मैथिली मे अन्तर्विभाजन कियैक, एहि सँ कि लाभ-हानि, सन्दर्भ नेपाल मे भाषाक स्थिति

नेपाल मे भाषाक स्थिति, अन्तर्विभाजन पर विज्ञ विश्लेषणक संछिप्त लेखा

नेपाल एक सार्वभौमसम्पन्न राष्ट्र नव संघीय संरचना मे वांछित प्रत्येक महत्वपूर्ण विषय केँ सिलसिलेवार अध्ययन करैत आगू बढि रहल अछि। विदिते अछि जे भाषा पहिचानक एकटा गंभीर आ महत्वपूर्ण आधार मानल जाइत रहलैक अछि, ताहि सँ एतय भाषिक सर्वेक्षण लेल प्रस्ताव अन्तरिम संविधान २०६३ विक्रम संवत केर भावना अनुरूप २०६५ यानि २००८-०९ मे ‘नेपालको भाषिक सर्वेक्षण प्रस्ताव २०६५’ केर माध्यम सँ सीमित बजट मे प्रारम्भिक स्तर पर बहुत रास काज होयबाक तथ्यांक भेटैत अछि। समग्र विन्दु पर दानराज रेग्मी द्वारा ‘नेपालमा भाषाहरुको स्थिति र भाषिक सर्वेक्षणः समीक्षात्मक विश्लेषण’ सँ सब बातक विस्तृत जनतब भेटैत अछि। लिंकः http://cdltu.edu.np/site/images/123.pdf
 
चारि खंड मे प्रस्तुत एहि विश्लेषण मे श्री रेग्मी द्वारा दोसर खंड मे ‘भाषाहरुको स्थिति’ शीर्षक मे स्पष्ट कयल गेल अछि जे नेपाली, मैथिली, भोजपुरी, अवधी वाहेक अन्यान्य भाषा कोन स्थिति मे केना नेपालक भाषाक सूची मे शामिल भेल आ एकर सांख्यिक आकलन मे जनगणनाक विभिन्न तथ्यांकक आधार पर कोना स्पष्ट रूप सँ भाषा मे अन्तर्विभाजन देखल गेल। उदाहरणक तौरपर कोना मैथिली आ भोजपुरी भाषा केँ तोड़िकय बज्जिका आ अंगिका संग विदेशी भाषा मगही सेहो २०५८ सालक जनगणना मे जोड़ल गेल। बड़ा रोचकपूर्ण ढंग सँ एहि खंड मे ईहो देखायल गेल अछि जे विक्रम संवत २००९/११ केर जनगणनाक समय कुल ४४ भाषा पुनः अलग मापदंड पर तथ्यांक संकलन करैत २०१८, २०२८, २०३८, २०४८, २०५८ आ २०६८ विक्रम संवत मे क्रमशः ३६, १७, १४, ३१, ९२ आ १२३ भाषा सूचीकृत कयल गेल अछि।
 
भाषाक संख्या बढबाक आधार खास तौर पर २०५८ मे २०४८ केर ३१ सँ तीन गुना यानि कुल ९२ होयबाक आधारविन्दु २०४७ वि. सं. मे प्रजातन्त्रक पुनर्स्थापनाक प्रभाव सँ आदिवासी सहित विभिन्न अल्पसंख्यक समुदाय मे मातृभाषा प्रति जागरण मे वृद्धि कहने छथि आर फेर २०५८ केर ९२ सँ २०६८ केर १२३ भाषा होयबाक विन्दुपर यथार्थ रोशनी दैत श्री रेग्मी लिखने छथि, “नेपाली समाजमे आयल जागरणक निरन्तरता, समाज भाषावैज्ञानिक सर्वेक्षणक आरम्भ आर संघीय राज्य मे भाषिक समुदाय तथा संख्याक आधार मे पहिचान तथा अधिकार सुनिश्चित होयबाक प्रचारक कारण १२३ गोट भाषा पहुँचल अछि।” एकटा टिप्पणी बड़ा मार्मिक छैक ताहि पर गौर करू –
 
“एहि जनगणना मे किरात-राई समूहक स्वतन्त्र भाषा सब सूची मे पहिने सँ रहितो राई केँ अलग सँ सूचीकृत करब एहि जनगणनाक बेसीये कमजोर पक्ष थिक।”
 
