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गायक सेवा सँ आत्मनिर्भरता, एक विलक्षण संस्मरण

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

गोसेवा आ पशुपालन – कृषि सँ आत्मनिर्भरतः मानव जीवनक सब सँ पैघ काज

आइ कनेक एम्हर-ओम्हर मे व्यस्त भऽ गेल रही ताहि सँ समय पर किछु शब्द-संस्मरण-वार्ता आगू नहि आनि सकलहुँ….! तथापि, भोर जखन होएत छैक त ओ दिन केहेन होयत तेकर संकेत प्रकृति केर किछु पदचाप सँ कय दैत छैक से कनेक देरी सँ मुदा कहबाक इच्छा भेल अछि।
 
आइ भोरे नित्यकर्म संपन्न कयला उत्तर स्वाध्यायक केर क्रम मे बाहर फील्ड सँ एकटा गाय बेर-बेर ‘बाँ-बाँ’ कय रहल छलीह। गाय हमरा लेल पूज्य माय थिकीह। आस्थावान् प्रत्येक हिन्दू लेल गाय केर महत्व बड पैघ अछि। कारण वेदवर्णित सुक्त मे एहि सभ बातक अति विशिष्ट चर्चा कयल गेल अछि। यथा अथर्ववेद केर गोसुक्त मे –
 
माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसाऽऽदित्यानाममृतस्य नाभिः।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदतिं वधिष्ट॥
 
एतय गाय केँ रुद्रक माय, वसुक पुत्री, आदित्यक बहिन आर अमृतक नाभिस्वरूप कहैत ‘अहिंसनीया’ बतायल गेल अछि।
 
गोलोकवासी जगद्गुरु श्रीनिम्बार्काचार्यपीठाधीश्वर श्रीराधासर्वेश्वरशरणदेवाचार्य श्री ‘श्री जी’ महाराज केर एक लेख ‘मंगलमयी गोमाताकी सेवा परम कल्याणकारी है’ मे सँ उद्धृत उपरोक्त सुक्तक संग ईहो कहल गेल अछि –
 
“गोमाता विश्वक माता थिकीह – ‘गावो विश्वस्य मातरः’। ई हमरा लोकनिक जीवनक सर्वस्व निधि थिकीह। भारतीय पुरातन परम्परा, संस्कृति, सभ्यता, मर्यादा व धर्मक प्रतीक स्वरूप थिकीह। भारतीय धर्मक विभिन्न रूप गोमातापर आधारित अछि। अनादि वैदिक सनातनधर्म एवं तदन्तर्गत समस्त धर्मक कार्य गोमाताक बिना सम्पादित नहि भऽ सकैत अछि। ई हमरा लोकनिक परम पूज्या, परम वन्दनीया, परमाराध्या थिकीह। ई परम दिव्य अमृतक प्रदान करयवाली छथि, ई हमरा सभक पोषणक एकमात्र आधारशिला छथि। हिनक दूध, दही, नवनीत, घृत, मल, मूत्रादि सब किछु हमरा सब केँ बलिष्ठ, ओजसम्पन्न, कान्तिमान्, पवित्र, स्वस्थ, सद्बुद्धिमान् बनबयवला होएछ। हिनकर आश्रय सँ मानवमात्र इहलौकिक व पारलौकिक दिव्यानन्दक अनवरत कामना करैत अछि तथा देशपर आबयवला भीषण संकट सभक परिहार सेहो हिनकहि बलपर करबा मे पूर्ण समर्थ होएत अछि। हमरा लोकनिक वेद, स्मृति, पुराणादि सकल शास्त्र मे हिनकर महिमा, हिनकर महत्वक पद-पदपर वर्णन अछि। ई मात्र अवध्या टा नहि अपितु परम वन्दनीया, प्रातःस्मरणीया सेहो छथि। निखिलजन-हितकारिणी, परम पवित्रा, मंगलदायिनी एवं विविध पातकनाशिनी छथि।”
 
