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मिथिलाक्षर शिक्षा अभियानः औचित्य, उपयोगिता, आवश्यकता आ अनिवार्यता

साक्षात्कारः मुकेश कुमार मिश्र, मिथिलाक्षर शिक्षा अभियान केर संचालक संग मैथिली जिन्दाबाद संपादक प्रवीण नारायण चौधरी

जँ मिथिलाक्षर नहि सीखने छी त अहाँ अपूर्ण मैथिल भेलहुँः मिथिलाक्षर अभियानी मुकेश

किछुए दिन पूर्व मे भारतक एक मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर दरभंगा सांसद कीर्ति आजाद केर प्रश्नक लिखित उत्तर दैत भारतक संसदीय सदन मे कहने छलाह जे मैथिली भाषाक लिखित इतिहास कम भेटैत अछि, एकर लिपि एकाधिक अछि, आर भारत सरकार केर पास एकर लिपि केर संरक्षण-संवर्धन-प्रवर्धनक कोनो योजना नहि अछि। काफी बवाल मचल छल हुनकर एहि तरहक जबाब पर। ताहि समय जदयू नेता आ जमीन पर काज करेबाक लेल नामी संजय झा ई भार अपना सिर पर लैत पुनः प्रकाश जावड़ेकरजी संग शिष्टाचार भेंट करैत मिथिलाक्षर, मैथिलीक लेख्य सामग्री मे एक सँ बढिकय एक प्राचीन पाण्डुलिपि, विद्यापति-ज्योतिरिश्वर-चन्दा झा आदिक संग-संग कोलब्रुक, ग्रियर्सन आदि विदेशी विद्वान् लोकनिक लिखल आधार आदिक सन्दर्भ सँ ई स्पष्ट करेलनि जे मैथिली विश्व केर समृद्ध भाषा मे सँ एक आर एकर लिपि ‘मिथिलाक्षर’ वा ‘तिरहुताक्षर’ वा ‘कैथी’ आदि सेहो ओतबे प्राचीन आ महत्वपूर्ण अछि। आर एकर नीक परिणाम किछुए दिनक बाद मंत्री जावड़ेकर अपन विशेष पहल सँ मिथिलाक्षर केर संरक्षण-संवर्धन-प्रवर्धन वास्ते एकटा विशेष कार्यसमिति गठन कयलनि अछि जे हाल धरि गोटेक बैसार मंत्रीजी आ आम सरोकारवाला सब संग कय चुकल अछि। ई भेल सरकारी बात।
 
एम्हर निजी प्रयास लेल सुपरिचित मिथिला सभ्यता मे कतेको मायक लाल लोकनि स्वयं मिथिलाक्षर केर संरक्षण-संवर्धन-प्रवर्धन हेतु अपना तरहें लागल रहल देखाइत रहला अछि। चूँकि मिथिला आइ भूगोलविहीन आ राजकीय पहचान सँ टुगर एक अनाथ बच्चा जेकाँ अछि जेकरा वास्ते अधिकांश मिथिलाक खुद वासिन्दा पर्यन्त अवहेलना आ उपेक्षाक दृष्टिकोण रखैत अछि, आपस मे छिछोड़ाबाजी आ जातिवादी राजनीति केर भुमड़ी मे जनप्रतिनिधि ताकि बिहारक विधानसभा मे आ भारतक संसद मे पठबैत अछि – ओहो जनप्रतिनिधि केँ अपनहि चुनाव मे कयल करोड़ों केर खर्च आब पद भेटलाक बाद अनेकों लूट-भ्रष्टाचार-कमीशनखोरी सँ कोना उठायत ततबे काज मे अपन महत्वपूर्ण ५ वर्ष बितबय मे लागि जाइत अछि…. आर होयवला काज कतय छुटि गेल तेकर समीक्षा तक कियो करत से मैकेनिज्म एतय नहि भेटैत अछि। बुद्धिजीवी आ समझदार लोक सब पेटक पाछाँ बेहाल, भागि एतय, भागि ओतय, अपन नवका-नवका खोंता भारतक आन-आन राज्य मे गामक बीघा सँ धूर धरि बेचिकय बनबय मे हैरान-परेशान अछि…. मिथिला पूर्णरूपेण अनाथ रहितो एहि माटिक किछु लाल – खड़ा सोना अपन छोट-छोट स्वयंसेवा सँ काज आगू बढा रहल अभैर जाइत अछि यदा-कदा। एहेन एकटा प्रयास “मिथिलाक्षर शिक्षा अभियान” चलबैत नजरि पड़ि जाइत छथि आर मैथिली जिन्दाबाद लेल एकटा गंभीर आलेख बनेबाक सोच बनैत हुनका लोकनि सँ किछु महत्वपूर्ण सवालक जबाब तकैत छी हमः
 

