विराटनगर मे प्रस्तावित अन्तर्राष्ट्रीय मैथिल कीर्तनियाँ सम्मेलन २०१८ः अवधारणा ओ प्रस्ताव

मिथिलाक कीर्तन परम्परा आ अन्तर्राष्ट्रीय मैथिल कीर्तनियाँ सम्मेलन २०१८

विगत किछु वर्ष सँ अपन मिथिलाक विभिन्न विषय पर केन्द्रित रहिकय विराटनगर मे अन्तर्राष्ट्रीय – दुइ राष्ट्र मे होयबाक कारण ‘अन्तर्राष्ट्रीय’ मैथिली सम्मेलनक आयोजन करैत आबि रहल छी। पिछला २०१५ सँ २०१७ धरि तीन गोट महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय आयोजन संपन्न भेल अछि। अपने लोकनिक सहयोग आ सहभागिता सँ सफलता भेटैत अछि, तहिना स्वयं जानकी आ राघव संग गौरी आ शंकर केर विशेष अनुकम्पा सँ ई सब आयोजन सफल होएत अछि। जेना २०१५ मे ‘मैथिली जिन्दाबाद’ नाम्ना संचारसेवाक एकटा आनलाइन वेबपोर्टल लांचिंग कयल, ताहि वर्ष “अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली कवि सम्मेलन-२०१५” केर आयोजन भेल, लगभग १५० मैथिली कवि दुनू देश सँ विराटनगर मे जुमलाह, सब तुरक आ सब वर्गक, सब समुदायक कवि एलाह। १-दिना कार्यक्रम मात्र हेबाक कारण आगाँ सँ दू-दिना करबाक नियार करैत २०१६ मे “अन्तर्राष्ट्रीय मैथिल सामाजिक अभियन्ता सम्मेलन-२०१६” केर आयोजन राखल, विषय नेपालीय मिथिलाक्षेत्र मे पुरातात्विक खोज पर केन्द्रित डक्युमेन्ट्री, विमर्शक संग कवि गोष्ठी, परिचर्चा गोष्ठी आदि बड़ा भव्यताक संग कयल गेल।
 
२०१७ मे पुनः १-दिना मैथिल शिक्षाविद् सम्मेलन राखल गेल। सन्दीप युनिवर्सिटी एवं इम्पल्स कोटाक संयुक्त तत्त्वावधान मे उच्च शिक्षाक आवश्यकता व अवसर पर भव्य गोष्ठी कयल गेल। संगहि मिथिलाक रियल ब्रान्ड एम्बैसेडर “मैथिली ठाकुर” द्वारा मिथिलाक नाम केँ विश्व परिवेश धरि प्रसारित करबाक लेल – राइजिंग स्टार मे अत्यन्त लोकप्रिय कलाकारिताक प्रदर्शन लेल सम्मान सेहो कयल गेल। बड़ा उच्च मूल्यक कार्यक्रम भेल। एहि वर्ष २०१८ मे “अन्तर्राष्ट्रीय मैथिल कीर्तनियाँ सम्मेलन-२०१८” केर प्रस्ताव राखल अछि, पुनः २-दिवसीय, श्रावण मासक पवित्र बेला मे गुरु पूर्णिमाक शुभ अवसर ताकि क्रमशः ११ आ १२ गते यानि जुलाई २७ आ २८, २०१८ केँ करबाक लेल प्रस्ताव देलहुँ अछि। एहि मे ५ विशिष्ट कीर्तनियाँ टोलीक सहभागिता पूर्व निर्धारित अछि। आरो सहभागिता लेल खुल्ला आमंत्रणा देल अछि। कीर्तन परम्परा सँ जुड़ल गोटेक साहित्यिक सत्र व कवि सम्मेलन सेहो एहि सम्मेलनक अभिन्न हिस्सा होयत। मार्गदर्शक लोकनि सँ विशेष सल्लाह कय केँ आरो सूचना क्रमशः अपने सब धरि पहुँचबैत रहब।

केहेन अछि मिथिलाक कीर्तन परम्परा

हमर अनुभव मे मिथिलाक लोकचर्या मे भगवद्भक्ति समाहित होयबाक कारण, कोनो विशेष अवसर सँ लैत मन्दिर वा अन्य वैदिक पूजा-पाठ, लोकरीति, लोकनाच, आदि मे पर्यन्त कीर्तन करबाक परम्परा अछि। ‘कीर्तन’ संगीतमय पूजन या सामूहिक भक्ति केर स्वरूप होएछ जाहि मे गणेश-वन्दना सँ लैत भगवान राधेकृष्ण, सीताराम, आदिक विशेष भजन-सुमिरन करैत पुनः बजरंगबली आ महादेवक गान सँ समापन करैत अछि। ढोलक, झालि, हारमोनियम, डुगडुगी, करताल आदि संगीत वाद्ययन्त्रक संग-संग थोपड़ी बजबैत भक्त लोकनि एक संग भगवन्नाम आ भगवन्महिमा सब गबैत छथि। एक वा दुइ गोटा आगू-आगू, बाकी समस्त उपस्थित कीर्तनियाँ पाछू सँ गबैत छथि, एकरे कीर्तन शैली कहल जाएत अछि। क्षेत्र मुताबिक अलग-अलग गायन शैली, प्रस्तुति मे थोड़-मोर भिन्नता देखाएत अछि। तहिना, कीर्तन साहित्य मे अलग-अलग साहित्यकारक पकड़ अलग-अलग क्षेत्र मे सेहो देखायल, यथा लक्ष्मीनाथ गोसाईं केर लिखल-रचल-गायल भजन आदिक गायन कोसी (पूर्वी मिथिला क्षेत्रक संग) कोसीक पश्चिम सटल दरभंगा, मधुबनी आदि मे सेहो देखाएत अछि। जे कीर्तन-साहित्यकारक जेहेन कर्मक्षेत्र बनल तेहेन भजन गायनक परम्परा हमरा लोकनिकेँ देखाय दैछ।

