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हम महाचोर छी (आत्मालोचना)

विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी
 
अभियानी दू तरहक होएत छैक हजुर! एकटा त बिना कोनो फलक प्रत्याशा अपन काज करब जनैत छैक, ओकरा एतबे टा लोभ अवस्स रहैत छैक जे जीवनक सार्थकता सिद्ध हो। दोसर, जीवनक सार्थकताक सिद्ध करबाक अन्तिम लक्ष्य सँ पहिने जीवनकाल मे कोनो उपलब्धि प्रति ‘कामना’ राखि सेवा मे लगैत अछि। पहिल केँ नफा-नोक्सानक हिसाब अत्यल्प रहैत छैक। दोसर केँ एक-एक पाइ, आमद-खर्चाक विवरण आ अन्तिम लेखा ओ वासलात सबटा तैयार भेटत।
 
हमर एकटा बड़ा नीक मित्र छलाह। ४,४४,४४९ टका १३ पाइ केर लगानी केलनि। लगानीक हिसाब हुनकहि वासलात सँ भेटल। जखन बैसी कि चट दिना वासलात देखा देथि। एकटा होएत छैक न जे हमरा पास कूब्बत अछि आ हम अपन मातृभाषा व मातृभूमि लेल खर्च केलहुँ, सभक हितक काज भेल… एहेन सोच…. ओ सदिखन एतबे गप टोकि दैथ “हमर लगानी एतेक भेल अछि जेकर हिसाब नहि…”। हौ बाबू! अहाँक लगानी-लगानी सुनि-सुनि हम आजिज भेल छी। अहाँ दोसरोक लगानी गानब कि? “हम्मर-हम्मर”, ई हम्मा-हम्मा गीत सुनिकय हम कहि देलियैन, “हजुर! अहाँक ४,४४,४४९.१३ खर्चा हमरा याद अछि। ओ जे हमरा बियर पियौने रही से, मन्चुरियन के पाय जे अमेरिकन एक्सप्रेस क्रेडिट कार्ड सँ कयल से, ओतय जे पान खुएलहुँ से, तेकर बाद गाड़ी मे घुमेलहुँ त ओकर पेट्रोल, ताहि दिन जे ‘कर्नाटक भवन’ मे माछ-भात के भोज देलियैक से, बैनर, साउन्ड, ‘नागालैन्ड हाउस’ केर पार्टी, आदि-इत्यादि मे अहाँक कुल ४,४४,४४९.१३ पाइ केर खर्चा हम अहाँ वासलात मे देखि सकलहुँ।
 
ई कोनो एक्के टा मित्र नहि छथि जे एना सब खर्चा जोड़िकय सदिखन डेबिट-क्रेडिट करैत मातृभाषा-मातृभूमिक हिसाब करैत रहैत छथि। एहेन कतेको लोक भेट जेता। समर्पण केर मतलब अलग होएत छैक। ओकर अनगिनती खर्चा होएत छैक। समय, सोच, साधन – सब लगानी थिकैक। लेकिन लक्ष्य रहैत छैक जे सभक कल्याण लेल भाषा-संस्कृति-समाज केर रक्षा लेल आगू रही। मिथिला राज्य बनय, मिथिलाक लोकक कल्याण होइक। मिथिलाक अपन खजाना हो। अपन सरोकारक विषय पर स्वराज्य चलय। आब जँ राज्य बनय आ हम मुख्यमंत्री बनी, आ कि कोनो मंत्रालय भेटि जायत तैयो अपन लगानी वसूली भऽ जायत से सोचिकय लागब त बात वैह भेल जे ऊपर कहलौ अपन मित्रक कथा। दुःखक गप कहू एगो आर…. एहने-एहने मित्रक संग लेला सँ आखिरकार मिथिला राज्य लेल “जनजागरण अभियान” गेल खटाइ मे। राज्य ओहिना त नहि बनि जेतैक… पहिने जनता केँ ई बुझाबय पड़ैत छैक जे राज्यक उपयोगिता कोन बात लेल छैक। जनता जखन बुझतैक, ओ सब जगतैक, तखने न संघर्ष तीव्र हेतैक आ तखने न राज्य बनत। आब, अहाँ एतेक चलाख लोक जे ४,४४,४४९.१३ टका लगानी मे अपना केँ बूरल बुझि साइड लागि जायब त घन्टा राज्य लेल संघर्ष मे आयल रही….!
 