(क) एहि अभियानक सार्थकता आइ १०० वर्ष सँ लिपिक उठाव भऽ गेलाक बाद केहेन बुझा रहल अछि ?

मिथिलाक्षर शिक्षा अभियान: कोनो भी समाजक वा समुदायक परिचय सभसँ पहिने ओकर भाषा सँ होइत अछि, यथा- तमिल, मलयाली, बंगाली, ओड़िया, पंजाबी, मराठी, गुजराती आदि-आदि । उपरोक्त समाजक परिचयक अनुमान ओकर भाषा सँ सहजहि लगाओल जा सकैछ । एतबे नहि, गौर करब तऽ पायब जे सभ भाषाक अपन लिपि सेहो अछि जे ओहि समाज/समुदाय द्वारा पोषित आओर संवर्धित भए रहल अछि । एहि परिप्रेक्ष्य मे हमरा सभक की पहिचान अछि ? एहि यक्ष प्रश्नक उत्तर तकबाक क्रम मे पाओल जे हमर सभक पहिचान किछु कारणवश दबि गेल अछि वा दबाओल गेल अछि । जँऽ बेसी सोझगर शब्द मे कहल जाय तऽ ई कहबा मे अतिशयोक्ति नै जे हमरा सभक मूल पहिचान पर जेना कोनो दोसर पहिचान आरोपित कएल गेल हो । एहि मूल पहिचानक वर्चस्वक जड़ि मे कोनो तरहक अलगाववाद देखनाई न्यायोचित नहि होयत। एकरा ओहि सँ ऊपर उठि के देखय पड़त । भारतवर्षक ई अनुपम विशेषता अछि जे विभिन्न भाषा-भाषी लोकनि अपन मूल पहिचान केँ बचबैत एहि महान देशक महानता मे श्रीवृद्धिए कए रहल छथि । एहन स्थिति मे अपन मातृलिपिक (तिरहुता/मिथिलाक्षर) अछैत दोसर लिपिक कान्हक बले कतेक दिन धरि आओर किएक घिसियौर काटी ? ई सत्यापित तथ्य अछि जे मिथिलाक्षर, किछु आओर भाषाक लिपि केर जननी अछि । एहेन जे गौरवान्वित करए वला भाषा अछि, ओकर लिपि आई विलुप्तिक कछेर पर ठाढ़ अछि । ई सत्य अंतरात्मा केँ झकझोरय वला अछि । इएह कारण अछि जे मिथिलाक्षर शिक्षा अभियानक हम अभियानी सभ बिनु परिणामक चिंता कएने अपन काज मे सतत लागल छी आओर आत्मसंतुष्टिक अनुभव करैत छी ।
 
जहाँ तक सार्थकताक बात छै तऽ हमर सभक ई सोच अछि जे समस्त मिथिलावासी केँ हृदय मे आरोपित अपन लिपिक बीज के अंकुरित करबाक चेष्टा अवश्य करबाक चाही । हर्षक बात जे जानकीक कृपा सँ हमरा सभक ई छोट-छीन प्रयास आब अपन असरि देखा रहल अछि आ मिथिलाक लगभग हर कोन सँ समाजक हर वर्गक लोक सभ एहि अभियान सँ भिन्न-भिन्न माध्यमे जुड़ि रहल छथि आओर विलुप्त होइत मिथिलाक्षर केँ बचेबाक भागिरथ प्रयास मे लागल छथि ।
 
एहि महान लक्ष्य केँ प्राप्त करब कोनो एकटा व्यक्ति, अभियान वा किछु संस्थाक बूताक बात नहि अछि, मुदा एहि लेल हाथ-पर-हाथ धए बैसलो तऽ नहि जा सकैछ । जावत सभ गोटे अपन हिस्साक योगदान नै देथिन्ह तावत लक्ष्य प्राप्ति कठिन अछि ।
 
