विचार
– डा. कैलाश कुमार मिश्र
कर्पूरी ठाकुर जन नायक छलाह, ईमानदार छलाह आ मैथिली भाषाक समर्पित अनुरागी छलाह। किछु ब्राह्मण विशेष रूपेँ आ सवर्ण सामान्यतया हुनका सँ अहिलेल नाराज़ रहैत छथि जे ओ दू काज गलत कएलाह:
1. ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी सँ ललित नारायण मिश्रक नाम हटा देबाक अनुदेश।
2. आरक्षण केर समर्थन ।
आब कनि विचार करी। ललित बाबूक कोनो योगदान मिथिला यूनिवर्सिटी केँ बनेबाक मे नहि छलनि। ओ जिबैत छलाह। बिहार मे ओहि समय कोनो यूनिवर्सिटी सँग कोनो व्यक्तिक नाम नहि लागल छ्ल। कर्पूरी जीक इच्छा छलनि जे विद्यपतिक नाम रहला सँ बढियाँ रहितैक। से नहि भेलैक। ललित बाबूक नाम त भेवे केलनि ऊपर सँ एक आर औसत सँ कनि कमजोर लोक डॉ. मदन मिश्र केँ ललित बाबू वाईस चांसलर बना देलाह। ई आरक्षण नाहि छल की?
जखन कर्पूरी जी मुख्यमंत्री छलाह ताहि समय मैथिली केँ द्वितीय राजभाषा बनेबाक हेतु प्रस्ताव राखल गेलैक। कर्पूरी जी एकर अनुमोदन कएलाह। एक नेता श्री केदार पाण्डे पुछलथिन “मैथिली त कतौ-कतौ लोक बजैत अछि। ई ककर भाषा थिक?”
कर्पूरी जी तुरंत उत्तर देलाह: “मैथिली राज्यक मुख्यमंत्री केर मातृभाषा अछि।” एकर बाद ओ चुप भ गेलाह।
कर्पूरी जी प्रस्ताव पास कर एहो बजला जे भारत सरकार केँ अनुशंसा लिखल जाए जे संविधान केर अष्टम अनुसूचि में एकरा आनल जाए। संयोग सँ किछुए दिन बाद चुनाव भेलैक आ काँग्रेस सत्तारूढ़ भेल जकर मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र भेलाह। मिश्र महोदय मैथिली केँ तिलांजलि दैत उर्दू केँ दोसर राजभाषा घोषित क देलाह। तथापि हमरा लोकनि मिश्र वन्धुक नामक माला जपैत छी – जय मिथिला।
एक बात आरो। सन 1978 में कर्पूरी जी बिहार केँ 26000 हाई स्कूलक शिक्षक केँ सरकारी नोटिफिकेशन सँ नौकरी देलाह। स्मरणीय बात ई अछि जे ओहि में सँ 25000 शिक्षक ब्राह्मण छलाह।
मुदा सब किछु केलाक बादो हुनका हम सब याद नहि रखैत छी। शायद मर्यादा मे हानि ने भ जाए!
एखन अतबे …..!!