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कुरहैर सँ हलुवा बनेबाक खिस्सा…..

कथाः कुरहैर सँ हलुवा बनेबाक खिस्सा
– प्रवीण नारायण चौधरी
 
काल्हिक अतिथि सत्कारक महत्ववला कथा “लिखल नहियो रहैत छैक तैयो भेटैत छैक” पढिकय सैकड़ों पाठक लोकनिक प्रोत्साहन वला कतेको शब्द भेटल, सभक प्रति हार्दिक आभार।
 
आइ भोरे-भोर पत्नी पूछैत छथि जे आइ घर मे कय गोटा पाहुन आबि रहला अछि… हम कहलियन्हि जे देखियौक, के सब पहुँचैत छथि। दिल्ली सँ अमित आनन्दजी, सहरसा सँ विमलजी मिश्र, दू गोटा त एब्बे करता। कनियाँ चुटकी लैत बजलीह, जखनहि कौल्हका खिस्सा पढलहुँ त बुझा गेल छल जे फेरो पाहुन सभक अबाइ अछि। माने जे कथाकार चाहे कोनो विषय छूबथि, पत्नी केँ बुझाइत छन्हि जे केन्द्र मे हमहीं रहैत छी। ई सब वास्तव मे यथार्थ प्रेमक अनुभूतिक कारण होएत छैक। एक दिन आरो एकटा पतिव्रता नारीक कथा मे ओ अपन पतिक सेवा करय लेल कोना बीमार आ चलय-फिरय योग्य तक नहि रहि गेल पतिक एक अन्तिम इच्छा जे युवाकालक आदति अनुसार एकटा कोठावाली ओतय जेबाक मोनक इच्छा पूर्ति लेल स्वयं माफा मंगबाय आ पति केँ माफा मे बैसा कहरिया सँ माफा ओहि कोठावाली ओतय लय चलबाक लेल कहली, अपने सँ पति केँ ओहि कोठावाली ओतय लय गेलीह…. ई कथा भोरे लिखने रही, साँझ मे रुपनी कोनो मित्रक विवाह मे शामिल होइ लेल गेलहुँ आ संग मे एकटा महिला कलाकार केँ सेहो लय गेलियैन त ओ अहिना कहि देने रहथि… हमरा नहि बुझब ओ पतिव्रता नारी जेकाँ…. जे अपने सँ हम अपन सौतिन ओतय लय जायब। हम त ओकरो झोंटा नोचि लेबैक आ अहुँक टीक नोंचि लेब….! माने ई भेल जे कथाकार पतिक कथाक केन्द्र मे पत्नी पाठक सदिखन अपनहि केँ देखैत छथि। अहाँ किछु लिखू, हुनका होएत रहैत छन्हि जे केन्द्र मे हमहीं टा रहैत छियन्हि। यदा-कदा ई सहियो रहैत छैक।
 
आब औझका बात पर कहय छी। काल्हिक अतिथि सत्कारक कथा आ आइ हुनकर जिज्ञासा जे के सब पाहुन आबि रहला अछि…, सीधा बुझा देलक जे आब वृद्ध होयबा दिस उन्मुख छथि। विगत दुइ दशक सँ हमरा संग रहैत अतिथि सेवा मे अग्रसर रहैत आब ऊबि गेली अछि। हालांकि एखनहुँ करती सबटा अपने, लेकिन बजती धरि खूब। माने साफ छैक, आइ-काल्हिक पत्नी केँ पाहुनक सत्कार करब भारी बुझाएत छन्हि। आराम केकरा नहि चाही! ताहि पर सँ आजुक जमाना – युनिट फेमिली – धिया-पुता केँ तैयार कय स्कूल पठाउ, पति केँ भोजन कराकय कार्यालय आ अपने पूजा-पाठ भोजन कय फटाफट व्हाट्सऐप आ फेसबुक वला मोबाईल संग रमि जाउ। लाइक्स, कमेन्ट्स, कतय के कि पोस्ट केलक, के कि लिखलक, आदि-आदि देखैत कखन आँखि लागि गेल, कनीकाल सुति रहू, फेर उठू आ फेर फेसबुक-व्हाट्सऐप पर रमण करैत रहू। केकरा पास समय अछि जे पाहुन केँ चाह बना-बना पियाओत आ भोजन आदि कराकय पुण्य कमाओत! बरू ओतेक समय अपन बहिन, बालसखी, माय, बाबू, भाइ आदि सँ गप करब – व्हाट्सऐप पर, मैसेन्जर पर आ आरो कि-कि ईमो-फिमो सब होएत छैक ताहि सब पर गपियायब कि अतिथि सेवा दिस ध्यान देब। ई थिक आजुक सच्चाई। खैर, हमरा गर्व अछि जे हमर पत्नी मे ततेक कोढिपन नहि पैसल छन्हि जे अतिथि केँ स्वागत नहि कय सकतीह, करैत छथि, मुदा भन-भन-भन-भन सेहो खूब करैत छथि। आब, अतिथि लोकनि जे हमरा सँ जुड़ल छी से नहि अपना पर लय लेब…. ई कतबो भनभन करथि, हमरा सभक समर्पण आ सिनेह अहाँ सब लेल सदिखन बनले रहत, से वादा करैत छी।
 