एहि प्रसंग मे “अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषदक अष्टम अधिवेशन (दरभंगा)‘‘ मे डाॅक्टर अमरनाथ झाजी द्वारा देल गेल अध्यक्षीय भाषण मे हुनक ई कथन – “यावत् अपने लोकनि “मैथिली लिपिक” प्रचार नहि बढ़ाएब तावत् मैथिली भाषाक जड़ि सुदृढ़ नहिए होयत । एकमात्र मिथिलाक्षरक प्रचार बढ़ओने अनायास “मैथिलीक” रक्षा होइत रहत अन्यथा सतत आन मैथिलीक क्षेत्र केँ संकुचिते करबाक चेष्टा मे लागल रहत । अतएव सबहुगोटे ई प्रतिज्ञा करू जे जहां धरि हो मैथिलिए लिपिक व्यवहार घर ओ बाहर मे करब” हमरा सभक मनोबल बढ़बैत रहैत अछि ।
 
जहिया समस्त मिथिलाक मैथिलक संग-संग प्रवासी मैथिल सभ सेहो अपन मातृलिपि सँ अवगत भए जेता तहिआ प्रासंगिकता आओर सार्थकताक बात बेमानी साबित भए जायत । लक्ष्य बहुत पैघ अछि मुदा जानकीक असीम कृपा सँ आमजनक सहभागिता सँ सहजहि प्राप्त कएल जा सकैछ ।
 

(ख) एकर लाभ आमजन केँ कोना भेटतैक ? कि सब लाभ छैक ?

मिथिलाक्षर शिक्षा अभियान: सभ वस्तु केर हित-लाभ केँ तराजू पर जोखब उचित नहि । खास कए जकर सम्बन्ध स्वाभिमान सँ जुड़ल हो । तथापि जखन हम सभ मिथिलावासी, अपन हेरायल लिपि केँ पुनः हृदयंगम कए लेब, तऽ लाभे-लाभ होयत । एकर अनुमान आन-आन भाषा-भाषी क्षेत्रक विकास के अवलोकन कएला पर सहजहि लगाओल जा सकैछ ।
 
सभसँ पहिल लाभ एकटा स्वतंत्र आओर गौरवान्वित करए वला पहचानक रूप मे भेटत जकर दरकार सबसँ बेसी अछि । तदुपरान्त प्राथमिक आओर अन्य स्तरक शिक्षा मे शामिल केनाय सरकारक बाध्यता भए जायत जखन एकर प्रचार-प्रसार आम जनमानस मे भए जायत । अनेक तरहक प्रतियोगिताक परीक्षा मे एहि सँ संबंधित प्रश्न आओत जे मिथिलाक होनहार विद्यार्थी लेल बहुपयोगी सिद्ध होयत । एकर अलावे किछु आओर भाषाक लिपि, जेना, बांग्ला, असमी आदिक ज्ञान सेहो अल्प प्रयास सँ अर्जित कएल जा सकैछ जाहि सँ रोजगारक अलावे सांस्कृतिक क्षेत्र मे सेहो आपसी भागीदारी आओर मेल-जोल सुनिश्चित होयत ।
 

(ग) एहि दिशा मे अभियान संचालन लेल सरकारी सहयोग उपलब्ध करायल गेल अछि वा नहि ?

मिथिलाक्षर शिक्षा अभियान: जँ सत्य कही तऽ हम सभ एहि लेल कोनो प्रयास नहि केलहुँ अछि अखन धरि । सभ केओ अपन अमूल्य समयक अलावे यथाशक्ति श्रमदान आओर आर्थिक अंशदान करैत मिथिलाक्षर शिक्षा अभियानक काज केँ आगू बढ़ा रहल छी । भविष्य मे एहि तरहक कोनो आर्थिक सहयोगक अपेक्षा सेहो नहि करैत छी सरकार सँ । हमरा सभक एकहिटा लक्ष्य अछि जे मैथिली केँ ओकर समुचित सम्मान सरकार द्वारा भेटि जाय, बस एतबे ।
 

(घ) एखन धरि कतेक लोक जमीन पर उपलब्ध एकरा फेरो सीखलनि अछि ?

