संस्मरण कथा
– तनुजा दत्ता
…बहुत हो हो हल्ला के बीच हमर बियाह भेल । चूँकि देखबा सुनबा में सधारण रहला सँ केयो अपन पुतोहु बनबय लय तैयार नहिं होईथ ।
खैर, बिना देखलाक उपरांत हमर बियाह भेल । बाबू जी (ससुर) के इच्छा रहैन्ह जे ओही परिवार क बेटी हमर पुतोहु बनैथ। फोटो सब के नीक लगलैन्ह । पतिदेव के लड़की देखबा लय कोनो जल्दबाजी नहिं रहैन्ह, ऊ सबटा भार घरक लोग पर छोड़ि देने छलखिन्ह । हुनकर कहनाम जे लड़की की देखबय, हमरे सब बहिन की परिये अछि । हुनकर एहि तरहक बिचार सँ हमर घरक लोग बहुत प्रभावित भेलैथ ।
लेकिन जनानी बिभाग के खुफिया सुत्र सँ पता लगलैन्ह जे लड़की कारी छय और बहुत मोट छय । आब त घर में हंगामा भेनाइ वाजिबे रहैन्ह । हमर घरक लोग के पता चललन्हि जे ऊ सब राजी नहिं छथि । हमरा ओत सब दुखी भ गेलाह । हम मोन में सोचैत ‘एखन टी वी पर फेयर एंड लवली के प्रचार में कहय छय जे दस दिन में गोरा हो जाइये” ….. “त कियैक नय बियाह तक सात फाईल एकरे घँसि लय छी ‘ ।
लेकिन भगवती के मर्जी सँ ऐन केन प्रकारेण हमर बियाह भेल । द्विरागमन भ क सासुर गेलहुं । द्वार परिछय काल में सास , ननदि सब खुब टहँकार सँ गीत गाबि रहल छलैथ …. “चाँद चमके, भाभी हजारों में एक चमके ” … मोन में कहलहुँ जे “चलु नै अंदर, चाँद देखि क झमा क खसब” …. “किछ दिन पहिने बियाहो लय तैयार नहिं छलहुं, आब हम अहाँ के चाँद लागि रहल छी”।
सब टा भेला के बाद कनिया मुँह देखालि गेल । जाहि में जिनका जतेक अपन ग्यानक प्रदर्शन करय के रहैन्ह से सब बेरा-बेरी अपन सौंदर्य प्रतिभा के वर्णन सुरू क देलैथ । …. केयो कहलखिन्ह कनिया बड्ड सुंदर छथिन, खाली नाके मोट छैन्ह ” । ….. दोसर कियैक पाछु रहितैथ “नय यै बहिन, कनियाँ सुन्दर त बड्ड छथिन, कनि आँखि छोट छन्हि” । एकटा त हदे क देलखिन्ह, “ऐहन सुन्नर नाक पर हम पाँच टा रूपया दय छियैन्ह” । सब एक पर एक अपन तरकस सँ तीर सब निकालि-निकालि क छोड़ि रहल छलैथ ।
हम मोन में सोचैत जे ई हमर सुंदरता के बखान भरि राति चलत, आ कि हमहूँ समीक्षा करी अपन सुंदरता के आ कनी आराम करी । एहि सब के बीच हमर बाबू जी (ससुर) के पूर्ण विश्वास छलैन्ह जे हमर पुतोहु बहुत सुंदर छैथ ।
समय कखन पाँखि लगाकय उड़ि गेल से बुझियो नहिं सकलहुँ । रोज घर में बैठकी होयत, दर-दियाद सबके एके कहनाम रहैन्ह जे एहन सुंदर बौआ के गला कटि गेलै जे एहन कनियाँ भेलैक । फलां बाबू के कनियाँ बड्ड सुंदर छथिन्ह । गाम में एक पर एक सुंदर कनियाँ अबैत गेलखिन्ह । हुनकर रूपक बखान हमरे दरबजा पर होइन्ह ।
कनि देर में बाहर सँ आवाज आयल। …”गे किरण! भाभी के कहून चाह बनबयलै, चाचा सब आयल छथिन” । हम बुझि गेलहुं फेर उहै बखान, हम किरण के कहलियैन .. “किरण! चाचा सब के कहियौन घेंट जोड़ि लयला कियैक त चाह कोना पिथिन”। ..
साधारण सकल-सुरत के देखैत हम घर में अपन स्थान बनबयलै जी जान लगा देलहुँ । धीरे-धीरे घर में पुतोहु सब चुनि-चुनि क, देखि-सुनि क अबैत गेलखिन । हमरा घर में सब खुब मानय लगलैथ । गाम में सब अपन-अपन पुतोहु के हमर उदाहरण द क रखय छलखिन्ह । पुतोहु सब के उदाहरणार्थ वस्तु हम रहियैन । …”बड़की भौजी के जे पुतोहू छैन्ह, हुनकर त कोनो जबाबे नय” । कनियाँ सब के आगु में अपन प्रशंसा सुनि हम गद्गद भ जाय छलहुँ । कनियाँ सब हमरा दिस ऐना तकैथ, “जे की केलियै, जे एतेक परशंसा होइया” । मोन में कहलहुँ किछ नहिं, बस समय सब कटि गेल ।
लेकिन हम मोन में सोचैत छी, मनुष्य त ईश्वरक रचल बड्ड सुंदर रचना छथि । ओहि में केयो गोर त केयो कारी । पुतोहु हमरा सन चाहियैन सब के । लेकिन रंग-रूप हमरा सन नहिं हेबाक चाही । …..समाज बहुत शिक्षित भ गेल अपन सबहक । आब रंग रूप में नहिं और नहिं दान दहेज में उलझल रहु । …..हँसी-खुशी सँ अपनो बेटी के बियाह करू, और दोसरो के बेटी के स्वागत ।
क क देखियौ बहुत नीक लागत ।