एकटा रूसी सैनिक केर कथा मे एक बेर पढने रही…. कंजूस गृहिणी जे अतिथि सेवा सँ घबराइत अछि तेकरा सँ सेवा कोना लेने छल। काल्हिक कथा मे जेना नारदजी आयल छलाह, अपन मिथिला नगरीक एक अतिथि सेवा लेल मशहूर सज्जन केर घर रहल छलाह, भगवान् विष्णु सेहो मर्त्यलोक आबि ओहि फूलबारीक स्वामी जे सुखले पात-फूल खाएथ, भगवानो केँ वैह भोग लगबथि से जे कहने रही तहिना आइ ई सैनिक एक बुढिया गृहस्वामिनीक घर आश्रय माँगि राति भैर ठहरबाक लेल जगह तऽ लऽ लेलनि, मुदा राति मे ओ बुढिया कथी लेल हुनका खाइ-पिबय लेल पूछतनि, बेचारे सैनिक एम्हर ताकथि, ओम्हर ताकथि, एक कप चाहो लेल ओ बुढिया कोनो सुरसार नहि केलक। अन्त मे हारिकय हाथ-ताथ मलैत ओ सैनिक दिमाग लगेलक। भूख केँ मेटेबाक लेल ओकरा गृहिणी लग मुंह खोलहे पड़लैक।
 
सैनिक कहलकैक, “माँ! ओ माँ!! किछु खाय-ताय लेल व्यवस्था छौक कि नहि?”
 
बुढिया चट स जबाब देलकैक, “अरे! पहिने तोरा रहय लेल जगह चाहैत छल। आब खाइयो लेल मांगि रहल छँ?”
 
सैनिक कहैत छैक, “देख माय! देशक सेवक छी हम। सीमापर काज करैत छी। चौबीस घंटा जानपर खेलाकय तोरा सभक रक्षा करैत छी दुश्मन मुलुक सँ… तोहर एना बाजब हमरा नीक नहि लागल।”
 
“रौ बाउ! तोरा सन-सन कय टा सैनिक एहिना राति विश्राम करय लेल अबैत अछि हमरा घर पर। हम दयालू हृदय के लोक, सब केँ आश्रय दैत छी। मुदा हम एक अबला बुढी, एक साँझ बनबैत छी, वैह दुनू साँझ खाएत छी। आ, आइ त संयोग एहेन छौक जे हम अपनो भुखले छी। किछु रहतौक घर मे तखन न देबौक!” बुढिया बात केँ सम्हारैत बाजल।
 
सैनिक गप सँ गप पकड़ि लेलक जे ई बुढिया बहुत चलाक अछि। अपन सैनिक होयबाक बात कहलियैक त चट स कहि देलक जे एकरा घर पर डेली कियो न कियो सैनिक आबिकय रुकैत छैक, कतेक केँ खुआओत। सैनिक आब बुढियाक नेचर सँ लगभग परिचित भऽ गेल। ओ विचारि लेलक जे एना सस्ते मे ई बुढिया घमयवाली नहि अछि। कहैत छैक, “वाह माँ! तूँ त एहि अवस्था मे एतबो करैत छँ से बहुत छौक। अच्छा एकटा बात कहे? तहुँ भुखले छँ?”
 
