्धान्त तार-पत्र (तारक पत्ता) पर लाल मसि सँ लिखल जाइछ। एहि मे तार-पत्र मे संपूर्ण परिचयक उल्लेख करैत वर ओ कन्याक विवाह निर्धारण कैल जेबाक प्रमाण उद्धृत कैल जाइछ। पुन: ओ सिद्धान्त कन्या पक्ष द्वारा अपन गोसाउनिक समक्ष दैविक आशीर्वाद हेतु राखि वैवाहिक राति ओकरा आज्ञा-डाला मे राखि वरपक्षक वर-बरियाती सोझाँ राखि वैवाहिक कन्या लेल सोहागक जोड़ा (कपड़ा ओ गहना संग अन्य साँठ आदि) माँगिकय फेर सँ भगवतीक घर मातृका पूजा लेल लऽ जायल जाइछ। एवम् प्रकारेन विवाहक अन्य विधि क्रमश: शुरु होइछ जे लगभग भैर राति चलैछ – विधि-व्यवहारक संपूर्ण चर्चा ऐगला लेख मे कैल जायत। समग्र मे हरेक विधि सँ वर केर पूर्ण परीक्षा उपरान्ते वेदी तर मे लऽ जायल जाइछ, तदोपरान्त एहेन-एहेन विधि सम्पन्न कैल जाइछ जाहि सँ पति ओ पत्नीक बीच अकाट्य प्रेम सहजहि उत्पन्न होइछ आ एहि सब बातक साक्षी संपूर्ण समाज हर्ष आ उल्लासक माहौल मे बनैत अछि।

कुटमैती परंपरा पहिने स्वस्थ छल

IMG05884-20121210-2038कुटमैती करबाक परंपरा सेहो मैथिल ब्राह्मण मे बहुत स्वस्थ छल। कालान्तर मे एहि मे काफी बदलाव आयल देखाइत अछि। जेकर दुष्प्रभाव आइ सीधा विवाहित जीवन आ विवाहोपरान्त अनेको विवाद मे फँसनाय – तलाक भेनाय – तनावग्रस्त विवाहित जीवन – आदिक रूप मे प्रकट होमय लागल अछि। पूर्व मे सार्वजनिक सभा मे विद्वत् सभा सँ सक्षम, स्वस्थ ओ कुशल वर केर चुनाव करबाक परंपरा देखल जाइछ। एहेन सभा सौराठ, ससौला सहित कुल ४२ स्थान मे लगैत छल। सम-सामयिक विषय पर चर्चा-परिचर्चा-समीक्षा करबाक निमित्त गुरुजन व सक्षम शिष्य सहित समाजक अगुआ, बुद्धिजीवी, समाजसेवी तथा आमजनक विशाल भीड़ संग लगभग एक सप्ताह धरिक समय लेल ई सभा लगबाक इतिहास भेटैत अछि। मिथिला पंचांग मे स्पष्ट उल्लेख करैत सभाकालक निर्णय पंडित ओ विद्वान् ज्योतिष द्वारा कैल जाइछ। एहि तरहक सभामे सहभागिताक अनेको रूप – जेना विभिन्न गाम ओ ठाम सँ आयल विद्वान् गुरु (कुल-परिवारक लोक) केर अपन-अपन विशेष स्थान पर आसन लगैत छल। ठीक जेना कोनो प्रदर्शनी मे अलग-अलग काउन्टर बनैत अछि, अलग-अलग समानक प्रदर्शनी ओ बाजार-वितरण कैल जाइछ, किछु ताहि तरहक अखाड़ा विद्वानजन सबहक एतहु होइत छल आ ताहि ठाम आगन्तुक सहभागी लोकनि आबिकय पूर्ण स्वतंत्रताक संग अनेको प्रकारक वर-परीक्षा, बहस, वार्ता, हँसी-ठट्ठा, चौल, आदि करैत अपन योग्य कन्याक लेल वरक चुनाव करैत वैवाहिक अधिकार निर्णयक संग, सिद्धान्त लेखन ओ विवाहक तिथि ओहि दिन समेत अन्य दिन लेल निर्धारित करैत दुइ आत्माकेँ सदा-सदा लेल वैवाहिक गठबंधन मे बान्हि दैथ। एहेन स्वच्छ परंपरा वर्तमान युग मे कतहु हेरायल-भोथियायल जेकाँ लागि रहल अछि, धरि कतेको पाश्चात्य सभ्यता ओ संस्कृति मे यैह प्रारूप आइयो अनुकरण कैल जाइछ यैह टा सत्य बाँचल बुझैछ।

पूर्व प्रक्रिया आ वर्तमान विकृति बीच समन्वय-समीक्षा सँ सुधारक आवश्यकता

515आइ मैथिल ब्राह्मण समाजक अगुआवर्गकेँ फेर सँ ई परंपरा शुरु करबाक चुनौती छन्हि। सभा पूर्णरूपेण ठप्प पड़ि गेल अछि। सभा मे विकृत वातावरण सँ एहि तरहक मरणासन्न अवस्था आयल। तथापि स्वच्छ ओ सक्रिय लोकक एकजुटता सँ एकरा पुनर्जीवित करबाक लेल कोनो असंभव नहि होयत। एहिठाम नीक लड़का एनाय फेर सँ शुरु करत तऽ स्वाभाविके कन्याक पिता ओ परिजन एनाय शुरु करता। अभियानक रूप मे एहि लेल सम्भ्रान्त, सक्षम, समर्थ आ सुशील समाजकेँ फेर सँ वातावरण बनाबय पड़त। अफसोस जे आइ-काल्हि लोक मे लाज चरम पर छैक, जे कोना अपन सक्षम वर केँ सभा मे बैसायब। लोक बिसैर गेल जे १९९० केर दशक धरि एतहि सँ आइएएस-आइसीएस केर विवाह भेलैक। विकृतिकेँ अंग लगबैत छी, स्वच्छताकेँ त्यागैत छी, तखन मैथिल ब्राह्मणक वर्चस्व धुमिल होयबाक सहजे कारणो बनि जाइछ। आइ नहिये ओतेक स्वस्थ कुटमैती परंपरा बाँचल अछि, नहिये स्वच्छ व्यवहार आ नहिये स्वच्छ संतान एतय उत्पन्न भऽ रहल अछि। सबसँ बेसी बौद्धिक क्षमतावान मैथिल ब्राह्मण मे अपसंस्कृति जोर पर अछि। ई दुखद टा नहि, खेदजनक सेहो अछि। दहेज मुक्त मिथिलाक निर्माणार्थ विशुद्ध सभा परंपराक वगैर अन्य दोसर किछुओ कारगर नहि अछि। स्वस्थ कुटमैतीक वैह टा परंपरा सर्वथा वैज्ञानिक अछि।