“एहि मे समावेश कयल गेल बहुते रास भाषा सभक शब्दकोश तथा साहित्यक त बाते छोड़ू, सामान्य व्याकरणात्मक विवरण तक कतहु नहि भेटैत अछि।”
 

मैथिली मे अन्तर्विभाजनक प्रकृति

१. भाषाक लेखिकीय मापदंड अथवा बोलीक विभिन्नता कोन शुद्ध कोन अशुद्ध ताहि फेर मे फँसल अछि विशाल जनमानस। एहि विशाल जनमानसक मैनजन द्वारा ओकर भाषा मैथिलेतर रहबाक भ्रम पसारैत अन्तर्विभाजन लेल उकसबैत अछि, केकरो मगही, केकरो ठेंठी, केकरो हिन्दी आदि भाषा होयबाक कूतथ्य सँ माथ तऽ भरि दैत छैक, धरि बौद्धिक सम्पदा, पठन-पाठनक अवस्था, भाषा-साहित्य प्रति रुचि आदि एहि वर्ग मे नगण्य आ उदासीन रहि जेबाक कारण अन्तर्विभाजन सिर्फ नाम टा लेल रहि जाएत छैक। मैनजनगिरी लेल मुद्दा बनाबय टा लेल आ अपनहि आपस मे घिनमा-घिनमी करय लेल ई अन्तर्विभाजन स्पष्टतः २०५८ सँ आरम्भ होयबाक दस्तावेज भेटैत अछि।
 
२. प्राथमिक शिक्षा सँ उच्च शिक्षा मे नेपालक विभिन्न स्थानपर पढाई उपलब्ध रहितो पढय सँ वंचित रखैत अछि अधिकांश लोक। यथार्थतः शिक्षाक अवस्था दयनीय अछि, मैथिली पढलाक बाद नहिये कोनो आयोग परीक्षा मे ओ लाभ देतैक नहिये एहि भाषा सँ आन कतहु रोजगार भेटतैक, तखन कोन आकर्षण सँ कियो पढाई करत आ केना जनसामान्य मे भाषा, साहित्य, व्याकरण, शब्दकोश, शोधवृत्ति आदिक संस्कार बनतैक-बढतैक! तखन त स्वयं सामर्थ्य आ स्वरुचि सँ जे एहि भाषा-साहित्य केँ लय आगू बढैत अछि वैह कहाय लगैत अछि ठीकेदार, ठीकदार, ठेकदार, ठकदार आदि। आर, एहि ठीकदारक समृद्धि सँ जलन-ईर्ष्या किछु एहि स्तर धरि बढि जाएत छैक जे ओकरा बना बैसैत अछि आलोचना आ निन्दाक पात्र। ओकर योग्यता सँ अपना या अपन आगामी पीढी मे नव सृजनधर्मक प्रवेश कराओत ई त संभव नहि भऽ पबैत छैक, धरि भाषाक अन्तर्विभाजन कय अपना केँ मैथिली सँ अलग सिद्ध करबाक कुत्सित प्रयास मे लागि जाएत अछि। एतहु मैनजनगिरीक प्रभाव बेसी भेला सँ जनसामान्य सही दिशा मे नहि जाय भ्रमक दिशा मे भटैक जाएत अछि।
 