“हाँ, घर मे किछु अछिये नहि। भोरे बजार खुजतैक त कीनिकय आनब, बनायब, तखने किछु खायब।” – बुढिया फेर सम्हैरकय जबाब देलकैक।
 
“अच्छा, कुरहैर छौक माँ?” – सैनिक अचानक अलगे अन्दाज मे बाजल। बुढिया केँ बात बुझय मे नहि एलैक। कहलकैक, “हँ, मुदा कुरहैर सऽ कि करबिहीन?”
 
“कुरहैर सऽ खाना बना लेबैक माँ। अपनो खायब आ तोरो खुएबौ।” सैनिक जबाब देलकैक।
 
“ले, ई कुरहैर। तोरो सैनिक सब केँ कतेक सिखबैत छौक रे बौआ?” बुढिया कुरहैर दैत बाजल। सैनिक कुरहैर लय बुढिया सँ रसोई घर देखेबाक आग्रह केलकैक। बुढिया बड़ा प्रेम सँ ओकरा रसोई घर लय गेलैक। चुल्हा केम्हर छौक, त हे हैया छौक। गैस जला, त हे हैया ले…! एना करैत-करैत लोहिया मे कुरहैर राखिकय ओ सैनिक अपन हाथ सँ थोपड़ी बजबैत आ नाचैत बाजय जे “हय-हय! कुरहैर स हलुआ बनि जेतय। हय-हय, जय-जय!”
 
ओकर हाव-भाव सँ बुढिया एकदम दोसरे दुनिया मे प्रवेश कय केँ बड़ा उत्सुकताक संग सब किछु देखि रहल छल। सैनिक कखनहुँ कुरहैर केँ एना हिलबय, कखनहुँ ओना हिलबय…. कखनहुँ कान सटाबय लोहिया मे, खूब पैर पटकय, नाचय, गाबय…! बुढिया पूरे कन्फ्युज्ड!
 
“माँ-माँ! ओ माँ!! जल्दी स कनी सूजी लाबे त!”
 
“हैया ओहि डिब्बा मे छौक, कनी हेतौक… निकालि ले।”
 
“आ चीनी?”
 
“हैया ओहि डिब्बा मे छौक, कनी हेतौक, निकालि ले।”
 
एना करैत-करैत मात्र ५ मिनट मे कुरहैर सँ हलुवा तैयार।
 
सैनिक कुरहैर धीरे सँ निकालिकय, धो-पोछि ओकरा साइड केलक। दू टा प्लेट हाथ मे लय केँ हलुआ दुनू प्लेट मे निकालिकय अपनो खेलक आ बुढिया केँ सेहो खुएलक।
 
“केहेन लगलौक माँ?”
 
“वाह! बहुत स्वादिष्ट छौक।”
 
“देख लेलहीन न जे कुरहैर सऽ हलुआ केना बनैत छैक।”
 
“हँ बौआ! आब दोसर दिन जे कियो सैनिक आओत त तोरे जेकाँ बुद्धिगर रहत त कुरहैरो नहि देबैक।” बुढिया मुंह बनबैत ओकर सब चलाकी भँपैत कहलक।
 
सैनिक ठहाका मारिकय हँसल आ बाजल, “माँ, तोरा सनक कंजूस सँ सैनिक केँ सीधा-सीधा त किछु भेटतैक नहि। तऽ घुमा-फिराकय काज करेबाक लेल एनाही न हलुआ बनबय पड़तैक।”
 
दुनू माय-बेटा कनेकाल खूब हँसल आ बात करैत बाद मे विश्राम केलक। ऐगला दिन सेना अपन घर लेल प्रस्थान कय गेल।
 
आब, एहि कथाक असैर हमर पत्नी पर केना पड़तन्हि से बात बाद मे बतायब।
 
हरिः हरः!!

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