‘चनमा’ आ ‘मचान’ केर आयोजन आ मैथिली क्रान्तिक नव सूत्रपात

मैथिली मचान काठमांडू
 
नेपाल केर राजधानी मे अन्तर्राष्ट्रीय पुस्तक मेलाक २२म बेरुक १०-दिने आयोजन मे मैथिली भाषा-साहित्य मात्र उपलब्ध करेबाक अनुपम काज भारतक राजधानी दिल्ली सँ दिल्ली युनिवर्सिटीक इतिहासक प्राध्यापिका विदुषी डा. सविता झा खान केर अगुवाई मे २०१७ केर आरम्भ सँ मैथिली पुस्तक संग पाठक जोड़बाक क्रान्ति करैत एबाक क्रम मे सफलतापूर्वक केलीह।
 
एहि अन्तर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला मे भारत सँ २ गोट अति-महत्वपूर्ण संस्थानक सहभागिता आरो अपेक्षित छल, किंवा स्टाल बुक कयल गेल छल, मुदा ओ सब कोनो कारणवश सहभागी नहि बनि सकलाह। साहित्य अकादमी आ नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा सेहो मैथिली पोथी प्रकाशन आ बिक्री-वितरण करबाक कार्य होएत अछि; मैथिली मचान यैह कारण सँ एहि दुइ प्रकाशन सँ जुड़ल कोनो पुस्तक नहि आनि सकल। भारत सँ नेपाल धरि पोथी आनब बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य छैक, बहुत खर्च आ परेशानी भोगितो अमित आनन्दजीक नेतृत्व मे हमरा लग आयल आर समुचित सहकार्य मे विराटनगर भंसार होएत ई सब पोथी काठमांडू धरि पहुँचायल जा सकल। एहि लेल विराटनगर भंसार कार्यालय, भारतीय कस्टम्स, भारतीय रेलवे आ नेपालक चेल्सी बस सेवा सँ लैत बुद्ध एयर सर्विस सब केँ धन्यवाद करय पड़त कारण ‘मैथिली पुस्तक’ केर प्रचार-प्रसार आ पाठक संग जुड़बाक बात सब केँ काफी प्रभावित केलक। करबाको चाही। विश्वक एक प्राचीनतम भाषा मैथिली आर जेकर समृद्ध साहित्यक अम्बार रहितो आइ बीमार आ बेचारा बनि गेल अछि। सब केँ दया अबैत छैक। सच पुछू त जेना भगवान्-भगवती प्रति लोक केँ प्रेम आ आस्था देखैत छी किछु तहिना हमरा आ हमर मैथिली प्रति सेवा केँ उपरोक्त वर्णित सब पदाधिकारी लोकनि देखलनि, आर एहि समस्त कार्य मे हमरा सर्वाधिक सहयोग आ मार्गदर्शन भेटैत रहैत अछि अपन प्रिय दाजू (बड़ भाइ) श्याम भंडारीजी केर। एक बेर कतहु फोन कय देथिन कि हमरा बिना कोनो देरी कएने सब काज करा देल जाय! अमित आनन्दजी केर वीरतापूर्ण कार्य जे कोहुना रेल सँ एतेक भारी-भारी किताब सँ भरल बोरा उघने जोगबनी धरि आबि गेल छलाह। बेसी उम्मीद जे किताबक दाम सँ फाजिल खर्चा देखिकय साहित्य अकादमी या एनबीटी नहि आयल होयत, हम अनुभव सँ कहि सकैत छी। खैर, मैथिलीक वास्ते अपन त्याग कयनिहारि डा. सविता झा खान केर एहि अनुपम परिकल्पना आ संयोजन लेल जतेक धन्यवाद कयल जाय ओ कम होयत।
 