२०१८ में मैथिल कीर्तनियाँ सम्मेलन कियैक?

एखन धरि नेपालक मिथिलाक्षेत्र आ भारतक मिथिलाक्षेत्र केर लगभग १०-१२ जिलाक कीर्तन शैली देखबाक अवसर भेटल। गायन, वादन ओ प्रस्तुतिक शैली मे विविधता हमरा लेल एकटा पैघ जिज्ञासाक विषय छल। अतः एहि विषय पर केन्द्रित २०१८ केर सम्मेलन रखबाक निर्णय कयलहुँ अछि। जनकपुर, कुर्सों, देबना (बनगाँव) आ लछमिनियाँ (सहरसा) आ राजविराज (सप्तरी) तथा जतुवा (विराटनगर, मोरंग) केर टोली सँ एहि सम्बन्ध मे किछु चर्चा कय सहभागिताक मूलाधार बना चुकल छी। बाकी, आरो बेसी टोली अपन १-१ घंटाक कीर्तन गायन-प्रस्तुति करैत २-दिवसीय आयोजन केर ८०% समय यानि कुल १६ घंटाक कार्यक्रम राखि सकैत छथि, बाकी ४ घंटा परिचर्चा ओ अन्य सम्मेलन लेल उपयोग कयल जाय, ई प्रारम्भिक सोच अछि। किछु अति विशिष्ट कीर्तन साहित्यकार केर अति विशिष्ट आतिथ्य भेटय ताहि लेल सेहो प्रयासरत छी।

कीर्तन आ सामान्य परिदृश्य

बहुत रास ऐतिहासिक भगवद्भक्त लोकनिक नाम हमरा लोकनि जनैत छी, हुनकर एक सँ बढिकय एक रचना मैथिली वा हिन्दी वा भोजपुरी आदि भाषा मे गबैत छी। सूरदास, मीराबाई, तुकाराम, नामदेव, कबीरदास… ई सब हिन्दी भजन मे नाम कयने छथि। तहिना कीर्तन केर चर्चा हो आ बंगालक रहस्यवादी चैतन्य महाप्रभु केँ हम सब नहि सुमिरब से केना संभव होयत। वृहत् अध्ययन सँ पता चलैत अछि जे कीर्तन परम्पराक प्रवर्त्तक देवर्षि नारद छलाह। कीर्तन केर माध्यम सँ भक्त प्रह्लाद, अजामिल आदि परम पद प्राप्त कयलन्हि। मीराबाई, नरसी मेहता, तुकाराम आदि संत सेहो एहि परंपराक अनुयायी भेलाह।
अपन मैथिली मे विभिन्न भक्ति रचनाकार जेना आदिकवि विद्यापतिक बाद आधुनिक समय मे स्नेहलता, मधुपजी, मधुकर बाबा, प्रेमी बाबा, गोसाईंजी, सियाबिहारी राय सरसजी, चन्द्रमणिजी, शिवकुमार टिल्लूजी आदि अनेकों नाम सोझाँ अबैत अछि। तहिना अधिकांश रचनाक रचनाकार भले ज्ञात नहि होएथ मुदा रचनाक कमी नहि अछि। हिन्दीक प्रभाव भजन गायन मे खूब देखय लेल भेटैत अछि। छेहा मैथिली भजन मात्र गायन होएत बहुत कम जगह देखल। मन्दिर, मठ, तीर्थस्थल आदि मे भजन-गायनक मिथिला परिकार बहुत भेटैत अछि। हमरा लेल बाबाधाम केर मार्ग एहि मामिला मे स्वर्ग समान सिद्ध भेल अछि। अपन गाम केर हो या सहरसा केर या ठाढी केर या तिलाठी (सप्तरी) आदिक, बाबाधामक मार्ग मे सब तरहक शैलीक दर्शन भऽ जाएत अछि। अपन निजी जीवन ओ संस्कार मे कीर्तनक प्रत्यक्ष प्रभाव हम अनुभव कएने छी। ताहि हेतु एहि वर्षक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन कीर्तन परम्परा पर हो, अपन जीवन मे संधानल लक्ष्य समस्त मिथिलावासी केँ हुनकर वैशिष्ट्यक आधारपर जोड़बाक उद्देश्य मे अवश्य ईहो एक अत्यन्त महत्वपूर्ण डेग होयत, से आत्मविश्वास बढल अछि।
हरिः हरः!!