३. मैथिली भाषाक विकास, संरक्षण आदि लेल आइ सँ करीब १० वर्ष पहिनहि अन्तरिम संविधानहि केर भावना अनुरूप १ करोड़ टकाक अक्षय कोष ठाढ कयल गेलैक। एहि मे सँ विद्यापति पुरस्कार विभिन्न विधा मे देल जाइत छैक। लेकिन एहि पुरस्कारक व्यवस्थापन लेल राजनीतिक लौबी अपन रुचिक सर्जक केँ पुरस्कार देबाक कारण आमजन मे भ्रम केर अवस्था दोब्बर भऽ जाइत छैक। कारण बेसीकाल पुरस्कार सिर्फ उच्च जाति-वर्गक सर्जक जे मैथिलीक सेवा मे स्वयं-सामर्थ्य सँ लागल रहैत जगजियार रहैत अछि तेकरे भेटैत छैक, पुरस्कार समिति धरि समावेशिकताक सूत्र पर काज करबाक लेल समुचित नामो नहि पहुँचि पबैत छैक, आर ताहू सँ बेसी राजनीतिक पक्षपोषण कयनिहार जे भेट गेल ओकरे नाम पर पुरस्कार बाँटि देल जाइत छैक। आब संघीय संरचना मे प्रवेश केलाक बाद ‘राष्ट्रीय प्रतिभा पुरस्कार’ जे चारि विधा लेल देल जाएत छैक प्रदेश स्तर पर ताहू सँ किछु एहने-एहने पूर्वाग्रही आ अपारदर्शी सोच-निराकरणक कारण बहुतो लोक एहि पुरस्कार सँ वंचित रहबाक मानसिकता विकसित करैत अपना केँ मैथिली सँ अलग मानय लेल सोच बना लैत अछि। सोशल मीडिया पर एहेन सोचक लोक स्पष्टे लिखैत भेटैत अछि, “आब मैथिली हमरा सभक भाषा नहि रहि गेल, आब मगही केर विकास करी”। चूँकि, ओकर बाजब, लिखब, सब किछु प्राकृतिक तौर पर मैथिली रहैत छैक, परन्तु राजनीतिक विद्रुपता सँ ओ मैथिलेतर बनबाक एकटा स्वांग रचैत अछि नहि कि कथमपि ओकरे कथित ‘मगही’ भाषाक कोनो तरहक साहित्यिक पृष्ठपोषण कय पबैत अछि।
 
४. निजी स्तर पर मैथिली भाषाभाषी अपन निजी सामर्थ्य सँ भाषा-साहित्य-संस्कृति-समाज लेल प्रयास करैत रहबाक विशाल दस्तावेज ठाढ कएने अछि। चाहे मैथिली भाषा मे शिक्षा लेल कलकत्ता विश्वविद्यालयक उदाहरण लेब, कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय काशी मे, कि पटना विश्वविद्यालय पटना मे, कि इलाहाबाद मे, कि दिल्ली मे, कि त्रिभुवन विश्वविद्यालय नेपाल मे, कि प्राथमिक शिक्षा मे, कि उच्च शिक्षा मे मैथिली भाषाक पठन-पाठन शुरू करेबाक कार्य २०म शताब्दीक दोसरे दशक सँ करेबाक इतिहास हो… एहि सभक पाछाँ उचित ‘निजी स्तरक प्रयास’ जाहि मे अंग्रेजी माध्यम सँ शिक्षा प्राप्त विद्वान् वर्ग केर अगुआ युवा समाज हो आ कि सुशिक्षित-सुसंस्कृत अध्यापक वर्ग हो, मैथिली भाषा केँ जीवन्त बनेबाक लेल एहेन कतेको रास महत्वपूर्ण आन्दोलन आइ २१म शताब्दी धरि अपना-अपना तरहें विभिन्न व्यक्ति, संस्था या समूह द्वारा विशेष कय केँ प्रवासक स्थल पर बहुत उच्चस्तर पर कयल गेल अछि। परिणामस्वरूप प्रवासहु केर स्थान सब मे मैथिल अपन पहिचान विश्वस्तर पर विद्याजिवीक रूप मे स्थापित करबा मे सफल होएत अछि। लेकिन एहि सब प्रयास मे मंच पर स्थान या दर्शक दीर्घा मे स्थान लेल प्रतिभावान समाज केँ सहभागिता देल जेबाक वातावरण सँ सेहो जनसामान्यवर्ग मे ई चिन्ता होएत छैक जे मैथिली सिर्फ एहि कथित उच्चवर्गक मात्र थिक। अन्तर्विभाजनक एकटा आधार ईहो अछि जे कोनो एक आयोजन मे बहुत लोक समावेशित नहि भऽ पबैत छथि, आर ओतय सँ ओ ठेंठी व अन्य भाषाभाषी होयबाक भान अपना मोन मे पोसि लैत छथि।
 