१-९ जून धरिक मेला लेल २० मई सँ १२ जून धरि लगभग १५ गोटा जनशक्ति अहर्निश राति-दिन खटलाक बाद ई महायोजन पूरा भेल अछि, ई एकटा छोट कारिन्दाक रूप मे हमहुँ जनैत छी। जतबा पोथीक दाम नहि उठैत अछि तेकर तेब्बर टका खर्च कयल जाइत छैक। स्टाल बुकिंग लेल ६४ हजार नगद, किताब आनय आ पहुँचाबय लेल लगभग ५० हजार, लागि-भिड़िकय सब काज केँ पूरा करनिहार केर भोजन-भ्रमण-होटल आदि पर प्रति व्यक्ति प्रति दिन मात्र २ हजार टका जोड़ला सऽ लगभग ३ लाख टका, सत्र, प्रचार-प्रसार, फ्लेक्स आदि लेल सब जोड़ि देल जाय त २५ हजार टका न्युनतम – आब एहि तरहें साढे-चारि स पाँच लाख टका (नेपाली) खर्च सँ मैथिली पोथी आ पाठक बीच सम्पर्क स्थापित करेबाक काज करब, भाषा-साहित्य-संस्कृति-समाज-अर्थ व मैथिलीक विभिन्न पहिचान बीच तादात्म्य स्थापित करब – ई सब अदम्य साहस आ जिवटताक परिचायक थिकैक। एहेन परिदृश्य मे एक इनसाइडर एक्टिविस्ट केर रूप मे हम डा. सविता झा खान आ हुनकर परिकल्पना “मैथिली मचान” केर बड पैघ प्रशंसक छी। एहि लेल हमरो किछु श्रम आ समय एहि मे लागल ताहि लेल अपन भाग्यवृद्धिक अनुभव कय रहलहुँ अछि। साक्षात् जानकीक कृपा सँ ई सब होएत अछि, ई हम शुरुहे सँ सब केँ कहैत रहल छी। जगज्जननी जानकी जनती, एहि मे कतहु आरो मनसाय आ छुपल एजेन्डा किनको होइन्ह ताहि सँ हम अपन माथ केँ घिरनी जेकाँ नाचय लेल एकदम नहि कहब।
 
मैथिलीक सर्जक केँ विश्वकर्मा जेकाँ वलिस्ठ मानैत रहबाक कारण हरेक लेखक, कवि, विद्वान् साहित्यकार आ कलाकार सँ लैत सर्वजनक हित ओ कल्याण लेल अपन जीवन निछाबड़ कयनिहार स्रष्टा सब केँ नमन करैत छी। लेकिन यज्ञ समाप्त होइत देरी विष्ठा खेबाक कुत्सित कार्य जखन हमरा सभक यैह सर्जक वर्गक लोक सब कोनो न कोनो पूर्वाग्रह या आयोजकक गोटेक कुचाइलक कारण करय लगैत छथि त मैथिली पर गुंहाँगिज्जी जेहेन नारकीय गतिक बड खराब अनुभव सँ मोन दुखा जाइत अछि। रामचरितमानसक मंगलाचरण मे संत आ दुष्टक बड़ा सुन्दर वर्णन भेटैत अछि, मैथिली केर भविष्य लेल संतरूपी हंस अभियानी लोकनिक मदांधताक अशुद्धि केँ छोड़ि सिर्फ विशुद्ध दुग्धरूपी सारतत्व अमृतक पान करैत देखैत छी त फेर मोन शान्त होएत अछि। नाम नहि लेब, मुदा मैथिली मचान मे दुर्जन, संत, आदिक संगम भेल छल। डा. सविता झा खान एक महिला रहितो ठढबोलिया हेबाक कारण केहनो वक्ता आ कि स्रोत व्यक्ति आ कि स्वयं अपन भाइ-सन्तानहि तक केँ धर्र सऽ किछु कहि दैत छथिन – हुनकर एहि शैली सँ कतेको लोक आहत होएत छथि, शिकायत करैत छथि, मुदा फेर सऽ हुनकर त्याग आ सकारात्मक सोच एहि सब छोट-मोट बात केँ स्वतः बिसरय लेल लोक केँ बाध्य कय दैछ। तहिना, अमित आनन्द – ओ बड़ सोझमतिया आ एकबोलिया संग महाजिद्दी, अपन डिजाइन आ बुझाइ सँ इतर आन कोनो बात लेल जिरह करय लागब आ दोसराक स्थिति आ जीवनशैली केँ अपना तरहें व्याख्या कय पूर्वाग्रही सोच विकसित करब… ई सब गोटेक कमजोरीक कारण ओहो लोकप्रियता कम्मे लोकक नजरि मे हासिल कय पबैत छथि। हम हुनकर गुण सँ परिचित छी, भारतक विभिन्न स्थान पर एक सँ बढिकय एक विद्वान् आ एक सँ बढिकय एक राजपत्रित-अराजपत्रित पदाधिकारी, शोधार्थी, वैज्ञानिक पर गंभीर अध्ययन करैत ओ सब केँ जोड़िकय रखैत छथि। हिनकर जिद्द आ डिजाइन डा. सविता झा खान तक केँ सहमति नहि दय पबैत अछि, लेकिन तैयो मैथिलीक कल्याण लेल एक-दोसर सँ फरक मत रखितो दुनू मे एकता होएत अछि आर मचान बनैत ओ बढैत अछि। हमरा सनक लोक लेल दुनू एकरंग छथि, १०० टा खून करथिन तैयो माफी! कारण काज केनिहार जतय छहिये नहि, ओतय जे कियो छथि ओ प्रणम्य छथि, हुनका प्रति सब आदर समर्पित अछि।
 