कहियो एहि लेखक पूरा अनुवाद प्रस्तुत करब। बहुत नीक आ अत्यन्त अनुकरणीय अछि।
 
आब फेर अबैत छी आजुक भोर केर ओहि शुभ पदचाप पर जाहि मे गायक ‘बाँ-बाँ’ केर आवाज सँ हमर आत्मा हमरा आदेश दैत अछि जे हो न हो, ई बजाहैट माय केर तोरे लेल छौक। हम अपन पत्नी सँ पूछल जे किछु रोटी अछि कि? ओ कहली, नहि। हम फेरो पूछल, देखू कहीं हो। हमरा तखन सँ ई गाय केर आवाज सुनाय दय रहल अछि, हमरा रोटी लय केँ सेवा करबाक इच्छा भेल अछि। ओ ई कहैत जे एतय प्रतिदिन गायवाली गाय बान्हिकय चलि जाएत अछि आर गायक ई स्वभाव होएत छैक जे ओ ‘बाँ-बाँ’ करैत आवाज करत। रौदा लगैत छैक, ताहि पर चिकरैत अछि। हमहुँ सोचलहुँ जे से भऽ सकैत छैक, लेकिन हमरा त रोटी लय केँ सेवाक इच्छा तीव्रता सँ जागि गेल छल। संयोग देखू, बस हमर पत्नी केँ एकटा रोटी भेटि गेलन्हि। ओ देलीह। हम रोटी लय केँ गाय केँ खुआबय बाहर चलि गेलहुँ। एकटा रोटी चट्ट केला बाद गाय-माता हमरा दिस आरो ताकि रहल छलीह। बस कनीकाल माय जेकाँ दुलार-मलार कयलहुँ, मुंह सँ बरबस बेर-बेर निकलय, आब रोटी नहि अछि माता, घासे चरू। आर एतेक बजैत देरी गोमाता एकटा भोली-माय – मानवीय माता जेकाँ घासे चरय लगलीह। भीतर सँ कोंढ फाटि रहल छल, लेकिन रोटी हाथ मे नहि छल। तदोपरान्त गोमाताक बाँ-बाँ नहि सुनायल। बस एकटा आत्मसंतोषरूपी आशीर्वाद ग्रहण कय आबि गेल छी लैपटप पर। लिखि रहल छी ई ताजा संस्मरण।
 
पिता से गोसेवक छलाह। अपन युवाकाल मे चक्रधरपुर, दरभंगा आदिक निजी प्रतिष्ठानक चाकरी छोड़ि कहाँ दिना गाय पोसने छलाह। हमरा नहि देखल अछि, वा कहू स्मृति मे नहि पड़ैत अछि। जेठ भैयारी सब ई दृष्टान्त दैत कथा-पिहानी सब सुनबैत छथि। गोसेवा हमर कुलक मर्यादा मे बहुत पूर्वहि सँ रहल अछि। मैंयाँ सेहो गायक सेवा मे बहुत आगू रहिकय हिस्सा लैत रहल छलीह। अगल-बगल हमर पितियौत बाबा सभ मे निलाम्बर बाबा, सुखदेव बाबा, निर्भय बाबा सहित ग्रामीण एकटा उम्रदराज व्यक्तिक समूह देखी जे सब सामूहिक गाय चरेबाक लेल संध्या ४ बजे सँ ६ बजे धरि गामक बहरी भाग धरि विचरण करथि। आब, गाम मे नहि रहैत छी ताहि कारण या रहितो छी त कतहु कियो नहि देखेबाक कारण, ई बुझि रहल छी जे आब लोक गोसेवा मे बहुत कमी कय देलक। हाल मास्टरसाहेब काका, लाल काका, मुक्ति काका आ बहुत कम समांग केँ वा ग्रामीण केँ देखैत छियन्हि। भैयारी सभ मे कियो टेम्पू जोतैत अछि, कियो बोलेरो त कियो ट्रैक्टर, लेकिन गोसेवा त दूर पशुपालन आ खेती-गृहस्थी मे पर्यन्त केकरो नहि देखैत छियैक। हँ, कियो-कियो लहना धरि खूब लगबैत अछि। लहना मतलब जे जरूरत मे जरूरतमन्द केँ पाइ दियौक आ फेर ब्याज जोड़िकय पाइ वसूली करू। रफ भाषा मे एहि व्यवसाय केँ सूदखोरी कहैत छैक, कमाइ लेल गाम-घर मे एखनहुँ ई एकटा नीक व्यवसाय मानल जाएत छैक। गोसेवा सँ सूदखोरीक ई संस्मरण गोमाताक कृपा सँ भेल यैह टा कहब एखन। आत्मनिर्भरता त्यागिकय परनिर्भरताक चाकरी करब, गाम छोड़ब, परदेश सेबब, आदि परिणाम सँ हमहुँ गुजैरिये रहल छी। मिथिलाक जनमानस केर आत्मबल रहैक स्वयं-सहयोग, परोपकारक सूत्र स्वयंसेवा। गामक सीमा तक नांघब पाप कहाएत छलैक। लेकिन…. चलू बिसरू ई सब बात। पिताक अंश पुत्र मे होएत छैक, एना लागल जेना आजुक ई गायक बाँ-बाँ स्वर हमरा पिताक माध्यम सँ किछु संकेत छल। देखी आगू कि होएत छैक।
 
पुनः पूर्वकथित श्री जी महाराजाक कथन सँ एहि लेख केँ विराम देब –
 
“अपन कल्याण चाहनिहार गृहस्थ केँ अपन सम्पूर्ण शक्ति सँ गोसेवा करब परम इष्ट थिक। ई सेवा सँ शीघ्र धन, सम्पत्ति, आरोग्य आदि सुखकर साधन सुलभ करा दैत अछि। परम पवित्र सात्त्विक सर्वोपकारी धेनु सर्वथा अर्चनीय, वन्दनीय आ अवध्य छथि। ई सर्वदेवमयी छथि, परम हितैषिणी आर परमात्माक मांगलिक शक्ति छथि।
 
हरिः हरः!!

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