मिथिलाक्षर शिक्षा अभियान: एहि संबंध मे सटीक जानकारी देनाय संभव नहि किएक तऽ फेसबुक आओर वेबसाइट पर सेहो ई अभियान सक्रिय रूपें जन-जागृति मे लागल अछि । एहि दुनू माध्यम सँ कतेक लोक लाभान्वित भए रहल छथि, तकर अनुमान लगायब कठिन अछि । लाभ उठा रहल छथि मैथिल जन तकर सूचना सदति भेटि रहल अछि। मुदा, व्हाट्सएप पर सेहो एहि अभियानक अनेक समूह चलि रहल अछि जाहि मे बहुत गोटे अपन लिपि सँ अवगत भेलथि अछि आ भऽ रहल छथि। किछु एहनो व्यक्ति सभ नजरि पड़लैथ अछि जे एहि अभियान मे सीखि केँ उपाधि हासिल करय लेल अन्यत्र चलि गेलाह। ध्यातव्य अछि जे ई अभियान कोनो तरहक उपाधि नै दैत अछि आ ने कोनो तरहक व्यसायिक हितलाभ नै करैत अछि। तथापि, हमरा सभ लेल ई खुशी के बात अछि जे लोक सभ सीखि रहल छथि । फेसबुक पर आह्वानक फलस्वरूप व्हाट्सएप समूह सँ जुड़बाक लेल जेहेन उमंग शुरुआत मे देखाइत दैत अछि ओ बाद में जा कए मंद पड़ि जाइत अछि जे हतोत्साहित करए वला अछि । एहि उदासीनता केँ देखैत मिथिलाक्षर शिक्षा अभियान जमीनी स्तर पर हालहि मे कार्यशालाक संचालन सेहो आरंभ केलक अछि जकर उत्साहवर्द्धक परिणाम रहल आ लोक सभमे अपन लिपिक प्रति प्रेम सेहो जागल अछि । विश्वास अछि जे आबय वला समय मे एहि कार्यशालाक परिणाम सुखदगर रहत ।
 
जहाँ तक मिथिलाक्षर सीखय वला लोकक गिनतीक बात अछि तऽ आई धरि लगभग ५०० सँ ऊपर लोक एहि अभियानक माध्यम सँ मिथिलाक्षर सिखलथि अछि ताहि मे कोनो संशय नहि। हमर सभक प्रयास अछि जे मिथिलाक्षरक पहिले जड़ि मजगूत करी।
 

(ङ) ई अभियान कहिया सँ आरम्भ कयल, कोन प्रेरणा सँ, के सब संस्थापक, केकर कि पद आ अहाँ अपन सामान्य परिचय पठाउ।

मिथिलाक्षर शिक्षा अभियान: सौराठ के युवा नामक ह्वाट्सएप समूह पर मैथिलीक अधिकाधिक उपयोग सँ प्रेरित भय किछु वरिष्ठजन केर संगे आपसी विचार विमर्शक बाद निर्णय लेल गेल जे आब हमरा सभकें मैथिली कें देवनागरी मे लिखबा से आगू बढ़क चाही आओर मैथिली सन समृद्ध भाषाक अपन लिपि मिथिलाक्षर के आगू बढ़ाबय दिस धेआन देबाक चाही । सब गोटे एहि बात सँ अति प्रसन्न भेलहुँ आ श्रीमान् प्रकाश चन्द्र मिश्र जी’क कुशल नेतृत्व मे हम सभ २१/०२/२०१६ सँ मिथिलाक्षर शिक्षा अभियान नाम सँ ह्वाट्सएप समूह बना तकरा किछु आवश्यक नियम आदि सँ सुसज्जित करैत नियमित अभ्यास आरंभ कयलहुँ । किछु दिनक सम्मिलित प्रयास आ सभ गोटेक कठिन मेहनति सँ हम सभ मिथिलाक्षर लिखब सीखए लेल आवश्यक सामग्रीक ओरियान कयलहुँ आ एहि तरहें मिथिलाक्षर शिक्षा अभियानक शुरुआत भेल ।
 