एखन ‘चनमा’ आ ‘मचान’ नेपालक विद्वत्वर्ग सँ लैत युवा पुस्ता केर कतेको अभियन्ता आ रिसर्चर संग विचारक सभक वास्ते ई एकटा एहेन क्रान्तिक संचार केलक अछि जेकरा वर्णन करय लेल हम दोसर लेख लिखब। जे व्यक्ति १० दिन मे १ पोथी तक कीनबाक आ पढबाक कार्य मे रुचि नहि देखायत ओहो विश्लेषक बनबाक सपना देखत…. मंच ओकरो चाही…. विमर्शी ओहो बनत… आर, से जँ आयोजक नहि पूछलकैक त ‘चनमा’ आ ‘मचान’ भऽ गेल ब्राह्मणक वर्चस्व प्रदर्शनक स्थान…. कारण एतेक पाइ, सामर्थ्य, सोच, समर्पण, समय आदि त सिर्फ ब्राह्मणहि वर्गक गोटेक लोक मे छैक जे ‘चनमा’ लगा दैत अछि नेपालक राजधानी काठमांडू मे, ‘मचान’ सजा दैत अछि भारतक राजधानी दिल्ली सँ आबिकय नेपालक राजधानी काठमांडू मे। वर्षों-वर्ष सँ रहनिहार नेवारी मैथिल जे अपन भाषा बिसैर गेलाह, अपन रीत-रेबाज सब बिसैर गेलाह, आब मैथिल कहेबाक लेल मिथिला सँ पुतोहु लय जेबाक लेल आतूर छथि… तिनका सभक बीच मे रहनिहार लगभग १ लाख मैथिल जनमानसक भीड़ भरल काठमांडू सन अत्यन्त प्राचीन आ ऐतिहासिक महानगर मे एहि सँ पहिने ‘चनमा’ आ ‘मचान’ केर परिकल्पना कियो नहि कय सकल ई स्वयं सोचय योग्य सवाल छैक। भाषा-साहित्य-संस्कृति-समाज-अर्थ-विचार – कि अहु सब लेल बाबा भीमराव अम्बेदकर वला आरक्षण पद्धति आ कि नेपालक नव संविधान वला समानुपातिक समावेशिकताक सूत्र – कि ई सब काज कय सकैत छैक? कि एकटा योजनाकार आ परिकल्पक लेल पुस्तक मेला आ कि साहित्यिक-सामाजिक विमर्श मे सर्वसमावेशिकताक सिद्धान्त पर काज करब व्यवहारिक तौर पर संभव छैक? तखन त जेकरा सँ जतेक पार लगैत छैक ओतेक तऽ मंच सजिते अछि, समावेशिकताक सामर्थ्य देखाइते अछि। तखनहुँ जँ विज्ञजन सब मैथिली भाषा-साहित्यक एहि निजी प्रयास मे आरक्षण या समानुपातिक सहभागिता तकैत छथि तऽ स्वयं बढिकय आयोजनक पूर्वहि सँ अधिकार लेल आन्दोलन करथि, जँ बात नहि मानल जाइन तऽ प्रजातांत्रिक पद्धति पर धरना पर बैसैथ। धरि, ई रुसनी मौगी जेकाँ रुसबाईक प्रदर्शन आ गोटेक त जोकरहु सँ बदतर हास्यास्पद बात बजैत अपन भाषा तक दोसर होयबाक घोषणा – आत्मप्रवंचना करैत छथि, से आत्ममंथन करथि जे ‘करबाक भार आर पर, मंच पेबाक अधिकार यार पर’, ई कोना चलत। तखन त फेसबुक विषवमन लेल भेटल अछि फ्री मे…. अपन मनोरथ आ अपन स्वार्थ जँ पूरा होय मे कनिको कतहु कोताही भेल कि लगलहुँ सौंसे रद्द-दस्त करय मे…. एकर जिम्मेवारी सेहो अहीं पर जे दोसरक दोख केँ अपन महान कार्य सँ पूरा कय केँ अस्वस्थ, अस्वच्छ, अनर्थ केँ दूर करी।
 
अन्त मे, धन्य ‘चनमा’ आ ‘मचान’ काठमांडू – सब कियो जागि गेल। राजधानी मे काज केला सऽ हल्ला दूर धरि जाइत छैक। वाह! चलू आब झुमकी यात्रा विराटनगर दिस आबय, हम सब ताहि दिशा मे काज करी। जल्दिये आओत झुमकी। बुधियार छौंड़ा आ राक्षस आइ सँ ८ वर्ष पहिने आयल छल, झुमकी जल्दी आबय ताहि लेल प्रयास मे छी। एकर दर्शन सँ नेपालक दोसर महानगर विराटनगर मे सेहो नव क्रान्ति आओत से हम स्योर छी। अस्तु!
 
हरिः हरः!!