एगो वैज्ञानिक छथि। हुनको राज्य चाही। अपन लैबोरेट्री मे “राज्य-चाही! राज्य चाही” नारा बनाकय ओ चारूकात सटने छथि पोस्टर। अपन रूम मे पैसैत देरी ताहि पोस्टर सब केँ देखि-देखिकय आत्ममुग्धताक स्थिति मे पहुँचिकय नाचय लगैत छथि। फेर फेसबुक पर ‘लम्बा-लम्बा’ छोड़ब शुरू। राज्य एहि लेल चाही, राज्य ओहि लेल चाही… आदि। हुनका सरकारी तनखा सँ लैत अपन काज सँ करोड़ों टका के आमद भेल छन्हि। पाइ सबटा पन्नी मे पैक कय केँ तहखाना मे रखैत छथि। लैबोरेट्री सँ बाहर निकलला पर दुनियादारी घुमिकय जखन घर जाएत छथि त सुतली राति मे ओ अपन तहखाना घूमय जाएत छथि। बताह जेकाँ हँसैत पन्नी सभक साईज चेक कय-कय केँ ओहि मे राखल टका कतेक अछि से स्मरण करैत ठहक्का लगा-लगा हँसैत छथि। खूब हँसलाक बाद फेर बाहर निकलय काल शर्ट-पैन्ट जे हँसबाक कारण चुत्तर आ देह सँ खसकल रहैत छन्हि तेकरा सरियाकय फेर ‘राज्य चाही, राज्य एहि लेल चाही…’ आदि सोचैत एकदम कनौना मुंह बनाकय बाहर निकलैत छथि। घन्टा राज्य भेटत एहेन-एहेन पदनधोत मनुक्ख, महाकंजूस मैथिल प्राणी केँ! सोचू अहाँ अपने!
 
आब पूछब जे अहाँ अपने कोन बड़का उत्कीर्णा केलहुँ जे दोसरक खिस्सा टा सुनाकय समय बितबैत छी…. से बाबू हमहुँ बड नीक लोक नहि छी। तामस अछि पोरे-पोरे… एक बेर प्रयास कयल, दू बेर प्रयास कयल… देखल जे लोक सब एहि सँ कोनो मतलबे नहि रखता त हमरे प्रयास केला सऽ कि होयत… से चोर जेकाँ साइड लागि गेलहुँ हजुर। हम अपने बड़का चोर छी से स्वीकार करय मे हमरा हर्ज नहि बुझाइत अछि। महात्मा गाँधी जेकाँ रहितहुँ त किछु कय पबितहुँ… मुदा से धैर्यता आ गम्भीरता हमरा मे नहि अछि। हमरा राज्य नहि चाही। हम पुनः अपन चौर्यकला मे प्रवीण बनिकय ‘राम-राम आलसी पुकारा’ वला स्टेट मे पहुँचि गेल छी। आध्यात्मिक बनिकय जीवन बीति जाय, एतबे टा इच्छा बाँचल अछि। फुसिये अहाँ सब केँ आब राज्य केर महत्व बतायब आ लोक सब केँ जगायब, एतेक दम हमरा मे नहि अछि। हम थाकि गेल छी मालिक। अहाँ जानू, राज्य कियैक चाही, कथी लेल चाही… अभियान कोना चलायब, नहि चलायब… राम राम हजुर! २०१६ केर ८-९ नवम्बर उपरान्त किछु दिन आरो सक्रिय रहलहुँ मुदा दिल्ली सँ बड़का मालिक सब जे खेलावेला कय केँ गेला तिनका सभक लेल हम मैदान पूरे खाली कय देल। कतेक बेर झूट्ठे भिड़न्त करू! जानैथ मालिक सब। प्रणाम हजुर।
 
हरिः हरः!!

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