सरकारी खरात, मुफ्तक खाइ!!
(व्यंग्यवाण)
– प्रवीण नारायण चौधरी
गामक हाल बेहाल अछि।
नीक-नीक लोक गड़बड़ायल अछि।
कोटा परका चाउर चाही।
राहत सब बड़के लेत।
अपने सेटिंग मे सब बेहाल।
एहन बदतर गामक हाल।
मुखिया देखियौ भेल बइमान।
सरपंचहु केर कोनो न ठेगान।
सब मिलि लूटय चारू दिशि।
एकरे बुझू स्वराज्य थीक।
अपन पैसा सँ सुदि कमाउ।
गरीब-गुरबाकेँ लूटिक’ खाउ।
भोजन हेतैक सरकारी चाउर सँ।
तरकारी लेल दोसरक बारी।
मुफ्त के ताकी बारी-झाड़ी।
ई थीक पुरुखक पुरुखाइ।
अपन बचबू अनकर खाइ।
बोली धरि बाजत सब बड़का।
भ्रष्टाचारी सौंसे-सौंसका।
एना मे कि मानत कोनो नेता।
ओ सरगन्ना थीक सरदार।
जनता ओकर सिपहसलार।
भारतदेशक गाम बिगैड़ गेल।
लोकक चर्जा साफ खतम भेल।
मात्र लूटिकय खेबाक वृत्ति।
चोरी, भ्रष्टाचारी, तरघुस्की प्रवृत्ति।
सौ मे अस्सी अछि बेइमान।
तैयो कहत देश महान।
झूठ-मूठ मे बड़का बात।
अलगे सबटा तैयो साथ।
नामक चलैछ ई दुनिया देखू।
लोक केँ लोक सँ रगड़ा देखू।
मन्दिर बैसल चुप भगवान्।
बेइमाने-कैमान इन्सान।
अन्जानो सँ खूबे जान।
मान न मान – हम तोहर मेहमान।
गाबू मैथिली मिथिला गान।
राम-राम भजू सीताराम।
राम-राम भजू सीताराम।
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