एतय धेआन देब जरूरी जे ओहि सँ पहिने हमरा सभक जानकारी मे मिथिलाक्षर सीखक आओर सिखेबाक लेल एहि तरहक कोनो आन अभियान/समूह, सोशल मीडिया पर उपलब्ध नहि छल । ई पहिल प्रयास छल । अभियानक सफलता एहेन भेल जे भिन्न भिन्न गांव आ शहर मे रहनिहार लोकनि एक संग जुड़िक’ ह्वाट्सएपक माध्यमे नियमित अभ्यास करए लगलाह । आब ई अभियान जन जन धरि कोना पहुंचय तकरा लेल सभ मैथिल जन कें सामूहिक सशक्त प्रयास करबाक चाहियनि। एकरा पुनर्जीवित कय अपन स्थान, मान-सम्मान कोना पुनर्स्थापित हो ताहि दिस बेसी धेआन दी आ से संयुक्त प्रयासे सँ संभव अछि ।
 
एतय कोनो पद नहि आ ने कोनो टोपे टहंकार अछि । सबगोटे आपसी सहयोगक माध्यमे गुरु- शिष्यक बदला सहपाठी बनि एक दोसर कें मिथिलाक्षरक गुर आदान प्रदान करैत छथि। उद्येश्य मात्र मिथिलाक्षरक बढावा आ मिथिलाक्षर शिक्षा अभियान हमर सभक एकमात्र परिचय।
 
जय जानकी – जय मिथिला
 
उपरोक्त बातचीत (प्रश्नोत्तरी) अभियानक एक संचालनकर्ता श्री मुकेश कुमार मिश्र सँ प्राप्त भेल अछि। एहि अभियान मे एक परामर्शदाता श्री रमेश चन्द्र झा संग सेहो चर्चा भेल छल। सोशल मीडिया मे बनगाँव (सहरसा) मे संचालित कैम्प केर बारे मे सेहो कतहु पढलहुँ। सम्पूर्ण वर्णन सँ मिथिलाक मौलिक पहचान केर मूल स्तम्भ ‘मिथिलाक्षर’ केर बचेबाक लेल हिनका लोकनिक प्रयासक जतेक सराहना करब ओ कम होयत। कठोर प्रतिबद्धता आ स्वयंसेवाक तर्ज पर एहि महत्वपूर्ण लिपिक प्रचार-प्रसार सच मे बहुत प्रभावित करैत अछि।
 
एकर लाभ-हानि पर राखल प्रश्न वर्तमान युगक प्रसंग मे कयल गेल। विदिते अछि जे आजुक समय मे एकमात्र अर्थ लाभ कोनो शिक्षाक जैड़ मे रहैत अछि। आर जाहि तरहें आसाम, बंगाल, उड़ीसा जेहेन ३-३ टा राज्य केर लिपि प्रचलन आ रोजगारक अवसर अदौकाल सँ मैथिल जनमानस लेल भेटैत रहल छैक से पुनर्स्मृति मे देबाक काज अभियानी लोकनि करौलनि अछि। मुकेशजी संग दूरभाष पर बात कय रहल छलहुँ त वार्ताक क्रम मे एकटा आरो बड़ पैघ बात ओ कहने छलाह। बहुतो व्यक्तिक पास मे प्राचीन आलेख-अभिलेख सब आइयो सुरक्षित अछि, लेकिन क्रमशः मिथिलाक्षर पढब-बुझब बिसैर जेबाक कारण ओकर महत्ता सँ आजुक पीढी, ओहि मे निहित ज्ञान सँ वर्तमान मैथिल संतति अपरिचित अछि। ई आशंका बनल अछि जे आबो जँ एकरा नहि बचायल जायत तऽ आबयवला समय मे एहेन कतेको रास महत्वपूर्ण जानकारी रहस्यमयी बनि सदा-सदा लेल औचित्यहीन भऽ जायत। एतबा कहाँ, मुकेशजी एकटा आरो गंभीर रहस्योद्घाटन करैत दूरभाष पर कहलनि – जँ अहाँ मिथिलाक्षर सँ अनभिज्ञ छी तऽ अहाँ पूर्ण मैथिल नहि भऽ सकैत छी। हरेक मिथिलावासी लेल ई पाँति बेर-बेर सोचय आ मनन करयवला बुझायल, एकर औचित्य आ उपयोगिता पर आगुओ शोधमूलक आलेख लय केँ आयब, ई प्रण कयल। अस्तु! पुनः आगामी लेख मे।
 
हरिः हरः!!

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