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बुढापाजन्य संकटक समाधान पर साहित्यकार कालीकान्त झा तृषित

विचार

– कालीकान्त झा ‘तृषित’ 

बुढापाजन्य संकट आ समाधानक उपाय

वृद्धावस्था मे एखनुक समय मे सहजहि उपस्थित जटिलता सम्बन्धी ( चर्चा अपना ठाम के ) पोस्ट पर कमेन्ट मे एकटा जुआन जहान कविजी जे पशुपतिनाथक सेवक सेहो छथि, एकटा प्रश्न उठा देने छथि जे एकर समाधानक उपाय की?

हिनक प्रश्न उचिते छनि तकर समाधानक उपाय प्रस्तुत कऽ रहल छी। ई घरेलू आयुर्वेदिक उपाय अवश्य कारगर हएतै, जौँ से नहि भेल त पैथेलोजिकल टेष्ट सहित अपरेशने निदान हएत, मुदा एहि सब स पहिने एकर किछु पृष्ठभूमि लिख रहल छी जकर निचोड़ ई अनुभूत उपाय अछि।

सर्वप्रथम त इ स्पष्ट क दी जे “चर्चा अपना ठाम के” बला पोष्ट मे जे लिखल छै से किनको साथ बीतल घटना नहि छैक। व्यक्तिगत रूपेँ ई गीत किनको सँ सम्बन्धित नहि छैक तहन एकरा एखनुका समय के संभावनाजन्य विडम्बना कहि सकैत छी। वृद्धावस्थाक हमरा दूनू परानीक जे दिनचर्या अछि से एहिठाम (अमेरिका मे) छुट्टीक दिन बेटा-पुतोहु आ नातिक सँग आनन्दातिरेक मे दिन कोना बीत जाइछ से पते नहि चलैत अछि। जहन सब अफिस चलि जाइत छथि त एतुका परिवेश मे साहित्य सृजनशीलता एतेक बढि जाइत अछि तकर आनन्द हटले अछि। जहन काठमांडू रहैत छी त प्रात:कालीन पूजापाठ सम्पन्न करैत जहन बीचला बैठक मे पहुँचैत छी ताबत बच्चा सब के स्कूल पहुँचाक पुतोहु वापस आबि गेल रहैत छथि त बेटा पुतोहु सँगे चाय फलफूल दुध इत्यादि लैत पारिवारिक सुख शान्तिक आनन्द उपभोग मे जीवन के प्रति आर लगाव आ लिप्सा बढैत जएबाक विशेष अनुभव करैत छी आ जहन गाम रहलहुँ तखनुक आनन्दक वर्णन करब असाध्य अछि। अपना मन्दिर मे आराध्यदेवक सेवा मे पूजन भजन कीर्तन, गाम समाज स जूड़ल सुख-दुःखक बात, हास परिहास, काठमाँडूए जेकाँ स्वार्थ आ परमार्थ मिश्रित ज्योतिषीय सेवा सेहो लागल रहैत अछि। एहि तरहेँ जीवन यापन करैत उपरोक्त समस्याक उपाय जे बुझायल से ई अछि। परीक्षण प्रार्थनीय अछि।

समाधानक उपायः

इच्छा के सीमित कऽ राखू, जे अछि तकर लैत आनन्द।
डाँटू मुदा सहज कऽ राखू, बेटा पुत्रवधूक सम्बन्ध॥

बड पैघत्व आ तुनुकमिजाजी, बुढबो करत हएत उत्पात।
टेनामेनी कतऽ ने होइछ, सहन करत हटतै सन्ताप॥

सासु माय बनि त्यागमूर्ति सन, नहि गल्ती दिस बेसी ध्यान।
पुत्रवधू नहि करथि उल्लंघन, परिवारिक मर्यादा मान॥

दुनिया के खुश कएनहुँ व्यर्थे, मातु पिता जौँ पीड़ित भेल।
परम सत्य, सब निष्फल बुझू, पूजो पाठ आ तीरथ गेल॥

सर्वोपरि छै मातु पिता के, देल हृदय स आशीर्वाद।
जिनका इ अवसर अछि भेटल, घरे मे काशी परयाग॥
छोड़ू व्यर्थक भागम भाग!

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