निष्कर्षः

संस्कृत समान विश्वक हरेक भाषाक जननी संग सेहो यैह तरहक भान भेला सँ आखिरकार संस्कृत विद्वत् जनक भाषा मात्र बनिकय रहि गेल, त भय ई होएत छैक जे कहीं मैथिली सेहो जनसामान्य सँ बिना जुड़ने कि अपन अस्तित्व राखि सकत? एहि चिन्ता केँ समाप्त करबाक लेल सब वर्ग केँ मिलि-जुलिकय यथार्थ स्थिति पर मीमांसा करबाक चाही, रुसनाय-फूलनाय छोड़ि लोकक सीमितता केँ मनन करैत राज्य द्वारा ओ कार्य करेबाक प्रयास हो जाहि सँ फर्स्ट डिविजन सँ लैत थर्ड डिविजन आ कि फेल भेल वर्ग केँ सेहो उचित रूप सँ समेटिकय आगू बढल जा सकैक। पुरस्कार केर वर्गीकरण एहि तरहक हेबाक चाही जाहि सँ भाषा-साहित्य आ कि संस्कृति, संगीत, रंगकर्म सब विधा मे विभिन्न वर्ग केँ समेटबाक प्रावधान हो। भले ५० हजार टकाक पुरस्कार केँ १५ हजारक प्रति व्यक्ति बना देल जाय, लेकिन सम्मानित होयबाक सूची केँ तेना बढायल जाय जे मैथिली भाषाक व्यापकता केँ बचायल जा सकय। बाकी, निजी प्रयास कयनिहार जतेक बेसी हो ततेक समावेशी बनबाक प्रयत्न जरूर करी। मैथिली पठन-पाठन सँ रोजगारक सृजना पर चिन्तन करबाक संग-संग व्यवहारिक तौर पर जनसामान्य लेल एकटा आस्था आ विश्वासक आधार बनय से प्रयास मे अभियान चलाकय एहि भाषा केँ बचाबी। लेखिकीय मानदंड या बजबाक मानदंड पर बहस तखनहि हो जखन ई भाषा कम सँ कम प्राथमिक शिक्षा मे अनिवार्य रूप सँ सब पढय, बिना पढाई केँ केकरो सँ व्याकरणीय अपेक्षा कियैक… एकरा सरकारी काजकाजक भाषा बनाउ आ एकल भाषाक मारि सँ पहिने ऊबार त देल जाउ। आपस मे उकटा-पैंची सँ बचू! जातीय विद्वेषभावनाक प्रसार खत्म करू, राज्यविहीनताक अन्त होयत।
 

किछु सवाल भाइचारा आ स्नेहक भाव सँ

चनबा या मचान सँ कथीक शिकायत? ई त निजी स्तर पर कयल गेल आयोजन छलैक, आयोजक केँ जतेक आ जेना भेलैक, बहुत रास महत्वपूर्ण विन्दु पर विमर्श सँ लैत मैथिली पोथीक उपलब्धता खुल्ला बाजार मे नहि रहलाक कारण कटल पाठकवर्ग केँ जोड़ि देबाक काज कय रहल अछि। साहित्यक सामर्थ्य राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तरक मंच धरि मैथिलीक हैसियत मुताबिक पहुँचा रहल अछि। एहि मे मचानक बाँस आ चनबाक यथार्थरूपक दर्शन मौलिक रूप मे तकबाक आतुरता कियैक? कि आइयो गरीबीक चाप मे रोजी-रोटी लेल तड़पैत केकरो दर्द केँ मचान पर तमाशाक रूप मे राखब मौलिकताक रक्षा करब भेल? आयोजक बनि स्वयं कतेको अनुभव प्राप्त कयल सृजनकर्मी केँ त ई सब बात पता छन्हि, चाहे ओ स्वयं कोनो जाति-समुदायक होएथ… तखन आपस मे टूटबाक अवस्था कियैक?
 

महत्वपूर्ण जानकारी

मैथिलीक क्षेत्र एखन धरि कर्मठ लोक लेल पूरे खाली अछि। हालहि डा. रामावतार यादव संग भेंट भेल छल, ओ कहलनि जे “बौआ, जर्मनी ३ मासक रिसर्च एसाइनमेन्ट लेल आमंत्रित केलक अछि।” हुनकर नाम मे कतहु झा या कथित उच्चवर्गीय टाइटिल नहि लागल छन्हि, लेकिन एखन धरि जतेक महत्वपूर्ण शैक्षिक-शैक्षणिक कार्यभार विशेष रूप सँ शोध आ सम्पूर्ण बात सिर्फ मैथिली केँ लेल ओ कयलनि अछि, सम्पूर्ण भारत आ नेपाल केर मैथिलीभाषी लेल ई एकटा आदर्श थिक। एहि दिस सब कियो बढी। सकारात्मकता केँ ग्रहण करी। ईर्ष्या सँ अपन आ भाषाक नोक्सान नहि करी।
 
हरिः हरः!!